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चटाक -चटाक की आवाज के  साथ नेहा ने अपनी बेटी के गाल पर दो तमाचे जड़ दिए। बेटी उसका मुँह देखती रही और फिर रोकर अंदर चली गई। आज जब उसे पता चला कि मेघा अपने दोस्तों के संग कॉलेज के बहाने फ़िल्म देखने गई है, सुनकर उसे बहुत बुरा लगा। क्या कमी छोड़ी है ?हमने ,इनकी परवरिश में कि इन्हें झूठ बोलने की आवश्यकता पड़ गई। अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा दिलवाई ताकि हमारी तरह आगे बढ़ने में किसी भी तरह की परेशानी न हो। अभी कुछ दिनों पहले ही तो सब घूम कर आये थे फ़िल्म भी दिखाई थी लेकिन कहते हैं कि दोस्तों के साथ घूमने का अलग ही मजा है। 

                कुछ दिनों पहले की बात है , किसी स्कूल के लड़के -लड़की पकड़े गए थे  ,स्कूल छोड़कर होटल में घूम रहे थे ,स्विमिंग पूल में मस्ती कर रहे थे। अश्लील हरकतें करते पकड़े गए। ज्यादा गहराई से तहक़ीक़ात हुई तो पता चला कि कुछ लड़के या लोग ऐसे हैं उनकी अश्लील फोटो खींचकर उन लड़कियों को डराते है। पोल तब खुली जब एक लड़की को ऐसे ही शर्बत में मिलाकर कुछ दिया और उसकी फोटो दिखाकर उसे भी डराया ,लेकिन उस लड़की ने हिम्मत से काम लिया और अपने माता -पिता को सब कुछ बता दिया। पुलिस आई तब जाकर उस गिरोह का पता चला ,वो ही बातें उसके दिमाग में घूम रहीं थी। बेटी का पता चलते ही उसने उस की पिटाई कर दी जो अब कमरे में बैठी रो रही थी। कुछ देर बाद मेघा की  सहेली वंदना घर आई। नेहा ने उससे पूछा-क्या तुम भी घूमने गईं थीं ?उसने कहा -नहीं आंटीजी मैं तो आज कॉलेज ही नहीं गई इसीलिए तो आई हूँ कि आज लेक्चर हुआ था कि नहीं। मैंने अंदर की तरफ इशारा करके उसे उधर जाने का इशारा किया। सोचा शायद सहेली को देखकर वो शांत हो जाये। कुछ देर बाद मैं उसके कमरे में गई। 
                तब तक वो बता चुकी थी ,मुझे देखते ही बोली -आंटीजी आपने इसे मारा ,आजकल कोई इतने बड़े बच्चे को मारता है ,इसने आकर तो बता दिया कुछ बच्चे तो ऐसे हैं कि घूम -फिर कर आ जायेंगे और  माँ -बाप को पता भी नहीं चलता। हम तो फिर भी अच्छे बच्चे हैं ,आपने और बच्चों के खर्चे और
घूमना नहीं देखा उनके सामने तो हम बहुत ठीक हैं। अपने बच्चे पर भरोसा ,विश्वास होना चाहिए ,बड़े हो गए हैं हम। तब नेहा बोली -अपने बच्चे पर भरोसा है तभी तो स्कूल -कॉलेज भेजते हैं कि अपना भविष्य संवारों न कि पढ़ाई छोड़कर  फिल्में देखने जाओ, ये तो सही नहीं है। जो हमें गलत लगेगा उसके लिए तो हमें टोकना ही पड़ेगा। माता -पिता के लिए तो बच्चा कितना भी बड़ा हो जाये, बच्चा  ही रहेगा और उस बच्चे को सही /गलत का ज्ञान देना हमारी जिम्मेदारी है। बच्चे के उज्ज्वल भविष्य के लिए यदि सख्त कदम उठाने पड़े तो हम उठायेंगे। 
              आंटीजी अब ज़माना बदल गया है वंदना बोली। ज़माना कैसे बदलता है ?लोग बदल जाते हैं अपनी नई सोच के साथ नई पीढ़ी आती है ,इससे कहते हैं कि जमाना बदल गया।  कुछ अपनी जरूरत के आधार पर भी लोगों का व्यवहार बदल जाता है। इसी कारण समाज में बदलाव महसूस होता है। समाज में कुछ चीजें ऐसी होती हैं कि उन्हें बदलाव की आवश्यकता होती  है। उसका हम भी समर्थन करते हैं। समाज कैसे बना ?हम लोगों से ही तो मिलकर समाज बनता है लेकिन कुछ चीजें ऐसी होती हैं जो समाज को बनाये रखने में सहायक होती हैं। कुछ रीति -रिवाज़ और कुछ बंदिशें होती हैं जो समाज को सही दिशा निर्देश दे सके। यदि समाज का डर  न हो तो हर कोई अपनी मनमानी करने लगे और समाज में भ्र्ष्टाचार व अनाचार फैल जाये। इतना होने के बावजूद भी लोग अपनी मनमानी से बाज नहीं आते। 
              ख़ैर! इन सब बातों को छोडो ,तुम मुझे ये बताओ -हम शिक्षा के लिए बच्चों को भेजते हैं ,हम हिंदी माध्यम से पढ़े लेकिन समय की माँग को देखते हुए हमने अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में डाला। इसका मतलब ये तो नहीं कि तुम लोग अपनी मन मानी करने लगो। स्कूल -कॉलेज छोड़कर फिल्में देखना ,दोस्तों के साथ घूमने जाना ,लड़के अपने दोस्त बनाना , क्या ये  आजकल का जमाना है ?ये सब तो हमारे जमाने में भी होता था। क्या हमारे जमाने में फिल्में [चलचित्र ]नहीं होती  थीं ?प्यार नहीं था। माता -पिता डांटते भी थे। हमसे पहले तो बच्चों की संटी से पिटाई कर देते थे फिर भी बच्चे माता -पिता का आदर -सम्मान करते थे। अब तो हमने बहुत छूट दे रखी है ,हमारे समय में तो लड़कियाँ पढ़ती भी थीं और घर के काम भी करती थीं। अब तो हालत ये है ,पढ़ाई या मोबाइल में रहतीं हैं। घर के काम तो न ही हम लोग कराते हैं ,लड़कियाँ भी बचती हैं। नंबर क्या लाती हैं ?बस  पूछो मत। सारा दिन पढ़ाई का काम होता है लेकिन वो भी नहीं होती क्योंकि समय तो फालतू चीजों में  कटता है। 

