मिश्राजी आज चाय के खोखे पर बैठे चाय पी रहे थे। मैं भी टहलने निकला था।मिश्राजी को देखा ,तो कदम उधर ही बढ़ा दिए। कहो मिश्राजी !क्या हाल है ?आज यहाँ कैसे चाय पी रहे हैं ? शरारत भरे लहज़े में,- क्या आज भाभीजी ने चाय बनाकर नहीं दी ?या फिर घर से निकाल दिया। वे बोले -अरे ,नहीं आज घर में गैस खत्म हो गई है ,चाय की तलब लगी थी। जब तक गैस आती है तब तक तो बिना चाय के नहीं रह सकते ,इसीलिए यहाँ आ गए। और बताओ, मिश्राजी !क्या चल रहा है ?मिश्राजी मुँह बनाते हुए बोले -क्या बताये ,इस महंगाई ने मार रखा है। हर चीज पर महंगाई है ,सिलेंडरों के दाम भी बढ़ते जा रहे हैं। इस सरकार को वोट इसीलिए दिया था कि महंगाई से थोड़ी राहत मिलेगी। पिछली सरकार ने तो कुछ किया ही नहीं ,अब ये सरकार भी न जाने क्या करके छोड़ेगी ?अब ये देखो, नोट बंदी की ,इससे क्या लाभ हुआ ?मैंने हँसकर कहा -क्यों ,आपका कौन सा धन निकल गया ,क्या आपके नोट बदले नहीं गए ?अजी, हम पर कहाँ से आये इतने नोट ,जो थे बदले गए मिश्राजी शान से बोले। हमारे पास इतना धन कहाँ से आया? कि नोट बदले न जा सकें। रोजमर्रा की जरूरतें ही पूरी हो जायें ,ये ही बहुत है।
फिर क्यों परेशान हैं आप ?मैंने पूछा। गरीब लोग तो लाइन में लगे हैं ,परेशान हो रहे हैं। मुझे ये बताइये मिश्राजी !वैसे तो वे लोग गरीब हैं ,लेकिन उनके पास इतना पैसा कहाँ से आ गया ?आप और हम कितने लगे लाइन में, सोचो जरा। कोई अमीर लाइन में लगा है ?ख़ैर छोड़िये ,इन सब बातों को। घर में सब ठीक हैं ,बहु -बेटों का क्या हाल है?मिश्राजी के जैसे मैंने दुखती रग पर हाथ रख दिया हो बोले -आजकल के बच्चे क्या बताऊँ ?पूरी जिंदगी बच्चों को पढ़ाने -लिखाने में लगे रहो। पत्नी की इच्छा भी पूरी नहीं कर पाते। अपने अरमानों का गला घोंटा। जब बच्चे क़ाबिल हुए तो अपनी- अपनी नौकरी पर चले गए ,जो क़ाबिल हुआ ,जिसे हमारा सहारा बनना चाहिए ,वो तो गया। जो खुद हममें अपना सहारा ढूढ़ता है वो यहीं है। करना कुछ नहीं चाहता ,बस दोस्तों में घूमता रहता है। कई बार कहा भी ,भई अपनी जिम्मेदारी समझो पर वो समझना ही नहीं चाहता। बहुऐ तो बेटों से भी आगे ,जब अपना ही सोना खोटा हो तो दूसरे का क्या दोष ?एक बार मैंने सख्ताई भी कर दी। छोटे से कहा -कहीं से भी कमाओ ,अपना ख़र्च स्वयं करो तो देखा अपनी माँ के कान भर रहा था ,उसकी चापलूसी में लगा था। वो तो उसकी माँ है ,कहने लगी अजी ,ढूढ़ तो रहा है काम। थोड़ा और धैर्य रखकर देख लो।
