दिव्या के घर एक लड़की आई हुई है ,कहती है कि मेरे लड़के की दोस्त है। बहुत दिनों से यहीं रह रही है ,पता नहीं कैसी दोस्त है ?महीने भर से तो यहीं रह रही है न ही उसके घर वालों का पता ,बस गाड़ी से उतरती है और घर में घुस जाती है। पता नहीं कैसे -कैसे लोग हैं दुनिया में ?अपनी लड़की की कोई खोज -खबर ही नहीं लेते ,बेटी कहाँ है, क्या कर रही है ?कुछ पता नहीं। श्रीमती अनीता एक ही साँस में ये सब बातें कह गईं। तभी मीना जी बोलीं -ऐसे लोग किसी से मिलना -जुलना पसंद भी तो नहीं करते क्योंकि मिलेंगे तो कोई न कोई पूछ ही बैठेगा कि अब तो बेटा खूब कमा रहा है ,कब इसका विवाह कर रही हो ?एक दिन मैंने पूछा भी था कि कब बहु ला रही हो? तो बोलीं -आजकल के बच्चे सुनते ही किसकी हैं ?जब मर्जी होगी तो कर लेगा। अब कौन ,किससे और क्या कहे ?आजकल के बच्चों की सोच भी क्या हो गई है ?पहले तो माता -पिता लड़का कमाने लगा और विवाह कर देते थे लेकिन अब बिना विवाह के ही साथ रहते हैं। पता नहीं आजकल की पीढ़ी क्या चाहती है ?जिस उम्र में कमाने लायक होते हैं उस उम्र में तो एक -दो बच्चे हो जाते थे कमाने के बाद भी विवाह करने के लिए तैयार नहीं। एकदम से अनिताजी बोलीं -करेंगे सब काम पर जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते। कहकर दोनों हँस पड़ीं।
मैं छत पर घूम रही थी ,दिव्या के घर जो लड़की आई थी वो भी शाम के समय बाहर निकली। बाहर खड़ी होकर शायद बाहर का नजारा देख रही थी। शायद घर में पड़े -पड़े बोर हो गई थी ,मैंने देखा -पतली -दुबली ,छरहरे बदन की गोरी -चिट्टी लड़की है। उसने टॉप के नीचे छोटा सा निक्कर पहन रखा था। घुघंराले लम्बे बाल थे उसके। देखने में तो किसी पैसे वाले परिवार की लड़की लग रही थी जो हर पन्द्रहवें दिन सौंदर्य सज्जा की दुकान पर जाती होगी। लड़का भी खूब पैसे कमा रहा है। मैं कल्पना करने लगी दोनों की जोड़ी खूब जमेगी ,फिर दिव्या जी ,क्यों नहीं कर रहीं इनका विवाह? अभी मैं ऐसे ही कुछ बातें और सोच पाती तभी मैंने देखा ,दिव्या जी बाहर आईं ओर बोलीं -तुम यहाँ क्यों खड़ी हो ?ऊपर छत पर घूम लेती। फिर उसे समझाते हुए बोलीं -देखो यहाँ का माहौल अलग है ,यहाँ के लोगों की सोच पुरानी है। तुम बाहर शहर में रहती हो ,वहाँ का माहौल अलग है ,सब पढ़े -लिखे हैं ऐसे ही रहते हैं। वहाँ कुछ फ़र्क नहीं पड़ेगा। यहाँ तुम्हें शॉर्ट्स में देखकर बातें बनायेंगे। ये बातें करते हुए वो उस लड़की को अंदर ले गईं।
उनकी बातें सुनकर मन बदल गया कि वो क्या कहना चाहती थीं ?कि यहाँ रहने वाले लोग कम पढ़े -लिखे या गवाँर हैं। ये क्या तरीका हुआ ,उस लड़की को समझाने का। मैं नीचे आ गई। पति ने पूछा- कि इतनी जल्दी कैसे आ गईं ?मैंने दिव्या जी की सारी बातें उन्हें बताईं ,वो बोले -तुम्हें क्या लेना ,वो कैसे भी समझाएं ?उनकी अपनी सोच है ,उनकी सोच पर हम कोई बंधन तो नहीं लगा सकते। वो अपने घर में गलत कर रहीं हैं ,किसी भी बिन ब्याही लड़की को घर में रखा है और हमें उसकी नजर में गवाँर बता रही हैं, मैंने कहा। वो बोले -तुम्हें ही तो नहीं कहा। मैं निरुत्तर होकर चुप हो गई।
