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घर में शादी की रौनक थी ,अतुल का विवाह हुआ है ,कल ही तो बहु का स्वागत समारोह  था।  घर में कुछ रस्में चल रहीं थी। ये ही तो होता है, जब लड़की की शादी होती है तो उसके घर में चहल -पहल होती है। कभी खरीददारी ,कभी साज -सज्जा ,गाना- बजाना किसी को भी फुरसत नहीं मिलती और लड़की के विदा होते ही सब सुनसान हो जाता है। इसके बाद लड़के वाले के  घर में रौनक तब आती है , जब बहु घर में प्रवेश करती है। देवता पूजन ,कंगना खिलाई आदि कई रस्में होती हैं। स्वागत समारोह के बाद अतुल और उसकी बहु अपने उपहार खोलकर देख रहे थे क्योंकि जब तक देवता पूजन नहीं होता तब तक बहु कुछ भी कार्य नहीं करती, उसके बाद रसोई की रस्म होगी। विवाह के दो दिन बाद अतुल का एक दोस्त आया ,वो बाहर रहता है इसीलिए विवाह के समय नहीं आ पाया। आज आया था तो आते ही बोला -भाभीजी से नहीं मिलवाएगा। इस कारण अतुल ने कविता को अथिति कक्ष में बुलाया। 

              कविता को देखते ही अंकुर बोला -भाभीजी आप तो अपने नाम  तरह ही खूबसूरत हैं ,आपने मेरा नाम तो सुना ही होगा। कविता ने अतुल  तरफ देखा ,वो कुछ कहता इससे पहले ही अंकुर बोल उठा -इसने मेरे बारे  में कुछ नहीं बताया ?अतुल बोले  -तू बड़ा लाट साहब है ,जो मैं तेरा पुराण इसे सुनाता। सुनकर कविता मुस्कुरा दी। ख़ैर छोडो इसे, भाभीजी मैं अपना परिचय देता हूँ। मेरा नाम अंकुर है, हम दोनों पक्के मित्र हैं ,मैं एक बड़ी कम्पनी में नौकरी करता हूँ और भाभीजी ये आपके लिए [उसने अपने बराबर से उठाकर एक बड़ा सा पैकेट कविता की तरफ बढ़ा दिया] फिर वे दोनों आपस में एक दूसरे को खींचने लगे।  कविता पहले तो उनकी बातें सुनती रही उसके बाद वहाँ से उठकर चली गई। कुछ देर दोनों दोस्तों ने बातें कीं , थोड़ी देर बाद अतुल तेज आवाज में बोला -मम्मी चाय भिजवा देना वरना ये यहीं बैठा रहेगा और शाम का खाना खाकर ही जायेगा। मम्मी ने हँसते हुए चाय भिजवा दी और अंकुर चाय नाश्ता  करके चला गया। जाने से पहले बोला -जरा भाभी जी से मिलवा दो ,उन्हें 'बाय' कर  दूँ। अतुल ने मुझे बुलाया ,मुझे देखकर अंकित बोला -देखा भाभी जी मुझे चाय में ही , टरका रहा है ,मैं तो खाने के हिसाब से आया था ,ख़ैर छोडो ,अगली बार आऊंगा तो आपके हाथों का बना खाना खा कर ही जाऊंगा। कविता ने हाँ में गर्दन हिलाई। 
               कविता अतुल से बोली -तुम्हारा दोस्त कुछ ज्यादा ही बोलता है ,कुछ ज्यादा ही अपनापन झाड़ रहा था। नहीं वो पहले से ही ऐसा है अतुल बोला। कुछ दिन बाद खाने की रस्म में अंकुर को भी बुला लिया ,खाने के बाद उसने कविता के खाने की बड़ी प्रशंसा की, उस दिन भी वो उपहार लेकर आया था। अपनी आमदनी के हिसाब से दोनों उपहार महंगे और सुंदर थे। अक्सर वो घर में आने लगा कविता भी धीरे -धीरे उससे खुलने लगी। कविता का जन्मदिन आ रहा था उसने अतुल से कहा -मुझे उपहार में क्या  दे रहे हो ?अतुल बोला- उपहार में मैंने अपने आप को ही तुम्हें दे दिया और क्या चाहिए ?कविता को उसका कूटनीति से भरा जबाब पसंद नहीं आया फिर अतुल ने दूसरी तरक़ीब लगाई बोला -तुम्हें क्या चाहिए? सब कुछ तो है तुम्हारे पास। एक बात सोचो अब मैं तुम्हें उपहार दूंगा ,जब मेरा जन्मदिन आएगा फिर तुम मेरे लिए परेशान होंगी। जब मैं उपहार दूंगा तो घर में  से पैसे जायेंगे और जब तुम उपहार दोगी तो मुझसे ही पैसे मांगोगी।  पैसे तो  घर में से ही जायेंगे , न तुम मुझे कोई उपहार दो न मैं तुम्हें कोई उपहार दूँ। कविता ने सोचा- शायद अतुल का बजट नहीं होगा उसने हां कर  दिया। 
                     बाद में कविता ने महसूस किया कि अतुल ने अपनी बातों में उलझाकर उसे ठग लिया उसे मुर्ख बनाया ये बात वो अपनी सास को बता रही थी तभी अंकुर भी आ गया दोनों हंसने लगे। जन्मदिन पर अतुल उसे घुमाने ले  गया तभी अंकुर का फोन आया कि वहाँ पर दोनों आ जायें हम दोनों उधर की तरफ मुड़  गए वहाँ जाकर देखा कि अंकुर ने बहुत ही अच्छा इंतजाम किया था. केक भी काटा और उपहार में एक सुंदर हार था। जैसी उम्मीद मैंने अतुल से की थी वो काम अंकुर ने किया मैं अतुल की तरफ देख रही थी। अतुल को भी महसूस हुआ उसने अंकुर से कहा -तूने ये सब क्यों किया ?वो बोला -क्या मैं नहीं कर  सकता ,मेरी भाभी नहीं है क्या ?कविता बोली -आपने ये सब किया मुझे अच्छा लगा लेकिन मैं ये हार नहीं ले सकती। अंकुर ने अपनेपन व प्यार का वास्ता देकर जबरदस्ती वो हार दे दिया। हम घर तो आ गये लेकिन दोनों चुप थे कुछ था जो खटक रहा था। 

