मैं अपने घर का काम निपटाने में लगी थी ,बच्चे और पति अपने स्कूल व दफ्तर गए उनके जाने के बाद घर पूरी तरह अस्त -व्यस्त हो जाता है। काम निपटाकर अभी बैठी ही थी कि दरवाजे की घंटी बजी ,मैंने दरवाजा खोला ,देखा, दरवाजे पर एक व्यक्ति खड़ा मुस्कुरा रहा था। थोड़ा दिमाग पर जोर दिया फिर पूछा कि आप कौन हैं ?वो मुस्कुराकर बोला -अरे!मुझे पहचाना नहीं, मैं दीपक। मैंने याद करते हुए कहा -दीपक तुम ,यहाँ !कैसे?देखकर ख़ुशी भी हुई कि कम से कम बीस साल बाद हम एक दूसरे को देख रहे थे। उसकी भी शादी हो चुकी थी और मेरी भी। दोनों अपने -अपने परिवार में व्यस्त थे। इतने सालों बाद आज अचानक यहाँ कैसे ?मैंने प्रश्न किया। तुम्हें मेरा पता कैसे मिला ?वो भी इतने सालों बाद। वो बोला -बस ढूँढ़ लिया ,मन में इच्छा होनी चाहिए उसने मुस्कुराकर जबाब दिया।
वो बोला -मेरा तबादला यहाँ पास ही के शहर में हुआ है ,वही तुम्हारा कोई रिश्ते का भाई भी काम करता है ,उससे मेरी बातचीत हुई ,उसीसे पता चला कि तुम यहाँ रहती हो? और देखो, मैं यहाँ चला आया। उसकी बात सुनते -सुनते सुमन ने चाय के लिए पानी गैस पर चढ़ा दिया और पानी लेकर आ गई। और सुनाओ, तुम्हारे कितने बच्चे हैं ?बीवी कैसी है ?बच्चे दो हैं ,बीवी भी मस्त है। अगले महीने वो भी यहाँ आ जाएगी। मैं रसोईघर में चाय नाश्ते में लग गई। सोच रही थी इतने साल बाद आदमी कितना बदल जाता है कि मैं पहचान ही नहीं पाई। वो सोचने लगी -जब मैं परा -स्नातक की पढ़ाई के लिए जब बाहर गई थी, तभी मेरी मुलाकात दीपक से हुई थी वो भी किसी प्रतियोगिता की तैयारी कर रहा था। हम अक़्सर साथ -साथ खाना खाते ,पढ़ाई करते ,घूमने चल देते ,फिर भी एक दायरा बनाकर रखते।
परा - स्नातक की पढ़ाई के बाद मैं अपने घर आ गई। चिट्ठी के माध्यम से हम दोनों एक दूसरे के सम्पर्क में रहते। एक दूसरे की जानकारी मिलती रहती ,उसकी जब भी कोई चिट्ठी आती, मेरे दिल की धड़कन बढ़ जाती, अजीब सी ख़ुशी मिलती। दीपक के पत्रों के माध्यम से ही पता चलता कि उसकी नौकरी लग गई है और उसके विवाह के लिए उसकी मम्मी कोई लड़की ढूँढ़ रही हैं। मैंने कई बार उससे पूछा- कि तुम्हें कैसी लड़की पसंद है ?उसने लिखा -जो भी मिले ,एक दिन में क्या पता चलता है ?