शिप्रा सुबह -सुबह उठी ,उठते ही अपने सास -ससुर के पैर छूने गयी ,देखा ,वो लोग भी उठ चुके हैं। पैर छूने के लिए वो नीचे झुकी। सास -ससुर उसे देखकर बड़े ही खुश हुए फिर प्रश्न किया -बेटा, इतनी जल्दी कैसे उठ गई ?अभी आराम कर लेती। कोई बात नहीं मम्मीजी ,कहकर उसने ही प्रश्न किया- क्या आप दोनों ने चाय पी है ?सुमन जी बोलीं -नहीं ,अभी मैं जाने ही वाली थी उन्होंने उठने का प्रयास किया तभी शिप्रा बोली -आप ,बैठिये मम्मीजी ,मैं चाय बनाकर लाती हूँ। तभी जैसे सुमनजी को कुछ याद आया बोलीं -नहीं बेटा ,अभी तुम्हारी रसोई की रस्म भी नहीं हुई ,तुम अपने कमरे में जाओ। मैं तुम्हे वहीं चाय पहुँचाती हूँ अभी दो दिन और रुक जाओ, तभी तुम्हारी रसोई की रस्म होगी। लेकिन मम्मीजी मैं तो चाय पीती ही नहीं। ठीक है ,मैं अपने कमरे में चली जाती हूँ। वहाँ जाकर वो नहा -धोकर तैयार हो गई और कमरे में जो सामान फैला था उसे संभालने लगी।
सुमन जी, बहु के इस व्यवहार से बहुत ही प्रभावित हुईं ,चाय पीते हुए अपने पति से कहने लगीं- देखो जी ,बहु तो लगता है व्यवहार में बड़ी ही अच्छी है ,समझदार भी लगती है ,इतनी लड़कियाँ देखीं तब ये पसंद आई वरना आजकल की लड़कियों को देखते हुए तो मैं सोच रही थी कि पता नहीं इस साल भी विवाह नहीं हो पायेगा कि नहीं । फिर राकेश को भी छुट्टी मिल गई। बहु सुबह उठती नहा -धोकर राकेश के काम करती ब्याह वाला घर था सामान फैला पड़ा था। मेहमान जा चुके थे। सुमनजी, भी क्या -क्या करतीं ?सो शिप्रा ने सामान समेट दिया था। इस बीच राकेश कहता- कि तुम आराम करो ,मम्मी सब अपने -आप संभाल लेंगी वो कहती -मम्मी अकेले क्या -क्या कर लेंगी ?उनकी थोड़ी मदद हो जाएगी। राकेश ने शाम को फ़िल्म देखने का मन बना लिया। शिप्रा से तैयार होने के लिए कह दिया ,शिप्रा तैयार होकर अपने सास -ससुर के पास गई बोली -मम्मीजी हम फ़िल्म देखने जा रहे हैं शाम का खाना भी खाकर आयेंगे और आप दोनों के लिये भी लेते आयेंगे, कहकर वो चले गए।
रास्ते में राकेश चुपचाप चलता रहा शिप्रा ने पूछा- कैसे चुप हो ?उसने कहा- कि मैं तुम्हारे साथ घूमना चाहता था अब मम्मी -पापा से खाने के लिए कह दिया ,अब हमें इस कारण जल्दी घर जाना होगा थोड़ा टहलते ,मस्ती करते लेकिन तुम्हें तो आज्ञाकारी बहु बनने का भूत सवार है। क्या हुआ तो ?अपने ही मम्मी -पापा हैं उन्होंने हमें रोका तो नहीं। अगले दिन शिप्रा की पहली रसोई की रस्म थी ,उससे सुमन जी ने सिर्फ खीर बनवाई , बाकि खाना उन्होंने स्वयं बनाया बड़ी बेटी भी खाने की रस्म में आई थी ,उसने उपहार में बाहर घूमने जाने के लिए दो टिकट दिए अगले ही दिन की फ्लाइट थी। अगले ही दिन अपना सारा सामान बांधकर वो चल दिए, साथ में राकेश ने बताया कि अब मैं सीधे अपनी नौकरी पर चला जाऊंगा। अब हम यहाँ नहीं आयेंगे ,सुनकर सुमन जी रोने लगीं कि अभी तो बहु को हम ठीक से जान भी नहीं पाए न ही वह हमारे पास ही रही। उनकी भावनाओं को न समझते हुए वो बोला -आप इसे यहीं रख लो ,जब मन भर जाये तो भेज देना। वो बोलीं -हमने क्या विवाह अपने पास रखने के लिए किया है? वो तो मैं इसीलिए कह रही थी कि थोड़े दिन और बहु हमारे साथ रह जाती।
