रिया खुले आसमान में उड़ना चाहती थी ,खूब ऊचाइयों तक। अज़ीब सी बेचैनी थी ,कुछ करने की चाह थी ,कुछ कर पाने की उमंग लेकिन वो क्या है ?ये उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसकी मंजिल क्या है ?किस रास्ते से उसे जाना है ?कोई गुरु भी नहीं ,किसी से अपनी बेचैनी बता भी नहीं सकती थी। एक बार माँ से बताने का प्रयत्न भी किया लेकिन माँ ने पहले तो ध्यान ही नहीं दिया फिर समाज का और दुनिया में रह रहे ऐसे लोगों का डर बिठाया जो समाज का हिस्सा होकर भी निंदनीय हैं माँ ने कहा - हमारे समाज में लड़कियाँ इतना नहीं सोचती तुम्हें इतनी छूट तो मिली है कि पढ़ाया जा रहा है ,हमारे जमाने में तो लड़कियों को बाहर ही नहीं निकलने दिया जाता था। बस घर का काम सीखो और जब ब्याह की उम्र हो जाये तो ब्याह करके अपने घर चली जाओ। किसी लड़की ने इससे ज्यादा सोचने अथवा करने का प्रयत्न किया है तो बदनामी और नाकामी के सिवा कुछ हाथ नहीं लगा। घर से बाहर निकलो तो एक से एक दरिंदे बैठे हैं जो लड़कियों को बहलाते -फुसलाते हैं। आगे बढ़ने में कोई मदद नहीं करता ,सिर्फ फ़ायदा ही उठाते हैं। माँ के इतने बड़े भाषण के बाद भी उसे लगा माँ पुराने ज़माने की बात करती है।
आज के जमाने में ऐसा कुछ भी नहीं होता पर ये सोचकर ड़र लगा कि माँ -बाप की सहायता के बग़ैर मैं क्या कर पाऊंगी ?उसने समय का इंतजार करना ठीक समझा। चित्रकला में बहुत रूचि थी और कक्षा में अव्वल भी आती थी अपनी प्रशंशा सुनकर वो आत्मविभोर हो उठती थी। अब उसने फैसला किया कि वो चित्रकला में ही अपना ज्यादा से ज्यादा समय देगी ,उसकी रूची चित्रकला में ही दिन प्रतिदिन बढ़ने लगी ,अब वो ज्यादातर समय चित्रकला में ही व्यतीत करने लगी। वो कल्पनाओं की दुनिया में खोई रहती ,वो रंगों से भरी रंगीन दुनिया में खो जाना चाहती थी लेकिन ये बात उसके पिता को पसंद नहीं आई बोले -क्या सारा दिन चित्रकला में ही व्यतीत करती हो जब देखो कुछ न कुछ बनाती रहती है क्या पढ़ाई नहीं करनी है ?इससे कुछ नहीं होने वाला। अगले साल दूसरा विषय लेना ,चित्रकला नहीं।
रिया को अपने सपने बिखरते नजर आए ,उसका तो सपना था कि बड़े -बड़े कलाकारों में उसका नाम बुलाया जा रहा है किसी तरह वो कक्षा पास करके अगली कक्षा की तैयारी में लग गई किन्तु मन में परेशानी सी रहती चित्रकला से उसे सुकून मिलता। एक दिन उसने देखा कि विद्यालय से कुछ दुरी पर भीड़ लगी थी जिज्ञासावश वो उधर गई ,देखा!वहाँ एक व्यक्ति से कुछ बच्चे चित्रकला सीख़ रहे हैं। प्यासे को तो जैसे पानी मिल गया। जानकारी लेने के लिए वो अंदर गई एक से एक चित्र देखकर वो मुग्ध हो गई ऐसे ही तो वो सीखना चाहती है उसने अपने मन में कहा। उसने मन ही मन कुछ फैसला किया और जो अध्यापक सिखाते थे उनके पास पहुंच गई। उन्होंने उसे देखते ही कहा -कि तुम सही जगह पर आई हो ,तुम्हारी अंगुलियाँ बता रही हैं कि तुम चित्रकला के लिये ही बनी हो। तुम्हारे अंदर का हुनर बाहर आने को तैयार है। सुनकर उसके मन में रंगीन तितलियाँ उड़ने लगी।
वो अब एक -एक पैसा जोड़कर चित्रकला के लिए सामान जुटाने में लग गई। और एक दिन कैनवास और रंग ,ब्रश लेकर वहाँ पहुँच गई। घर में किसी को नहीं बताया कह दिया -कि सहेली के यहाँ पढ़ाई करेगी। उसका दिल बल्लियों उछल रहा था ,उसे उम्मीद थी कि यहाँ से एक नया कलाकार जन्म लेकर निकलेगा। लेकिन उसने उन रंगीन रंगों में काला रंग नहीं देखा ,काला रंग जो दूसरे रंग को दबा देता है या उस रंग की पहचान ही बदल देता है। यही हाल उसकी जिंदगी का भी हुआ। वो जो वास्तविकता से कोसों दूर थी। रंगीन दुनिया में काले रंग की वास्तविकता कोई नहीं जान पाता कि वो जिंदगी में धीरे -धीरे फैलता है और कब जिंदगी को अपने में समा लेता है पता ही नहीं चलता। उसके गुरु ने अपने बातों के जाल में ऐसा बहकाया की वो समझ ही नहीं पाई कि काला रंग उसकी रंगीन दुनिया को लीलने के लिए तैयार है।