एक दिन मैं बाहर खड़ी थी कि दिव्या जी भी अपने घर से निकलीं ,मुझे देखकर बोलीं -भाभीजी आप तो बहुत दिनों में दिखाई दीं ,कहाँ रहती हैं आजकल ?मैंने कहा -कहीं भी तो नहीं ,घर के कामों से ही फुरसत नहीं मिलती। वो बोलीं -आ जाओ ,भाभीजी। मैंने इंकार कर दिया, फिर वो वहीं खड़ी होकर बात करने लगीं। एकाएक मैंने पूछा -आपके यहाँ जो लड़की आई हुई थी क्या वो गई ?वो बोलीं -नहीं। फिर मैंने अगला प्रश्न किया -कितनी पढ़ी है वो। वो बोलीं -अभी तो स्नातक कर रही है ,फिर आपके लड़के को कैसे मिल गई ?जहाँ तक मेरा मानना है ,वो तो दो साल पहले ही स्नातक कर चुका है। वो अभी कुछ कह पातीं, तभी मेरी बेटी अपनी स्कूटी से उतरी, उसने पटियाला सूट पहना था, बड़ी अच्छी लग रही थी। तभी दिव्याजी बोलीं -आपकी बेटी भी बड़ी हो गई ,पटियाला में अच्छी लग रही है। तब मैंने कहा -हाँ जी ,मैं तो इससे कहती रहती हूँ कि मिड्डी ,स्कर्ट ,शार्ट्स भी पहना कर लेकिन ये तो मना कर देती है। कि जो शॉर्ट्स पहनते हैं वे क्या ज्यादा पढ़े -लिखे होते हैं ?दसवीं -बाहरवीं पास भी ये पहनते हैं। ये हमारी सभ्यता या संस्कृति नहीं ,कपड़ों से ही व्यक्ति का स्तर नहीं बढ़ता। बढ़ाना है ,तो अपनी सोच का स्तर बढ़ाएं। ये तो मात्र बाहरी पहनावा है। जो जितना ज्यादा पढ़ा -लिखा होगा ,उतना ही सरल ,सादगी भरा होगा। अपनी परम्पराओं की ,आसपास रहने वालों की भावनाओं की भी कद्र करेगा।
सुन्दर व्यक्ति तो सभी को अच्छा लगता है लेकिन मन की सुंदरता से उसका सम्पूर्ण व्यक्तित्व महक उठता है। फिर ये मायने नहीं रखता कि उसने क्या पहना है ?सादगी में ही उसकी सुंदरता छिपी होती है। अपने संस्कारों व परम्पराओं का मान रखना भी हमारी सभ्यता में शामिल है। ऐसी है मेरी बेटी।
मैं छत पर घूम रही थी ,दिव्या के घर जो लड़की आई थी वो भी शाम के समय बाहर निकली। बाहर खड़ी होकर शायद बाहर का नजारा देख रही थी। शायद घर में पड़े -पड़े बोर हो गई थी ,मैंने देखा -पतली -दुबली ,छरहरे बदन की गोरी -चिट्टी लड़की है। उसने टॉप के नीचे छोटा सा निक्कर पहन रखा था। घुघंराले लम्बे बाल थे उसके। देखने में तो किसी पैसे वाले परिवार की लड़की लग रही थी जो हर पन्द्रहवें दिन सौंदर्य सज्जा की दुकान पर जाती होगी। लड़का भी खूब पैसे कमा रहा है। मैं कल्पना करने लगी दोनों की जोड़ी खूब जमेगी ,फिर दिव्या जी ,क्यों नहीं कर रहीं इनका विवाह? अभी मैं ऐसे ही कुछ बातें और सोच पाती तभी मैंने देखा ,दिव्या जी बाहर आईं ओर बोलीं -तुम यहाँ क्यों खड़ी हो ?ऊपर छत पर घूम लेती। फिर उसे समझाते हुए बोलीं -देखो यहाँ का माहौल अलग है ,यहाँ के लोगों की सोच पुरानी है। तुम बाहर शहर में रहती हो ,वहाँ का माहौल अलग है ,सब पढ़े -लिखे हैं ऐसे ही रहते हैं। वहाँ कुछ फ़र्क नहीं पड़ेगा। यहाँ तुम्हें शॉर्ट्स में देखकर बातें बनायेंगे। ये बातें करते हुए वो उस लड़की को अंदर ले गईं।
