dhokhe ka vivah [part2]

कुछ दिन बाद बाला बाहर जा रही थी कि उसकी नजर विनोद की सास पर पड़ी। विनोद की सास[ जब से से विनोद को नीता ने घर में घुसने नहीं दिया] तब से ही यहीं रह रही थी। जो  काम विनोद करता था वो ही काम वो भी कर  रही थी। कई बार बाला ने मुझसे कहा  भी -कैसी माँ है ?लड़की को समझाती नहीं कि उसका घर टूट रहा है और स्वयं भी यहीं आकर रहने लगी। बाला ने जानबूझकर बात का सिलसिला शुरू किया बोली -नमस्कारजी ,क्या आप यहीं रहतीं हैं ?उन्होंने जबाब दिया -जी हाँ ,मैं नीता की माँ हूँ ,यही पास में घर है। बाला अनजान बनते हुए -अच्छा आप विनोद जी की सास हैं ,वो तो हमारे ही घर के सामने रहते हैं। बातें जारी रखते हुए -आपके दामाद कई दिनों से नजर नहीं आ रहे ,कहीं गए है क्या ?नहीं, कहकर वो आगे बढ़ीं ,उन्होंने अपने क़दम तेजी से आगे बढ़ा दिए ,शायद वो बातचीत का सिलसिला आगे नहीं बढ़ाना चाहती थीं। लेकिन  बाला कहाँ मानने वाली थी ?बाला ने फिर कहा -अब आप यहीं रहतीं हैं जो काम आपके दामाद करते थे ,वो ही आप भी कर रहीं हैं।  उन्होंने बचाव करते हुए कहा -नीता तो नौकरी पर जाती है न। बाला बोली -पहले तो नहीं जाती थी ,नई -नई नौकरी लगी है क्या ?हाँ कहकर उन्होंने तेजी से कदम बढ़ाये। मैंने इशारे से मना भी किया पर वो अपनी बात पूरी किये बगैर कहाँ मानने वाली थी ?बाला ने फिर से प्रश्न किया- आपकी बेटी कितनी पढ़ी है ?इस प्रश्न से उन्होंने सहज महसूस किया ,फिर बोलीं -कॉमर्स से मास्टरी की है ,एम.बी. ए भी किया है ,उनकी आवाज से लगा कि उन्हें अपनी बेटी की पढ़ाई पर गर्व है। बाला बोली -क्या आपकी बेटी को काम नहीं  आता इसीलिए  आप करतीं हैं ?वो बोलीं -अजी ,कहाँ काम किया उसने ,पढ़ने में ही लगी रही सारा दिन। सारा दिन तो कोई नहीं पढ़ पाता जब थोड़ी बोरियत हो पढ़ाई से या छुट्टियों में काम सीखना चाहिए। बाला ने जबाब दिया। 

               उन्होंने बाला को नजर भर देखा बोलीं -आप क्या जाने ,पढ़ाई के बारे में कितनी मेहनत है ?बाला हँसी बोली -मैं ज्यादा तो नहीं पढ़ी ,बीएस सी ,के बाद एम.फील के बाद डॉक्टरी की है बस। पर मुझे घर का सारा काम भी आता  है क्योंकि हमारी मम्मी ने कहा था-' कि बेटा! पढ़ाई के साथ -साथ घर का काम भी आना चाहिए ,पता नहीं किस समय पर कैसी परिस्थिति हो ?'इसीलिए काम करना भी आता है और दूसरों का मान -सम्मान करना भी। लाज़बाब होने के  बाद वो थोड़ी कड़वाहट के साथ बोलीं -आप क्यों हमारे मामले में दख़ल दे रहीं हैं ?अपने काम से काम रखिये ,हमारे घर का मामला है। उनके तेवर देखकर बाला को भी रोष आ गया बोली -आपका दामाद हमारे पास आया था ,उसने सारी कहानी सुनाई ,आपने उन्हें धोखा दिया 'ये बताया कि आपकी बेटी पढ़ी -लिखी है पर ये नहीं बताया ,'कि न उसमें संस्कार हैं न ही तहज़ीब। 
          वो थोड़ी तीखी आवाज में बोलीं -अजी ,उन्होंने ही धोखा दिया। हमने सोचा था कि लड़का कम पढ़ा -लिखा है लेकिन कमाता तो है ,वो तो इसके खर्चे भी पूरे नहीं कर पा  रहा। 
बाला बोली -अभी आपने कहा कि वो कमाता था फिर आपकी बेटी ने ही उसका काम छुड़वाया ,कम पढ़ा -लिखा होने के बाद भी उसमें संस्कार हैं ,बड़ों का सम्मान करता है। इज्जत -शर्म के कारण आपकी बेटी का नौकर बना था ,बेचारा सारे दिन काम करता था कि घर बना रहे। फिर भी आपकी बेटी के मन में उसके प्रति या उसके परिवार वालों के लिए कोई सम्मान नहीं था। उसके मन में तो आपके लिए भी कोई सम्मान नहीं है, होता तो इस उम्र में आपसे यूँ काम न कराती। जिस औरत के मन मेंअपने  पति या माँ के लिए ही को मान नहीं है वो दुसरो का क्या सम्मान करेगी। 
               बाला ने अपनी बात जारी रखी -इतना बड़ा घर होते  हुए भी वो आपकी बेटी के कारण किराये के मकान में रह रहा था। बच्चों को पढ़ाया इसलिए जाता है कि व्यक्ति अपने ज्ञान और बुद्धि से परिस्थितियों का सुचारु रूप से सामना करे, उन्हें समझें ,न कि पढ़ाई का टैग लगाकर बेेठ  जायें। हम पढ़े -लिखे हैं हम काम नहीं करेंगे ,ये तो सही नहीं है। आदमी के अपने ही कितने काम होते हैं उनके लिए भी तो हाथ -पैर हिलाता है। पंछी भी दाना चुगने के लिए अपने घोंसले से बाहर जाते हैं ,तुम किसी कार्य में व्यस्त हो तो बात अलग है। तुम्हारे बड़े -बूढ़े काम कर  रहे हैं और तुम आराम से बैठे हो तो तुमने शिक्षा से क्या ग्रहण किया ?अहंकार ,सिर्फ़ अपने बारे में सोचना इससे तो वो कम पढ़ी -लिखी महिलायें  ठीक हैं जो बड़े -छोटों का मान रखती हैं। क्या हमने, आपने हमारी माँ ने काम नहीं किया सोचो यदि हम या हमारी माँ भी ऐसा करती तो क्या होता ?

            आजकल माता -पिता बच्चों की पढ़ाई पर जोर देते हैं लेकिन वो ये नहीं जान पाते कि बच्चा व्यवहारिक गुणों में , क्या सीख रहा है ?ये चीजें तो लड़की अपने घर में ही सीखती है न कि ससुराल में ,जिसका ख़ामियाजा आप स्वयं भुगत रही हैं इस उम्र में बेटी के यहाँ आकर काम करके। अपनी सारी भड़ास निकालकर हमारी श्रीमतिजी बोलीं -देखिये मुझे आपके मामले में नहीं पड़ना चाहिए था लेकिन आपका दामाद अच्छा है ,भला इंसान है मैं नहीं चाहती थी कि उसका घर टूटे इसीलिए मैंने आपसे कुछ ज्यादा कह दिया हो तो मुझे माफ़ करना। बाकि अपने घर परिवार के बारे में आप मुझसे ज्यादा बेहतर समझती हैं। आइये घर आ गया एक कप चाय हो जाये लेकिन वो कुछ सोचती सी अपने घर चली गईं। 


























laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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