बड़े से कहा -कि थोड़ा पैसा अपने माँ -बाप के खर्चे के लिए भी भेज दो ,त्यौहार आ रहे हैं ,बेटियों के नेग भी देने हैं ,सारी जिम्मेदारी हमीं पर है। रोने लगा ,बोला -पापा पैसे कहाँ बचते हैं ?घर खर्च और ख़र्चों से बचता ही कितना है ?उसकी कितनी आमदनी है, कैसे और कितना खर्च करता है ?ये मुझे पता है। हमने भी बच्चे पाले हैं। उसके तो अभी कोई बच्चा भी नहीं है ,बहु भी कमाती है फिर भी रोता रहता है। ये तो अच्छा हुआ कि मैंने बेटियों का विवाह समय रहते कर दिया। वरना कोई भी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं होता। टहलते -टहलते हम एक पार्क की बेंच पर बैठ गए। तब मैंने कहा -मिश्राजी तुम्हारे हर सवाल का जबाब तो तुम्हारे पास है। क्या मतलब ?मैं कुछ समझा नहीं। देखो ,मैं आपको समझाता हूँ -'किसी भी परिवार में एक मुखिया होता है ,उसकी ज़िम्मेदारी होती है घर के खर्चों को पूरा करना ,और प्रत्येक सदस्य की इच्छाओं का ख़्याल रखना। जिम्मेदारियों को पूरा करते -करते उसकी उम्र निकल जाती है फिर कोई संतुष्ट नहीं हो पाता। पत्नी यानि विपक्ष दल जिसकी कभी इच्छा पूरी नहीं होती ,कहकर दोनों हँस पड़े।
एक बच्चा खाली बैठकर खाना चाहता है ,एक मेहनत भी करता है तो वो मदद नहीं करना चाहता। कोई मुफ़्त का खाना चाहता ,कोई चापलूसी से अपना काम निकालना चाहता है। उस घर के मुखिया से कोई संतुष्ट नहीं होता किसी को कुछ परेशानी किसी की कोई ओर समस्या। किसी को टोकता है या सख्ताई करता है तो बुरा लगता है।ये तो सिर्फ एक घर की कहानी है। यहाँ तो फिर भी देश है ,उस देश में लाखों -करोड़ों परिवार हैं। उसमें कुछ लोग लालची हैं कोई षड्यंत्रकारी। कुछ जिम्मेदार हैं तो कुछ गैर जिम्मेदार। जब लोगों को अपना घर संभालने में पूरी जिंदगी निकल जाती है फिर भी कोई खुश नहीं होता। यहाँ तो देश की बात चल रही है ,ये बंदा तो देश संभाल रहा है ,कुछ लोगों को असुविधा होगी कुछ लोग खुश होंगे लेकिन वो किसी एक के बारे में नहीं सोचता वरन पूरा देश ही उसका अपना है। हम बड़े आराम से कह देते हैं कि ये क्या कर रहा है ?कभी किसी ने सोचा कि वो क्यों ,और किसके लिए कर रहा है ?अपने लिए या अपने परिवार के लिए। यह देश ही उसका अपना परिवार है। देश उस अकेले का नहीं हम सबका है। उम्मीद है, कि आपके सवालों का जबाब मिल गया होगा। अच्छा अब चलता हूँ।
फिर क्यों परेशान हैं आप ?मैंने पूछा। गरीब लोग तो लाइन में लगे हैं ,परेशान हो रहे हैं। मुझे ये बताइये मिश्राजी !वैसे तो वे लोग गरीब हैं ,लेकिन उनके पास इतना पैसा कहाँ से आ गया ?आप और हम कितने लगे लाइन में, सोचो जरा। कोई अमीर लाइन में लगा है ?ख़ैर छोड़िये ,इन सब बातों को। घर में सब ठीक हैं ,बहु -बेटों का क्या हाल है?मिश्राजी के जैसे मैंने दुखती रग पर हाथ रख दिया हो बोले -आजकल के बच्चे क्या बताऊँ ?पूरी जिंदगी बच्चों को पढ़ाने -लिखाने में लगे रहो। पत्नी की इच्छा भी पूरी नहीं कर पाते। अपने अरमानों का गला घोंटा। जब बच्चे क़ाबिल हुए तो अपनी- अपनी नौकरी पर चले गए ,जो क़ाबिल हुआ ,जिसे हमारा सहारा बनना चाहिए ,वो तो गया। जो खुद हममें अपना सहारा ढूढ़ता है वो यहीं है। करना कुछ नहीं चाहता ,बस दोस्तों में घूमता रहता है। कई बार कहा भी ,भई अपनी जिम्मेदारी समझो पर वो समझना ही नहीं चाहता। बहुऐ तो बेटों से भी आगे ,जब अपना ही सोना खोटा हो तो दूसरे का क्या दोष ?