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शर्माजी की  एक छोटी सी दुकान है ,उसी दुकान से उन्होंने अपने बच्चों को पढ़ाया -लिखाया। दुकान पर बैठने के आलावा वो कभी -कभी, छोटा -मोटा काम भी पकड़ लेते जिसे बच्चे और शर्माजी मिलकर निपटा देते उससे थोड़ी आमदनी बढ़ जाती और उस पैसे से बच्चों की जरूरतें पूरी होतीं। बच्चों को भी जब अपनी मेहनत के पैसे से इनाम के तौर पर ,उनकी इच्छाएं पूरी होतीं तो वो भी खुश होते। बच्चे थे भी ,बहुत समझदार। अपने घर की परिस्थितियों को समझते थे और मेहनत से पढ़ाई भी करते थे। उन्हें लगता कि इस ग़रीबी से छुटकारा तो पढ़ने से ही मिलेगा। मोहित  कुछ कोर्स करना चाहता था लेकिन पैसों की कमी के कारण नहीं कर  पाया फिर भी उसने पत्राचार द्वारा अपना कोर्स किया। अब उसने नौकरी की तलाश शुरू की , पैसे कम  ही थे पर अब वो अपना खर्च उठा रहा था फिर भी उसने पढ़ाई जारी रखी। 
                धीरे -धीरे वो उन्नति की राह पर अग्रसर होता रहा ,उसकी नौकरी  में  तरक्की भी हो गई। अब तो बिरादरी में उसकी बातें फैल गईं। बेटी वालों को क्या चाहिए कि लड़का कमाता हो ,अच्छे परिवार से हो ,भले लोग हों, उसके भी रिश्ते आने लगे। अब तो मोहित को तरक्क़ी मुँह लग चुकी थी ,अब वो किसी भी तरह अपनी पुरानी  जिंदगी में लौटना नहीं चाहता था। किसी भी तरह की परेशानी में नहीं फँसना चाहता था। घर गृहस्थी और खर्चे सोचकर उसने फैसला किया कि वो नौकरी -पेशा लड़की से ही विवाह करेगा और ये फैसला उसने अपने परिवार को भी सुना दिया। घर वाले अब नौकरी वाली लड़की देखने लगे तब जाकर उन्हें पता चला कि समाज व समाज के लोगों की सोच में कितना बदलाव आ गया है। 

           मैं अपने ही किसी रिश्ते दारी में गई थी वहाँ भी लड़की का विवाह हो रहा था ,लड़की के विवाह के बाद सब ऐसे ही बैठे चाय पी  रहे थे ,मैं भी वहीं  बैठी थी कि तभी किसी ने कहा -अर्चना जी !सुना है ,आपका भतीजा भी अच्छा कमा रहा है,आपके भइया , नौकरी वाली लड़की ढूंढ़ रहे हैं। बात बने तो रामपाल जी की लड़की है वो भी कमा रही है ,अच्छी तनख़्वाह मिलती है ,आप कहें, तो बात चला दूँ या उसके पापा यही आये हुए हैं ,आप स्वयं बात कर  लेना  इससे पहले कि वो कुछ कहतीं उस महिला रिश्तेदार ने रामपालजी को आवाज लगा दी। वो हमारे ही पास पड़ी चारपाई पर आकर बैठ गए ,उनके व्यवहार से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उन्हें अपने ऊपर और अपनी बेटी पर अहंकार रूपी विश्वास था। रामपालजी बोले -बहनजी, मेरी बेटी बहुत पढ़ी -लिखी है ,पैंतालीस हजार रूपये कमा रही है उनकी बात बीच में ही काटकर, उनकी वो रिश्तेदार बोली -तभी तो हमने बहनजी के भतीजे से बात चलाई है ,वो भी पचास हजार तनख़्वाह ले रहा है ,भले लोग हैं ,देख लो संबंध बन जाये तो। मैंने जबाब दिया -देख लेते हैं ,भाई से बात करुँगी। 

