छिन्न -भिन्न विचारों को
शृंखलाबद्ध करने बैठी।
सोचा ,कुछ टूटी -फूटी ,
आकृतियाँ हैं ,उन्हें जोड़ लूँ।
उन्हें एक नया रूप ,नया आयाम दूँ।
विचार थे ,कि पकड़ में न आ रहे थे।
जैसे किसी दल के नेता सी ,
मनमानी किये जा रहे थे।
मन में विचार किसी ,
हसीना की तरह इठला रहे थे।
झुंझलाहट हुई ,
क्यों ?विचार एकजुट नहीं होते।
ताकि ,मैं खूबसूरत कविता को ,
अंजाम दूँ ।
अपने दिल की आवाज ,कागज़ के।
किसी कोने पर उतार दूँ।
कह दूँ ,अपने दिल की बात ,
फिर सोचा ,
लिखुँ भी तो किस पर।
किस पर अपना रोष निकालूँ ,
राजनीति पर या नेताओं पर।
समाज की दरिंदगी या समाज के ठेकेदारों पर।
अथवा ,
देश की दयनीय स्थिति पर।
किस पर लिखुँ ?अपनी कविता ,
किसलिए इन्हें ,शृंखलाबद्ध करूँ।
विचार एक नहीं अनेक हैं।
किसको पहले अंजाम दूँ।
यही सोचते -सोचते ,मेरी लेखनी बंद हो गई।
मैं फिर से उन्हीं विचारों में खो गई।
शृंखलाबद्ध करने बैठी।
सोचा ,कुछ टूटी -फूटी ,
आकृतियाँ हैं ,उन्हें जोड़ लूँ।
उन्हें एक नया रूप ,नया आयाम दूँ।
विचार थे ,कि पकड़ में न आ रहे थे।
जैसे किसी दल के नेता सी ,
मनमानी किये जा रहे थे।
मन में विचार किसी ,
हसीना की तरह इठला रहे थे।
झुंझलाहट हुई ,
क्यों ?विचार एकजुट नहीं होते।
ताकि ,मैं खूबसूरत कविता को ,
अंजाम दूँ ।
अपने दिल की आवाज ,कागज़ के।
किसी कोने पर उतार दूँ।
कह दूँ ,अपने दिल की बात ,
फिर सोचा ,
लिखुँ भी तो किस पर।
किस पर अपना रोष निकालूँ ,
राजनीति पर या नेताओं पर।
समाज की दरिंदगी या समाज के ठेकेदारों पर।
अथवा ,
देश की दयनीय स्थिति पर।
किस पर लिखुँ ?अपनी कविता ,
किसलिए इन्हें ,शृंखलाबद्ध करूँ।
विचार एक नहीं अनेक हैं।
किसको पहले अंजाम दूँ।
यही सोचते -सोचते ,मेरी लेखनी बंद हो गई।
मैं फिर से उन्हीं विचारों में खो गई।
