घर में चहल -पहल हो रही है ,बच्चे भी खुश हैं। अबकि बार तो मैंने उन्हें तीन -चार दिन के लिए मना लिया। उनके आने से रौनक हो जाती है। वैसे तो उन्हें समय ही नहीं मिलता ,जब भी आतीं सुबह आकर शाम तक वापस चली जातीं। अपने घर से फ़ुरसत ही नहीं मिलती थी। अबकी बार मैंने जीजाजी को ही पकड़ा कि कुछ दिन अपना घर स्वयं देखें। वो बोले -मैं तो चाहता हूँ कि ये मेरा पीछा छोड़े ,लेकिन ये कहीं जाती ही नहीं। 'सुनकर सब हंस पड़े। दीदी बोलीं- अबकी बार देखना जब तक बुलाओगे नहीं ,तब तक नहीं आउंगी। उन्हीं दिनों मेरी नौकरी की बात चल रही थी मैं साक्षात्कार मैं दे चुकी थी ,आजकल में मुझे पता चलना था कि मैं चुनी गई हूँ या नहीं। एक दिन तो मैंने आराम से निकाल दिया ,दूसरे दिन मुझे घबराहट सी होने लगी। अपने को काम में व्यस्त रखने का प्रयत्न कर रही थी लेकिन मन में अजीब सी बेचैनी हो रही थी।
दोपहर बाद मुझसे रुका नहीं गया और मैंने दीदी को बताया कि आज मुझे शायद फोन आये ,उम्म्मीद तो पूरी -पूरी है फिर भी दिल में घबराहट सी हो रही है। दीदी ने कहा -जो भी होगा अच्छे के लिए ही होगा ,परेशान होने की आवश्यकता नहीं। देखना तुम्हारा ही नाम आएगा उन्होंने पूर्ण विश्वास से कहा। उनके कहने का तरीका ऐसा था कि मैं भावुक हो उठी ,मैं उनके गले लगकर बोली -अगर मेरा चयन हो गया तो आपकी मनपसंद साड़ी दिलवाऊंगी। साड़ी तैयार रखना कहकर वो हंस पड़ीं। एक घंटे बाद मुझे फोन आया -'उधर से आवाज आई कि तुम्हारी नौकरी लग गई है ,एक सप्ताह बाद तुम आ सकती हो। मैं ख़ुशी के कारण दीदी से लिपट गई। अगले दिन ही मेरा जन्मदिन था ,हम बाहर जाना चाहते थे लेकिन दीदी ने अपने हाथों से सारा खाना बनाया। शाम को हम दीदी को उनकी पसंद की साड़ी दिलवाकर लाये ,पहले तो मना कर रहीं थीं फिर हमने दिलवा ही दी। चार -पांच दिन कैसे निकल गए ?पता ही नही चला। दीदी अपने घर चली गईं मैं भी अपने जाने की तैयारी करने लगी।
अभी दो माह भी नहीं बीते थे कि मुझे नौकरी छोड़कर आना पड़ गया ,क्योंकि परिस्थिति ऐसी रहीं कि नौकरी छोड़ना मेरी मजबूरी बन गया ,मुझे बेहद दुःख था। रह- रहकर नौकरी जाने का दुःख होता। दीदी भी आतीं ,अपने मम्मी -पापा से मिलने लेकिन कभी मेरी नौकरी के विषय में कुछ नहीं कहा न ही पूछा। जब मम्मी -पापा ठीक हो गए, तब मुझे फिर खलने लगा कि काश !मुझे नौकरी छोड़नी न पड़ती। दीदी का फोन आता और मम्मी से बात करके रख देतीं। मैंने सोचा -दुनिया ऐसी ही है ,मतलबी। एक दिन मम्मीजी बोलीं -सुमन जाकर देखना मैंने सुना है कि वहाँ पर जगह खाली है। मेरी उम्मीद जागी और मैं अपने सारे कागज अंकतालिका वगैरहा लेकर स्कूल पहुँची ,किस्मत मेरे साथ थी ,मेरी अच्छी तनख्वाह पर नौकरी लग गई।
बेटे का जन्मदिन था, दीदी ने अपनी वो ही पुरानी हंसी के साथ घर में प्रवेश किया। बेटे ने केक का टा ,तभी दीदी बोलीं -दो-दो शुभकामनाएं बेटे के जन्मदिन की और तुम्हारी नौकरी की ,तुमने तो बताया भी नहीं। मैंने सोचा -शायद मम्मी ने बताया होगा, फिर मन में उनके प्रति गुस्सा भी था जब नौकरी छोड़नी पड़ गई तब तो एक बार भी नहीं पूछा-' कि सुमन कैसी हो ?थोड़ी सांत्वना ही दे देतीं। अभी मैं ये सब बातें सोच ही रही थी कि मम्मी ने कहा -तुम्हारी दीदी ने ही उस स्कूल के बारे में बताया था और हमें तैयार किया था तुम्हें वहाँ भेजने के लिए ,सुनकर मुझे आश्चर्य हुआ कि मैं उनके लिए गुस्सा लिए बैठी थी और वो मेरे लिए ये सब सोच रहीं थीं।दीदी बोलीं - तुम्हारी दी हुई साड़ी ,मैंने अभी तक नहीं पहनी क्योंकि जिस नौकरी की ख़ुशी में तुमने मुझे वो साड़ी दी थी ,वो ही नहीं रही तो मैं कैसे ?वो साड़ी पहन सकती थी। तुम्हारे दुखते दिल को क्या और दुखाती ?लेकिन अब पहनूँगी ,ब्लाउज सिलवाने के लिए दे दिया है कहकर वो हंस दीं।