लड़की तो लॉटरी की तरह है अच्छी मिले ,तो लॉटरी अच्छी लग गई। एक दिन उसकी चिट्ठी आई कि मेरी शादी तय हो गई है। तब मैंने उससे जबाब में लिखा कि अब मैं तुम्हें कोई पत्र नहीं लिखूँगी क्योंकि जब मैं ये चाहूंगी कि जिससे मेरा विवाह हो उसका अन्य किसी लड़की से संबंध न हो ,तो जिसका तुम्हारे साथ विवाह होगा वो भी नहीं चाहेगी कि मेरे पति का किसी और से[ चाहे पत्रों द्वारा ही ]संबंध हो। दीपक भी शायद यही चाहता था इसीलिए उसने भी हाँ में हाँ मिलाई। मैंने सोचा ,शायद लॉटरी अच्छी लगी है। उसके बाद हमें एक दूसरे के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली।
आज अचानक शादी के इतने साल बाद वो यहाँ आकर खड़ा हो गया। अजीब सी स्थिति थी ,ख़ुशी भी थी कि इतने सालों बाद कोई अपना जानकार मिला। चाय पीते हुए वो मुझे अजीब सी नजरों से देख रहा था। मैं उससे नजर बचाते हुए दूसरी तरफ देखने लगी। वो अक्सर फोन करता ,मैं उससे घर -परिवार की बातें करती। पति को भी बताया- कि बहुत साल पहले का दोस्त है। इधर ही उसका तबादला हुआ है ,पति ने कहा -उसे बुलाओ कभी खाने पर। एक दिन रविवार को जब सब घर पर थे , उसे मैंने खाने पर बुलाया। इस बीच मैंने महसूस किया कि वो मुझे मनोज की नजरों से बचकर अजीब नजरों से देख रहा था। मैंने बातचीत शुरू की -दीपक तुम्हारी पत्नी कैसी है ?अभी तक नहीं आई। उसने कहा -वो बड़ी जिद्दी है ,जब उसका मन होगा तो आयेगी। मनोज तो खाना खाकर लेट गए। मैंने सोचा, शायद दीपक भी चला जाये लेकिन वो बैठा रहा।
दीपक बोला -यहाँ का बाजार मैंने नहीं देखा ,तुम चलो मेरे साथ। अब घुमा -फिरा करेंगे कोई कुछ कह भी नहीं सकेगा कि इस उम्र में कहाँ घूम रहे हैं ?शक़ भी नहीं होगा।पहले तो मुझे लगा कि वो मज़ाक कर रहा है लेकिन वो मज़ाक नहीं था। उसकी बातों को समझते हुए भी अनजान बनने का प्रयत्न करते हुए बोली -यह मेरी ससुराल है ,हमारे यहाँ बाहर नहीं घूमते। यह कहकर उसे टालने का प्रयत्न किया। मैं नहीं चाहती थी कि इतने दिनों बाद मिलने पर मन में किसी भी तरह की कड़वाहट आये। मैं अक़्सर उससे उसकी पत्नी के बारे में पूछती रहती लेकिन वो शायद कुछ और ही सोचकर आया था। मैं दोस्ती को सिर्फ़ दोस्ती ही रखना चाहती थी। मैंने सोचा, मेरी बातचीत के अंदाज से शायद वो समझ जाये। एक दिन उसे किसी बहाने से समझाया भी कि यदि माता -पिता कोई अनुचित व्यवहार करते हैं तो वो बच्चों को क्या संस्कार देंगे ?माता -पिता बच्चों के आदर्श होते हैं ,यदि माता या पिता ही संस्कारहीन कार्य करेंगे, तो बच्चे क्या सीखेंगे ?
