सोने की चमक किसे नहीं लुभाती, हर कोई आभूषण का शौकीन होता है |जिनके पास असली आभूषण नहीं होते ,वे नकली से काम चलाते हैं। प्राचीन समय में तो स्त्रियाँ ही नहीं ,पुरुष भी आभूषण पहनते थे। आज का समय बहुत बदल गया है। जिन लोगों के पास पैसा है, वो सोना ही नहीं हीरे भी पहनते हैं।
जिनके पास पैसा नहीं, वो तो दो वक़्त की रोटी के लिए ,कमाने के नए -नए अवसर खोजते हैं। उन अवसरों के बीच जिंदगी हाथों से फिसलती जाती है। सोना पहनना तो दूर वे रोजी -रोटी के फेर में पड़कर अपने जीवन के सुनहरे पल भी गवां देते हैं। बचपन में अक्सर रईसों को देखा, कि गले में सोने की मोटी सी चेन,हाथों में तीन -चार मोटी -मोटी अंगूठियां होतीं , जब वो गाड़ी से उतरते तो उनका व्यक्तित्व देखते ही बनता। छुटपन में हमने भी सोच लिया था कि हमें भी अपने स्तर को इसी तरह बढ़ाना है लेकिन ये हमारी सोच थी ,सोच या विचारों पर किसी का बस नहीं चलता।
समय के साथ अपनी इच्छाओं में थोड़ा परिवर्तन किया ,सोचा- घर परिवार के चलते हार तो नहीं पहन पायेंगे, फिर सोचा एक चेन तो पहन ही सकते है जब स्वयं कमायेंगे ,कब तक प्लास्टिक ,सीप के आभूषण पहनेंगे? बड़े हुए तो नौकरी की, पैसे इतने कि हम अपना ही खर्च निकाल नहीं पाते। जैसे -जैसे हम बड़े हुए , महंगाई भी बड़ी हो गई। जब हजारों या लाखों की बात होती थी और अब तो करोड़ों की बातें होने लगीं। सोचा,' इससे तो विवाह ही कर लें ,जिससे विवाह होगा उसका कर्तव्य बनता है कि हमारी इच्छाओं को मान दे ,हमारी इच्छाएँ पूर्ण करे, यही सोचकर विवाह के लिए हां कर दी। पर इसमें भी अड़चन ,ऐसा लड़का जो इतना कमाता हो कि घर खर्च के बाद भी पैसे जमा कर सके वो तो नंबर दो की कमाई से ही संभव था लेकिन पिता को तो ईमानदार ,सभ्य, संस्कारी दामाद चाहिए था , ढूँढा भी।
पति को जब हमारी इच्छा का पता चला ,पता चलते ही बोले -बोले नहीं, हमें स्वर्ण के लाभ -हानि गिनाने लगे। आज के जमाने में कौन पहनता है जेवर ?जिनके पास हैं उनके भी बैंक में पड़े हैं। जेवर पहनोगी तो जान का खतरा बना रहेगा। चोरी का डर बना रहेगा ,रख -रखाव की चिंता होगी ,हमने भी परिस्थितियों को देखते हुए ,अपनी इच्छाओं पर कुछ समय के लिए विराम लगाना ही उचित समझा। आज अख़बार आया था ,उसमें एक खबर ने हमारा ध्यान अपनी ओर खिंच लिया ,खबर थी, कि अम्बानी जी ने सबकी पगार बढ़ाई किन्तु अपनी पगार नहीं बढ़ाई अभी पूरी खबर पढ़ी ही नहीं थी कि उनकी प्रशंसा शुरू की, कि देखो लोग कैसे -कैसे त्याग करते हैं तभी मोहित ने कहा -पहले खबर पूरी तो पढ़ लो ,जैसे -जैसे ही खबर पढ़ी, आँखें फैलती चली गईं उनकी महीने की पगार ही एक करोड़ थी। हिसाब लगाया, कि हमारी सम्पूर्ण सम्पत्ति भी एक करोड़ की नहीं है। मोहित को धिक्कारा,' तुम क्या ख़ाक व्यापार करते हो ?तुम्हारी तो साल की आमदनी भी करोड़ों में नहीं। उन्हीं दिनों एक वीडियो देखी कि दलित मायावती का बंगला कितना बड़ा और आलीशान है। अखिलेश का बंगला ,उन्हें देखकर उनकी शिक्षा देखी ,मोहित से कहा -इनसे ज्यादा तो हम पढ़े हैं और आज भी हम 'नून तेल लकड़ी 'में फ़से हैं। ये लोग कहाँ से इतना पैसा लाते हैं ?राजनीति से अलग और क्या काम करते हैं ?
