वो कुछ अलग ही विचारों की लड़की थी ,जिंदगी को मज़ाक तो नहीं समझती थी। लेकिन इतना गंभीर भी नहीं थी। जिंदगी को अपने तरीक़े से जीने में यक़ीन रखती थी। जिंदगी की समस्याओं से भागने में विश्वास नहीं करती थी, बल्कि उन समस्याओं को सुलझाने में यक़ीन करती, या यूँ कहो उनसे जूझना उसकी जिद बन जाते। जिंदादिल थी ,लेकिन ऐसे लोगों की परीक्षा भी ऊपर वाला लेता रहता है। उसकी भी परीक्षा का समय चल रहा था। पढ़ती फिर पढ़ाने जाती क्योंकि पिता की आमदनी कम थी।माता -पिता घर खर्च के बारे में सोचकर परेशान रहते और वो उन परेशानियों को बाँट लेना चाहती थी, क्योंकि वो अपने परिवार से प्यार जो करती थी। कैसे इन परेशानियों से उबरा जाये ? यही सोचती रहती ,कभी- कभी छोटी -छोटी समस्याएँ भी बड़ी नजर आती। घर की इन समस्याओं को देखते हुए उसने मन ही मन सोचा कि वो अपना विवाह भी नहीं करेगी। अपने माता -पिता का सहारा बनेगी। अपने बहन -भाई को पढ़ायेगी। पढ़ाई के बाद उसकी नौकरी अच्छी जगह लग गई ,घर की आमदनी भी बढ़ी।
अब रिश्तेदार व पड़ोसी कहने लगे कि बेटियों का विवाह कब कर रहे हो ?दो -दो बेटियों की ज़िम्मेदारी है। छोटी तो बड़ी से भी बड़ी लगती है ,उसकी कद -काठी अच्छी है। कल्पना उभरती कैसे उसने तो जब से होश संभाला है तब से परेशानियों से घिरे हुए अपने को पाया है। माता -पिता की परेशानी भी तो अपनी ही थी। इन परेशानियों से जूझते हुए चार -पांच वर्ष बीत गए। वो सोचती, विवाह हो भी गया तो घर का क्या होगा? इन्हीं परेशानियों के चलते वो अपने बारे में नहीं सोच पाती। हालांकि अब छोटी भी अपने लिए नौकरी ढूढ़ रही थी। तभी उसकी जिंदगी में एक हवा के झोंके की तरह समीर आया ,उसकी जिंदगी में जैसे बहार आ गई ,न जाने कितने बसंत आये और चले गए ,लेकिन इस बसंत में कुछ ख़ास था। वह जिंदगी को, दूसरे नजरिये से देखने लगी। उसकी जिंदगी में बहार थी ,नयापन ,जीने की नई उमंगें थीं ,सब कुछ अपनी बाहों में समेट लेना चाहती थी उसे लगता जिंदगी इतनी भी बेदर्द नहीं कि उसे जिया ना जा सके। बस जिंदगी को जीने का ढ़ंग आना चाहिए।समीर तो उसकी कल्पनाओं में समा गया जो हकीकत से परे था किन्तु अनजान नहीं।
यदि किसी अपने का सहारा हो तो हर कठिनाई को हँसते -हँसते झेल जाये। जिंदगी रंगीन खुशनुमा तो नजर आती पर वो फिर भी अपने परिवार की परेशानियों को नहीं भूली। अब वो जिंदगी को नए ढ़ंग से जीने का प्रयास करने लगी कि प्यार भी बना रहे और समस्याएँ दूर हों। इस बारे में उसने समीर से बात की ,वो तो हर तरह से उसका साथ निभाने को तैयार था। विवाह कैसे हो ?उसके लिए भी तो पैसे होने चाहिए। आवश्यकताओं के बोझ तले तो वैसे ही जिंदगी दबी जा रही थी ,ऊपर से ये खर्च तो सम्भव ही नहीं था। विवाह के नाम से तो अब माता -पिता भी कतराने लगे ,उनका स्वार्थ जो आड़े आ रहा था। शुरू में तो वे भी हर परेशानी से जूझ रहे थे लेकिन समय और जरूरत ने उन्हें स्वार्थी बना दिया। अब सोचते अगर ये चली गई तो घर खर्च कैसे चलेगा ?
