एक ग़रीब ने बेटी को ,
' ग़रीबदास 'से ब्याह दिया।
अपना टंटा काट दिया।
होश संभाला बेटी ने जब ,
देख मुसीबत अपनों की ,
अपनी इच्छाओं को मार दिया।
जीवन को ऐसे ही काट दिया।
भाई पढ़ाया ,बहन पढ़ाई ,
अपना नंबर नहीं आया भाई ,
जीवन का रस त्याग दिया।
ग़रीबी में ,हर मुश्किल में साथ दिया।
ब्याह हुआ ,जब लड़के का ,
घूमें गैर देशों में ,रहे अपनी मोेज़ों में ,
व्यय का कोई हिसाब नहीं ,
बेटी के नाम पर कोई जबाब नहीं।
दुःख में साथ दिया ,अपनों का ,
क्या ?सुख में बेटी का अधिकार नहीं।
पड़ी मुसीबत तब ,बेटी आई याद ,
न कभी ,सुनी उसकी फ़रियाद।
कभी न देखे ,उसके ग़म।
अपने घर में अनजान बन गई ,
वो इस घर की बिटिया थी ,बेईमान बन गई।
न दिया सहारा कभी ,
वो जीवन के थपेड़ों से ,चट्टान बन गई।
अपने ही लोगों से अनजान बन गई।
जिनके लिए ,कभी ग़म भुलाये ,
कभी जख़्म छिपाये।
अजनबी उसकी पहचान बन गई।
' ग़रीबदास 'से ब्याह दिया।
अपना टंटा काट दिया।
होश संभाला बेटी ने जब ,देख मुसीबत अपनों की ,
अपनी इच्छाओं को मार दिया।
जीवन को ऐसे ही काट दिया।
भाई पढ़ाया ,बहन पढ़ाई ,
अपना नंबर नहीं आया भाई ,
जीवन का रस त्याग दिया।
ग़रीबी में ,हर मुश्किल में साथ दिया।
ब्याह हुआ ,जब लड़के का ,
घूमें गैर देशों में ,रहे अपनी मोेज़ों में ,
व्यय का कोई हिसाब नहीं ,
बेटी के नाम पर कोई जबाब नहीं।
दुःख में साथ दिया ,अपनों का ,
क्या ?सुख में बेटी का अधिकार नहीं।
पड़ी मुसीबत तब ,बेटी आई याद ,
न कभी ,सुनी उसकी फ़रियाद।
कभी न देखे ,उसके ग़म।
अपने घर में अनजान बन गई ,
वो इस घर की बिटिया थी ,बेईमान बन गई।
न दिया सहारा कभी ,वो जीवन के थपेड़ों से ,चट्टान बन गई।
अपने ही लोगों से अनजान बन गई।
जिनके लिए ,कभी ग़म भुलाये ,
कभी जख़्म छिपाये।
अजनबी उसकी पहचान बन गई।