अर्चना अपनी पड़ोसन से कह रही थी -भाभीजी! क्या रमा आई है ?इतनी देर हो गई ,अभी तक नहीं आई। मैंने सोचा ,शायद आपके यहाँ आ गई हो। वो बोलीं -अभी तो नहीं आई। दोनों खड़ी होकर बातें करने लगीं। भाभीजी इनके भी नखरे होते जा रहे हैं ,आठ बजे बुलाया था और दस बज रहे हैं अभी तक नहीं आई। बर्तनों का ढ़ेर पड़ा है। तभी छन -छन की आवाज के साथ रमा घर में प्रवेश करती है ,सीधे रसोईघर में घुस जाती है। पीछे -पीछे अर्चना भी जाती है ,पूछती है -'इतनी देर कहाँ लगा दी ?दो घंटे देर से आई हो। घर का सारा काम अस्त -व्यस्त हो जाता है जब समय पर काम न हो 'उसके चेहरे की तरफ अर्चना ने देखते हुए कहा।
रमा बोली -देर हो गई ,एक घर में उनके यहाँ आज ज़्यादा काम था। और जल्दी -जल्दी काम निपटाने में लग गई। उसे देखकर अर्चना के मन में कुछ अलग ही भाव आ गए और वो रसोईघर से बाहर आ गई। पड़ोस वाली भाभीजी के पास आकर खड़ी हो गई। अर्चना का मुँह देखकर भाभीजी बोलीं -क्या बात है ?अर्चना ने इशारे से कुछ देर रुकने के लिए कहा। रमा अपना काम जल्दी -जल्दी निपटाकर जाने लगी। अर्चना तो इसी ताक में थी कि वो जाये और उसे बोलने का मौका मिले। उसके जाते ही अर्चना बोली -भाभीजी ,आपने देखा नहीं ,ये रमा कितना श्रंगार करके आती है। बिंदी ,लिपस्टिक ,माँग में ढ़ेर सारा सिंदूर। हम तो ऐसे ही बिना श्रंगार के घूमते रहते हैं ,घर के कामों में लगे रहते हैं ,और ये बर्तन माँजती है घर -घर जाती है तब भी ये इतना तैयार होकर आती है। ऐसी औरतों की नज़र ठीक नहीं होती ,तैयार घूमती हैं ,न जाने किस -किस के घर में जाती हैं?किसी न किसी की निग़ाह तो पड़ ही जाएगी। मैं तो इसे तभी बुलाती हूँ ,जब ये अपने काम पर चले जाते हैं। आदमियों का कोई भरोसा नहीं ,न जाने कब ,किस पर नजर फ़िसल जाये ?ये आदमी तो ऐसे होते हैं इनका कोई चरित्र नहीं होता। जब नीयत खराब हो जाये तो काम वाली को भी न छोड़ें।
रमाबाई जीने से ऊपर आ रही थी ,शायद उसे कोई काम याद आ गया था। उसके कानों में अर्चना के ये शब्द पड़ गए और वो उल्टे पाँव अपने घर वापिस चली गई। अगले दिन वो रोज की तरह रसोईघर में घुसी और बर्तन साफ किये और बोली -मैडम !आज हमारा सारा हिसाब कर दो।अब मैं यहाँ काम करने नहीं आऊंगी। अर्चना बोली -क्यों, कहीं जा रही हो क्या ?नहीं ,रमा ने एकटुक जबाब दिया।वो बोली -तो फिर क्या बात है ?और कहीं काम पकड़ लिया है क्या ?रमा ने कोई जबाब नहीं दिया। अर्चना मन ही मन सोच रही थी 'ज्यादा पेट भर गया होगा ,अब काम की क्या आवश्यकता ?फिर सोचा ,सारा घर का काम मुझे ही करना पड़ जायेगा। इतनी जल्दी कोई दूसरी बाई भी नहीं मिलेगी। सोचकर वो परेशान हो उठी ,बोली -क्या कारण है ?जो तुम काम छोड़कर जा रही हो। उन दोनों की बातें सुनकर पड़ोस वाली भाभीजी भी आ गईं ,वो भी कहने लगीं -'रमा !अब तुम काम क्यों नहीं करना चाहती ?
