भावना जो हमारे मन में होती हैं ,ये किसी के लिए भी हो सकती हैं। भावनाओं का ताना -बाना इतना बड़ा है कि इन भावनाओं के सहारे ही आदमी पूरी जिंदगी व्यतीत कर देता है। भावनायें न हो तो आदमी भाव -शून्य हो जायेगा। जब तक जीवन है तब तक भावनायें हैं। मानव जीवन शुरू होते ही अनजाने में न जाने वो कितनी भावनाओं से जुड़ चुका होता है। माँ से अनजाने में ही उसकेअपनेपन,प्यार,ममता, स्पर्श आदि भावनाओं का आनन्द ले चुका होता है ,लेकिन ये भावनायें उसके अवचेतन मन की होती हैं। उसे पता भी नहीं होता कि क्या रिश्ता है ?कौन है ?
जब बच्चा कुछ बड़ा होता है ,उसका मन उसे चेताता है कि मेरा भी जीवन है। उसकी भावनाओं का विस्तार और विचार परिष्कृत होते हैं ,तब लोभ ,मोह ,क्रोध आदि भावनायें परिस्थितिवश आती जाती रहती हैं। आज अच्छी भावना तो कल बुरी भी हो सकती है। माता -पिता से भाई -बहन से अनेक रिश्तों से और अनेक भावनाओं से जुड़ जाता है। कुछ रिश्ते दिल की गहराइयों से जुड़े होते हैं ,जो उनके लिए दुःख -दर्द ,ख़ुशी -प्यार सब महसूस करते हैं और निभाए भी जाते हैं ,ये रिश्ते जन्म से जुड़े होते हैं।खून से जुड़े रिश्ते कहलाते हैं , लेकिन कुछ रिश्ते जन्म के नहीं होते ,फिर वो हमारी दिल की भावनाओं से गहराई से जुड़ जाते हैं ,उनके सुख -दुःख हमें अपने लगने लगते हैं। और भावनाओं के आवेश में मनुष्य न जाने कौन सी दुनिया में गोते खाने लगता है?
दिल एक नई दुनिया ढूढ़ता है जिसमें प्रेमपूर्ण भावनाओं का अथाह सागर हो ,और इसी के साथ ही मनुष्य के अंदर स्वार्थी भावना भी घुस जाती है। मनुष्य खुले आसमान में विचरण करने लगता है। स्वार्थी ,संकोची,चालाकी भावनायें स्वतः ही आ जाती हैं ,जो बाद में उसके स्वभाव में शामिल हो जाती हैं। भावनाओं का विचारों का अथाह सागर मानव जीवन के मष्तिष्क और ह्रदय में घर कर जाता है। मनुष्य चौबीसों घंटे किसी न किसी भावना से घिरा होता है ,किसी न किसी उधेड़ -बुन में लगा रहता है। जब भावनाएं प्रबल होती हैं तो कोई लेख ,कहानी या कविता बनकर भी उभरती हैं। भावनाओं व जीवन का तालमेल सही रहा तो जीवन संवर जाता है इसके विपरीत भावनाओं व जीवन का तालमेल सही न हो तो जीवन बिखर भी सकता है। जिंदगी में भावनाओं का ताना -बाना इतना विस्तृत है कि जिंदगी इन्हीं के इर्द -गिर्द उलझकर रह जाती है।
जब जीवन समाप्त होता है ,तो ये ताना -बाना मृतप्राय हो जाता है। जिंदगी है तो भावनायें हैं ,विचार हैं, भावनाएं समाप्त तो विचार भी शून्य की ओर प्रस्थान कर जाते हैं। और जीवन मृतप्राय लगने लगता है। जब अवसाद रूपी भावनाएं जुड़ती हैं तो जीवन होते हुए भी जीवन नहीं लगता। लेकिन यह भी भावना का ही एक पहलू है ,जिसमें सब कुछ नश्वर नज़र आता है। सुख हो या दुःख भावनाएं तो दोनों पहलू से जुडी होती है। एक भावना तो ऐसी जिसमें सारा संसार सारी दुनिया अपनी नज़र आती है। दूसरे पहलू में कुछ भी अपना नहीं। लेकिन भावनाएं तो अपना कर्म करती हैं जो हमारी जिंदगी से एक मकड़ जा ल की तरह जुडी रहतीं हैं।
