देखा मैंने ,मौत को
प्रत्यक्ष ,नीरव ,स्तब्ध।
सिर्फ आराम ही आराम।
जिंदगी !कोलाहल पूर्ण ,
संघर्ष से भरपूर।
जीते हैं ,इसे हम रोज ,
मरते भी रोज़ हैं।
फिर क्यों है ,जिजीविषा जीवन की
अपनाया क्यों नहीं ,शांत
उस मौत को।
रह जाती हैं ,कुछ यादें ,उस जीवन की।
जिन्हें याद कर रोता है ,क्यों?
जीवन का अंतिम सत्य ,
जाना है ,उसको भी एक दिन ,
समझ सका न उस सुखद एहसास को ,
नहीं चाहता उस एहसास को।
जिजीविषा ,भरती है उसमें ,
उत्साह ,लग्न कुछ करने की तमन्ना।
मौत ले जाती है ,
दूर ,गहन अंधकार ,शांत ही शांत।
न तुम न मैं ,
पल में कुचल देती है ,
रिश्तों की नींव।
याद न रहता ,कोई वादा ,
कोई कसम न कोई इरादा।
बस पीछे छोड़ा है जिंदगी को ,
रोते ,बिलखते ,कलपते ,
उफ़ !जिंदगी की ये कैसी भयानक मौत।