लेकिन वो भी जैसे ठान कर आया था कि जो संबंध हम विवाह से पहले नहीं बना पाए ,वो अब बनायेंगे। दोनों शादी शुदा हैं, किसी को शक़ भी नहीं होगा। हालांकि वो दोस्ती तोडना नहीं चाहती थी लेकिन अपने परिवार पति या बच्चों को भी धोखा नहीं देना चाहती थी। वह अपनी दोस्ती या अपनी जिंदगी पर किसी भी प्रकार का दाग़ नहीं चाहती थी। न ही अपनी या पति की नजरों में गिरना चाहती थी। जब तक उसे लगा कि वो उस रिश्ते को संभाल सकती है उसने संभालने का खूब प्रयत्न भी किया। लेकिन दोस्ती के रिश्ते पर परिवार के रिश्ते भारी पड़ गए। दोस्ती में कुछ प्रश्न चिन्ह लग गए और एक दिन वो इतना समझाने के बाद भी अपनी दोस्ती का दायरा पार करने लगा अब सुमन को लगा कि अब उसे इस रिश्ते को विराम दे देना चाहिए। उसने दीपक से कह दिया -अब इस रिश्ते को यहीं विराम दे देना ही बेहतर है। मन ये प्रश्न बार -बार करता कि इस रिश्ते में न ये दोस्त है न ही दोस्ती। धीरे -धीरे उसने इस रिश्ते पर विराम चिह्न लगा दिया। ज्यादा बात बिगड़े उससे पहले ही सम्भल जाना चाहिए। यही सोचकर इस रिश्ते पर उसने विराम चिन्ह लगाना ही बेहतर समझा।
खाने पर बुलाया
वो बोला -मेरा तबादला यहाँ पास ही के शहर में हुआ है ,वही तुम्हारा कोई रिश्ते का भाई भी काम करता है ,उससे मेरी बातचीत हुई ,उसीसे पता चला कि तुम यहाँ रहती हो? और देखो, मैं यहाँ चला आया। उसकी बात सुनते -सुनते सुमन ने चाय के लिए पानी गैस पर चढ़ा दिया और पानी लेकर आ गई। और सुनाओ, तुम्हारे कितने बच्चे हैं ?बीवी कैसी है ?बच्चे दो हैं ,बीवी भी मस्त है। अगले महीने वो भी यहाँ आ जाएगी। मैं रसोईघर में चाय नाश्ते में लग गई। सोच रही थी इतने साल बाद आदमी कितना बदल जाता है कि मैं पहचान ही नहीं पाई। वो सोचने लगी -जब मैं परा -स्नातक की पढ़ाई के लिए जब बाहर गई थी, तभी मेरी मुलाकात दीपक से हुई थी वो भी किसी प्रतियोगिता की तैयारी कर रहा था। हम अक़्सर साथ -साथ खाना खाते ,पढ़ाई करते ,घूमने चल देते ,फिर भी एक दायरा बनाकर रखते।
परा - स्नातक की पढ़ाई के बाद मैं अपने घर आ गई। चिट्ठी के माध्यम से हम दोनों एक दूसरे के सम्पर्क में रहते। एक दूसरे की जानकारी मिलती रहती ,उसकी जब भी कोई चिट्ठी आती, मेरे दिल की धड़कन बढ़ जाती, अजीब सी ख़ुशी मिलती। दीपक के पत्रों के माध्यम से ही पता चलता कि उसकी नौकरी लग गई है और उसके विवाह के लिए उसकी मम्मी कोई लड़की ढूँढ़ रही हैं। मैंने कई बार उससे पूछा- कि तुम्हें कैसी लड़की पसंद है ?उसने लिखा -जो भी मिले ,एक दिन में क्या पता चलता है ?लड़की तो लॉटरी की तरह है अच्छी मिले ,तो लॉटरी अच्छी लग गई। एक दिन उसकी चिट्ठी आई कि मेरी शादी तय हो गई है। तब मैंने उससे जबाब में लिखा कि अब मैं तुम्हें कोई पत्र नहीं लिखूँगी क्योंकि जब मैं ये चाहूंगी कि जिससे मेरा विवाह हो उसका अन्य किसी लड़की से संबंध न हो ,तो जिसका तुम्हारे साथ विवाह होगा वो भी नहीं चाहेगी कि मेरे पति का किसी और से[ चाहे पत्रों द्वारा ही ]संबंध हो। दीपक भी शायद यही चाहता था इसीलिए उसने भी हाँ में हाँ मिलाई। मैंने सोचा ,शायद लॉटरी अच्छी लगी है। उसके बाद हमें एक दूसरे के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली।