पहलू में
जब बच्चा कुछ बड़ा होता है ,उसका मन उसे चेताता है कि मेरा भी जीवन है। उसकी भावनाओं का विस्तार और विचार परिष्कृत होते हैं ,तब लोभ ,मोह ,क्रोध आदि भावनायें परिस्थितिवश आती जाती रहती हैं। आज अच्छी भावना तो कल बुरी भी हो सकती है। माता -पिता से भाई -बहन से अनेक रिश्तों से और अनेक भावनाओं से जुड़ जाता है। कुछ रिश्ते दिल की गहराइयों से जुड़े होते हैं ,जो उनके लिए दुःख -दर्द ,ख़ुशी -प्यार सब महसूस करते हैं और निभाए भी जाते हैं ,ये रिश्ते जन्म से जुड़े होते हैं।खून से जुड़े रिश्ते कहलाते हैं , लेकिन कुछ रिश्ते जन्म के नहीं होते ,फिर वो हमारी दिल की भावनाओं से गहराई से जुड़ जाते हैं ,उनके सुख -दुःख हमें अपने लगने लगते हैं। और भावनाओं के आवेश में मनुष्य न जाने कौन सी दुनिया में गोते खाने लगता है?
दिल एक नई दुनिया ढूढ़ता है जिसमें प्रेमपूर्ण भावनाओं का अथाह सागर हो ,और इसी के साथ ही मनुष्य के अंदर स्वार्थी भावना भी घुस जाती है। मनुष्य खुले आसमान में विचरण करने लगता है। स्वार्थी ,संकोची,चालाकी भावनायें स्वतः ही आ जाती हैं ,जो बाद में उसके स्वभाव में शामिल हो जाती हैं। भावनाओं का विचारों का अथाह सागर मानव जीवन के मष्तिष्क और ह्रदय में घर कर जाता है। मनुष्य चौबीसों घंटे किसी न किसी भावना से घिरा होता है ,किसी न किसी उधेड़ -बुन में लगा रहता है। जब भावनाएं प्रबल होती हैं तो कोई लेख ,कहानी या कविता बनकर भी उभरती हैं। भावनाओं व जीवन का तालमेल सही रहा तो जीवन संवर जाता है इसके विपरीत भावनाओं व जीवन का तालमेल सही न हो तो जीवन बिखर भी सकता है। जिंदगी में भावनाओं का ताना -बाना इतना विस्तृत है कि जिंदगी इन्हीं के इर्द -गिर्द उलझकर रह जाती है।
जब जीवन समाप्त होता है ,तो ये ताना -बाना मृतप्राय हो जाता है। जिंदगी है तो भावनायें हैं ,विचार हैं, भावनाएं समाप्त तो विचार भी शून्य की ओर प्रस्थान कर जाते हैं। और जीवन मृतप्राय लगने लगता है। जब अवसाद रूपी भावनाएं जुड़ती हैं तो जीवन होते हुए भी जीवन नहीं लगता। लेकिन यह भी भावना का ही एक पहलू है ,जिसमें सब कुछ नश्वर नज़र आता है। सुख हो या दुःख भावनाएं तो दोनों पहलू से जुडी होती है। एक भावना तो ऐसी जिसमें सारा संसार सारी दुनिया अपनी नज़र आती है। दूसरे पहलू में कुछ भी अपना नहीं। लेकिन भावनाएं तो अपना कर्म करती हैं जो हमारी जिंदगी से एक मकड़ जा ल की तरह जुडी रहतीं हैं।
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