na usne kuch kaha na maine he

अभी बाहरवीं की परीक्षा दी है ,परिणाम आने में अभी समय है। दो महीने न जाने परीक्षा  तैयारी करते -करते कैसे बीत  गए ? पता ही नहीं चला। तब  नींद आती थी ,सोचा था ,जब परीक्षाएं समाप्त होंगी ,तो खूब सोऊंगी लेकिन परीक्षा समाप्त होते ही न जाने नींद भी कहाँ गायब हो गई ?मम्मी के साथ भी कितनी मदद कराती समय काटे नहीं कट रहा   था।  सोचा कुछ कोर्स ही कर  लिया जाये। अभी हम  यही सोच रहे थे कि क्या सीखें ?तभी मौसी हमारे घर आई ऐसे ही बातों -बातों में मम्मी ने कहा -खाली बैठी है ,सोच रहे हैं कि कुछ सीख ही ले। तब मौसीजी बोलीं -अभी तो इसने परीक्षा ही दी हैं अभी थोड़ा आराम करने दो ,सीख लेगी ,अभी क्या इसकी उम्र निकल गई ?मम्मी बोली -यहाँ पड़े -पड़े भी तो बोर हो रही है ,कुछ सीख लेगी तो आगे काम आएगा और समय भी कट जायेगा। तब मौसी बोलीं -समय नहीं कट रहा तो मेरे साथ चलो ,दीपा तो तुम्हारी ही उम्र की है वो भी अकेली परेशान रहती है ,तो दोनों का साथ हो जायेगा और हमारा शहर भी घूम लेना।थोड़ी न नुकुर के बाद मम्मी ने'' हाँ' कह   दिया।

                अगले ही दिन मैं अपनी मौसी के घर थी। माहौल बदला ,जगह बदली जाने -पहचाने लोग लेकिन बहुत समय बाद मिले तो बहुत ख़ुशी हुई। दीपा और मैंने ढेर सारी बातें की पढ़ाई से संबंधित ,करियर से संबंधित। मुझे ख़ुशी थी कि परिणाम घोषित होने  बाद मैं ग्रेजुवेशन में आ जाउंगी। दीपा मुझसे एक साल आगे थी। इस कारण मुझे कुछ  विषयों से संबंघित जानकारी लेने में मदद हो रही थी। कभी हम बात करते -करते बाहर बगीचे में निकल जाते। कभी रसोईघर में अपने हाथों का जलवा मौसी जी को दिखाते। मुझे गाने का बहुत ही शौक़ था ,अक्सर मैं तेज़ आवाज में गाने लगती। एक दिन मैंने देखा कि कोई छत से झाँक रहा है। मैंने दीपा से पूछा, कि कौन है ?उसने बताया कि ऊपर एक किरायेदार है जो छुट्टी के बाद अपने घर से आया है वो भी यहाँ रहकर पढ़ाई कर रहा है। वो अक़्सर निकलता हुआ जाता तो नज़र पड़ ही जाता। मौसीजी के यहाँ ही खाना खाता तो दोनों वक़्त आ जाता ,फिर खाना खा कर चला जाता। 

                 धीरे -धीरे हम खुलने लगे, क्योंकि कुछ न कुछ काम पड़ ही जाता। एक दिन बोला -तुम तो अच्छा गाना गाती  हो ,फिर मुझे देखकर चुप क्यों हो जाती हो ?नहीं ऐसी कोई बात नहीं, मैं तो ऐसे ही गुनगुना लेती हूँ मैंने मुस्कुराते हुए जबाब दिया। कभी -कभी हम घूमने निकल जाते हालाँकि हमारे बीच में दीपा रहती, फिर भी एक अनजानी सी क़शिश हमें एक -दूसरे की तरफ खींचती। लगता कहने को कुछ भी नहीं ,पर कहना बहुत कुछ है। हम एक दूसरे से मिलने के नए -नए कारण ढूढ़ते ,न दिखने पर अज़ीब सी बेचैनी महसूस होती। हमारा एक -दूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ता ही जा रहा था। दिन निकलते ही जा रहे थे। एक दिन मौसीजी कहने लगीं -सपना तुम्हें आए  हुए ,कितने दिन  हो गए ?तब मुझे याद आया कि मुझे यहाँ आये हुए पंद्रह दिन हो गए थे ,लेकिन मुझे ये दिन बहुत कम लग रहे थे। तभी मम्मी का फोन आया -सपना! मौसी के यहाँ मन लग रहा है या नहीं ,कब आने का इरादा है ?मैंने मम्मी से कह दिया -कि मम्मी मन लग रहा है क्योंकि दीपा से पढ़ाई की बातें होती रहती हैं ,हम साथ में घूमने भी जाते हैं। कहते हुए मन में संदीप का चेहरा घूम रहा था। पंद्रह दिन और रहने के लिए कहकर मैंने फ़ोन रख दिया। 

            लेकिन मेरा मन बार -बार मुझसे पूछ रहा था ,कि किस लिए मैं पंद्रह दिन और रुकना चाहती हूँ? आखिर में तो मुझे जाना ही होगा। क्यूँ ?मैं अपने मन को बहला रही हूँ ,क्या सही है क्या ग़लत ?कुछ समझ नहीं आ रहा। अपने माता -पिता का सम्मान है ,कल को अगर मौसीजी ने देख लिया या मेरी भावनाओं को पढ़ लिया तो, मैं क्या जबाब दूंगी ?उसने भी तो कुछ नहीं कहा ,बस हम एक दूसरे को देखते हैं ,महसूस करते हैं ,कभी -कभार बातें भी कर  लेते हैं। कुछ भी तो नहीं हमारे बीच, फिर भी लगता है कि बहुत कुछ है। फिर भी मैं रुकना चाहती हूँ, वो पता नहीं क्या चाहता है ?क्यों मुझे ऐसी नजरों से निहारता है? कि मेरा मन मेरे वश में नहीं रहता। क्यों? मैं अपने मन को समझा नहीं पाती। मैंने इसी उधेड़ -बुन में एक सप्ताह और निकल दिया। फिर मैंने अचानक मौसीजी से कहा -कि मौसीजी !अब मैं जाऊँगी ,क्योंकि मम्मी भी अकेली हैं, उनका मन भी नहीं लग रहा होगा।मौसीजी कहने लगीं -'तुम तो पंद्रह दिन बाद जाने वाली थीं फिर कैसे जल्दी जा रही हो ?मैंने कहा -मम्मी को अचानक से चौंका दूँगी। और मैं अपने घर आ गई। जब मैं आ रही थी, तो वो मुझे देख रहा था। हमारी नजरें एक -दूसरे से टकराईं ,उन नजरों में अनजाना सा दर्द था। न उसने कुछ कहा ,न मैंने ही। 














आया की  
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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