शिप्रा बोली -मम्मीजी !मैं वहाँ पहुंचकर आपको भी बुला लुँगी आप और पापा दोनों आ जाना हमारे पास ही। राकेश ने कुछ नहीं कहा और सामान उठाकर गाड़ी में रखवाने लगा। रास्ते भर शिप्रा सोचती रही बोली -मम्मी -पापा का अकेले मन नहीं लगेगा। राकेश झल्ला कर बोला -पहले नहीं रहते थे ,क्या ?अब तुम अपना हनीमून मनाओ ,खुश रहो।एक सप्ताह तक वो घूमते रहे फिर वो अपने फ्लैट में आ गए। वो कभी -कभी बीच में अपनी मम्मी को फोन करती ,कभी अपनी सास को क्योंकि राकेश को अपने एकांकीपन में दखलअंदाजी पसंद नहीं थी। वह अकेले ही रहना पसंद करता था उसके विपरीत शिप्रा सब का हाल -चाल मालूम करती रहती थी। धीरे -धीरे शिप्रा भी अपने कामों में व्यस्त होने लगी ,उसने वहाँ नौकरी भी कर ली, जिस कारण वो व्यस्त हो गई। कभी उसकी मम्मी का या सुमन जी का फोन आता तो राकेश स्वयं उठा लेता उससे बात नहीं करने देता ,कभी कह देता कि वो कहीं बाहर गई है ,कभी कह देता वो तो बडी असभ्य है। पता नहीं, मैं कैसे उसे निभा रहा हूँ? सुमन जी बोलीं -पहले तो वो ऐसी नहीं थी ,क्या मैं आऊँ ?मैं उसे समझाऊंगी। वो बोला - नहीं आपको आने की आवश्यकता नहीं है ,मैं ही संभाल लूंगा। आपका अपमान कर देगी।
एक दिन शिप्रा खाली बैठी थी ,राकेश भी बाहर गया हुआ था [अब तक वो इतना तो समझ चुकी थी कि राकेश किसी से सम्पर्क नहीं रखना चाहता कि बातचीत होगी लोग मिले -जुलेगें आना -जाना भी हो सकता है ,वो किसी को बुलाना ही नहीं चाहता। ]उसने सुमनजी को फोन लगाया -हैलो! मम्मीजी कैसी हैं आप ?उधर से थका सा स्वर उभरा -ठीक हूँ ,बेटा तुम सुनाओ ,उसने अपने दफ्तर की बातें की सुमन जी सुनती रहीं, फिर बोलीं -बेटा कम से कम तुम दोनों को तो प्यार से रहना चाहिए तुम्हारे पास न ही कोई ननद है ,न ही सास, फिर किस बात का झगड़ा है ?हमें तो तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। कुछ न समझते हुए शिप्रा बोली -मम्मीजी आप क्या कह रहीं हैं ?मैं समझी नहीं। तब सुमनजी ने सारी बात बताई, जिसे सुनकर शिप्रा को बड़ा क्रोध आया। बोली -मम्मीजी !आप अपना ध्यान रखना अब हममें कभी झगड़ा नहीं होगा कहकर उसने फोन रख दिया।
शाम को जब राकेश घर आया तो शिप्रा चुपचाप बैठी रही ,न ही उसने उठकर चाय बनाई ,न ही पानी दिया। राकेश स्नानघर से निकलकर बोला -आज हमें चाय नहीं मिलेगी ?शिप्रा बोली -अपने -आप ही बना लो ,फिर शाम का खाना भी बना देना। राकेश बोला -ये क्या कह रही हो तुम ?क्यों मुझ असभ्य के साथ कैसे निभा रहे हो ?फिर मुझसे क्या उम्मीद रखते हो ?तब राकेश समझा, बोला -क्या किसी का फोन आया था ?नहीं मैंने ही किया था ,तभी मुझे पता चला कि तुम मेरे साथ कैसे निभा रहे हो ?अरे !