दीपू !जल्दी से नहा लो ,ब्रश भी करना वरना दांतों में कीड़े लग जाएंगे। मम्मी रसोईघर में से ही चिल्ला रही थी। दीपू है कि लापरवाह ,मम्मी की रसोईघर में से फिर से आवाज आई -दीपू ब्रश किया कि नहीं। दीपू ने स्नानघर में से ही जबाब दिया -कर लिया। लेकिन मम्मी को उस पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं ,वे बोलीं -बाहर आ जाओ, तब देखूँगी। दीपू ने भी तब तक ब्रश नहीं किया था। उसने सोचा ,यदि मम्मी मेरे दान्त चेक करने लगीं तो पकड़ा जाऊंगा। उसने ब्रश में थोड़ा सा पेस्ट लगाया और जल्दी -जल्दी ब्रश करने लगा ताकि मम्मी को मुँह से पेस्ट की खुशबू आये ,मम्मी को लगे कि हाँ ,पेस्ट किया है। ये किस्सा रोज का है ,जब मम्मी ध्यान देती है तो कर लेता है ,वरना ऐसे ही आ जाता है।
मम्मी कुछ सामान लेने कमरे में गईं तो फिर से उनकी आवाज आई -दीपू!ये गीला तौलिया बिस्तर पर छोड़ दिया। दीपू आईने में देखकर अपने बाल बना रहा झल्लाकर बोला -अभी उठा रहा हूँ ,और तभी दीपू को छींक आ गई। तभी मम्मी कमरे आ गईं बोलीं- बालों को अच्छे से सुखाना चाहिए था [उसके बालों को तौलिये से रगड़ने लगीं ]कितनी बार कहा है ,कि छींकते समय रुमाल या तौलिया रखना चाहिए। तुम हो कि मेरी बात पर ध्यान ही नहीं देते। तभी दीपू के पिता घर में प्रवेश करते हैं बोले -क्या बातें हो रही हैं ?माँ -बेटे में। सविता [दीपू की मम्मी ]ने उनकी बात का तो कोई जबाब नहीं दिया ,और उनसे ही कहने लगीं -'आप से कितनी बार कहा है कि गंदे जूते घर में मत लेकर आया करें ,लेकिन आप हो कि सुनते ही नहीं ,बाहर की गंदगी घर में आएगी तो कई बिमारी के कीटाणु साथ में लाएगी ,पर तुम दोनों बाप -बेटे हो कि मेरी सुनते ही नहीं।
सविता ने मेज पर खाना लगा दिया बोली -आओ खाना खा लो ,तभी दीपू आकर खाना खाने लग गया। मम्मी ने पूछा -खाने से पहले क्या तुमने हाथ धोये ?माँ सारा दिन दीपू को इसी तरह समझाने में लगी रहती। अपना रुमाल अलग रखो ,धूल -मिटटी से दूर रहो ,उसकी गलतियों पर उसे बार -बार टोकती। वो है कि सुनता ही नहीं। अब तो वो बडा हो गया ,उसका छोटा भाई भी उसकी देखा -देखी हरकतें करता। माँ अब छोटे के लिए भी वो ही बातें दोहराती और न सुनने पर झल्लाती।
बचपन में सबकी मम्मियाँ अपने बच्चों को ये ही बातें दोहराती ,समझातीं ,लेकिन बच्चे हैं कि आलस व लापरवाही की जिंदगी जीना चाहते हैं। दीपू एक दिन अपने पापा से शिकायत कर रहा था -जब देखो मम्मी पीछे पड़ी रहतीं हैं ,ये मत करो ,वो मत करो ,ऐसा क्यों कर दिया ?ये ही बातें उसने अपने मामा से भी दोहरा दीं। उसके मामा ने कहा -दीदी ,बच्चों के पीछे मत पड़ा करो ,उन्हें खेलने दिया करो ,मिटटी में खेलेंगे तभी तो फलें -फूलेंगे। 'मामा का समर्थन मिलने से वो और लापरवाह हो गया। लेकिन देश में एक ऐसी बिमारी आई कि माँ को कुछ कहने व समझाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। सब काम अपने -आप ही होने लगे क्योंकि उस महामारी का डर जो था। दिन में कई बार हाथ धोते ,रुमाल भी अलग रखा। सभी कार्य सही तरीक़े से होने लगे , माँ