जब लाखों की बात होती थी तो हम मेहनत करके लाख के क़रीब पहुंचे तो लोग करोड़ों की बात करने लगे, हम कब तक लोगों के पीछे चलते रहेंगे ?कितनी भी मेहनत कर लो, महंगाई फिर भी पीछे धकेल ही देती है। लगता है जहाँ से चले ,आज भी वहीँ खड़े हैं। न जाने हम कब अमीरों की श्रेणी आ पायेंगे ?अपने बचपन के सपने को जी सकेंगे। इस सोच के साथ जाने कितने वर्ष गुज़र गए ,रोजाना ही अख़बार में देखा जाता कि कब सोना सस्ता होगा ?अख़बार भी इसी कारण लगाया था लेकिन वो दिन नहीं आया कि हम जा कर सोना खरीद लें जब पच्चीस जोड़े तो सत्ताईस हो गया ,सत्ताईस जोड़े तो तीस हो गया इसी तरह वो हमसे खेल खेलता रहा। फिर अचानक ही मन में एक विचार ने हमारे मन में प्रवेश किया कि दीवाली पर या अक्षय तृतीया पर मोहित पीछे से आये ओर गले में हार पहना दे। ये विचार यूँ ही नहीं आया, इसका पूरा श्रेय दूरदर्शन को जाता है जब उसमें इश्तिहार आते हैं और उनके पति अपनी पत्नी को हार देते हैं। हमारी इस सोच के जिम्मेदार अमिताभ जी व अक्षय जी हैं ऐसी ही सोच हमारे मन में भी बलवती हो उठी बहुत दिनों तक इंतजार किया।
लेकिन मोहित तो भोंदू थे ,उन्हें पता ही नहीं चला कि मैंने क्या सोचा है ?एक दिन कह ही दिया कि कभी मन में नहीं आया कि पत्नी को कुछ उपहार दूँ। मोहित ने कहा -हद करती हो, तुम भी मुझे बिना बताये, कैसे पता चलेगा? कि तुम क्या सोचती हो ?जब हमने अपनी भावनाओं को व्यक्त किया तो बोले -वो तो सिर्फ विज्ञापन में ही दिखाते हैं ,उसके उन्हें पैसे मिलते हैं, वास्तविकता में नहीं खरीदते। मेरे हर सपने का मोहित के पास जबाब होता। एक दिन दर्पण में अपने को निहारते हुए देखा ,कि जिस सोच के साथ जिस उम्र में सपने की शुरुआत की थी ,वो तो कब की अलविदा कह चुकी। महंगाई और उम्र दोनों ही आईने में से जीभ चिढ़ा रहे थे।
ये जिंदगी की वास्तविकता थी ,कोई धारावाहिक नहीं कि कितने कष्ट उठाने के बाद भी अभिनेत्री कभी बूढी नहीं होती। बच्चे बड़े हो जाते हैं लेकिन माँ खूबसूरत और जवान रहती है। ये असल जिंदगी है, जिसमें उम्र अपना असर जरूर दिखाती है।
जिनके पास पैसा नहीं, वो तो दो वक़्त की रोटी के लिए ,कमाने के नए -नए अवसर खोजते हैं। उन अवसरों के बीच जिंदगी हाथों से फिसलती जाती है। सोना पहनना तो दूर वे रोजी -रोटी के फेर में पड़कर अपने जीवन के सुनहरे पल भी गवां देते हैं। बचपन में अक्सर रईसों को देखा, कि गले में सोने की मोटी सी चेन,हाथों में तीन -चार मोटी -मोटी अंगूठियां होतीं , जब वो गाड़ी से उतरते तो उनका व्यक्तित्व देखते ही बनता। छुटपन में हमने भी सोच लिया था कि हमें भी अपने स्तर को इसी तरह बढ़ाना है लेकिन ये हमारी सोच थी ,सोच या विचारों पर किसी का बस नहीं चलता।
समय के साथ अपनी इच्छाओं में थोड़ा परिवर्तन किया ,सोचा- घर परिवार के चलते हार तो नहीं पहन पायेंगे, फिर सोचा एक चेन तो पहन ही सकते है जब स्वयं कमायेंगे ,कब तक प्लास्टिक ,सीप के आभूषण पहनेंगे? बड़े हुए तो नौकरी की, पैसे इतने कि हम अपना ही खर्च निकाल नहीं पाते। जैसे -जैसे हम बड़े हुए , महंगाई भी बड़ी हो गई। जब हजारों या लाखों की बात होती थी और अब तो करोड़ों की बातें होने लगीं। सोचा,' इससे तो विवाह ही कर लें ,जिससे विवाह होगा उसका कर्तव्य बनता है कि हमारी इच्छाओं को मान दे ,हमारी इच्छाएँ पूर्ण करे, यही सोचकर विवाह के लिए हां कर दी। पर इसमें भी अड़चन ,ऐसा लड़का जो इतना कमाता हो कि घर खर्च के बाद भी पैसे जमा कर सके वो तो नंबर दो की कमाई से ही संभव था लेकिन पिता को तो ईमानदार ,सभ्य, संस्कारी दामाद चाहिए था , ढूँढा भी।