रमा का जैसे सब्र का बांध टूट गया ,बोली -काम क्यों नहीं करना चाहूँगी ?ये तो मेरी रोजी -रोटी है ,इससे तो मेरे घर का खर्चा चलता है। तो फिर क्या परेशानी है? भाभीजी बोलीं। रमा बोली -मैडम आप ही बताइये ,जब आप कहीं बाहर जाती हैं तो तैयार होकर जाती हैं या ऐसे ही चली जाती हैं ,जैसे अब घर में हैं। भाभीजी को उसकी बात कुछ अटपटी सी लगी ,फिर भी बोलीं -नहीं हम अच्छे से तैयार होते हैं ,अच्छे कपड़े पहनते हैं। तो फिर बताइये ,इसमें मेरी क्या गलती है ?रमा बोली। कुछ न समझते हुए भाभीजी बोलीं -तुम कहना क्या चाहती हो ?,साफ -साफ कहो न। रमा बोली -मैडम !मैंने आठ -दस घरों का काम पकड़ रखा है ,मेरे मर्द की कमाई कम है तो इससे भी मेरे घर का खर्च चलता है। ये मेरा काम है तो क्या अपने काम पर मैं ऐसे ही आ जाऊँ ?कल को आप लोग ही कहेंगे कि साफ़ नहीं रहती ,ऐसे ही उठकर चली आती है।
मैडम! मैं शादी शुदा हूँ ,सुहागन ,मैं अपने पति के नाम का सिंदूर लगाती हूँ। मैं आप लोगों जैसी पढ़ी -लिखी तो हूँ नहीं। न सुहागन का पता चले न विधवा का। हमारे यहाँ तो सुहागन औरतें ऐसे ही रहती हैं। दूसरी बात ये है ,ऐसे रहने से गैर मर्दों की नजर में आना नहीं,उनसे बचना है ,उन्हें लगे कि ये तो किसी की बहुरिया है। अब भाभीजी को और अर्चना को कुछ -कुछ समझ आने लगा कि वो क्या कहना चाह रही है ?फिर भी वो उसकी बातें सुनती रहीं। अर्चना की तरफ देखते हुए बोली -मैडम ,मैं दूसरों के पति को रिझाने का काम करती तो ऐसे घर -घर बर्तन साफ न करती। गर्व के साथ बोली -अपनी मेहनत का खाती हूँ ,किसी से भीख नहीं माँगती। काम छोटा पड़े हो पर मेरे काम की आपकी नजर में न हो ,पर मेरी नजर में इज्ज़त है। बड़े -बड़े लोग अपने काम पर जाते हैं तैयार होकर तो फिर मैंने ऐसी कौन सी गलती कर दी? जो ये मैडम मुझे न जाने क्या -क्या कह रही थीं ?
उसकी बातें सुनकर अर्चना को अपनी सोच पर अफ़सोस हो रहा था उसके सामने अपने को बौना महसूस कर रही थी।
रमा बोली -देर हो गई ,एक घर में उनके यहाँ आज ज़्यादा काम था। और जल्दी -जल्दी काम निपटाने में लग गई। उसे देखकर अर्चना के मन में कुछ अलग ही भाव आ गए और वो रसोईघर से बाहर आ गई। पड़ोस वाली भाभीजी के पास आकर खड़ी हो गई। अर्चना का मुँह देखकर भाभीजी बोलीं -क्या बात है ?अर्चना ने इशारे से कुछ देर रुकने के लिए कहा। रमा अपना काम जल्दी -जल्दी निपटाकर जाने लगी। अर्चना तो इसी ताक में थी कि वो जाये और उसे बोलने का मौका मिले। उसके जाते ही अर्चना बोली -भाभीजी ,आपने देखा नहीं ,ये रमा कितना श्रंगार करके आती है। बिंदी ,लिपस्टिक ,माँग में ढ़ेर सारा सिंदूर। हम तो ऐसे ही बिना श्रंगार के घूमते रहते हैं ,घर के कामों में लगे रहते हैं ,और ये बर्तन माँजती है घर -घर जाती है तब भी ये इतना तैयार होकर आती है। ऐसी औरतों की नज़र ठीक नहीं होती ,तैयार घूमती हैं ,न जाने किस -किस के घर में जाती हैं?किसी न किसी की निग़ाह तो पड़ ही जाएगी। मैं तो इसे तभी बुलाती हूँ ,जब ये अपने काम पर चले जाते हैं। आदमियों का कोई भरोसा नहीं ,न जाने कब ,किस पर नजर फ़िसल जाये ?ये आदमी तो ऐसे होते हैं इनका कोई चरित्र नहीं होता। जब नीयत खराब हो जाये तो काम वाली को भी न छोड़ें।