एक बार मैंने सख्ताई भी कर दी। छोटे से कहा -कहीं से भी कमाओ ,अपना ख़र्च स्वयं करो तो देखा अपनी माँ के कान भर रहा था ,उसकी चापलूसी में लगा था। वो तो उसकी माँ है ,कहने लगी अजी ,ढूढ़ तो रहा है काम। थोड़ा और धैर्य रखकर देख लो।
बड़े से कहा -कि थोड़ा पैसा अपने माँ -बाप के खर्चे के लिए भी भेज दो ,त्यौहार आ रहे हैं ,बेटियों के नेग भी देने हैं ,सारी जिम्मेदारी हमीं पर है। रोने लगा ,बोला -पापा पैसे कहाँ बचते हैं ?घर खर्च और ख़र्चों से बचता ही कितना है ?उसकी कितनी आमदनी है, कैसे और कितना खर्च करता है ?ये मुझे पता है। हमने भी बच्चे पाले हैं। उसके तो अभी कोई बच्चा भी नहीं है ,बहु भी कमाती है फिर भी रोता रहता है। ये तो अच्छा हुआ कि मैंने बेटियों का विवाह समय रहते कर दिया। वरना कोई भी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं होता। टहलते -टहलते हम एक पार्क की बेंच पर बैठ गए। तब मैंने कहा -मिश्राजी तुम्हारे हर सवाल का जबाब तो तुम्हारे पास है। क्या मतलब ?मैं कुछ समझा नहीं। देखो ,मैं आपको समझाता हूँ -'किसी भी परिवार में एक मुखिया होता है ,उसकी ज़िम्मेदारी होती है घर के खर्चों को पूरा करना ,और प्रत्येक सदस्य की इच्छाओं का ख़्याल रखना। जिम्मेदारियों को पूरा करते -करते उसकी उम्र निकल जाती है फिर कोई संतुष्ट नहीं हो पाता। पत्नी यानि विपक्ष दल जिसकी कभी इच्छा पूरी नहीं होती ,कहकर दोनों हँस पड़े।
एक बच्चा खाली बैठकर खाना चाहता है ,एक मेहनत भी करता है तो वो मदद नहीं करना चाहता। कोई मुफ़्त का खाना चाहता ,कोई चापलूसी से अपना काम निकालना चाहता है। उस घर के मुखिया से कोई संतुष्ट नहीं होता किसी को कुछ परेशानी किसी की कोई ओर समस्या। किसी को टोकता है या सख्ताई करता है तो बुरा लगता है।ये तो सिर्फ एक घर की कहानी है। यहाँ तो फिर भी देश है ,उस देश में लाखों -करोड़ों परिवार हैं। उसमें कुछ लोग लालची हैं कोई षड्यंत्रकारी। कुछ जिम्मेदार हैं तो कुछ गैर जिम्मेदार। जब लोगों को अपना घर संभालने में पूरी जिंदगी निकल जाती है फिर भी कोई खुश नहीं होता। यहाँ तो देश की बात चल रही है ,ये बंदा तो देश संभाल रहा है ,कुछ लोगों को असुविधा होगी कुछ लोग खुश होंगे लेकिन वो किसी एक के बारे में नहीं सोचता वरन पूरा देश ही उसका अपना है। हम बड़े आराम से कह देते हैं कि ये क्या कर रहा है ?कभी किसी ने सोचा कि वो क्यों ,और किसके लिए कर रहा है ?अपने लिए या अपने परिवार के लिए। यह देश ही उसका अपना परिवार है। देश उस अकेले का नहीं हम सबका है। उम्मीद है, कि आपके सवालों का जबाब मिल गया होगा। अच्छा अब चलता हूँ।

