majburi ya phir .........

सुनयना गलत काम करती ,गलत क्या ?मज़बूरी ने उससे ये सब करवाया। मज़बूरी आदमी से क्या -क्या नहीं कराती ?जितना किया ,सब थोड़ा। पति के जाने के बाद ,कोई नौकरी लग नहीं रही थी, जो लगती भी तो पैसे कम ,या फिर मज़बूरी  का फायदा उठाने वाले ज्यादा। सोचते पैसे की तंगी तो है ही, जो कहेंगे ,करेगी लेकिन उसने भी ठान लिया था किसी को अपनी मज़बूरी का फायदा नहीं उठाने देगी। एक बार वो धोखा खा चुकी है अब और नहीं। सोचने लगी ,ये मर्द जाति भी कैसी होती है ?मतलबी ,कायर ,डरपोक। कोई कैसा भी हो, लेकिन मुझे तो इन्हीं पर्यायवाची का दोस्त कहुँ या पति। उस रिश्ते को मैं कोई नाम भी नहीं दे सकती। उस रिश्ते का कोई नाम ही नहीं था ,मैं ही जबरदस्ती उस रिश्ते में उलझी हुई थी किसी उम्मीद के साथ। कि शायद कोई नाम इस रिश्ते को मिल जायें ,लेकिन ये मेरा भ्र्म था। मुझे आज भी याद है ,-'जब मैं अपने घरवालों के ख़िलाफ़ जाकर ,अपनी आधुनिकता का डंका बजाती हुई  उसके साथ रहने के लिए आ गई थी। मुझे अपने प्यार पर पूरा भरोसा था कि हम दोनों विवाह करके सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करेंगे। 

                हम दोनों ने किराये पर मकान ले लिया वहीं रहने लगे। मैं अपने घरवालों को दिखा देना चाहती थी कि मेरा निर्णय सही था। संजय ने मुझे समझाया -कि ये विवाह ,शादी ये मात्र रस्में हैं ,हम तो दिल से बंधे हैं। मैं उसके प्रेम में बंधी ,आँख होते हुए भी अंधी हो गई और अपने को पूरी तरह उसे सौंप दिया। सब कुछ अच्छा लगता ,जो हम कर  रहे हैं सही लगता। जिंदगी इतनी आसान है फिर भी लोग इसे कठिन बनाने में क्यों तुले रहते हैं ?कुछ दिन बाद उसे पता चला कि वो गर्भवती है वो बहुत खुश हुई। उसने संजय को भी ये बात बताई। उसने खुश होने का अभिनय किया [जो मैं आज समझ पाई ]लेकिन बोला -अभी इतनी जल्दी क्या है ?थोड़ा और रुक जाती ,लेकिन मैंने मना कर दिया। वो बोले -ठीक है ,जैसी तुम्हारी मर्ज़ी। उसके नौ माह बाद हमारे घर में संगीता आई। मैं उसकी परवरिश में लग गई। 
           लगभग तीन साल बाद मेरी  छोटी बेटी गीता भी आ गई मैं उनकी परवरिश में इस कदर खो गई कि मैंने इस बात पर कोई ध्यान ही नहीं दिया कि अभी तक हम न ही समाज की नजरों में न ही क़ानूनी तरीक़े से पति -पत्नी हुए हैं ,जब मैं संगीता का दाख़िला कराने स्कूल गई तब मुझे एहसास हुआ कि बहुत  दिन हो गए ,अब हमें विवाह कर  लेना चाहिए। जहाँ हम रह रहे थे वहाँ किसी को भी नहीं पता था कि हमारी शादी नहीं हुई। लेकिन मेरा मन नहीं मान रहा था ,इसीलिए मैंने संजय पर विवाह के लिए दबाब बनाना शुरू कर  दिया। मैंने कहा भी, कि हमारे दो बच्चे भी हैं, फिर विवाह करने में क्या परेशानी है ?इस रिश्ते को एक सुंदर सा नाम दे सकते हैं ,लेकिन उसने कोई जबाब नहीं दिया। अगले दिन जब मैं उठी ,तो वो मेरी जिंदगी का वो दिन था जिसने मेरी आँखों से झूठी प्यार की  पट्टी एक ही झटके में खोल दी। वो जा चुका था ,हमारी जिंदगी से सदा -सदा के लिए। हम सो रहे थे और वो कायर हमें छोड़कर रातों -रात भाग गया।
         कुछ दिन तो उसका इंतजार किया कि शायद उसकी आत्मा उसे धिक्कारे और वो वापस आ जाये। लेकिन दो बेटियों के साथ मैं  कब तक उसका इंतजार करती ?मेरी सारी  सोच ,सारे सपने धूल -धूसरित नजर आये। मैंने अपने को मजबूत किया और नौकरी के लिए निकल गयी,अपना और बच्चियों का पेट भी तो भरना ही  था। कई नौकरी की और छोड़ भी दीं। पच्चीस -छब्बीस वर्ष की उम्र में मैं दो बच्चियों को लेकर कहाँ जाती ?किस मुँह से अपने परिवार के पास जाऊँ ?जिसे मैं उसके कारण बहुत साल पहले छोड़ चुकी थी। कोई भी हाथ  मदद के लिए उठता तो पहले उसकी वासना से भरी नजरें मुझे घेर लेतीं।उनकी सोच -इतने साल उसके साथ रही ,तो हमारे साथ क्या परेशानी है?अपने विश्वास पर उसके धोखे पर बहुत गुस्सा आता। बाद में पता चला कि वो तो विवाह कर  चुका था ,अपने माता -पिता की मर्ज़ी से और एक मैं पागल ,उसके लिए माँ -बाप की भावनाओं का भी ख़्याल नहीं रखा ,ये उसी बात की सजा मुझे जीते -जी मिल रही थी। 
                  सोचा ,ये उसकी भी तो बेटियाँ हैं ,उसका ख़ून हैं ,मैं ही क्यूँ सब झेलती रहुँ ?लेकिन उनके मासूम चेहरों ने मुझे ये सोचने पर मजबूर कर  दिया कि इसमें इनकी क्या गलती है ?मैंने गलती की है, तो मैं ही सम्भालूगी। अब बेटियाँ भी अपने पिता के बारे में पूछने लगीं। तब मैंने कहा -उनकी मृत्यु एक दुर्घटना में हो गई है। और मैंने एक फैसला ले लिया -दोनों बेटियों को दूर कहीं छात्रावास में डाल दिया और उनकी अच्छी परवरिश के लिए मैं इस मैदान में कूद गई। जब छोटी नौकरी में भी अस्मत बचाना सम्भव नहीं तो फिर इसी काम को पूरी तरह अपना लिया। रिश्ते भी न जाने कहाँ चले जाते हैं ?जो मिलते भी हैं तो अपनी मर्यादा भूल जाते हैं ,इसलिए अब किसी से कोई मदद नहीं। 

