ek prshan

बहुत दिनों बाद आज मैं अपने परिवार के साथ हूँ ,कारण देश में लॉकडाउन लगा है। लॉकडाउन के कारण ही, आज हम अपने -अपने घरों में कैद हैं। ये भी कह सकते हैं क्योंकि अपनी मर्जी से तो कोई भी अपना काम -धाम छोड़ के तो घर में नहीं बैठेगा। लॉकडाउन का कारण है महामारी ,जो हमारे देश में ही नहीं फैली वरन पूरे विश्व में ही फैली थी। महामारी ज्यादा न फैले इसीलिए लॉकडाउन लगा है। जिन्हें पल भर भी फ़ुरसत नहीं थी, न ही आराम के लिए, न ही परिवार के लिए ,आज उन्हें फुरसत ही फुरसत है। अपने परिवार के लिए भी और आराम के लिए भी वरना दफ्तर का काम भी घर पर आ जाता था। कम्पनी वाले जैसे पैसे देते हैं तो काम भी तो वैसा ही लेते हैं। न कभी बच्चों को घुमाने ले जा पाता था ,न ही जिंदगी में कुछ  और सोच पाता था घर से संबंधित काम किये भी तो मात्र औपचारिकता निभानी पड़ती थी। 

                 इस महामारी ने तो जैसे तेज़ रफ़्तार से चलती गाड़ी को एकदम से विराम दे  दिया  हो। लगता जैसे सब कुछ थम सा गया  है।घर  में बैठने पर  सोचा कि अब  दिनभर  शरीर और मष्तिष्क  को आराम देगें। एक दिन तो ऐसे ही सोने में खाने -पीने में गुजार दिया। अगले दिन  बच्चों के साथ खेले  उनसे बातें की चार -पांच दिन बीत जाने के बाद अब क्या करें ?अब आराम भी कितना करें। इस बीच मैंने महसूस किया की श्रीमतिजी पर लॉकडाउन का कोई असर नहीं पड़ा ,वो तो जैसे पहले काम करती थीं आज भी ऐसे ही करती हैं। वो ही सुबह उठना ,नाश्ता बनाना फिर घर की साफ -सफाई करना ,दोपहर के खाने के बाद थोड़ी देर आराम करके अपने काम में लग जाना जैसे -शाम की चाय के साथ कुछ हल्का -फुल्का। उसके बाद भी कुछ न कुछ काम में लगी रहती ,रा त के खाने के बाद वो आराम करती। मैं कहता यार कहीं जाना थोड़े ही है काम आराम से कर  लेना। मुस्कुराकर कह देती -मेरा तो रोज का काम है ,समय पर खाना न मिले तो आप ही परेशान होंगे। मेरे लिए तो सब दिन बराबर हैं ,संडे हो या मंडे। 

             घर में बैठे -बैठे आठ -दस दिन हो गए ,शुरू शुरू में तो अच्छा लगा था लेकिनअब गुस्सा आने लगा था।इतना भी नहीं कि  छुट्टी है, तो बाहर ही घूमने चले जायें। चलचित्र भी कहाँ तक देखें ,पत्नी से नए -नए व्यंजन भी बनवाकर खा लिए ,घर में अब राशन भी खत्म होने लगा। शालू ने मुझे थैला पकड़ाकर कहा -थोड़ा सामान ले आइये ,अपना मुँह ढककर गया कभी सामान लाया नहीं था तो पत्नी से ही दुकान पूछकर सामान लाया। बाहर जाने की बहुत इच्छा हो रही थी ,बाहर निकल कर  ऐसा लग रहा था जैसे कैद से निकलने के लिए कैदी  बेताब होते हैं और बाहर निकलकर खुलकर साँस लेते  हैं। घर में आकर कहा -सच में ,इस महामारी से तो घर में रहकर भी जेल वाला अहसास हो रहा है। 

         शालू बोली -एक प्रश्न पूछूं ?मैंने कहा  पूछो। मैं तो यहाँ  बीस सालों से रह रही हूँ और आपसे आठ -दस दिन भी नहीं बिताये जा रहे। रोज का वही  काम ,मैंने तो कभी अपने को कैदी  नहीं समझा। आपने भी कभी ये नहीं सोचा कि इसका मन भी करता होगा कहीं बाहर जाने के लिए या घूमने के लिए।मैंने तो इस घर परिवार को ही अपनी दुनिया बना लिया  और इसी दुनिया में मैं बीस सालों से  रह रही हूँ। कभी सोचा कि इसकी इस छोटी सी दुनिया में घुसकर इसकी मदद कर  दी जाये। या इस दुनिया से निका लकर बाहर की दुनिया भी दिखा दी जाये। आपको याद  है। हमने कब बैठकर साथ खाना खाया या एक साथ फ़िल्म देखी ? मैं उसके प्रश्नों के उत्तर के लिए बगलें झांक रहा था। 
              आज मैं ये सोचने पर मजबूर हो गया था कि  हाँ, शालू ने अपने जीवन के बीस वर्ष इस घर को दिए जिंदगी की भागदौड़ में मैं अपने काम में लग गया और वो माता -पिता की सेवा में और बच्चों में लगी रही। न मैंने कभी उसे समय दिया न ही कभी यह जानने का प्रयत्न किया कि उसकी भी कुछ इच्छाएं होंगी मैं तो छुट्टी वाले दिन आराम करता या दफ्तर का काम। उसकी तो कभी छुट्टी हुई ही नहीं बल्कि उसका काम तो और बढ़ जाता। अब भी तीनों समय का खाना बर्तन ,कपड़े ,सफ़ाई में ही दिन निकल जाता। अब मैंने फैसला कर  लिया था कि ये छुट्टियाँ जब तक भी होंगी उसका रोना नहीं रोयेंगे वरन सभी एकसाथ मिलकर काम करेंगे जिससे शालू को आराम मिल सके और सारा परिवार एक -दूसरे की भावनाओं को समझ सकें एक साथ रहने का मजा लें। 












laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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