Imaan

हाँ जी ,पेपर के पैसे चाहिए। उधर से आवाज़ आई -''बिल लाये हो ?वो बोला -नहीं। उधर से फिर से आवाज़ आती है -'कितने पैसे बनते हैं ?उसने कहा -बनते तो एक सौ पांच हैं पर आप सौ रूपये दे दीजिये। पैसे लेकर एक महिला आई ,उस महिला को देखते ही उसका माथा ठनक गया। उस महिला के दिए पैसे वो गिनने लगा ,गिनने के बाद वो बोला -मैंने तो सौ रूपये माँगे थे। क्यों?उस महिला ने पूछा -जब बनते तो अठानवे रूपये हैं ,फिर सौ काहें के ,लगाओ हिसाब ,एक छुट्टी भी थी फिर तुम क्यों कह रहे हो ?एक सौ पांच बनते हैं ,तरकारी बेच रहे हो क्या ?चार -पांच रूपये का एहसान कर रहे हो ,जो हिसाब से  बनते हैं वो ही लोगे। 
           जब वो महिला चली गई ,वो बड़बड़ाने लगा -ईमान -धर्म का जमाना ही नहीं रहा। तभी एक आदमी उधर से गुज़र रहा था वो पेपर वाले से  बोला -जी कुछ कह रहे थे, क्या आप ?पेपर वाला बोला -नहीं तो ,आप कौन ?मैं ईमान ,वो बोला -ये तो आप ठीक कह रहे हैं ईमान -धर्म का ज़माना नहीं रहा। उसने पुनः प्रश्न किया -क्या उस औरत  ने आपको ग़लत पैसे दिये ?पेपर वाला बोला -नहीं ,हिसाब से तो ठीक हैं। फिर क्या परेशानी है ?उसने पूछा। मैं जिस भी दरवाज़े पर गया ,जितने भी पैसे माँगे उन लोगों ने दे दिए लेकिन ये महिला ज्यादा चिक -चिक करती है एक या दो रूपये के लिए भी। लेकिन दिये  तो उसने पूरे रूपये हैं तुम्हारे पैसे तो नहीं मारे ईमान ने पूछा ,अच्छा ये बताओ -और लोगों से कितने लिए ?किसी से सौ माँगे तो सौ दिए ,किसी से एक सौ पाँच माँगे तो उतने ही दिए उसने चहककर कहा। क्या उन्होंने हिसाब नहीं लगाया? ईमान ने पूछा। नहीं जी उन्हें मुझ पर भरोसा है ,जितने माँगता हूँ उतने ही दे देते हैं। हिसाब नहीं लगाते उन्हें मुझ पर विश्वास है। बड़े लोग हैं ,एक -एक ,दो -दो रूपये के लिए चिक -चिक नहीं करते मन ही मन उनकी प्रशंसा करते हुए कहा। क्या उन लोगों में ईमान नहीं कि  तुम जितना मांगते हो उतना दे देते हैं या तुम में नहीं जो उनके विश्वास को धोखा दे रहे हो ,तब तुम मुझे क्यों नहीं याद करते। जब इस महिला ने हिसाब लगाकर ठीक पैसे दिए तो तुम्हें मेरी याद आ गई। तब तुम्हारा ईमान नहीं जागताजब  एक -दो रूपये के लिए लोगों के विश्वास को धोखा देते हो ,क्योंकि उनसे तो तुम्हारा ही स्वार्थ सिद्ध हो रहा है न ,तब तुम मुझे याद  नहीं करते। पेपर वाले ने गुस्से से पीछे की तरफ देखा ,वहाँ कोई नहीं था। 
            आगे की गली में  दो आदमी लड़ रहे थे पास जाकर देखा तो पता चला एक दूध वाला था जो दूसरे आदमी से लड़ रहा था ,वो आदमी कह रहा था -मैं इतने पेेसे नहीं  दूंगा ,तुम दूध में पानी मिलाते हो तो पानी के पैसे तो काटूंगा ही। दूध वाले ने कहा -ईमानदारी से बताओ ,तुम्हारे पचास लीटर दूध आया तो पचास लीटर के ही पैसे दो न। ईमान भी वहीं खड़ा उनकी बातें सुन रहा था ,बोला -बात तो सही है ,पचास लीटर लिया तो पचास के ही पेेसे बनते हैं। किसी दूसरे आदमी को अपने  पक्ष में बोलते हुए देख दूध वाला खुश हो 
गया। उस व्यक्ति का मन तो नहीं मान रहा था लेकिन किसी अन्य को उसके पक्ष में बोलते हुए देखकर उसने न चाहते हुए भी दूध वाले को पैसे दिए। दूध वाला खुश होकर बोला -भाई तुमने पैसे दिलवा दिए वरना ये परेशान करता। फिर वो बोला -तुम कौन हो ?उस व्यक्ति से पूछा। मैं ईमान तुमने ही तो बुलाया था। दूध वाला थोड़ा सकपका गया बोला -क्यों मज़ाक करते हो ?ईमान ने बोलना जारी रखा -'जब तुमने बुलाया तो तुम्हारे पास आ गया ,अब तुम अपने अंदर के ईमान को खोजो ,क्या तुमने पानी नहीं मिलाया ?क्योकि मैं सब देख रहा था। मन ही मन दूध वाले ने सोचा -पचास लीटर में दस लीटर पानी तो मिलाया ही होगा। जैसे उसकी सोच को उस व्यक्ति ने सुन लिया हो ,बोला -फिर भी कहते हो वो व्यक्ति ग़लत था ,अपने अंदर तो खोजो ,बेवज़ह मुझे तंग किया ,कहकर वो चल दिया। 
             चलते -चलते वो किसी कबाड़ी की  दुकान  पहुंचा ,वहाँ बहुत सारा कबाड़ फैला था, तभी एक और व्यक्ति  ठेले में कबाड़  लेकर पहुँचा। कबाड़ी ने कबाड़ तोला, जो लेकर आया था उसके अनुसार वो बीस किलोग्राम था लेकिन वो कबाड़ी बोला -देखो तुम्हारे सामने पंद्रह किलो है ,दोनों में अनबन होने लगी। वो कहने लगा -मैंने भी तो अपनी तराजू से तौला था तब तो बीस बेेठ  रहा था फिर पांच किलो कैसे कम हो गया ?बेबस सा ,वो ठेले वाला बोला -अच्छा ईमान से कहो कि पंद्रह ही है ,ईमान भी वहीं खड़ा था उसने झट से कबाड़े वाले की तराज़ू के नीचे से पांच किलो का बाट  निकाल दिया जो उसने गोंद से चिपका रखा था। सामान बीस किलोग्राम हो गया।अपनी पोल खुलते देख  कबाड़े वाला बोला - तुम कौन हो ?उसने कहा -मैं ईमान ,तुम्हारी तकरार में जब बात ईमान पर आ गई तो मुझे बाट निकालना ही पड़ा। 
               मैं भी कहाँ -कहाँ जाऊँ ?आदमी को पता होता है कि वो ग़लत है किन्तु मानता  नहीं। आज निकला था ,दो -चार मिल गए मेरा बखान करते ,तब मैंने एहसास कराया कि मेें 