गुरु की बताई हर बात का वो पालन करती ,गुरु ने कहा -जो विद्यार्थी मन से पूरे समर्पण भाव से गुरु के बताये रस्ते पर चलता है वो ही जीवन में कुछ कर पाता है इसीलिए वो पूरे मन से अपनी उस रंगीन दुनिया में खो जाना चाहती थी। एक दिन वो उसके नज़दीक आये सिखाने लगे उसे कुछ अटपटा सा लगा ,उसने चुप रहना बेहतर समझा। उसकी चुप्पी को देख उस गुरु और बढ़ावा मिला। गुरु के गलत इरादे को भाँपकर जबाब देना ही बेहतर समझा।उसने कहा -तुम जैसे गुरुओं के कारण ही हम जैसे प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को आगे बढ़ने का मौका नहीं मिलता ,उनके माता -पिता ऐसी सोच वालों के कारण ही अपने बच्चों को कहीं नहीं भेजते। उसे अपने सारे सपने बिखरते नज़र आये ,जिस उम्मीद के साथ उसने वहाँ कदम रखे थे उन उम्मीदों पर कालिख पुत चुकी थी ,वह हताश हो चुकी थी उसे कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही थी। तभी उसे अपनी माँ की बात याद आई कि घर से बाहर निकलो तो इंसान के रूप में दरिंदे घूमते हैं। वो तो सोच रही थी कि बड़ी कलाकार बनकर माँ -बाप को अपनी सोच का लोहा मनवाएंगी। अपने बूते पर वो क़ामयाब होने चली थी लेकिन इस रंगीन दुनिया में वो काले रंग को भूल गई। घर आकर वो बहुत रोई अपने सपने बिखरते देखकर।
एक दिन उसके पिता को पता चल ही गया ,अब उसके लिए दूसरा पिंजरा ढूढ़ा जाने लगा। उस काले रंग ने उसकी सोच और जिंदगी को देखने का ढंग ही बदल दिया। उसके जीवन के रंग ही बदल गए। एक पिंजरे से निकलकर वो दूसरे पिंजरे में पहुंच चुकी थी। उसके पंख कटे तो नहीं पर बांध दिए गए थे । वो ज्यादा दूर तो नहीं उड़ पाई पर एक कसक थी। जीवन की समस्याओं से जूझती वो इस प्रयत्न में रहती कि कभी तो मौका मिलेगा उड़ान भरने का। लेकिन ये पिंजरा धीरे -धीरे उसकी जिंदगी में शामिल हो गया उसे उडान भरना व्यर्थ नजर आने लगा उसने सोचा उडान भरनी भी है तो क्यों ,किस लिए? या यूँ समझो उस पिंजरे से ही उसे प्रेम हो गया। उस पिंजरे को ही सजाने का प्रयत्न करने लगी ,अब उस पिजरे की हर तीली में उसकी महक थी ,वो पिंजरा ही उसकी पहचान बन गया।
आज के जमाने में ऐसा कुछ भी नहीं होता पर ये सोचकर ड़र लगा कि माँ -बाप की सहायता के बग़ैर मैं क्या कर पाऊंगी ?उसने समय का इंतजार करना ठीक समझा। चित्रकला में बहुत रूचि थी और कक्षा में अव्वल भी आती थी अपनी प्रशंशा सुनकर वो आत्मविभोर हो उठती थी। अब उसने फैसला किया कि वो चित्रकला में ही अपना ज्यादा से ज्यादा समय देगी ,उसकी रूची चित्रकला में ही दिन प्रतिदिन बढ़ने लगी ,अब वो ज्यादातर समय चित्रकला में ही व्यतीत करने लगी। वो कल्पनाओं की दुनिया में खोई रहती ,वो रंगों से भरी रंगीन दुनिया में खो जाना चाहती थी लेकिन ये बात उसके पिता को पसंद नहीं आई बोले -क्या सारा दिन चित्रकला में ही व्यतीत करती हो जब देखो कुछ न कुछ बनाती रहती है क्या पढ़ाई नहीं करनी है ?इससे कुछ नहीं होने वाला। अगले साल दूसरा विषय लेना ,चित्रकला नहीं।
