adhikar

बहुत दिनों से अख़बार में विज्ञापन दे रखा था किरायेदार के लिए। हमारे मकान की  ऊपर की मंजिल में दो कमरे ख़ाली पड़े थे ,सोचा उन्हें किराये पर दे देते हैं। घर की साफ -सफाई भी हो जायेगी और लोगों के आने से रौनक भी हो जाएगी ,कभी बाहर गए तो घर की सुरक्षा भी रहेगी। इतनी सारी बातें सोचकर विज्ञापन दिया था। आज वो किरायेदार भी आ रहे हैं उनका सामान रखा जा रहा है। तभी हमारी पड़ोसन आकर बोलीं -लगता है किरायेदार आ रहे हैं ?मैंने हां में गर्दन हिलाई। वो नजदीक आकर बोलीं -सब देख लिया कैसा परिवार है ,कितने लोग हैं ?मैंने कहा -मात्र चार लोग हैं ,पति -पत्नी ,एक छोटा बच्चा और उनकी माँ ,बस छोटा सा परिवार है। पति बाहर आता जाता रहता है इसीलिए उन्हें भी ऐसा मकान चाहिए जो सुरक्षित हो। किसी की ज्यादा दखलंदाजी न हो ,बाक़ी बातें तो इन्होंने ही तय की है। मुझे नहीं पता कहकर, मैं  अंदर आ गई। 
                एक सप्ताह से ज्यादा हो गया उन लोगों को आये हुए ,न ही उन लोगों ने कुछ कहा ,न ही हमने कुछ पूछा ,बस अपने काम से काम रखते। एक दिन मैंने ही सोचा कि नए लोग हैं ,नई जगह है ,मैं ही उनसे पूछ आती हूँ किसी तरह की कोई परेशानी तो नहीं। यह सोचकर मैं ऊपर गई ,मुझे देखकर वो बोली -आइये भाभी जी ,मैं उनके कमरे में जाकर बेेठ  गई। सोचा जो इनके साथ बुजुर्ग़ हैं उनके पास बैठती हूँ। वो बुजुर्ग़ लड़के की माँ थी ,मैंने देखा कि बहु अपने बेटे को लिए बैठी थी और उसकी सास कोई धार्मिक पुस्तक पढ़  रही थी। देखने में घर का माहौल बहुत ही शांत लगा। मैंने बात की शुरुआत करते हुए कहा -आप कौन सी किताब पढ़ रहीं हैं? उन्होंने जबाब दिया -रामायण ,कहकर उन्होंने वो पुस्तक एक तरफ रख दी, शायद मेरे कारण। मैंने कहा -आप लोगों को आये हुए काफी समय  हो गया तो मैंने सोचा कि पूछ आती हूँ कि किसी तरह की कोई परेशानी तो नहीं। वो बोलीं -नहीं कोई परेशानी नहीं। तभी उनकी बहु अपनी सास की तरफ देखते हुए बोली -'जाइये पहले आप भाभी जी के लिए  पानी ले आइये आदेशात्मक लहज़े में बोली। मुझे यह देखकर बड़ा अजीब लगा। उसकी सास चुपचाप उठी और पानी लेने चली गई।

           तभी बहु  ने वहीं से बैठे -बैठे दूसरा आदेश दिया -चाय का समय भी हो रहा है ,चाय भी गैस पर चढ़ा देना। मैंने कहा - क्यों परेशान करती हो ?बेचारी को मैं तो चाय पीकर ही ऊपर आई थी। नीता बोली -नहीं ,भाभीजी कोई परेशानी नहीं शाम के समय हम भी तो चाय पीते हैं ,थोड़ी सी हमारे साथ भी हो जाये। नीता की सास ने चाय बिस्कुट लाकर रख दिए।  नीता ने अपनी सास से कहा -नमकीन नहीं लाई ,आप। तब मैंने  कहा -क्यों परेशान करती हो ?बिस्कुट ही  खा लेंगे। तभी वो बोली -तो जाइये पहले बच्चे को दूध गर्म कर  लाइए। मैंने चाय खत्म की और कहा -किसी बात से परेशानी हो या किसी चीज की आवश्यकता हो तो बताना। वो बोली- ठीक है। और मैं नीचे आ गई आकर मैंने योगेश से सब बताया ,कि  मुझे ये बात बड़ी अज़ीब लगी कि बहु बैठे -बैठे सारा काम सास से ही करा रही थी। पता नहीं ,इनके घर में क्या चल रहा है ?योगेश बोले- तुम्हें क्या लेना ?किसी के घर में क्या चल रहा है ?लेना तो कुछ नहीं लेकिन इस उम्र में काम करा रही है कुछ अज़ीब लगा। हमें  तो ये सिखाया गया था कि अपने बड़ों की सेवा करते हैं ,रिश्तों का लिहाज़ रखते हैं। सास का रिश्ता तो दोनों ही तरफ से बड़ा होता है। ख़ैर मुझे क्या ?कहकर मैंने बात को विराम दे दिया। 
               उन लोगों को रहते हुए लगभग छह माह हो गए, मेरा अक्सर उनसे सामना हो जाता लेकिन वो बातें दिमाग में घूमती रहतीं । एक दिन ऐसे ही हम धूप में बैठे थे सर्दियों के दिन थे ,मैं भी ऊपर चली गयी। उस दिन नीता की सास कहीं गयी हुई थी ?तो मैंने देखा कि नीता ने जल्दी -जल्दी सारा काम निपटाया और अपने बच्चे के साथ धूप में बैठ  गई। मैंने कहा -तुम्हारी सास कहीं गई हैं ?वो बोली -हां उनके घुटने में थोड़ा दर्द था ,पास के क़स्बे में ही किसी ने कोई वैद्य जी बताये हैं ,उन्हें दिखाने गई हैं शाम तक आ जाएंगी। मैंने कहा -तुम्हारी सास इस उम्र में भी बहुत काम कर  लेती हैं। वो बोली -हाँ ,कुछ देर रुककर बोली- करती नहीं कराती हूँ। क्या मतलब ?मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा। जैसी वो दिखती हैं ,ऐसी हैं नहीं। मैं उसकी तरफ देखने लगी। मेरे मन में तो पहले से ही अनेक प्रश्न उठ रहे थे। उसकी बातें सुनकर मन उद्वेलित हो उठा। क्यों ,कैसी है तुम्हारी सास ?मैं जब भी अपनी सास को देखती हूँ या उनके बारे में सोचती हूँ ,तो मेरा ख़ून खौलने लगता है उसने जबाब दिया। मेरी जिज्ञासा और बढ़ गई. क्यों ऐसा क्या कर दिया, तुम्हारी सास ने ? मैंने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा। उसने जोश में कह  तो दिया लेकिन असमंजस में  थी, कि बताऊँ या नहीं। फिर मैंने उससे कहा -तुम मुझसे कह सकती हो ,कहकर तुम्हारा मन  भी हल्का हो जायगा। 

