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नौकरी के लिए कई जगह फार्म भरे हैं ,उम्मीद है ,कहीं न कहीं से तो बुलावा आ ही जायेगा। माता -पिता को भी तसल्ली  रहती  है कि लड़के ने कई जगह फॉर्म भरे हैं ,देखो मेहनत तो कर  रहा है ,अपनी तरफ़ से बाक़ी क़िस्मत के हाथ। पहले तो पढ़ाई में इतनी मेहनत ,सारा दिन माता -पिता पढ़ने पर जोर डालते रहते -'पढ़ ले ,तेरे ही काम आएगा ,पढ़ लेगा तो जीवन में कुछ कर जायेगा। हमने तो जीवन में जो करना था, कर लिया। तुम्हारा तो सारा जीवन पड़ा है ,कहीं ढंग की जगह लग गए तो जिंदगी संवर जाएगी वरना फिरना धक्के खाते हुए। 'रोजाना इसी तरह के नए -नए भाषण दिए जाते। कभी -कभी लगता मैं पैदा ही क्यूँ हुआ ?ये जीवन न हुआ, कोई बोझ हो गया जो मेरे सिर पर रखा है। सिर पर चौबीसों घंटे एक तलवार टंगी रहती, पहले पढ़ाई की अब बेरोजगारी की। 

            मुझे याद नहीं पड़ता कि मैं कभी खूब मस्त होकर खेला हूँ। यहाँ मत कूदो ,वहाँ मत बैठो इधर जाओगे तो गंदे हो जाओगे ,धूल मिटटी में मत खेलो ,चलो बैठकर अपना गृह कार्य पूर्ण करो। जब से मैंने होश संभाला या यूँ कहुँ, जिंदगी को जब से समझना शुरू किया ,तब से ये ही सुनता आ रहा हूँ। बड़ा हुआ तो और निगरानी ,गलत दोस्तों में न  बैठ जाये। कैसे दोस्त हैं इसके ?यदि कोई दोस्त घर पर आ भी जाता ,तो अपनी नजरों से ही उसका स्कैन कर  डालते। सही है या ग़लत। उसका साक्षात्कार लेने लग जाते -'बेटे कहाँ से आये हो ?कहाँ रहते हो ?तुम्हारे माता -पिता क्या करते हैं ?कौन से विषयों से पढ़ाई करते हो ?आर्ट्स ली है या साइंस। उन्हें पता चलता है कि पेपर हुए हैं तो कितने प्रतिशत नंबर लाये हो। यदि उस बच्चे का प्रतिशत मुझसे कम होता ,तो कहते -'इसका पढ़ाई में दिमाग नहीं है ,तुम भी इसके साथ बैठकर इसके जैसे ही हो जाओगे। तुम्हें इसके पास नहीं बैठना चाहिए। माता -पिता का पैसा बर्बाद कर रहा है और अंतिम निर्णय के साथ इससे दोस्ती तोड़ देना।
             यदि पता चलता कि किसी अन्य दोस्त के प्रतिशत मुझसे ज्यादा हैं तो शामत मेरी ही आती -'सारा दिन तुम क्या करते हो ?पढ़ाई -लिखाई में तो तुम्हारा ध्यान ही नहीं है ,देखा नहीं अपने दोस्त को कितने अच्छे नंबर लाता है? ऐसे बच्चे नाम रोशन करते हैं ,अपने माता -पिता का। इसका मैंने ये ही अर्थ निकाला कि नंबर कम लाऊँ या ज्यादा डांट मुझे ही पड़नी है। कहीं घूमने का कार्यक्रम बनाया दोस्तों ने, तो मेरा कार्यक्रम घर में शुरू हो जाता। कहाँ जा रहे हो ?कितनी देर में आओगे ?साथ में कौन -कौन  से दोस्त जा रहे हैं ,कोई लड़की तो नहीं है साथ में ,इस तरह के अनेकों सवालों के जबाब देने के बाद ,जाने की इजाज़त मिलती। ख़ैर ,किसी तरह बाहरवीं पास की। इसके बाद माता -पिता या रिश्तेदार अनेकों विकल्प सुझाते लेकिन बाद में तय वो ही लोग करते कि लड़का इंजीनियरिंग  करेगा या डॉक्टर बनेगा। मेरी इच्छा का कोई महत्व ही नहीं क्योंकि मैं तो नासमझ हूँ पर पढ़ाई मुझे ही करनी है। मैं क्या चाहता हूँ ?इससे किसी को मतलब नहीं। 