छोटी अपनी नौकरी पर चली गई थी तो उसे पता नहीं चला कि घर में मेरे पीछे क्या हुआ ?घर आई तो माँ परेशान दरवाज़े पर खड़ी थी। देखते ही बोली -पता नहीं तुम्हारी बहन कहाँ चली गई? अभी तक नहीं आई। इतनी देर तक तो वो कभी भी बाहर नहीं रही ,इसीलिए चिंता हो रही है। उसने कहा -दीदी आ जाएगी ,आप परेशान न हों। थोड़ा अंधकार भी फैलने लगा ,तभी देखा कोई शादी -शुदा जोड़ा दरवाजे पर खड़ा है। सभी लोग खड़े हो गए ,दरवाज़े की तरफ बढ़े। देखा ,तो देखते ही रह गए क्योंकि दुल्हन के रूप में कल्पना और दूल्हे के वेश में समीर था। देखते ही माता -पिता का चेहरा उतर गया ,बोले -अगर तुझे ब्याह ही करना था तो बता तो देती ,लोग क्या कहेंगे ?कि लड़की ने भागकर शादी कर ली। लेकिन मन ही मन परेशान थे कि कल को अगर ये अपने घर चली जाएगी तो हमारा क्या होगा ?कई प्रश्न अचानक मन में घूम गए।
इस तरह बेटी को दुल्हन के रूप में देख वो थोड़े परेशान थे पर क्या कर सकते हैं ,मन को समझाया वापस भी तो आ ही गई, नहीं आती तो हम क्या करते ?कल्पना ने बिना कहे ही प्रश्नों के उत्तर देने शुरू किये -बोली सोचा तो मैंने भी यही था कि विवाह नहीं करुँगी ,अपने माँ -बाप का सहारा बनूँगी ,लेकिन मैंने देखा यदि हम जिंदगी को आराम से जी सकते हैं तो उसे कठिन क्यों बनाया जाये ?यदि में विवाह नहीं करती तो ये प्रश्न हमेशा खड़ा रहता की दो -दो बेटियाँ हैं इनकी शादी कब करोगे ?लोग तो यहाँ तक कह रहे हैं कि बेटियों की कमाई खा रहे हैं। हमें अपनी जिंदगी को अपने तरीक़े से चलाना है ,लोगों के कहने से नहीं। जब हम समस्या को सुलझा सकते हैं तो इस जिंदगी को उलझन भरी क्यों बनाना ?
समीर से मैंने बात की और एक वादा भी लिया ,उससे ही हमारी आधी समस्या सुलझ गई। जब मैंने समीर को बताया कि शादी का खर्च बचाना है तो वह मंदिर में विवाह के लिए तैयार हो गया ,और मैंने उससे वादा लिया कि में जब तक घर ख़र्च के पैसे देती रहूँगी जब तक छोटी का विवाह नहीं हो जाता और दीपू लग नहीं जाता। में अपनी ससुराल में रहकर भी अपनी जिम्मेदारी निभाऊंगी और इसमें मेरा साथ दिया है समीर ने और उसके वादे ने, यदि मैं विवाह नहीं करती तो भी समस्याऐं इसी तरह बनी रहती। क्योंकि उम्र गुज़र जाती ,वो दिन वापस नहीं आते शायद समीर भी। लगता है जैसे समीर के एक ही वादे ने न जाने जिंदगी की कितनी बड़ी समस्या को हल कर दिया। माता -पिता ने अब सोच लिया था कि रिश्तेदारों को क्या बताना है ?
तभी कल्पना ने कहा -मैंने भी अपने -आप से एक वादा किया है ,कि मैं ये घर ख़र्च तभी तक दूँगी ,जब तक दीपू कमाने नहीं लग जाता ,उसके बाद मुझे अपना घर भी तो देखना है। रिया ने कुछ इस तरह इठलाकर कहा कि सभी हँस पड़े।
अब रिश्तेदार व पड़ोसी कहने लगे कि बेटियों का विवाह कब कर रहे हो ?दो -दो बेटियों की ज़िम्मेदारी है। छोटी तो बड़ी से भी बड़ी लगती है ,उसकी कद -काठी अच्छी है। कल्पना उभरती कैसे उसने तो जब से होश संभाला है तब से परेशानियों से घिरे हुए अपने को पाया है। माता -पिता की परेशानी भी तो अपनी ही थी। इन परेशानियों से जूझते हुए चार -पांच वर्ष बीत गए। वो सोचती, विवाह हो भी गया तो घर का क्या होगा? इन्हीं परेशानियों के चलते वो अपने बारे में नहीं सोच पाती। हालांकि अब छोटी भी अपने लिए नौकरी ढूढ़ रही थी। तभी उसकी जिंदगी में एक हवा के झोंके की तरह समीर आया ,उसकी जिंदगी में जैसे बहार आ गई ,न जाने कितने बसंत आये और चले गए ,लेकिन इस बसंत में कुछ ख़ास था। वह जिंदगी को, दूसरे नजरिये से देखने लगी। उसकी जिंदगी में बहार थी ,नयापन ,जीने की नई उमंगें थीं ,सब कुछ अपनी बाहों में समेट लेना चाहती थी उसे लगता जिंदगी इतनी भी बेदर्द नहीं कि उसे जिया ना जा सके। बस जिंदगी को जीने का ढ़ंग आना चाहिए।समीर तो उसकी कल्पनाओं में समा गया जो हकीकत से परे था किन्तु अनजान नहीं।
यदि किसी अपने का सहारा हो तो हर कठिनाई को हँसते -हँसते झेल जाये। जिंदगी रंगीन खुशनुमा तो नजर आती पर वो फिर भी अपने परिवार की परेशानियों को नहीं भूली। अब वो जिंदगी को नए ढ़ंग से जीने का प्रयास करने लगी कि प्यार भी बना रहे और समस्याएँ दूर हों। इस बारे में उसने समीर से बात की ,वो तो हर तरह से उसका साथ निभाने को तैयार था। विवाह कैसे हो ?उसके लिए भी तो पैसे होने चाहिए। आवश्यकताओं के बोझ तले तो वैसे ही जिंदगी दबी जा रही थी ,ऊपर से ये खर्च तो सम्भव ही नहीं था। विवाह के नाम से तो अब माता -पिता भी कतराने लगे ,उनका स्वार्थ जो आड़े आ रहा था। शुरू में तो वे भी हर परेशानी से जूझ रहे थे लेकिन समय और जरूरत ने उन्हें स्वार्थी बना दिया। अब सोचते अगर ये चली गई तो घर खर्च कैसे चलेगा ?
