uphaar du

सोचा था ,तुम्हें उपहार में ,
लिखकर ,एक कविता दूँ। 
   पर तुम कोई सीमित नहीं ,
    जिसको शब्दों में , मैं बांध लूँ 
तुमको क्या उपहार दूँ ? 
तुम बहुत ही अच्छे हो ,
   सिर्फ़ इतना, मैं कैसे कह दूँ ?
  यह मेरे बस की बात नहीं ,
 कि ,तुमको परिभाषित कर दूँ। 
  फिर भी मैं चाहूँ ,तुमको उपहार दूँ 
  नभ को छूना चाहूँ ,
    सागर को मैं ,क्यों नापूँ। 
 अथाह प्रेम है यह तुम्हारा ,
    जिसमें डूबी ,रहना चाहूँ। 
  प्यार मन में ,बहुत भरा है ,
    पर उसको दिखला न पाऊँ। 
 जितना तुम ,चाहते हो मुझको ,
     ख़्याल न वैसा,  रख पाऊँ।
 कसक यही है ,मेरे मन में ,
   पूर्ण रूप से पूर्ण बनूँ मैं। 
जो सोचा भी न हो ,तुमने,
  वह  सब कुछ मैं, तुमको दूँ।
     ऐसा मैं , क्या उपहार दूँ ?  
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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