उनकी बातें सुनकर मन बदल गया कि वो क्या कहना चाहती थीं ?कि यहाँ रहने वाले लोग कम पढ़े -लिखे या गवाँर हैं। ये क्या तरीका हुआ ,उस लड़की को समझाने का। मैं नीचे आ गई। पति ने पूछा- कि इतनी जल्दी कैसे आ गईं ?मैंने दिव्या जी की सारी बातें उन्हें बताईं ,वो बोले -तुम्हें क्या लेना ,वो कैसे भी समझाएं ?उनकी अपनी सोच है ,उनकी सोच पर हम कोई बंधन तो नहीं लगा सकते। वो अपने घर में गलत कर रहीं हैं ,किसी भी बिन ब्याही लड़की को घर में रखा है और हमें उसकी नजर में गवाँर बता रही हैं, मैंने कहा। वो बोले -तुम्हें ही तो नहीं कहा। मैं निरुत्तर होकर चुप हो गई।
एक दिन मैं बाहर खड़ी थी कि दिव्या जी भी अपने घर से निकलीं ,मुझे देखकर बोलीं -भाभीजी आप तो बहुत दिनों में दिखाई दीं ,कहाँ रहती हैं आजकल ?मैंने कहा -कहीं भी तो नहीं ,घर के कामों से ही फुरसत नहीं मिलती। वो बोलीं -आ जाओ ,भाभीजी। मैंने इंकार कर दिया, फिर वो वहीं खड़ी होकर बात करने लगीं। एकाएक मैंने पूछा -आपके यहाँ जो लड़की आई हुई थी क्या वो गई ?वो बोलीं -नहीं। फिर मैंने अगला प्रश्न किया -कितनी पढ़ी है वो। वो बोलीं -अभी तो स्नातक कर रही है ,फिर आपके लड़के को कैसे मिल गई ?जहाँ तक मेरा मानना है ,वो तो दो साल पहले ही स्नातक कर चुका है। वो अभी कुछ कह पातीं, तभी मेरी बेटी अपनी स्कूटी से उतरी, उसने पटियाला सूट पहना था, बड़ी अच्छी लग रही थी। तभी दिव्याजी बोलीं -आपकी बेटी भी बड़ी हो गई ,पटियाला में अच्छी लग रही है। तब मैंने कहा -हाँ जी ,मैं तो इससे कहती रहती हूँ कि मिड्डी ,स्कर्ट ,शार्ट्स भी पहना कर लेकिन ये तो मना कर देती है। कि जो शॉर्ट्स पहनते हैं वे क्या ज्यादा पढ़े -लिखे होते हैं ?दसवीं -बाहरवीं पास भी ये पहनते हैं। ये हमारी सभ्यता या संस्कृति नहीं ,कपड़ों से ही व्यक्ति का स्तर नहीं बढ़ता। बढ़ाना है ,तो अपनी सोच का स्तर बढ़ाएं। ये तो मात्र बाहरी पहनावा है। जो जितना ज्यादा पढ़ा -लिखा होगा ,उतना ही सरल ,सादगी भरा होगा। अपनी परम्पराओं की ,आसपास रहने वालों की भावनाओं की भी कद्र करेगा।
सुन्दर व्यक्ति तो सभी को अच्छा लगता है लेकिन मन की सुंदरता से उसका सम्पूर्ण व्यक्तित्व महक उठता है। फिर ये मायने नहीं रखता कि उसने क्या पहना है ?सादगी में ही उसकी सुंदरता छिपी होती है। अपने संस्कारों व परम्पराओं का मान रखना भी हमारी सभ्यता में शामिल है। ऐसी है मेरी बेटी।