छोटी अपनी नौकरी पर चली गई थी तो उसे पता नहीं चला कि घर में मेरे पीछे क्या हुआ ?घर आई तो माँ परेशान दरवाज़े पर खड़ी थी। देखते ही बोली -पता नहीं तुम्हारी बहन कहाँ चली गई? अभी तक नहीं आई। इतनी देर तक तो वो कभी भी बाहर नहीं रही ,इसीलिए चिंता हो रही है। उसने कहा -दीदी आ जाएगी ,आप परेशान न हों। थोड़ा अंधकार भी फैलने लगा ,तभी देखा कोई शादी -शुदा जोड़ा दरवाजे पर खड़ा है। सभी लोग खड़े हो गए ,दरवाज़े की तरफ बढ़े। देखा ,तो देखते ही रह गए क्योंकि दुल्हन के रूप में कल्पना और दूल्हे के वेश में समीर था। देखते ही माता -पिता का चेहरा उतर गया ,बोले -अगर तुझे ब्याह ही करना था तो बता तो देती ,लोग क्या कहेंगे ?कि लड़की ने भागकर शादी कर ली। लेकिन मन ही मन परेशान थे कि कल को अगर ये अपने घर चली जाएगी तो हमारा क्या होगा ?कई प्रश्न अचानक मन में घूम गए।
इस तरह बेटी को दुल्हन के रूप में देख वो थोड़े परेशान थे पर क्या कर सकते हैं ,मन को समझाया वापस भी तो आ ही गई, नहीं आती तो हम क्या करते ?कल्पना ने बिना कहे ही प्रश्नों के उत्तर देने शुरू किये -बोली सोचा तो मैंने भी यही था कि विवाह नहीं करुँगी ,अपने माँ -बाप का सहारा बनूँगी ,लेकिन मैंने देखा यदि हम जिंदगी को आराम से जी सकते हैं तो उसे कठिन क्यों बनाया जाये ?यदि में विवाह नहीं करती तो ये प्रश्न हमेशा खड़ा रहता की दो -दो बेटियाँ हैं इनकी शादी कब करोगे ?लोग तो यहाँ तक कह रहे हैं कि बेटियों की कमाई खा रहे हैं। हमें अपनी जिंदगी को अपने तरीक़े से चलाना है ,लोगों के कहने से नहीं। जब हम समस्या को सुलझा सकते हैं तो इस जिंदगी को उलझन भरी क्यों बनाना ?
समीर से मैंने बात की और एक वादा भी लिया ,उससे ही हमारी आधी समस्या सुलझ गई। जब मैंने समीर को बताया कि शादी का खर्च बचाना है तो वह मंदिर में विवाह के लिए तैयार हो गया ,और मैंने उससे वादा लिया कि में जब तक घर ख़र्च के पैसे देती रहूँगी जब तक छोटी का विवाह नहीं हो जाता और दीपू लग नहीं जाता। में अपनी ससुराल में रहकर भी अपनी जिम्मेदारी निभाऊंगी और इसमें मेरा साथ दिया है समीर ने और उसके वादे ने, यदि मैं विवाह नहीं करती तो भी समस्याऐं इसी तरह बनी रहती। क्योंकि उम्र गुज़र जाती ,वो दिन वापस नहीं आते शायद समीर भी। लगता है जैसे समीर के एक ही वादे ने न जाने जिंदगी की कितनी बड़ी समस्या को हल कर दिया। माता -पिता ने अब सोच लिया था कि रिश्तेदारों को क्या बताना है ?
तभी कल्पना ने कहा -मैंने भी अपने -आप से एक वादा किया है ,कि मैं ये घर ख़र्च तभी तक दूँगी ,जब तक दीपू कमाने नहीं लग जाता ,उसके बाद मुझे अपना घर भी तो देखना है। रिया ने कुछ इस तरह इठलाकर कहा कि सभी हँस पड़े।