          फिर भी आंटीजी अपने बच्चे पर भरोसा दिखाओगे ,तभी तो वो कुछ आगे बढ़ेगा ,कुछ सिखने के लिए तो बाहर जाना ही पड़ेगा वंदना बोली। तभी नेहा को  वो केस याद आ गया बोली -हमने कब मना किया है ,कुछ सिखने के लिए। रही बात भरोसे की तो अभी -अभी जो केस हुआ था ,क्या उनके माता -पिता ने भरोसा और विश्वास नहीं दिखाया था ,जो लड़कियाँ होटल में पकड़ी गईं। विश्वास करके ही पढ़ने के लिए ही भेजा था। क्या गुल खिलाया उन्होंने ?है कुछ जबाब। कोई कितना भी  अमीर हो या ग़रीब कोई भी ये नहीं चाहेगा कि  बच्चे गलत राह पर चलें या किसी भी तरह से बदनामी हो। हर कोई चाहेगा ,कि उसका बच्चा सभ्य ,संस्कारी और शालीन हो। मेघा तो बताती है- कि आप हमें रोकती हो ,हर बात में टोकती हो। उस लड़की के तो माता -पिता कुछ नहीं कहते,वो तो ऐसे कपड़े पहनकर अपने दोस्तों के संग घूमने गई। मैं समझती हूँ ,कैसे भी माता -पिता हों ?यदि उन्हें पता चलता है कि हमारा बच्चा सही रा ह पर नहीं है तो वो उसे अवश्य ही डांटेगा। लोगों को दिखाने के लिए कह भी दिया ,बच्चे अब बड़े हो हैं ,अपना -भला बुरा खुद समझते हैं ,लेकिन घर में तो अपनी इज्जत का वास्ता देकर बच्चे को डांटेंगे ही। 



















laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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