            मैं तो चाहता था कि कुछ दिन दोस्तों के साथ घूमूँ ,रोमांचकारी यात्राएं करूं ,पर इससे तो पेट नहीं भरेगा ,खर्चा कौन देगा ?'मैं बेबस गाय  की तरह किसी भी कॉलेज के खूँटे से बाँध दिया जाता हूँ ,मेरा भविष्य संवारने के लिए। मैं भविष्य के बोझ से बचपन से ही दबाया जा रहा हूँ ,पता नहीं मेरा क्या भविष्य है ?किसी तरह मैं कॉलिज पास करके ,अपने प्रमाण -पत्र लेकर इस दफ्तर से उस दफ़्तर चक्कर लगता हुँ । कहीं मेरी इच्छानुसार अच्छे वेतन की नौकरी मिल जाये। बसों में ,रेलगाड़ियों में भूखा -प्यासा धक्के खा ता हूँ। कुछ खुशनसीब होते हैं कि कॉलिज से निकलते ही नौकरी लग जाती है किसी के  बाप की सिफारिश पर या बाप के पैसे के बल पर। मेरे पिता न ही पैसा देंगे ,न ही सिफ़ारिश करेंगे उन्होंने भीष्म प्रतिज्ञा जो की है ,उनके कुछ उसूल हैं जो मेरे रोजगार प्राप्ति में अवरुद्ध बने हुए हैं। अपनी क़ाबिलियत के बल पर मुझे उन्हें अपने -आप को साबित करके दिखाना है। 
          एक -दो जगह मुझे सेवा का अवसर भी प्राप्त हुआ तो वहाँ रहकर मुझे लगा कि मैं कोई इंसान नहीं ,मैं एक पढ़ा -लिखा पालतू हूँ। उनकी हां में हां मिलता रहुँ ,मेरा स्वाभिमान इस बात की गवाही नहीं दे रहा था ,सो मैंने अपने सिर से बोझ कम कर दिया। मेरा बोझ तो कम हुआ किन्तु अपने माता -पिता के अरमानों पर पानी फेर दिया ,जिससे मैं आज तक नहीं उबर पाया। ऊपर से घर -गृहस्थी का बोझ भी आन पड़ा। मैं बैठा रहुँ वो कमाए ,तो स्वयं ही आत्मग्लानि महसूस होती ,नहीं भी होती तो परिवार या रिश्तेदार में  से कोई न कोई अहसास करा ही देता -'मैं बैठा हूँ वो कमा रही है। समझ नहीं आ रहा -'मैं जीवन को समझ नहीं पा  रहा या जिंदगी मेरे साथ खेल ,खेल रही है। भगवान भी क्या चाहता है ?समझ नहीं आ रहा या मुझे कोई समझ नहीं पा रहा या मैं किसी को समझा नहीं पा रहा। 

        आज पता चला कि कहीं नौकरी की उम्मीद है ,फोन आया था एक रिश्तेदार का ,हालाँकि वो नौकरी मेरे लायक नहीं थी पर हालात ऐसे हो चुके हैं कि कहीं भी नौकरी लगे ,इस माहौल से बाहर तो निकलूँ। कोई रिश्तेदार ,दोस्त या जानकार भी नहीं  दिखता ,जो मेरी इन परेशानियों को बाँट सकें। सब अपने -अपने में व्यस्त हैं ,एक मैं ही हूँ नालायक़। मैं अपने -आप में ही बोझ नहीं ,दूसरों के लिए भी हूँ। क्या इंसान अपने तरीक़े से भी जिंदगी जी नहीं सकता? ये कैसी विवशता है ?ख़ैर !आज मेरी जिंदगी में प्रकाश की एक झलक दिखाई दी है ,इसी इंतज़ार में , ख़ुशी में दो दिन कब गुजर गए पता ही नहीं चला? मैंने ही फोन करके पूछ लिया -उधर से आवाज आई ,तुम्हारी जगह तो पहले ही किसी ने ले ली। ''एक आस बंधी थी वो भी तिरोहित हो गयी। क्या पता ,ऊपर वाले ने कुछ अच्छा ही सोचा होगा ?























laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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