रमाबाई जीने से ऊपर आ रही थी ,शायद उसे कोई काम याद आ गया था। उसके कानों में अर्चना के ये शब्द पड़ गए और वो उल्टे पाँव अपने घर वापिस चली गई। अगले दिन वो रोज की तरह रसोईघर में घुसी और बर्तन साफ किये और बोली -मैडम !आज हमारा सारा हिसाब कर दो।अब मैं यहाँ काम करने नहीं आऊंगी। अर्चना बोली -क्यों, कहीं जा रही हो क्या ?नहीं ,रमा ने एकटुक जबाब दिया।वो बोली -तो फिर क्या बात है ?और कहीं काम पकड़ लिया है क्या ?रमा ने कोई जबाब नहीं दिया। अर्चना मन ही मन सोच रही थी 'ज्यादा पेट भर गया होगा ,अब काम की क्या आवश्यकता ?फिर सोचा ,सारा घर का काम मुझे ही करना पड़ जायेगा। इतनी जल्दी कोई दूसरी बाई भी नहीं मिलेगी। सोचकर वो परेशान हो उठी ,बोली -क्या कारण है ?जो तुम काम छोड़कर जा रही हो। उन दोनों की बातें सुनकर पड़ोस वाली भाभीजी भी आ गईं ,वो भी कहने लगीं -'रमा !अब तुम काम क्यों नहीं करना चाहती ?
रमा का जैसे सब्र का बांध टूट गया ,बोली -काम क्यों नहीं करना चाहूँगी ?ये तो मेरी रोजी -रोटी है ,इससे तो मेरे घर का खर्चा चलता है। तो फिर क्या परेशानी है? भाभीजी बोलीं। रमा बोली -मैडम आप ही बताइये ,जब आप कहीं बाहर जाती हैं तो तैयार होकर जाती हैं या ऐसे ही चली जाती हैं ,जैसे अब घर में हैं। भाभीजी को उसकी बात कुछ अटपटी सी लगी ,फिर भी बोलीं -नहीं हम अच्छे से तैयार होते हैं ,अच्छे कपड़े पहनते हैं। तो फिर बताइये ,इसमें मेरी क्या गलती है ?रमा बोली। कुछ न समझते हुए भाभीजी बोलीं -तुम कहना क्या चाहती हो ?,साफ -साफ कहो न। रमा बोली -मैडम !मैंने आठ -दस घरों का काम पकड़ रखा है ,मेरे मर्द की कमाई कम है तो इससे भी मेरे घर का खर्च चलता है। ये मेरा काम है तो क्या अपने काम पर मैं ऐसे ही आ जाऊँ ?कल को आप लोग ही कहेंगे कि साफ़ नहीं रहती ,ऐसे ही उठकर चली आती है।
मैडम! मैं शादी शुदा हूँ ,सुहागन ,मैं अपने पति के नाम का सिंदूर लगाती हूँ। मैं आप लोगों जैसी पढ़ी -लिखी तो हूँ नहीं। न सुहागन का पता चले न विधवा का। हमारे यहाँ तो सुहागन औरतें ऐसे ही रहती हैं। दूसरी बात ये है ,ऐसे रहने से गैर मर्दों की नजर में आना नहीं,उनसे बचना है ,उन्हें लगे कि ये तो किसी की बहुरिया है। अब भाभीजी को और अर्चना को कुछ -कुछ समझ आने लगा कि वो क्या कहना चाह रही है ?फिर भी वो उसकी बातें सुनती रहीं। अर्चना की तरफ देखते हुए बोली -मैडम ,मैं दूसरों के पति को रिझाने का काम करती तो ऐसे घर -घर बर्तन साफ न करती। गर्व के साथ बोली -अपनी मेहनत का खाती हूँ ,किसी से भीख नहीं माँगती। काम छोटा पड़े हो पर मेरे काम की आपकी नजर में न हो ,पर मेरी नजर में इज्ज़त है। बड़े -बड़े लोग अपने काम पर जाते हैं तैयार होकर तो फिर मैंने ऐसी कौन सी गलती कर दी? जो ये मैडम मुझे न जाने क्या -क्या कह रही थीं ?
उसकी बातें सुनकर अर्चना को अपनी सोच पर अफ़सोस हो रहा था उसके सामने अपने को बौना महसूस कर रही थी।

