सोचा था ,तुम्हें उपहार में ,
लिखकर ,एक कविता दूँ।
पर तुम कोई सीमित नहीं ,
जिसको शब्दों में , मैं बांध लूँ
तुमको क्या उपहार दूँ ?
तुमको क्या उपहार दूँ ?
तुम बहुत ही अच्छे हो ,
सिर्फ़ इतना, मैं कैसे कह दूँ ?
यह मेरे बस की बात नहीं ,
कि ,तुमको परिभाषित कर दूँ।
फिर भी मैं चाहूँ ,तुमको उपहार दूँ
फिर भी मैं चाहूँ ,तुमको उपहार दूँ
सागर को मैं ,क्यों नापूँ।
अथाह प्रेम है यह तुम्हारा ,
जिसमें डूबी ,रहना चाहूँ।
प्यार मन में ,बहुत भरा है ,
पर उसको दिखला न पाऊँ।
जितना तुम ,चाहते हो मुझको ,
ख़्याल न वैसा, रख पाऊँ।
कसक यही है ,मेरे मन में ,
पूर्ण रूप से पूर्ण बनूँ मैं।
जो सोचा भी न हो ,तुमने,
वह सब कुछ मैं, तुमको दूँ।
ऐसा मैं , क्या उपहार दूँ ?
