kitne dur kitne paas

गुप्ता जी अब सेवा निवृत हो चुके हैं ,उनके दोनों बच्चे अपनी -अपनी नौकरियों पर चले गए हैं। दोनों पति -पत्नी यहीं पर रह रहे हैं। दोस्त मिलने आते तो कहते -गुप्ताजी अब तो आराम से रहो ,अब तो कोई फ़िक्र या काम नहीं ,फिर प्रश्न पूछते -'यहीं  रहोगे या फिर बच्चों के पास चले जाओगे ?गुप्ताजी कहते -बच्चों के पास क्यों जाना है ?यहीं रहेंगे। सुबह दोनों पति -पत्नी टहलने जाते फिर आकर योग करते। नाश्ते के बाद आराम करके अख़बार पढ़ते। उस  समय में उनकी पत्नी रसोईघर में दोपहर के खाने की तैयारी में जुट जाती। गुप्ता जी भी अपनी पत्नी के साथ  काम में मदद करते। इस तरह किसी न किसी काम में अपने को व्यस्त रखते और दोनों प्रसन्न रहते। यदि कोई किसी परेशानी में फँसा हो तो उसकी मदद के लिए तत्पर रहते। 

         मौहल्ले में सबको लगता था, कि सेवा निवृत्ति के बाद दोनों अपने बच्चों के पास  चले जायेंगे ,लेकिन वो तो वहीं रहकर आराम से जीवन व्यतीत कर  रहे थे। एक दिन शालिनी जी उनके घर आई। शालिनी जी गुप्ताजी के पड़ोस में ही रहतीं हैं उनके भी दो बेटे हैं और एक बेटी। तीनों का विवाह हो चुका है। बेटी अपनी ससुराल में है ,दोनों बेटे भी यहीं रहते है। शालिनी जी बोलीं -आपके तो दोनों ही बच्चे बाहर चले गए ,अकेलापन तो लगता ही होगा ,सारा दिन काटे नहीं कटता होगा। श्रीमति गुप्ता जी बोलीं -नहीं ऐसी कोई बात नहीं है ,गुप्ता जी ने एक -एक पैसा जोड़कर ये मकान बनवाया था ,इसकी साफ -सफाई में आधा दिन निकल जाता है ,इनके दोस्त भी आते  रहते हैं ,समय तो यूँ ही पास हो जाता है। शालिनी को ऐसे जबाब की कोई उम्मीद नहीं थी। वो तो उनके अकेलेपन के लिए अफ़सोस जताने आयीं थीं। अपनी बात आगे रखते हुए बोलीं -फिर भी न बहुएँ हैं न बेटे साथ में ,देखभाल के लिए कोई तो होना ही चाहिए। 
         मेरे दोनों बेटे साथ ही रहते हैं ,बहुएँ भी साथ ही रहती हैं। एक को व्यापार करा दिया ,दूसरा भी नजदीक में ही नौकरी करता है। दोनों साथ ही रहते है ,मैंने तो कह दिया था, कि बच्चों को दूर नहीं भेजूंगी। दूर रहकर बच्चों को न ही माँ -बाप से प्यार रहता है न ही कुछ खोज -खबर लेते हैं। अकेले रहने की आदत पड़ जाती है। अपनी माँ -बाप के प्रति जिम्मेदारियों को भूल जाते हैं। माँ -बाप पालते -पोसते हैं,
फ़िर इतना भी हक़ नहीं बनता, कि बुढ़ापे में उनसे सहारे की उम्मीद भी न करें। शालिनीजी की बातें सुनकर श्रीमति गुप्ता जी मुस्कुराईं बोलीं -अपनी जगह आपकी बात सही है ,पर हमने अपने बच्चों को पढ़ाया -लिखाया इसीलिए कि वो किसी क़ाबिल बनें ,उनकी तरक्क़ी हो। हम उनकी उन्नति में कैसे बाधक हो सकते हैं?जबकि उन्हें क़ामयाब होने का मौका मिला तो हम अपने स्वार्थ के लिए उनकी उन्नति में कैसे बाधक हो सकते थे ?''पर आप लोगों को तो छोड़कर चले गये'' बात को बीच में ही काटकर शालिनी जी बोलीं। 
       क्या हम या आप सदा ही यहाँ रहेंगे ?श्रीमती गुप्तजी ने शालिनीजी से प्रश्न किया। हमें भी तो एक न एक दिन चले ही जाना है। तब बच्चों के मन में या हमारे मन में ये पछतावा तो नहीं होगा कि उस समय हमें मौक़ा मिला था लेकिन  माता  -पिता या किसी भी कारण से हम चूक गए। अपने हिस्से का जीवन हम जी चुके हैं ,अब उन्हें अपने तरीक़े से जीने दो। जो हमारी जिम्मेदारी थी ,वो हमने पूरी कर  दी। रही बात प्यार और अपने पन की ,तो दूर रहकर भी रिश्ते पास हो सकते हैं। पास रहकर भी नोंक -झोंक होती रहती है। नज़दीक रहकर भी क्या, बहु -बेटे सेवा करते हैं ?अपने -अपने काम में लगे रहते हैं। बस  मन को सुकून रहता है कि बच्चे हमारे पास हैं। दूर रहकर भी बहुएँ फ़ोन पर बात करतीं हैं ,हाल -चाल पूछतीं हैं। दूर से प्यार बना है। पैसा है तो दूरियाँ भी नजदीकियों में बदल जाती हैं। पैसा नहीं है ,या सुविधा नहीं है तो पास रहकर भी रिश्ते  दूर हो जाते हैं।इच्छा हो तो  ,तो कभी भी बच्चों से मिलने जा सकते हैं।  

           पास रहने पर न प्यार रहता है ,न ही मान -सम्मान। न ही बहुएँ सुनें न ही बेटे तो फिर क्या फ़ायदा नज़दीक रहने से? उनकी बातें सुनकर शालिनीजी चुप हो गईं। शायद वो अंदर ही अंदर श्रीमति गुप्ताजी की बातों से सहमत थीं। शायद आप ठीक कह रहीं हैं अच्छा अब चलती हूँ कहकर वो अपने घर की तरफ चल दीं। मन ही मन सोच रहीं थीं, मेरे घर में भी तो यही हाल है। न ही बहुएँ  सुनती हैं न ही  बेटे। अपनी -अपनी परेशानियों में उलझे रहते हैं। पूछती हूँ तो झल्ला जाते हैं। बहुएँ अपने -अपने में मस्त रहतीं हैं या एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगी रहतीं हैं।  सोचा तो ये था, कि दोनों बहुएँ साथ में होंगी, बेटे भी। भरा -पूरा परिवार होगा। सब साथ में रहेंगे ,बुढ़ापा भी आराम से कट जायेगा लेकिन ऐसा  कुछ नहीं हुआ।वो पास रहकर भी दूर हैं।  





















laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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