आज अचानक शादी के इतने साल बाद वो यहाँ आकर खड़ा हो गया। अजीब सी स्थिति थी ,ख़ुशी भी थी कि इतने सालों बाद कोई अपना जानकार मिला। चाय पीते हुए वो मुझे अजीब सी नजरों से देख रहा था। मैं उससे नजर बचाते हुए दूसरी तरफ देखने लगी। वो अक्सर फोन करता ,मैं उससे घर -परिवार की बातें करती। पति को भी बताया- कि बहुत साल पहले का दोस्त है। इधर ही उसका तबादला हुआ है ,पति ने कहा -उसे बुलाओ कभी खाने पर। एक दिन रविवार को जब सब घर पर थे , उसे मैंने खाने पर बुलाया। इस बीच मैंने महसूस किया कि वो मुझे मनोज की नजरों से बचकर अजीब नजरों से देख रहा था। मैंने बातचीत शुरू की -दीपक तुम्हारी पत्नी कैसी है ?अभी तक नहीं आई। उसने कहा -वो बड़ी जिद्दी है ,जब उसका मन होगा तो आयेगी। मनोज तो खाना खाकर लेट गए। मैंने सोचा, शायद दीपक भी चला जाये लेकिन वो बैठा रहा।
दीपक बोला -यहाँ का बाजार मैंने नहीं देखा ,तुम चलो मेरे साथ। अब घुमा -फिरा करेंगे कोई कुछ कह भी नहीं सकेगा कि इस उम्र में कहाँ घूम रहे हैं ?शक़ भी नहीं होगा।पहले तो मुझे लगा कि वो मज़ाक कर रहा है लेकिन वो मज़ाक नहीं था। उसकी बातों को समझते हुए भी अनजान बनने का प्रयत्न करते हुए बोली -यह मेरी ससुराल है ,हमारे यहाँ बाहर नहीं घूमते। यह कहकर उसे टालने का प्रयत्न किया। मैं नहीं चाहती थी कि इतने दिनों बाद मिलने पर मन में किसी भी तरह की कड़वाहट आये। मैं अक़्सर उससे उसकी पत्नी के बारे में पूछती रहती लेकिन वो शायद कुछ और ही सोचकर आया था। मैं दोस्ती को सिर्फ़ दोस्ती ही रखना चाहती थी। मैंने सोचा, मेरी बातचीत के अंदाज से शायद वो समझ जाये। एक दिन उसे किसी बहाने से समझाया भी कि यदि माता -पिता कोई अनुचित व्यवहार करते हैं तो वो बच्चों को क्या संस्कार देंगे ?माता -पिता बच्चों के आदर्श होते हैं ,यदि माता या पिता ही संस्कारहीन कार्य करेंगे, तो बच्चे क्या सीखेंगे ?
लेकिन वो भी जैसे ठान कर आया था कि जो संबंध हम विवाह से पहले नहीं बना पाए ,वो अब बनायेंगे। दोनों शादी शुदा हैं, किसी को शक़ भी नहीं होगा। हालांकि वो दोस्ती तोडना नहीं चाहती थी लेकिन अपने परिवार पति या बच्चों को भी धोखा नहीं देना चाहती थी। वह अपनी दोस्ती या अपनी जिंदगी पर किसी भी प्रकार का दाग़ नहीं चाहती थी। न ही अपनी या पति की नजरों में गिरना चाहती थी। जब तक उसे लगा कि वो उस रिश्ते को संभाल सकती है उसने संभालने का खूब प्रयत्न भी किया। लेकिन दोस्ती के रिश्ते पर परिवार के रिश्ते भारी पड़ गए। दोस्ती में कुछ प्रश्न चिन्ह लग गए और एक दिन वो इतना समझाने के बाद भी अपनी दोस्ती का दायरा पार करने लगा अब सुमन को लगा कि अब उसे इस रिश्ते को विराम दे देना चाहिए। उसने दीपक से कह दिया -अब इस रिश्ते को यहीं विराम दे देना ही बेहतर है। मन ये प्रश्न बार -बार करता कि इस रिश्ते में न ये दोस्त है न ही दोस्ती। धीरे -धीरे उसने इस रिश्ते पर विराम चिह्न लगा दिया। ज्यादा बात बिगड़े उससे पहले ही सम्भल जाना चाहिए। यही सोचकर इस रिश्ते पर उसने विराम चिन्ह लगाना ही बेहतर समझा।
खाने पर बुलाया