                  अब कभी भी अंकुर आता तो कविता किसी न किसी काम के बहाने से इधर -उधर हो जाती उसे उम्मीद थी कि कविता उसके और नजदीक आएगी लेकिन वो तो उससे दूर हो गयी। उसने एक दिन कविता से पूछ ही लिया कि तुम मुझसे अब दूर -दूर क्यों रहती हो ?कविता बोली -हर रिश्ते की एक सीमा होती है ,जो उम्मीद मैंने अतुल से लगाई थी वो काम तुमने किया क्यों ?अतुल को नीचा दिखाने के लिए या अपने -आप को मेरी नजर में आने के लिए। तुम  अतुल के दोस्त हो उस रिश्ते की क़द्र करते हुए मैं भी तुमसे बात करने लगी लेकिन ये रिश्ता कोई दूसरा ही रूप ले रहा है। मैंने तुम्हें अक़्सर मुझे निहारते देखा है लेकिन मैंने अपने -आप को समझाया कि नहीं मैं ग़लत सोच रही हूँ। औरत की एक इंद्री ऐसी होती है जो समझ रखती है कि देखने वाले की नजर कैसी है ?लेकिन मैंने उसे नजर अंदाज किया कि तुम दोस्तों में किसी भी प्रकार गलत फ़हमी न हो। लेकिन तुम्हारे उपहार ने अतुल को नीचे गिराने का प्रयत्न  किया। मैं उससे प्यार करती हूँ कोई उपहार उसका स्थान नहीं ले सकता। मैं उससे रूठती उस पर झल्लाती मुँह बनाती तब भी मैं उसके साथ खुश थी लेकिन तुम्हारा वो हार हम दोनों के बीच आ गया कहकर कविता ने दरवाजा बंद कर  लिया। 
              कई दिनों तक अंकुर नहीं आया।  जब घर में कोई नहीं था तब वो अचानक घर में घुस गया।  उसे देखकर कविता अचकचाकर बोली -तुम यहाँ ?अब पहले की तरह व्यवहार नहीं रहा अंकुर बोला। पहले जैसी सोच भी तो नहीं रही कविता बोली। क्यों मैंने क्या किया ?मुझे तुम देखते ही पसंद आ गईं थीं कविता बीच में ही बोली -यह जानते हुए भी कि मैं तुम्हारे दोस्त की पत्नी हूँ। क्या फ़र्क पड़ता है ?अंकुर ने लापरवाही से कहा। तब मैंने सोचा था - कि औरतें उपहार की भूखी होती हैं ,अतुल के पास इतना पैसा नहीं जो तुम्हारी जरूरतों को पूरा कर सके तो तुम मेरी हो।  अपने उपहार ,अपने प्यार से मैं तुम्हें अपनी ओर खींच ही  लेता। देखो ,ये तुम्हारी गलतफ़हमी है 'अगर पैसे या उपहार से ही सच्चा प्यार मिलता तो किसी गरीब का घर न बसता और हर पैसे वाला सच्चे प्यार को न तरसता।' क्या तुम मुझसे प्यार करते हो ?यदि करते तो तुम्हारी सोच इतनी छोटी न होती। ये महज़ एक आकर्षण है मेरी सुंदरता के प्रति ,ये अगर तुम्हें मिल जाए तो कुछ दिन बाद इसका आकर्षण ख़त्म हो जायेगा और तुम्हारा प्यार मिटटी में धूल चाटता नजर आएगा। उपहार होते हैं दिलों को जोड़ने के लिए न कि  किसी का घर तोड़ने के लिए। हो सकता है ,मैं तुम्हारी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी ,क्या पता तुमने पहले भी ऐसा किया हो ?इसी कारण तुम्हारी सोच ही ऐसी बन गई।

                 यदि तुम चाहते हो कि तुम्हारी दोस्ती यूँ ही बनी रहे तो अपने दिमाग का ये फ़ितूर निकालकर आना वरना अपने काम के बहाने बनाकर अपने घर ही में रहो और अपनी सोच को बदलकर अपने लिए भी कोई सच्चा प्यार ढूढ़कर विवाह कर लो।  कुछ महिलायें हो सकती हैं कि तुम्हारे बहकाये में आ गईं हों लेकिन तुम सबको एक ही तराजू में नहीं तौल सकते। तभी कविता की सास वहाँ आ गई ,अंकुर को देखकर बोली -अरे !तुम कब आये ?कविता बोली -अभी आये हैं इनके लिए लड़की ढुंढी जा रही है तो पूछ रहे थे कि भाभी हमारे साथ चलोगी लड़की देखने के लिए। अच्छा कब जा रहे हो ?लड़की देखने उसकी सास ने पूछा अभी समय है कहकर वो चलने के लिए उठा , बोला -अपने जैसी ही ढूढ़ देना और वो वहाँ से चल दिया, एक नई सीख़ लेकर उसकी नजरों में कविता की इज्ज़त और बढ़ गई कि अपने व्यवहार से उसने मुझे अपने दोस्त व उसकी माँ की नजरों में गिरने से बचा लिया।  






























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laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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