anjan desh ke pnchhi

घर में ग़म का माहौल था ,कोई इधर ,कोई उधर चुपचाप बैठा था। औरतों के कमरे से रोने की आवाजें आ रहीं थी। लेकिन एक आवाज जो सबसे तेज थी ,उसकी बातें सुनकर न रोने वाले को भी रोना आ जाये। वो जोर -जोर से रोते हुए कह रही थी -हाय !नंदिनी के पापा तुम कहाँ चले गए ?अब मैं तुम्हारे बिना क्या करुँगी ?अब मैं किसके लिए सजूंगी ,कौन मेरा ख्याल रखेगा ?कहते थे ,''तुम तो अब भी बहुओं से अच्छी लगती हो। रोते- रोते जब थक गई तो धीरे -धीरे सुबकने लगी। बाहर लोग उनकी शव यात्रा की तैयारी कर  रहे थे ,उनका शव ज़मीन पर निश्चेष्ट पड़ा था। किसी औरत ने कहा -क्या हुआ था, शर्मा जी को ?उनके पूछते ही ,वो फिर से ज़ोर -ज़ोर से रोने लगीं ,रोते  -रोते बताने लगी -बहुत दिनों से बिमार थे ,कह रहे थे कि अब मैं जाऊँगा। 

                  शर्माजी ने दो मंजिला बनाया बहु -बेटों के लिए घर में हर सुविधा मुहैया की ,यहाँ तक की पोती के लिए भी एक प्लॉट खरीद लिया। अभी छोटी है ,जब बड़ी हो जायेगी तब इसे बेचकर इसका विवाह कर  देंगे। बच्चों पर विवाह के समय दबाब नहीं पड़ेगा। सारा काम अपने तरीक़े से करते। घर में कोई उनके काम में दख़ल अंदाजी भी करता ,उससे लड़ते और डांट देते। ये सब अपने बच्चों के लिए ही कर रहे थे। अपने रहते बच्चों का भविष्य सुरक्षित कर  देना चाहते थे। जब से सेवा निवृत हुए तब तो सारा दिन घर में ही रहते और घर की एक -एक बात में दखल देते रहते। बहुओं के साथ -साथ कभी -कभी उनकी पत्नी भी उनकी दखलंदाजी से परेशान हो उठती। 
      उर्मिला कहती -तुम्हारे शरीर में इतनी बेचैनी क्यों है ?क्यों परेशान होते रहते हैं ?न ही हमें आराम से जीने देते है ,न ही स्वयं आराम से रहते हैं। जब से बीमार पड़े हैं तब से तो हालत और भी बद्त्तर हो गई। ''ब्रेन ट्यूमर ''था ऑपरेशन भी कराया ,अस्पताल से ठीक होकर भी आ गए , पर बिस्तर पर पड़े -पड़े भी परेशान ,किसी का कोई काम पसंद जो नहीं आता  था। घूरते थे ,पड़े -पड़े चिड़चिड़े हो गए थे। किसी की  कोई बात भी  समझ  नहीं आती  थी । एक बार शरीर में बीमारी लग जाये तो आसानी से छोड़ती नहीं। शर्माजी के साथ भी यही हो रहा था ,जो आदमी कभी चैन से बैठा न हो उसे पांच -छः महीने घर में लेटना पड़ जाये ,वो भी दूसरों के सहारे ,परेशानी तो होगी ही। 

               सबसे ज्यादा परेशानी तो उनके चाचा ,मित्र ,सखा या दोस्त कह लो ,असल रिश्ता तो चाचा -भतीजे का था लेकिन रहते थे दोस्त की तरह। उम्र में ज़्यादा अंतर  नहीं था। सम्मान ,दोस्ताना ,अपनापन सब कुछ था इस रिश्ते में। जब शर्माजी के चाचा बीमार हुए ,घंटों उनका हाथ पकड़े बैठे रहते थे कि शायद कुछ कहें। इससे पहले जब कभी भी वो मिलने आते थे तो कहते थे -'हम तो सूखी डाल के पंछी हैं ,न इस पेड़ में रस[जीवन ],न ही कुछ भावनायें   हैं  ,न उमंग है ,अब ये पेड़ बूढ़ा हो चुका है ,.पता नहीं ये 
पंछी कब उड़ जाये ?तब शर्माजी कहते -ये पंछी ,जिस भी डाल पर बैठेगा ,उसी डाल पर [अपनी तरफ इशारा करते हुए ]ये पंछी भी आ बैठेगा। फिर दोनों हंस देते। दोनों ऐसे ही साथ में घंटों बैठे रहते। चाचा कम दोस्त भी अपने जीवन से बेज़ार थे ,न घर में कोई सम्मान ,न प्यार ,पत्नी भी किसी न किसी बात  पर झिड़क देती। ऐसा लगता कि उनके जीने का कोई अर्थ ही नहीं रह गया है। किसी को उनकी जरूरत ही नहीं। ले देके यही एक भतीजा था, जो उनकी भावनाओं को समझता था। बीमार हुए तो यहीं उनके पास घंटों बैठा रहता लेकिन वो एक दिन बिना कुछ कहे चले गए तब शर्माजी को बहुत धक्का लगा। 
              उन्हें लगा ,जैसे जीवन का कोई हिस्सा कहीं खो गया ,यकीन ही नहीं हो रहा था कि उनका हमदर्द अब नहीं रहा। जीवन तो जैसे कट रहा था या काट रहे थे। दो महिने बाद वो अचानक जमीन पर गिर पड़े। बाद में पता चला कि उन्हें 'ब्रेन ट्यूमर ''है। ऑपरेशन के बाद भी वो कमज़ोर व् चिड़चिड़े होते चले गए और आज वो पंछी भी उड़ गया। उनकी पत्नी जो उनकी हरकतों से परेशान थी ,वो अब उनकी बातें याद कर  दहाड़े मार -मारकर रो रही थी। वो पार्थिव शरीर जमीन पर था लेकिन वो  [आत्मा रूपी ]पंछी तो कब का अपने मित्र से जा मिला था। बाहरी रीति -रिवाज़ से बंधा तन पड़ा था जिसकी सामाजिक क्रिया  -कलाप और आखिरी यात्रा बाक़ी थी। न जाने किस अनजान देश में अब उनका बसेरा होगा ?पीछे रह गए तो रोते -कलपते परिवार जन और उनका  अहसास कराती यादें।
 
              सारी जिंदगी बेचैनी ,भागदौड़ और परेशानी में बिताया और जब ये पंछी शांत हुआ तो पीछे रह गया एक बेजान पुतला ,वो पंछी तो कब का अनजानी यात्रा पर निकल चुका है। 










laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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