जो कार्य इतने दिनों तक नही सीखा सकी कोरोना के डर ने सिखा दिया। माँ सिखाती थी कि अपने से बड़ों से हाथ जोड़कर नमस्ते करते हैं या पैर छूते हैं लेकिन वो नहीं माना ,कहता -ये सब पुराने ज़माने की बातें हैं ,आप क्या जानों। अब हाथ जोड़कर नमस्ते करता है।
जो काम प्यार या डांट न सिखा सका ,वो डर ने सिखा दिया।
मम्मी कुछ सामान लेने कमरे में गईं तो फिर से उनकी आवाज आई -दीपू!ये गीला तौलिया बिस्तर पर छोड़ दिया। दीपू आईने में देखकर अपने बाल बना रहा झल्लाकर बोला -अभी उठा रहा हूँ ,और तभी दीपू को छींक आ गई। तभी मम्मी कमरे आ गईं बोलीं- बालों को अच्छे से सुखाना चाहिए था [उसके बालों को तौलिये से रगड़ने लगीं ]कितनी बार कहा है ,कि छींकते समय रुमाल या तौलिया रखना चाहिए। तुम हो कि मेरी बात पर ध्यान ही नहीं देते। तभी दीपू के पिता घर में प्रवेश करते हैं बोले -क्या बातें हो रही हैं ?माँ -बेटे में। सविता [दीपू की मम्मी ]ने उनकी बात का तो कोई जबाब नहीं दिया ,और उनसे ही कहने लगीं -'आप से कितनी बार कहा है कि गंदे जूते घर में मत लेकर आया करें ,लेकिन आप हो कि सुनते ही नहीं ,बाहर की गंदगी घर में आएगी तो कई बिमारी के कीटाणु साथ में लाएगी ,पर तुम दोनों बाप -बेटे हो कि मेरी सुनते ही नहीं।
सविता ने मेज पर खाना लगा दिया बोली -आओ खाना खा लो ,तभी दीपू आकर खाना खाने लग गया। मम्मी ने पूछा -खाने से पहले क्या तुमने हाथ धोये ?माँ सारा दिन दीपू को इसी तरह समझाने में लगी रहती। अपना रुमाल अलग रखो ,धूल -मिटटी से दूर रहो ,उसकी गलतियों पर उसे बार -बार टोकती। वो है कि सुनता ही नहीं। अब तो वो बडा हो गया ,उसका छोटा भाई भी उसकी देखा -देखी हरकतें करता। माँ अब छोटे के लिए भी वो ही बातें दोहराती और न सुनने पर झल्लाती।
बचपन में सबकी मम्मियाँ अपने बच्चों को ये ही बातें दोहराती ,समझातीं ,लेकिन बच्चे हैं कि आलस व लापरवाही की जिंदगी जीना चाहते हैं। दीपू एक दिन अपने पापा से शिकायत कर रहा था -जब देखो मम्मी पीछे पड़ी रहतीं हैं ,ये मत करो ,वो मत करो ,ऐसा क्यों कर दिया ?ये ही बातें उसने अपने मामा से भी दोहरा दीं। उसके मामा ने कहा -दीदी ,बच्चों के पीछे मत पड़ा करो ,उन्हें खेलने दिया करो ,मिटटी में खेलेंगे तभी तो फलें -फूलेंगे। 'मामा का समर्थन मिलने से वो और लापरवाह हो गया। लेकिन देश में एक ऐसी बिमारी आई कि माँ को कुछ कहने व समझाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। सब काम अपने -आप ही होने लगे क्योंकि उस महामारी का डर जो था। दिन में कई बार हाथ धोते ,रुमाल भी अलग रखा। सभी कार्य सही तरीक़े से होने लगे , माँ
जो काम प्यार या डांट न सिखा सका ,वो डर ने सिखा दिया।

