do behne

कुसुम के विवाह की तैयारियां चल रहीं हैं ,सारे काम हो रहें हैं लेकिन न ही वह  खुश है ,न ही घर  में कोई और हल्दी की रस्म चल रही थी ,उसकी ससुराल से हल्दी आई थी ,जिसे देख उसकी माँ के आँख से आँसू निकल आये। जो उसकी बुआ ने देख लिए बुआ बोली-'भाभी इसमें रोने या दुःखी होने की क्या बात है ? ,जब इनकी क़िस्मत में ये ही  लिखा है, उसे तो हम बदल नहीं सकते। जो भी  करो ,ख़ुश नहीं  हो सकते तो रोकर भी मत करो, इसके साथ अच्छा हो ,इसका जीवन शांति पूर्ण व्यतीत हो । अरे !दीदी हमने तो जब सुमन का विवाह किया था, तब भी शांति पूर्वक, हँसी -ख़ुशी से  किया था ,हमें क्या पता था ?उसके साथ ये सब हो जायेगा रोती हुई कुसुम की माँ बोली।
 
 सुमन और कुसुम दोनों बहनें बडे ही  प्यार से रहतीं, माँ
के साथ लगकर घर का सारा काम करातीं। मेल-मिलाप इतना कि एक कपड़े धोती तो दूसरी सुखाती। दोनों साथ -साथ बाजार घूमने जातीं ,घर के सिलाई -कढ़ाई  के कार्य भी मिल -जुलकर कर लेतीं। लोग उन्हें देखकर कहते -कभी बहनों में इतना  प्यार नहीं देखा। दोनों जब छत पर सोतीं तो दोनों ही  अपनी चारपाई पास-पास बिछा लेतीं, घंटों बातें करती रहतीं। तारे गिनती।कुसुम  कहती -दीदी वो चमकीला वाला  तारा मेरा ,नहीं कुसुम वो तारा मेरा है ,तू वो उसके पास वाला ले ले. नहीं दीदी! ये चमकीला वाला तो मैंने पसंद किया था, चलो मैंने आपको दान में दिया। वह राजाओं की तरह शान से कहती , कहकर दोनों हँस पड़ती। कभी -कभी वो सुमन से कहती -दीदी जब आप चली जाओगी तो मैं अकेली रह जाउंगी ,सारा काम मुझे ही करना पड़ेगा। सुमन डांटती- काम की चिंता है ,मेरी याद नहीं आयेगी। अरे !आप चिंता मत करो, जब भी आपकी याद आयेगी, वहीं पहुँच जाया करुँगी। मैं तुझे ब्याहकर अपने ही ससुराल में ले जाउंगी। कोई न कोई तो कुंवारा बैठा ही होगा, तेरे नाम का। मेरा देवर या कोई और रिश्तेदारी में होगा, मैं उसके पैर पड़ूँगी, कहूँगी मेरी बहन से ब्याह कर लो। इस बात से चिढ़कर कुसुम मुँह बनाकर कहती -क्यों मैं कोई कानी ,लंगड़ी -लूली हूँ जो उनकी ख़ुशामद करोगी। मेरे लिए तो अलग ही राजकुमार आएगा और वो खुद ही मेरा हाथ मांगेगा,बड़ी आई एहसान करने वाली। हाँ भई ,मेरी राजकुमारी बहन के लिए आसमान से कोई राजकुमार ही आएगा कहकर सुमन उसे गले लगा लेती। 
                एक दिन ऐसा भी आया जब सुमन का विवाह हुआ और वो अपने घर चली गई ,उसे ससुराल अच्छी मिली ,कुछ ही साल में वो दो बच्चों की  माँ बन गयी। कुसुम के लिए भी लड़का ढूंढा जा रहा था ,उसकी भी बढ़ती उम्र बता रही थी कि उसके विवाह का समय आ गया। सुमन की ससुराल में भी कोई लड़का नहीं मिला, माता -पिता दोनों परेशान कि उसके नाम का लड़का कहीं मिल ही नहीं रहा या भगवान ने बनाया ही नहीं ,पता नहीं, कहाँ छुपा बैठा है ?कब सामने आएगा ?इधर इन परेशानियों से जूझ रहे थे ,उधर सुमन के घर से ख़बर आई कि सुमन को कोई ऐसी बीमारी है जिसका पता भी नहीं चल पा रहा ,इतने इलाज़ के बाद भी कुछ असर नहीं पड़ रहा। माँ -बाप के सर पर तो जैसे गाज ही गिर पड़ी। एक बेटी का तो घर बसा नहीं दूसरी का बिखरने जा रहा है। कुसुम की चिंता छोड़ अब उन्हें सुमन की चिंता ज्यादा सताने लगी। उसके छोटे -छोटे बच्चों का क्या होगा ?जब सुमन को देखने गए तो साथ में कुसुम भी चली गई। बहन की हालत देख कुसुम रोने लगी ,उसने अपनी बहन के बच्चों गले लगाया। घर की साफ -सफ़ाई  की ,न जाने कितने दिनों से सारा घर अस्त -व्यस्त पड़ा था। जब माता -पिता चलने को तैयार हुए तो सुमन कहने लगी -कुछ दिन के लिए कुसुम को यहीं छोड़ दो ,कम से कम बच्चों की देखभाल तो हो ही जाएगी। 