             वो बोली - जानती हैं, कि मेरा विवाह हुए छह साल  गए और मेरा बच्चा अब हुआ।  अब तक मैं दो बच्चों की माँ होती, खूब बड़े भी हो गए होते। लेकिन इस सास  कारण मैं माँ भी नहीं बन पाई। जब मेरे ससुर जिन्दा थे,  किसी की  नहीं सुनती थी।  मुझे तो नौकर बना के रख दिया था। पति के साथ भी नहीं जाने दिया कहने लगी कि तुम पुलिस में हो तुम्हारा चोर -उचक्कों से पाला पड़ेगा। बहु वहाँ अकेली रहेगी। तुम देर -सवेर आया करोगे। तुम इसे यहीं रहने दो, जब छुट्टी मिला करेगी तो यहाँ चले आना। मैंने कहा -कि वहाँ तो पुलिस वालों के परिवार के लिए मकान मिलते हैं तो बोलीं -बहुत छोटे होते हैं ,वहाँ का माहौल भी अच्छा नहीं होता। मतलब ये था ,यदि माँ ने मना कर दिया तो फिर कोई बात नहीं होगी। मैं सास-ससुर के पास ही रह गई। खुद तो अपने पति के साथ सोती ,देर से उठती। घर का सारा काम करने के बाद भी,मुझमें  कुछ न कुछ कमी निकालती रहती। हर सम्भव कोशिश करती थी मुझे तंग करने की। पंद्रह या महीने में जब राज आते तो अपनी माँ के पास बैठते उनसे  न जाने क्या -क्या कहती ?मुझे नहीं पता ,लेकिन जब वो मेरे पास आते तो मुँह बनाकर सो जाते या फिर गर्मी होती तो छत पर लेट जाते। मैं उनसे पूछने के लिए उनके पीछे जाती कि क्या बात है ?उससे पहले ही बोलतीं -क्यों परेशान कर  रही है उसे, बहुत दिनों में तो आया है आराम करने के लिए ,जहाँ वो सोना चाहता है सोने दे। न ही वो मुझसे कुछ पूछते कि कोई परेशानी तो नहीं या तुम्हारा मन लग रहा है कि नहीं। मैं कोशिश भी करती कि  अपनी कुछ बातें बताऊ उनकी भी सुनूं लेकिन सास किसी न किसी बहाने उन्हें मेरे पास आने नहीं देती। फिर उनकी छुट्टियां समाप्त हो जाती और वो चले जाते। 
               मैं समझ नहीं पा रही थी कि क्या करूँ ?मैं मानसिक रूप से बेहद आहत थी। कि  ये क्या चाहती है ?एक दिन तो मैंने उन्हें कहते सुन लिया -तेरे पीछे तो आराम करती है खूब मस्त रहती है। तेरे आने पर काम का दिखावा करती है। ये क्या करके खिलाएगी तुझे ?हम दो बूढ़े-बूढी  है, हमारी रोटी तो बनती नहीं हैं इससे। कभी बीमारी का ड्रामा करेगी कभी कुछ। कभी -कभी मुझे राज से ही नफ़रत होने लगी कि इस आदमी को इतना भी नहीं कि आकर बात पूछ ले ,अपनी माँ की बात सुनी और मान ली। एक दिन मैंने अपनी सास से ही कहा -जब आपको इतनी परेशानी थी तो आपको इनका विवाह नहीं करना चाहिए था। उस दिन सास ने इतना ड्रामा किया कि मैं अंदर तक हिल गई न खाना खाया न ही खाने दिया। बोली -बहु ने मुझ पर इल्जाम लगाया कि मैं इन्हें मिलने नहीं दे रही। जो मैंने सोचा भी नहीं था, वो भी कह डाला -उस दिन राज ने मेरे ऊपर हाथ भी उठाया। जब मेरे थप्पड़ लगे तब जाके मेरी सास शांत हुई। मैं पूरी रात भूखी -प्यासी रोती  रही। मैंने सोच लिया था कि अब मैं यहाँ नहीं रहूँगी ,मैं अपने घर चली जाउंगी। 

