padav

जीवन शुरू हुआ ,इस जीवन में  नये -नये रिश्तों  से पहचान होती है। नये -नये चेहरे , किसी न  किसी रिश्ते  में बंधे होते हैं,कोई ताऊ ,चाचा ,दादा आदि होते हैं और उनसे जुड़े रिश्ते ताई ,चाची ,दादी आदि। हमें जीवन के इस  पड़ाव में सिखाया जाता है ,इन रिश्तों का आदर -सम्मान करना क्योंकि ये हमसे बड़े हैं। साथ के रिश्ते भाई -बहन ,दोस्त आदि ,ये जिंदगी के वो रिश्ते हैं जिनके साथ तालमेल बिठाना ,इनके साथ मौज -मस्ती करना है, विद्यालय  जाते हैं तो रिश्तों की कदर के साथ -साथ जीवन को कैसे आगे बढ़ाना है? अपने परिश्रम और बुद्धिमानी से इस पड़ाव को पार करना है। या यूँ कहें कि ये जीवन की नींव है ,नींव जितनी मजबूत होगी आगे  चलकर रोज़गार रूपी इमारत उतनी ही मजबूत होगी।
 
          इस पड़ाव में रिश्तों की क़द्र के साथ -साथ ,सामान की कद्र भी सीखनी पड़ती है कि  सामान की कद्र नहीं करोगे तो तुम्हारी कद्र कौन करेगा? पहली बात तो ये सुनने को मिलती ,फलां वस्तु इतने की है ,बेहद कीमती। तुम क्या जानो, कितनी मेहनत से पैसा कमाया जाता है ?तब जाकर  ये सामान आता है। तब लगता है पेट भरने के लिए और सामान लेने  के लिए मेहनत करनी है। पहले तो पढ़ाई और  रोजगार फिर पैसा, जिससे हमारी आवश्यकताएं पूरी हों और वो सामान आये जिससे हमारी समाज में इज्ज़त हो ,मान -सम्मान बढ़े। सोफा ,बंगला ,गाड़ी ,वातानुकूलित उपकरण जैसी सुविधाओं के लिए आदमी अपनी पढ़ाई, मेहनत यहाँ तक कभी -कभी इच्छाएं भी झोंक देता है। सजावटी वस्तुएं जो इंसान को एक अलग ही दुनिया में ले जाती हैं। बचपन से लेकर अब तक के पड़ाव के बाद तीसरे पड़ाव में तो कई  बार ऐसा भी हो जाता है ,भाई -भाई का नहीं रहता ,दोस्त दुश्मन बन जाता है। कोई भी रिश्ता विश्वशनीय नहीं रह जाता। 

          सारा जीवन इन्हीं वस्तुओं और इच्छाओं  के इर्द -गिर्द घूमता है वो अपनी एक अलग दुनिया बसा ना चाहता है, जो रिश्ते उसके लिए आदरणीय थे बोझ नज़र आने लगते हैं। रिश्तों में छल -कपट ,चालाकी नज़र आने लगती है। जिन सुविधाओं या सामानों की उसे कद्र करनी सिखाई जाती है अब उनका स्थान सर्वोपरि  होता है। सुख -सुविधाएं ,ऐशो -आराम ही श्रेष्ठ नजर आते हैं क्योंकि उन्हें कमाने के लिए वो भी तो मेहनत करता है। ये बातें तो वो बचपन से ही सीख जाता है कि इन सुविधाओं के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है और वो करता भी है। सुख -सुविधाओं के बाद संसार की संरचना में अपना योगदान देता है। और उन्ही पारम्परिक बातों को दोहराता है पर स्वयं  मानता नहीं। कहीं हद तक समाज भी उसे ये ही सोचने के लिए मजबूर कर  देता है कि जो वो सोच रहा है या कर रहा है ,सही है। 
           रिश्ते तो उसने कमाए नहीं वो तो स्वयं ही बन गए ,कुछ बनाये भी तो निभे नहीं। नई पीढ़ी के लिए वो मिसाल बनना चाहता है पर बन नहीं पाता। वो कुछ अलग नहीं सीखा पाता कि ये रिश्ते हमारी धरोहर हैं ,ये हमारी नींव हैं। हमारे बुजुर्ग बोझ नहीं वरन  ये वो अनुभवी पीढ़ी है जिनके पास बेशक़ीमती तजुर्बे हैं । जब सब सुविधाएँ हो जाती हैं और उम्र के दो -तीन पड़ाव खो देता है तब उसे एहसास होता है ये सब तो मात्र पेट भरने के लिए साधन थे जो सामान जोड़ा सुविधाएँ की उनकी कीमत तो कुछ भी नहीं ,नश्वर है सब। कबाड़ी के भाव जाता है ,ये तो आनी  -जानी चीजें हैं ,आज हैं कल नहीं ,ये जीवन भी। साथ में तो उसका व्यवहार ,अपनापन, प्यार रहता है जो उसने कमाया ही नहीं। एक झूठी जिंदगी जी रहा था जो सामान उसने इकट्ठा किया वो उसके लिए था वो स्वयं सामान के लिए नहीं। 

           इस पड़ाव में एहसास होता है क्यों ?व्यर्थ ही जीवन इन नश्वर चीजों के लिए गवाँ दिया ,फिर भी वो खुश होता है ,एक बेटा अमेरिका ,दूसरा लंदन ,लेकिन ये नहीं सोचता ,तेरा अपना क्या है ?कोई भी तो तेरे पास  नहीं  खुश हुए जाता है। उन्हें भी  रिश्तों की कद्र नहीं सिखाई और वो दूर कहीं फ्लैट में उन सामानों के बीच अपने आख़िरी पड़ाव को जी रहा होता है ,कभी -कभी तो उन्हीं के बीच दम  तोड़ देता है। उस नश्वर जीवन के गुजर जाने पर वो मात्र बदबू का झोंका बनकर रह जाता है। फिर भी जीवन चलता रहता है। दूर  कहीं फोटो पर लगी माला हिलती है ,कहती है एक गुमनाम जिंदगी जो सिर्फ अपने लिए जीती रही। 


















laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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