           वहाँ रहकर कुसुम ने सारा घर संभाला ,अपनी बहन की दवाई -गोली सब समय पर दिया ,उसके रहते , सुमन को बहुत आराम हो गया वो पूरी  तरह निश्चिंत हो गई। इधर मौहल्ले वाले कहने लगे -'सयानी लड़की को इतने दिन बहन की ससुराल में नहीं छोड़ते। ' माता -पिता के लिए परेशानी का विषय था ,बीमार बेटी को किसके ऊपर छोड़ें ?दामाद से बात की कुछ दिनों के लिए उन्होंने अपनी बहन को बुला लिया लेकिन दोनों ही बहनों की समस्या तो जस की तस थी। तभी एक दिन सुमन के घर से खबर आई कि उसने बुलाया है ,माता -पिता घबरा गए, पता नहीं क्या हुआ ?दोनों घर पहुंचे देखा वहाँ का माहौल तो शांत है ,फिर क्या बात है ?प्रश्न करती निगाहें चारों तरफ घूम रहीं थीं। कुछ देर बाद बेटी ने अपने पास बुलाया बोली -माँ मैं बिमार सी रहती हूँ पता नहीं कौन सी बिमारी मेरे अन्दर घुस गई है इतना इलाज़ कराया लेकिन कोई असर नहीं पता नहीं कब तक जिन्दा रहुँ या नहीं भी। मैं ये सोच रही थी कि तुम कुसुम का विवाह नवीन से ही कर  दो। जो देखभाल मेरे बच्चों की उनकी मौसी कर सकती है ,वो कोई और औरत नहीं कर  सकती। 
               उसकी बात सुनकर दोनों सकते में आ गए ,ये तुम क्या कह रही हो ?अपने जीते जी सोेत लाना चाहती हो माँ ने कहा। नवीन तो बहुत बड़े हैं उससे ,क्या उनसे भी पूछा है ?'नहीं मैंने अभी किसी से कुछ भी नहीं बताया ,-ये बात अभी आप दोनों के सामने ही रखी है। मैं चाहती  हूँ ,कि जब तक मैं जिन्दा हूँ मेरा घर बस जाये इस बीमारी के चलते न ही मैं बच्चों पर ध्यान दे पा रही हूँ न ही नवीन पर। उनके ऊपर दोहरी जिम्मेदारी पड़ गई है बाहर और घर की। तुम  समझ नहीं रही हो ,अभी तुम बीमार हो इसलिए ऐसे विचार तुम्हारे दिमाग में  आ रहे हैं। जब नवीन से उसका विवाह हो जाएगा तब वो तुम्हारी बहन ही नहीं सोेत भी कहलायेगी' माँ ने कहा। हम दोनों बहन पहले की तरह ही साथ -साथ रह लेंगे, कोई परेशानी नहीं होगी। माँ के समझाने पर भी वो नहीं मानी। अंत में माँ ने कहा- तू दामाद जी से पूछ ले, हम कुसुम से बात करते हैं. कहकर वो लोग चले गए। 

