beti ka adhikar nhi

एक ग़रीब ने बेटी को ,
'  ग़रीबदास 'से ब्याह दिया। 
     अपना टंटा काट दिया। 
होश संभाला बेटी ने जब ,
     देख मुसीबत अपनों की ,
        अपनी इच्छाओं को मार दिया। 
           जीवन को ऐसे ही काट दिया। 
 भाई पढ़ाया ,बहन पढ़ाई ,
    अपना नंबर नहीं आया भाई ,
      जीवन का रस त्याग दिया। 
          ग़रीबी में ,हर मुश्किल में साथ दिया। 
   ब्याह हुआ ,जब लड़के का ,
      घूमें गैर देशों में ,रहे अपनी मोेज़ों  में ,
        व्यय का कोई हिसाब नहीं ,
            बेटी के नाम पर कोई जबाब नहीं।
              दुःख में साथ दिया ,अपनों का ,
         क्या ?सुख में बेटी का अधिकार नहीं।  
 पड़ी मुसीबत तब ,बेटी आई याद ,
    न कभी ,सुनी उसकी फ़रियाद। 
        कभी न देखे ,उसके ग़म। 
     अपने घर में अनजान बन गई ,
        वो इस घर की बिटिया थी ,बेईमान बन गई। 
    न दिया सहारा कभी ,
        वो जीवन के थपेड़ों से ,चट्टान बन गई। 
          अपने ही लोगों से अनजान बन गई। 
              जिनके लिए ,कभी ग़म भुलाये ,
                 कभी जख़्म छिपाये। 
       अजनबी उसकी पहचान बन गई। 
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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