yu hi cut jayega safar

राहुल का विवाह बड़ी धूमधाम से हुआ ,लड़की बहुत ही सुंदर व व्यवहारिक थी। राहुल ऐसी लड़की को देखकर अपने को बहुत ही ख़ुशक़िस्मत मान रहा था। मम्मी भी अपनी बहु को देखकर खुश थीं। अंदर मुँह दिखाई की रस्म चल रही थी ,तभी राहुल के दफ़्तर के कुछ लोग आ गए। राहुल उनके साथ बैठ  गया। यूँ ही दोस्तों में हसीं -मज़ाक होता रहा इसी बीच एक दोस्त ने कहा -भई अब तक जो मौज लेनी थी ,ले ली। अब अपने को तैयार कर लो ,कमर कस लो ,अभी तो सब अच्छा है फिर होंगी समस्याएं शुरू। जब माँ या बीवी में से एक को चुनना पड़ेगा। तब होगी सिर दर्दी शुरू ,माँ की सुने या बीवी की, एक के भी पक्ष में बोल जाओ तो और मुसीबत। रोना -धोना शुरू ,गृह क्लेश शुरू,जान बचानी भारी हो जाती है। तुम कैसे संभालोगे ?देख लो !फिर मत कहना कि दोस्तों ने बताया नहीं। राहुल बोला -ये बात तो तुम्हें पहले ही बतानी चाहिए थी ,अब जो होगा देखा जायेगा। तुम लोग भी तो झेल रहे हो, हम भी झेल ही लेंगे।ओखली में सिर दिया है तो मुसल से क्या डरना ?सुनकर सब हँस पड़े। 

               सारी रस्में होने के बाद ,बहु ने पहली बार चाय बनाई ,सरिता जी को पसंद नहीं आई उन्होंने धीरे से बेटे से कहा -बहु को चाय नहीं बनानी आती ,राहुल ने चाय का एक घूँट लिया बोला -आपके जैसी नहीं ,इनके यहाँ ऐसी ही चाय पीते होंगे या इसने कभी बनाई नहीं होगी। फिर आप किस लिए हो ?आप बड़ी हो जो नहीं आता उसे अपने तरीक़े से सिखाओ ,अपनी ही तरह अच्छी चाय बनानी सीखा दो। माँ -बेटे को धीरे से बात करते देखकर पायल को कुछ वहम हुआ। अंदाजे से बोली -मुझे लगता है कि आपकी मम्मी को मेरी बनाई चाय, शायद पसंद नहीं आई? वो बोला -अच्छा मुझसे तो कुछ नहीं कहा ,अगर तुम्हें ये लगता है तो कोई भी खाने -पीने की चीज देने से पहले स्वयं चख़ लिया करो फिर भी ठीक से नहीं बने तो पूछ सकती हो कि मम्मी जी आप सीखा दें ,तुम्हारी काम  में मदद भी हो जायेगी।
        कुछ दिन तक तो मम्मी उसके साथ लगी रहीं ,लेकिन समाज में कोई किसी को देखकर खुश ही कहाँ होता है ?एक दिन पड़ोस की आंटी आई बोलीं -अभी तक रसोईघर में घुसी रहती हो ,अब तो बहु भी आ गई , अब तो घर से बाहर निकला करो तभी आकर पायल ने बात संभाली बोली -मम्मी जी क्यों काम करने लगीं ,मैं घर में नई -नई हूँ न इसीलिए यहाँ के तौर -तरीक़े समझाती  रहतीं हैं  ,मम्मी को कहाँ जाना है ?आप बताइये। मैं तो  इन्हें निमंत्रण देने आई थी कि  शाम को घर में कीर्तन है। वो तो कहकर चली गईं। इससे पहले मम्मी को कुछ एहसास होता पायल बोली -मम्मी आप शाम को जाएगी तो कौन सी साड़ी पहनेंगी ?उसे निकल दूँ। और इस तरह वो अपने काम में लग गईं उन्हें ध्यान ही नहीं रहा कि कोई कुछ कहकर गया है। 
                 कुछ दिन बाद मम्मी को अपने सास होने का फिर से एहसास हुआ बोलीं -तेरी बहु अभी तक चाय बनाना नहीं आया,पता नहीं सीखना नहीं चाहती। मैंने कहा -कुछ दिन तक आप अपने हाथ की बनाई चाय पिला  दो ,जब इसे आदत पड़  जाएगी तब तो बनाएगी ऐसी चाय। ये बात मम्मी को पसंद आई ,अब मम्मी  ही रोज चाय बनातीं। एक दिन पायल बोली -आपकी मम्मी के हाथों की चाय बड़ी कमाल की है ,जब तक मैं ऐसी चाय न पी लूँ मेरा दिन ही नहीं बनता। मम्मी ने वो बात सुन ली और चुपचाप वहाँ से चली गईं। पायल रसोईघर में गई और काम करने लगी। तभी पापा जी की आवाज आई बोले -बहु अच्छी सी चाय बना दो। उसने चाय का पानी रखा ही था कि  तभी मम्मी रसोईघर कीतरफ गईं बोली-चलो बहु ,तुम और  काम कर  लो, चाय मैं ही बना दिया करुँगी नहीं मम्मी जी आप रहने दीजिये फिर आपकी सहेली  कहेंगी -कि आप अब भी रसोईघर में घुसी रहती हो ;कोई बात नहीं ,उसके कहने से क्या होता है ?जब मेरी बहु  को मेरे हाथ की चाय पसंद है तो मैं ही बना दिया करुँगी ,आखिर तू भी तो मेरी बेटी ही है ,इसमें इतनी मेहनत नहीं लगती। 
                    एक दिन राहुल ने अपनी माँ के सामने ही पायल को डांट दिया -क्या तुम्हें ठीक से खाना भी नहीं बनाना आता ?मेरे दोस्त की बीवी इतना अच्छा खाना बनाकर देती है। नहीं आता है तो मम्मी से भी तो पूछ सकती हो। पायल तब तो चुपचाप सुनती रही बाद में मुझसे लड़ने लगी -क्या मुझे खाना बनाना नहीं आता ?राहुल ने कहा -आता  तो है ,लेकिन  तुम भी अकेली क्या -क्या कर लोगी ?कपड़े धोने ,सुखाने ,सामान संभालना बहुत काम हो जाता है और फिर शाम को थक  जाती हो राहुल ने कुछ शरारत भरे लहज़े में कहा। देखकर पायल थोड़ा शरमा गई। राहुल बोला -मम्मी सारा दिन बैठी धारावाहिक देखती रहतीं हैं ,ज़्यादा बैठे रहने से उनकी तबियत भी खराब हो जाएगी। थोड़ा काम कर  लेंगी उनकी सेहत भी बनी रहेगी और तुम्हारी मदद भी हो जाएगी। तुम उनसे मदद माँग सकती हो अगर उनकी इच्छा होगी तो कर  देंगी। शाम को भेज दिया करो मम्मी -पापा को घूमने के लिए। स्वस्थ रहेंगे तो तुम्हारी मदद भी हो जाएगी। बीमार हो गए तो तुम्हारा काम और बढ़ जायेगा। 
            कुछ दिन बाद राहुल पायल से बोला -तुम मेरी मम्मी से काम करा रही हो। पायल बोली -मैं कहाँ कहती हूँ ?मम्मीजी तो अपने -आप ही लगी रहती हैं ,मेरी भी आदत खराब हो गई है जब तक उनसे कुछ पूछ न लूँ तब तक मुझे समझ नहीं आता कि क्या करूँ क्या नहीं ?चाहे तो आप मम्मी  पूछ सकते हैं। कुछ साल बाद उनके दो बच्चे भी हो गए। राहुल के दोस्तों ने कभी उसको परेशान नहीं देखा। उसके दोस्तों ने पूछा -कि तू घर कैसे संभाल रहा है ?बीवी की सुनता है या माँ की। तो उसका जबाव होता -दोनों की, पर मेरे घर में लड़ाई नहीं होती। बच्चे भी दादी -बाबा के पास ही  रहते हैं  कोई रोता है या परेशान करता है तो डपटकर दादी बाबा के पास भेज देता हूँ ,जब वो रोता हुआ जायेगा तो अपने आप ही लग जाते हैं दोनों उनकी तीमारदारी में। एक को उन्होंने अपने पास सुला लिया तो दूसरा भी वहीं भागेगा वो भी अपनी दादी के पास सो जायेगा। दादी -बाबा भी खुश और हम भी खुश। 