            रामपाल जी कहने लगे -मैंने बच्चो को बड़े लाड़ -प्यार से पाला है और बताने लगे- कहाँ- कहाँ उनकी पोस्टिंग थी, कैसे -कैसे रहे ?अपनी तारीफ करने के बाद बोले -एक बात कहना चाहता हूँ कि मेरी लड़की घर का काम नहीं करेगी मैंने अनजान बनते हुए कहा- क्यों ,सिखाया नहीं काम उसे ?वो बोले -नहीं ऐसी बात नहीं है वो नौकरी करती है तो वो घर का काम क्यों करेगी ?तो फिर कौन करेगा? मैंने प्रश्न किया। वो चुप रहे मैंने कहा -मान लीजिये ,दोनों बच्चे बाहर रहते हैं ,दोनों ही नौकरी पर जाते हैं तो खाना कौन बनाएगा ?रामपालजी बोले -वो तो नौकरी करेगी। उनकी बात सुनकर अर्चना जी को अंदर ही अंदर बहुत गुस्सा आया फिर भी अपने मन को शांत रखते हुए बोलीं -क्यों ?जिससे आप विवाह कर  रहे हैं वो भी तो कमाता है। भई ये हो सकता है कि दोनों मिलकर काम कर लें ,इतना ज्यादा भी नहीं कमाते कि घर का किराया और खर्चे काटकर वो पूरा महीना बाहर ही खाना खाते रहें। बाहर का खाना खाते रहे तो बीमार पड़ने का खतरा रहेगा। बस मैंने तो अपनी बात रख दी कि वो घर का काम नहीं करेगी रामपाल जी ने बात खत्म करते हुए कहा। 
                  हमारी नोंक -झोंक सुनकर और लोग भी दिलचस्पी लेने लगे ,मैंने उन लोगों के सामने उनकी बात रखी, बात सुनकर उन्हें भी लगा कि मैं सही हूँ। भीड़ में से किसी ने सुझाव दिया -अरे ,नौकर रख लेंगे ,बात खत्म। मैंने उसकी बात का समर्थन करते हुए कहा -आप ठीक कह रहे हैं लेकिन ये बताइये साफ -सफाई वाला नौकर अलग ,खाना बनाने वाला अलग और ऊपर के भी बहुत से काम होते हैं उनके लिए अलग नौकर तो वो क्या नौकरों को देने के लिए ही कमायेंगे, क्या बचत करेंगे ?किसी दिन या कुछ दिन की छुट्टी पर नौकर चला जाता है तो परेशानी तो वही रहेगी कि काम कौन करे ?मुझे तो मालूम है कि मेरा भतीजा बहुत सारे काम कर  लेगा लेकिन खाना भी वो ही बनाये तो फिर उसे विवाह की क्या आवश्यकता है ?वहाँ  बैठे सभी लोगों ने मेरी बात का समर्थन किया ,तब वो थोड़े तैश में आकर बोले -देखिये जी ,मेरी बेटी
कोई नौकर नहीं ,जो ये काम करे। काम किसका करेगी वो ?अपना या अपने पति का मैंने पूछा- कल को आप कहने लगे कि मेरी बेटी बच्चे पैदा तो करेगी लेकिन पालेगी नहीं ,काम तो उनका भी होगा ,मैंने मुस्कुराकर कहा। 

            मैंने बात को खत्म करते हुए कहा -देखिये रामपाल जी !हर घर की औरत या बहु किसी न  किसी घर की बेटी होती है ,हर माता -पिता चाहते हैं कि हमारी बेटी को ऐसी ससुराल मिले जहाँ उसे आराम मिले ,सुख मिले। लेकिन बेटी को ये सिखाना कि वो नौकर नहीं ,वो वहाँ काम नहीं करेगी ये तो सही नहीं है न।आपने ये क्यों नहीं सिखाया ?कि बेटा! जहाँ तुम जाओगी वो भी अपना ही परिवार होगा ,उन लोगों को भी अपना समझना या वो परिवार ही तुम्हारा अपना होगा। अब घर परिवार इतने बड़े कहाँ रह गए ?कि महिलाएं तीन  -तीन बार खाना बना रही हैं परिवार में दादा -दादी ,ताऊ -ताई,चाचा -चाची आदि दस -पंद्रह लोगों का परिवार होता था ,तब भी सब मिलजुलकर काम करते थे किसी एक पर नहीं छोड़ते थे। अब तो जमाना बदल गया है अब तो परिवार ही कितने बड़े रह गए हैं ,हद से हद चार या पांच लोग उनमें  से भी इधर -उधर हो जाते हैं। क्या आपकी पत्नी किसी की बेटी नहीं थी ?आप स्वयं ही सोचिये उस समय पर उसके माता -पिता भी ऐसा ही कहते तो आप रिश्ता लेते। क्या आपकी पत्नी काम नहीं करती ,क्या उसे  आप नौकर समझते हैं ?आप स्वयं ही सोचिये कि आप अपनी बेटी को क्या सीखा रहे हैं ?ऐसी सी ख के साथ ,क्या वो अपना गृहस्थ जीवन सुचारु रूप से चला पायेगी? तभी उनका लड़का आकर बोला -पापा गाड़ी आ गई चलो ,वे उठने के लिए तत्पर हुए मैंने कहा -रामपाल जी !बहु कैसी ढूढ़ेंगे ?सोच लीजिये। पास खड़े लोग मुस्कुराने लगे। 































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मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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