   सुबह उठकर मैंने अपने कपड़े लगाए लेकिन राज ने  मेरा हाथ पकड़ लिया। बाहर से सास की आवाज आ रही थी। अब ये अपने घर जाकर रोयेगी कि हम इसे तंग करते हैं ,इससे काम कराते हैं। दुनिया की बहुएं काम करती हैं लेकिन इन्हें तो समाज में हमारी बेइज्जती करानी है। मैंने जाने की बहुत कोशिश की लेकिन राज ने जाने नहीं दिया। थोड़ी देर बाद राज मुझे खाना देकर चले गए पहले तो मैंने  खाना नहीं खाया, फिर मैंने अपने मन को मजबूत किया कि मैं इतनी जल्दी हार नहीं मान सकती उसके लिए मुझे खाना खाना होगा। मेेंने खाना खाया ,नहा धोकर ठीक -ठाक हुई किसी से बात नहीं की।  अपना काम चुप-चाप करती रही। इन्हीं परिस्थितियों में मेरा एक साल बीत  गया। अब मैं समझ भी गई थी कि सास ये चाहती है कि उसका पति और बेटा उसके नियंत्रण में रहें। बहु आकर कहीं उनका अधिकार न छीन लें। ससुर भी सेवा निवृत हो गए तो सारा दिन घर में रहते। तब देखते कि गलती सास की है तो समझाते तुम्हारा ये व्यवहार अनुचित है ,लेकिन इतनी जल्दी व्यवहार बदलने वाला नहीं था वो ससुर को भी डपट देतीं। मैंने अपना धैर्य नहीं छोड़ा ,पहले मैं राज के पीछे जाती थी अब जैसे मुझे उनमें कोई दिलचस्पी नहीं है। वो मेरे पास आने का बहाना ढूढ़ते पर मैं वहाँ से हट जाती ,तब उन्हें महसूस होने लगा। 

               तीन -चार साल जीवन से लड़ने में  चले गए। मैंने कभी महसूस नहीं किया कि कैसे नई बहुएं आती हैं ?प्यार से अपनी जिंदगी की शुरुआत करती हैं। फ़िल्म देखने जाती हैं ,पति के साथ घूमने जाती हैं मेरे लिए तो ये सब चीजें एक सपना बन गईं। एक बार तो ये बात उठाई कि इसके तो बच्चे ही नहीं हो रहे तीन -चार साल हो गए विवाह को ,पता नहीं माँ भी बनेंगी कि  नहीं मैंने सोचा -इन परिस्थितियों में तो मैं माँ नहीं बनुँगी तब ससुर ने कहा -जब ये दोनों खुश रहेंगे ,प्यार से रहेंगे तभी तो इसकी गोद भरेगी। इस बीच ससुर भी चले गए। शायद सास को महसूस हो गया था कि अब बुढ़ापा काटना है अब इतनी नहीं चलेगी। राज माँ का पूरा ध्यान रखते मेरी बात पर भी ध्यान देने लगे या यूँ समझो उन्हें सिखाने का अब मौका नहीं मिलता। अब मैंने जो सारी  जिम्मेदारी संभाल ली थी उन्हें जिम्मेदारी देनी भी पड़ी मैं नहीं संभालती तो कौन संभालता? इसे मजबूरी भी कह सकते हैं। फिर हमारे ये बच्चा भी हुआ बाक़ी आप देख ही रहीं हैं। मैं उन्हें  अपने बच्चे को छूने भी नहीं देती। भाभीजी आप नहीं जानती, मैंने क्या -क्या झेला है ?उतना मैं बता भी नहीं पाऊँगी। बस जब उन्हें देखती हूँ तो मेरा ख़ून खोेलता है ,ये तो मेरी इंसानियत मानों, इतना होने के बावजूद भी उन्हें अपने पास रखती  हूँ। वो तो मुझे कुछ परेशानी थी जिस कारण मैं उनसे काम करा रही थी दूसरा कोई देखे तो समझे कि बहु कितनी कठोर है ,लेकिन किसी के घर की परेशानी को कोई कैसे समझे ?मैंने पूरी कहानी सुनकर कहा -जाके पैर न पड़े बिवाई ,वो क्या जाने पीड़ पराई। 
































            
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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