तुम्हें नहीं मालूम मैंने किस कारण से ऐसा कहा। पता है ,दीदी अपने बच्चे गर्मियों की छुट्टियों में यहाँ भेज रही थी ,और तुम्हें पता है ,हमारा घर छोटा है ,कामवाली भी आसानी से नहीं मिलतीं ,खर्चा बढ़ता सो अलग। तुम सारा दिन उनके काम में लगी रहतीं,इसीलिए मैंने उन्हें टरकाने के लिए कह दिया कि तुमसे मेरी अनबन चल रही है। बहुएं तो वैसे ही बदनाम होती हैं कि सास ननद से बनती नहीं। थोड़े झूठ से हम बड़ी परेशानी से बच सकते हैं तो क्या बुरा है ?राकेश ने समझाते हुए कहा।
हालाँकि शिप्रा को उसकी बातें अच्छी नहीं लग रही थीं वो सोच रही थी कि आदमी इतना स्वार्थी कैसे हो सकता है ?अपने ही माता -पिता या बहन के लिए ऐसी भी सोच रख सकता है ,यदि बहन भी ऐसा सोचती तो हमें हनीमून के लिए नहीं भेजती। माता -पिता के बाद तो सब कुछ राकेश का ही होना है ,अभी तो माता -पिता स्वस्थ हैं ,राकेश की ऐसी सोच के साथ उनका आगे क्या होगा ?वो खड़ी यही सोच रही थी,कि राकेश की आवाज के साथ ही उसका ध्यान टूटा ,जो उससे कह रहा था -चाय बना लाओ ,और तैयार हो जाओ फिर घूमने चलते हैं ,वहीं खाना भी खा लेंगे। सारी बातें सोचकर कुछ देर के लिए वो भी स्वार्थी हो गई और तैयार होनेके लिए उठ खड़ी हुई।
शाम को जब राकेश घर आया तो शिप्रा चुपचाप बैठी रही ,न ही उसने उठकर चाय बनाई ,न ही पानी दिया। राकेश स्नानघर से निकलकर बोला -आज हमें चाय नहीं मिलेगी ?शिप्रा बोली -अपने -आप ही बना लो ,फिर शाम का खाना भी बना देना। राकेश बोला -ये क्या कह रही हो तुम ?क्यों मुझ असभ्य के साथ कैसे निभा रहे हो ?फिर मुझसे क्या उम्मीद रखते हो ?तब राकेश समझा, बोला -क्या किसी का फोन आया था ?नहीं मैंने ही किया था ,तभी मुझे पता चला कि तुम मेरे साथ कैसे निभा रहे हो ?अरे !तुम्हें नहीं मालूम मैंने किस कारण से ऐसा कहा। पता है ,दीदी अपने बच्चे गर्मियों की छुट्टियों में यहाँ भेज रही थी ,और तुम्हें पता है ,हमारा घर छोटा है ,कामवाली भी आसानी से नहीं मिलतीं ,खर्चा बढ़ता सो अलग। तुम सारा दिन उनके काम में लगी रहतीं,इसीलिए मैंने उन्हें टरकाने के लिए कह दिया कि तुमसे मेरी अनबन चल रही है। बहुएं तो वैसे ही बदनाम होती हैं कि सास ननद से बनती नहीं। थोड़े झूठ से हम बड़ी परेशानी से बच सकते हैं तो क्या बुरा है ?राकेश ने समझाते हुए कहा।
हालाँकि शिप्रा को उसकी बातें अच्छी नहीं लग रही थीं वो सोच रही थी कि आदमी इतना स्वार्थी कैसे हो सकता है ?अपने ही माता -पिता या बहन के लिए ऐसी भी सोच रख सकता है ,यदि बहन भी ऐसा सोचती तो हमें हनीमून के लिए नहीं भेजती। माता -पिता के बाद तो सब कुछ राकेश का ही होना है ,अभी तो माता -पिता स्वस्थ हैं ,राकेश की ऐसी सोच के साथ उनका आगे क्या होगा ?वो खड़ी यही सोच रही थी,कि राकेश की आवाज के साथ ही उसका ध्यान टूटा ,जो उससे कह रहा था -चाय बना लाओ ,और तैयार हो जाओ फिर घूमने चलते हैं ,वहीं खाना भी खा लेंगे। सारी बातें सोचकर कुछ देर के लिए वो भी स्वार्थी हो गई और तैयार होनेके लिए उठ खड़ी हुई।