रिया को अपने सपने बिखरते नजर आए ,उसका तो सपना था कि बड़े -बड़े कलाकारों में उसका नाम बुलाया जा रहा है किसी तरह वो कक्षा पास करके अगली कक्षा की तैयारी में लग गई किन्तु मन में परेशानी सी रहती चित्रकला से उसे सुकून मिलता। एक दिन उसने देखा कि विद्यालय से कुछ दुरी पर भीड़ लगी थी जिज्ञासावश वो उधर गई ,देखा!वहाँ एक व्यक्ति से कुछ बच्चे चित्रकला सीख़ रहे हैं। प्यासे को तो जैसे पानी मिल गया। जानकारी लेने के लिए वो अंदर गई एक से एक चित्र देखकर वो मुग्ध हो गई ऐसे ही तो वो सीखना चाहती है उसने अपने मन में कहा। उसने मन ही मन कुछ फैसला किया और जो अध्यापक सिखाते थे उनके पास पहुंच गई। उन्होंने उसे देखते ही कहा -कि तुम सही जगह पर आई हो ,तुम्हारी अंगुलियाँ बता रही हैं कि तुम चित्रकला के लिये ही बनी हो। तुम्हारे अंदर का हुनर बाहर आने को तैयार है। सुनकर उसके मन में रंगीन तितलियाँ उड़ने लगी।
वो अब एक -एक पैसा जोड़कर चित्रकला के लिए सामान जुटाने में लग गई। और एक दिन कैनवास और रंग ,ब्रश लेकर वहाँ पहुँच गई। घर में किसी को नहीं बताया कह दिया -कि सहेली के यहाँ पढ़ाई करेगी। उसका दिल बल्लियों उछल रहा था ,उसे उम्मीद थी कि यहाँ से एक नया कलाकार जन्म लेकर निकलेगा। लेकिन उसने उन रंगीन रंगों में काला रंग नहीं देखा ,काला रंग जो दूसरे रंग को दबा देता है या उस रंग की पहचान ही बदल देता है। यही हाल उसकी जिंदगी का भी हुआ। वो जो वास्तविकता से कोसों दूर थी। रंगीन दुनिया में काले रंग की वास्तविकता कोई नहीं जान पाता कि वो जिंदगी में धीरे -धीरे फैलता है और कब जिंदगी को अपने में समा लेता है पता ही नहीं चलता। उसके गुरु ने अपने बातों के जाल में ऐसा बहकाया की वो समझ ही नहीं पाई कि काला रंग उसकी रंगीन दुनिया को लीलने के लिए तैयार है।
गुरु की बताई हर बात का वो पालन करती ,गुरु ने कहा -जो विद्यार्थी मन से पूरे समर्पण भाव से गुरु के बताये रस्ते पर चलता है वो ही जीवन में कुछ कर पाता है इसीलिए वो पूरे मन से अपनी उस रंगीन दुनिया में खो जाना चाहती थी। एक दिन वो उसके नज़दीक आये सिखाने लगे उसे कुछ अटपटा सा लगा ,उसने चुप रहना बेहतर समझा। उसकी चुप्पी को देख उस गुरु और बढ़ावा मिला। गुरु के गलत इरादे को भाँपकर जबाब देना ही बेहतर समझा।उसने कहा -तुम जैसे गुरुओं के कारण ही हम जैसे प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को आगे बढ़ने का मौका नहीं मिलता ,उनके माता -पिता ऐसी सोच वालों के कारण ही अपने बच्चों को कहीं नहीं भेजते। उसे अपने सारे सपने बिखरते नज़र आये ,जिस उम्मीद के साथ उसने वहाँ कदम रखे थे उन उम्मीदों पर कालिख पुत चुकी थी ,वह हताश हो चुकी थी उसे कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही थी। तभी उसे अपनी माँ की बात याद आई कि घर से बाहर निकलो तो इंसान के रूप में दरिंदे घूमते हैं। वो तो सोच रही थी कि बड़ी कलाकार बनकर माँ -बाप को अपनी सोच का लोहा मनवाएंगी। अपने बूते पर वो क़ामयाब होने चली थी लेकिन इस रंगीन दुनिया में वो काले रंग को भूल गई। घर आकर वो बहुत रोई अपने सपने बिखरते देखकर।
एक दिन उसके पिता को पता चल ही गया ,अब उसके लिए दूसरा पिंजरा ढूढ़ा जाने लगा। उस काले रंग ने उसकी सोच और जिंदगी को देखने का ढंग ही बदल दिया। उसके जीवन के रंग ही बदल गए। एक पिंजरे से निकलकर वो दूसरे पिंजरे में पहुंच चुकी थी। उसके पंख कटे तो नहीं पर बांध दिए गए थे । वो ज्यादा दूर तो नहीं उड़ पाई पर एक कसक थी। जीवन की समस्याओं से जूझती वो इस प्रयत्न में रहती कि कभी तो मौका मिलेगा उड़ान भरने का। लेकिन ये पिंजरा धीरे -धीरे उसकी जिंदगी में शामिल हो गया उसे उडान भरना व्यर्थ नजर आने लगा उसने सोचा उडान भरनी भी है तो क्यों ,किस लिए? या यूँ समझो उस पिंजरे से ही उसे प्रेम हो गया। उस पिंजरे को ही सजाने का प्रयत्न करने लगी ,अब उस पिजरे की हर तीली में उसकी महक थी ,वो पिंजरा ही उसकी पहचान बन गया।