               मेरे पड़ोस में कुछ दिनों से दो लड़कियाँ किराये पर रहने के लिए आयीं। मकानमालिक बुजुर्ग़ दम्पत्ति थे। उन लड़कियों को देखकर मुझे अपनी बेटियाँ याद  आयीं। वो लड़कियाँ किसी से मिलना -जुलना पसंद नहीं करती थीं ,कुछ दिनों बाद मैंने देखा कि उनके घर में कई -कई लड़के आते जाते थे। मैं परेशान हो उठी। मैंने कहा -क्या तुमने इसलिए बेचारे बुजुर्गों का घर लिया है? जिससे कोई कहे भी नहीं। क्या तुम्हारे माता -पिता ने इसलिए भेजा है या पढ़ने के लिए? ये सब क्यों करती हो ?क्या कोई मजबूरी है ?पूछने पर पता चला कि एक के पिता इंजीनियर हैं दूसरी के व्यापारी। वो बोलीं -ये मजबूरी नहीं ये अपना रहने का तरीका है ,जिंदगी में खुलकर जीना ,मौज मस्ती करना , अब नहीं करेंगे तो कब करेंगे ?ये  उम्र अपना जीवन संवारने की है न कि बर्बाद करने की मैंने समझाते हुए कहा। फिर एक बोली- आप भी तो आंटी कहकर मुस्कुरा दी। मैंने नजरें झुकाकर कहा -मेरी तो मजबूरी थी और तुम ये सब मजे के लिए करते हो। मजे करने हो तो मज़बूरी का बहाना ले दिया। वो व्यंगात्मक लहज़े में बोली। जाओ ,अपने घर अपने काम से काम रखो। 
             मुझे अपनी बेटियों का ख़्याल आया कि कहीं वो भी इस नए तरीक़े के रहन -सहन में न पड़  गईं हों। जिसे ये पीढ़ी लाइफ स्टाइल कहती है। जीवन भर जिससे उन्हें बचाकर रखा वो उसी गर्त में न गिर जायें। मेरी जैसी तो परिस्थितिवश इसमें फंसी लेकिन अमीरों के लिए तो यही रहन -सहन का तरीका है। दोस्तों के साथ घूमना ,शराब  पीना। एक तो मज़बूरी में पैसे के लिए अपनी अस्मत का सौदा कर रहा है ,दूसरा पैसा है पर अपनी मौज -मस्ती के लिए अपनी अस्मत लुटा रहा है।क्या  होगा इस पीढ़ी का ? न परिवार की चिंता ,न ही रिश्तों का ख़्याल, न ही बड़ों का लिहाज़। तभी उसके अंदर से आवाज आई,- कि तू भी तो ऐसी परिस्थितियों से गुजर चुकी है उसने अपने -आप को ही जबाब दिया-' तभी तो मैं ये परेशानी और अपमान झेल चुकी हूँ'  तभी वो शहर  आ गया जहाँ उसने अपनी बेटियों को छोड़ रखा है। उसने उन्हें अपने आने की खबर नहीं दी थी, शायद उसका माँ वाला मन हर तरह से संतुष्ट होना चाहता था। 
 
            उसने घर जाते ही घंटी बजाई ,उसका दिल जोरों से धड़क रहा था। दरवाजा खुलते ही वो अंदर तेजी के साथ घुसी चली गई। उसने देखा, एक तो पढ़ रही है दूसरी रसोई घर में लगी हुई थी। दोनों को मैं अपने गले से लगाकर पता नहीं कब तक रोती रही। 


























laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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