उनके जाने के बाद मैं सोच रही थी ,कभी -कभी अनजाने ही हम किसी को कितना ग़लत समझ लेते हैं जबकि ऐसा नहीं होता और दीदी का मान मेरी नजरों में और बढ़ गया। अच्छा हुआ, मैंने उनसे कुछ कहा नहीं वरना मैं अपने -आप से ही नजरें नहीं मिला पाती।
दोपहर बाद मुझसे रुका नहीं गया और मैंने दीदी को बताया कि आज मुझे शायद फोन आये ,उम्म्मीद तो पूरी -पूरी है फिर भी दिल में घबराहट सी हो रही है। दीदी ने कहा -जो भी होगा अच्छे के लिए ही होगा ,परेशान होने की आवश्यकता नहीं। देखना तुम्हारा ही नाम आएगा उन्होंने पूर्ण विश्वास से कहा। उनके कहने का तरीका ऐसा था कि मैं भावुक हो उठी ,मैं उनके गले लगकर बोली -अगर मेरा चयन हो गया तो आपकी मनपसंद साड़ी दिलवाऊंगी। साड़ी तैयार रखना कहकर वो हंस पड़ीं। एक घंटे बाद मुझे फोन आया -'उधर से आवाज आई कि तुम्हारी नौकरी लग गई है ,एक सप्ताह बाद तुम आ सकती हो। मैं ख़ुशी के कारण दीदी से लिपट गई। अगले दिन ही मेरा जन्मदिन था ,हम बाहर जाना चाहते थे लेकिन दीदी ने अपने हाथों से सारा खाना बनाया। शाम को हम दीदी को उनकी पसंद की साड़ी दिलवाकर लाये ,पहले तो मना कर रहीं थीं फिर हमने दिलवा ही दी। चार -पांच दिन कैसे निकल गए ?पता ही नही चला। दीदी अपने घर चली गईं मैं भी अपने जाने की तैयारी करने लगी।
अभी दो माह भी नहीं बीते थे कि मुझे नौकरी छोड़कर आना पड़ गया ,क्योंकि परिस्थिति ऐसी रहीं कि नौकरी छोड़ना मेरी मजबूरी बन गया ,मुझे बेहद दुःख था। रह- रहकर नौकरी जाने का दुःख होता। दीदी भी आतीं ,अपने मम्मी -पापा से मिलने लेकिन कभी मेरी नौकरी के विषय में कुछ नहीं कहा न ही पूछा। जब मम्मी -पापा ठीक हो गए, तब मुझे फिर खलने लगा कि काश !मुझे नौकरी छोड़नी न पड़ती। दीदी का फोन आता और मम्मी से बात करके रख देतीं। मैंने सोचा -दुनिया ऐसी ही है ,मतलबी। एक दिन मम्मीजी बोलीं -सुमन जाकर देखना मैंने सुना है कि वहाँ पर जगह खाली है। मेरी उम्मीद जागी और मैं अपने सारे कागज अंकतालिका वगैरहा लेकर स्कूल पहुँची ,किस्मत मेरे साथ थी ,मेरी अच्छी तनख्वाह पर नौकरी लग गई।
बेटे का जन्मदिन था, दीदी ने अपनी वो ही पुरानी हंसी के साथ घर में प्रवेश किया। बेटे ने केक का टा ,तभी दीदी बोलीं -दो-दो शुभकामनाएं बेटे के जन्मदिन की और तुम्हारी नौकरी की ,तुमने तो बताया भी नहीं। मैंने सोचा -शायद मम्मी ने बताया होगा, फिर मन में उनके प्रति गुस्सा भी था जब नौकरी छोड़नी पड़ गई तब तो एक बार भी नहीं पूछा-' कि सुमन कैसी हो ?थोड़ी सांत्वना ही दे देतीं। अभी मैं ये सब बातें सोच ही रही थी कि मम्मी ने कहा -तुम्हारी दीदी ने ही उस स्कूल के बारे में बताया था और हमें तैयार किया था तुम्हें वहाँ भेजने के लिए ,सुनकर मुझे आश्चर्य हुआ कि मैं उनके लिए गुस्सा लिए बैठी थी और वो मेरे लिए ये सब सोच रहीं थीं।दीदी बोलीं - तुम्हारी दी हुई साड़ी ,मैंने अभी तक नहीं पहनी क्योंकि जिस नौकरी की ख़ुशी में तुमने मुझे वो साड़ी दी थी ,वो ही नहीं रही तो मैं कैसे ?वो साड़ी पहन सकती थी। तुम्हारे दुखते दिल को क्या और दुखाती ?लेकिन अब पहनूँगी ,ब्लाउज सिलवाने के लिए दे दिया है कहकर वो हंस दीं।
उनके जाने के बाद मैं सोच रही थी ,कभी -कभी अनजाने ही हम किसी को कितना ग़लत समझ लेते हैं जबकि ऐसा नहीं होता और दीदी का मान मेरी नजरों में और बढ़ गया। अच्छा हुआ, मैंने उनसे कुछ कहा नहीं वरना मैं अपने -आप से ही नजरें नहीं मिला पाती।