              दीदी आई हुईं थीं ,देखकर बोलीं -भाई ऐसा कब तक चलेगा ,मम्मी -पापा को इस उम्र में परेशानी होती होगी। दो -दो बच्चों को संभालने में  मैंने कहा -वो खुश हैं ,मैं कोई मज़बूर करता हूँ उन्हें,आप स्वयं अपनी आँखों से देख लेना। अगले दिन कोई बच्चा नहीं गया मम्मी -पापा के पास ,कुछ देर तक तो वे दोनों अपने कामों में लगे रहे ,थोड़ी देर बाद दोनों बोले -बच्चे नहीं दिखाई दे रहे क्या अभी तक उठे नहीं ?दीदी बोलीं -दोनों शैतान हो गए हैं ,आप दोनों को परेशान करते रहते हैं आराम से सोने ,बैठने भी नहीं देते इसीलिए मैंने उन्हें छत पर भेज दिया ,गेंद लेकर। वहाँ खेलते रहेंगे। मम्मी ने दीदी को डांटा -क्या कहा ? बच्चे छत पर हैं ,गिर गए तो ,तुझसे किसने कहा कि  हम परेशान होते हैं ?उनके कारण तो हमारा समय कट जाता है वरना हम दोनों तो खाली बैठे परेशान हो जायें। अब दीदी मेरा मुँह देख रहीं थीं। तभी मम्मी की आवाज आई बोलीं -जा उन्हें छत पर से लेकर आ ,आज मुझे छोटे को एक कहानी भी सुनानी है। माँ -बाप कोई अपने बच्चों से परेशान होते हैं। राहुल गाना गुनगुना रहा था -'यूँ ही कट जायेगा सफ़र साथ चलने से 'दीदी बोलीं -मान गए भाई ,तूने अच्छे से अपने घर की बागडोर संभाली है। 















































           
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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