मैं आईने में ढूढ़ती हूँ ,अपने -आप को ,
जो आज से कोसों दूर थी।
चेहरे पर दिखतीं कुछ लकीरें ,
मेरे अपनों की फ़िक्र की पहचान दिलाती थी।
सुनी और खोई -खोई सी आँखे ,
याद दिलातीं ,शायद मैं सोई नहीं कई रातों से थी।
बालों में चाँदी के तार बढ़ने लगें हैं ,
जो मेरे अनुभव की चाँदी है ,
अमीर हो गई हूँ ,अपने अनुभवों से।
नव सृजन निर्माण में, मेरा भी सहयोग है ,
शरीर की विकृति याद दिलाती है।
इस संसार की रचना में ,
पायल की छन -छन न जाने कब ,
बदली एड़ियों की आह में।
फिर भी उस आईने में ,
अपने को तलाशती हूँ।
आईना बोला ,-नजर भर देख इस घर को ,
जो टिका है, तेरे वज़ूद से।
तू इस घर की नीव है ,
तू घर के कोने -कोने में महकती है।
'मैं कहाँ हूँ 'ये मुझसे पूछती है।
जो आज से कोसों दूर थी।
चेहरे पर दिखतीं कुछ लकीरें ,
मेरे अपनों की फ़िक्र की पहचान दिलाती थी।
सुनी और खोई -खोई सी आँखे ,
याद दिलातीं ,शायद मैं सोई नहीं कई रातों से थी।
बालों में चाँदी के तार बढ़ने लगें हैं ,
जो मेरे अनुभव की चाँदी है ,
अमीर हो गई हूँ ,अपने अनुभवों से।
नव सृजन निर्माण में, मेरा भी सहयोग है ,
शरीर की विकृति याद दिलाती है।
इस संसार की रचना में ,
पायल की छन -छन न जाने कब ,
बदली एड़ियों की आह में।
फिर भी उस आईने में ,
अपने को तलाशती हूँ।
आईना बोला ,-नजर भर देख इस घर को ,
जो टिका है, तेरे वज़ूद से।
तू इस घर की नीव है ,
तू घर के कोने -कोने में महकती है।
'मैं कहाँ हूँ 'ये मुझसे पूछती है।