               सुमन की ज़िद के आगे नवीन ने भी हां कर दी उधर अपनी बहन के लिए कुसुम भी त्याग करने के लिए तैयार हो गई। सभी रीति -रिवाज़  के साथ कुसुम सुमन के घर आ गयी। सब नई बहु के स्वागत में जुट गए, सुमन का त्याग भी चर्चा का विषय बना हुआ था। अब वो घर कुसुम का भी हो गया था ,कुसुम के अंदर भी अधिकार के भाव आने लगे ,धीरे -धीरे नवीन का रुझान कुसुम की तरफ बढ़ने लगा। जब दोनों बंद कमरे में होते, तो सुमन के दिल पर साँप लौटते ,कभी कुछ गिरा देती या किसी और बहाने से कुसुम को आवाज़ देती। उसकी इन हरकतों पर अब कुसुम को भी गुस्सा आने लगा। सुमन कभी -कभी नवीन को दोष देती-' कि अब नई मिल गई, अब मुझ पर ध्यान नहीं देते'। इन्हीं परिस्थितियों के चलते कुसुम भी दो बच्चों की माँ बन चुकी थी। पता नहीं कैसे या कौन सी दवाई ने असर दिखाया ?सुमन धीरे -धीरे स्वस्थ होने लगी। अब वो अपने पति को बांटना नहीं चाहती थी ,शायद इसी इच्छा शक्ति के कारण वो स्वस्थ हुई थी। 

          अब वो अपने पति के सम्पर्क में रहना चाहती थी, उसने कुसुम का सामान दूसरे कमरे में रख दिया। यह बात कुसुम को भी पसंद नहीं आई, कुसुम ने  सीधे ही बात करना उचित समझा। दीदी आपने मेरा सामान बाहर क्यों निकाला ?सुमन बोली -अब मैं ठीक हो गयी हूँ ,जब तुम नवीन के साथ कमरे में होती हो तो मुझे बर्दाश्त नहीं होता ,अब मैं तुमसे नवीन को और नहीं बाँट सकती। क्यों? हर बार आपकी नहीं चलेगी ,अब वो मेरे भी पति हैं। अपने मतलब के लिए मेरे से उनका विवाह करा दिया और अब अघिकार दिखा रही हो। अब मैं कहाँ जाउंगी? न इधर की रही, न उधर की। मैं अब कहीं नहीं जाऊँगी आप अपना बोरिया -बिस्तर उठाओ और गाँव चली जाओ। नित नए झगड़े होने लगे, इससे नवीन भी परेशान हो गए।बात माता -पिता के पास पहुंची ,माँ ने कहा -मैंने पहले ही कहा था ,सोेत का दर्द बर्दाश्त नहीं कर पाओगी लेकिन तुम नहीं मानी। इसने तुम्हारे घर आकर कुछ दिन काम किया तुमने सोचा कि विवाह करके ले आउंगी तो ऐसे ही दिन कट जायेंगे लेकिन विवाह के साथ-साथ वो पत्नी का अधिकार भी तो साथ लाई। अब सुमन को अपने फैसले पर दुःख हो रहा था। माँ ने कहा -ये रिश्ता ऐसा भी नहीं कि तोड़कर इसका दूसरा विवाह कर  दें ,इसमें इसका कोई दोष  नहीं। अंत में ये फैसला हुआ कि छः माह एक साथ में रहेगी दूसरी गाँव में. इसके लिए दोनों अनमने मन से तैयार हो गईं लेकिन अब वो बहनें नहीं रहीं सौतन बन गईं।  













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laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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