कहने की चीज नहीं, करने की चीज हूँ ,निभाने की चीज हूँ। दो -चार को तो आज मैंने आइना दिखाया। बीच -बीच में मैं किसी न किसी को आईना दिखा ही देता हूँ। फिर भी लोग मेरा नाम लेकर ख़ुराफ़ात करते ही रहते हैं। ईमान ही नहीं ईमान के साथ धर्म भी जोड़ देते हैं। ईमान -धर्म से बताओ -'ये बात सही है, कि नहीं। मैं सच्चाई के लिए जाना जाता हूँ लेकिन लोग मुझे बुराई के साथ जोड़कर इस्तेमाल करते हैं। मैं बेसहारा ,लाचार सा खड़ा देखता रहता हूँ कि कभी तो इनके अंदर ईमान जागेगा और मैं पूरे आत्मविश्वास के साथ खड़ा होऊंगा। मुझे साथ लिए फिरते हैं मेरे या अपने लिए नहीं ,मतलब के लिए। मैं अपने को बेबस पाता हूँ कि अपने स्वार्थ के लिए कोई भी कहीं भी मेरा इस्तेमाल कर लेता है। कभी -कभी तो मेरा स्तर दो -चार पैसों के लिए भी गिर जाता है। अमीर  ही नहीं ,लोग कहते हैं -'मैं गरीबों में भी रहता हूँ ,वे लोग ही मेरा बात -बात पर इस्तेमाल करते हैं। अमीर लोगों में लाखों -करोड़ों में बिकता हूँ ,गरीबों में तो मैं दो - चार पैसों के लिए ही डिग जाता हूँ। होता मैं हर शख़्स में हूँ ,पर निर्भर करता है कि वो मेरा इस्तेमाल सही के लिए कर  रहा है या ग़लत के लिए। मैं इंसान नामक प्राणी के हाथों की कठपुतली जो हूँ।  

















laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post