पति को जब हमारी इच्छा का पता चला ,पता चलते ही बोले -बोले नहीं, हमें स्वर्ण के लाभ -हानि गिनाने लगे। आज के जमाने में कौन पहनता है जेवर ?जिनके पास हैं उनके भी बैंक में पड़े हैं। जेवर पहनोगी तो जान का खतरा बना रहेगा। चोरी का डर बना रहेगा ,रख -रखाव की चिंता होगी ,हमने भी परिस्थितियों को देखते हुए ,अपनी इच्छाओं पर कुछ समय के लिए विराम लगाना ही उचित समझा। आज अख़बार आया था ,उसमें एक खबर ने हमारा ध्यान अपनी ओर खिंच लिया ,खबर थी, कि अम्बानी जी ने सबकी पगार बढ़ाई किन्तु अपनी पगार नहीं बढ़ाई अभी पूरी खबर पढ़ी ही नहीं थी कि उनकी प्रशंसा शुरू की, कि देखो लोग कैसे -कैसे त्याग करते हैं तभी मोहित ने कहा -पहले खबर पूरी तो पढ़ लो ,जैसे -जैसे ही खबर पढ़ी, आँखें फैलती चली गईं उनकी महीने की पगार ही एक करोड़ थी। हिसाब लगाया, कि हमारी सम्पूर्ण सम्पत्ति भी एक करोड़ की नहीं है। मोहित को धिक्कारा,' तुम क्या ख़ाक व्यापार करते हो ?तुम्हारी तो साल की आमदनी भी करोड़ों में नहीं। उन्हीं दिनों एक वीडियो देखी कि दलित मायावती का बंगला कितना बड़ा और आलीशान है। अखिलेश का बंगला ,उन्हें देखकर उनकी शिक्षा देखी ,मोहित से कहा -इनसे ज्यादा तो हम पढ़े हैं और आज भी हम 'नून तेल लकड़ी 'में फ़से हैं। ये लोग कहाँ से इतना पैसा लाते हैं ?राजनीति से अलग और क्या काम करते हैं ?
जब लाखों की बात होती थी तो हम मेहनत करके लाख के क़रीब पहुंचे तो लोग करोड़ों की बात करने लगे, हम कब तक लोगों के पीछे चलते रहेंगे ?कितनी भी मेहनत कर लो, महंगाई फिर भी पीछे धकेल ही देती है। लगता है जहाँ से चले ,आज भी वहीँ खड़े हैं। न जाने हम कब अमीरों की श्रेणी आ पायेंगे ?अपने बचपन के सपने को जी सकेंगे। इस सोच के साथ जाने कितने वर्ष गुज़र गए ,रोजाना ही अख़बार में देखा जाता कि कब सोना सस्ता होगा ?अख़बार भी इसी कारण लगाया था लेकिन वो दिन नहीं आया कि हम जा कर सोना खरीद लें जब पच्चीस जोड़े तो सत्ताईस हो गया ,सत्ताईस जोड़े तो तीस हो गया इसी तरह वो हमसे खेल खेलता रहा। फिर अचानक ही मन में एक विचार ने हमारे मन में प्रवेश किया कि दीवाली पर या अक्षय तृतीया पर मोहित पीछे से आये ओर गले में हार पहना दे। ये विचार यूँ ही नहीं आया, इसका पूरा श्रेय दूरदर्शन को जाता है जब उसमें इश्तिहार आते हैं और उनके पति अपनी पत्नी को हार देते हैं। हमारी इस सोच के जिम्मेदार अमिताभ जी व अक्षय जी हैं ऐसी ही सोच हमारे मन में भी बलवती हो उठी बहुत दिनों तक इंतजार किया।
लेकिन मोहित तो भोंदू थे ,उन्हें पता ही नहीं चला कि मैंने क्या सोचा है ?एक दिन कह ही दिया कि कभी मन में नहीं आया कि पत्नी को कुछ उपहार दूँ। मोहित ने कहा -हद करती हो, तुम भी मुझे बिना बताये, कैसे पता चलेगा? कि तुम क्या सोचती हो ?जब हमने अपनी भावनाओं को व्यक्त किया तो बोले -वो तो सिर्फ विज्ञापन में ही दिखाते हैं ,उसके उन्हें पैसे मिलते हैं, वास्तविकता में नहीं खरीदते। मेरे हर सपने का मोहित के पास जबाब होता। एक दिन दर्पण में अपने को निहारते हुए देखा ,कि जिस सोच के साथ जिस उम्र में सपने की शुरुआत की थी ,वो तो कब की अलविदा कह चुकी। महंगाई और उम्र दोनों ही आईने में से जीभ चिढ़ा रहे थे।
ये जिंदगी की वास्तविकता थी ,कोई धारावाहिक नहीं कि कितने कष्ट उठाने के बाद भी अभिनेत्री कभी बूढी नहीं होती। बच्चे बड़े हो जाते हैं लेकिन माँ खूबसूरत और जवान रहती है। ये असल जिंदगी है, जिसमें उम्र अपना असर जरूर दिखाती है।


