जब बहु घर में आती है तो सास की ख़ुशी का ठिकाना नहीं ,क्योंकि उसके बेटे की शादी जो होती है। बेटे की ख़ुशी के कारण भी वो खुश होती है ,उसका ओहदा भी बढ़ता है। अब उसकी जिम्मेदारियों को भी बाँटने वाला आ जाता है। इसी ख़ुशी के साथ-साथ जब नई बहु की प्रशंसा होती है और वो काम संभाल लेती है तब सास अपने को असुरक्षित महसूस करती है। सोचती है , अब बहु बेटे पर अपना अधिकार जताएगी और सारे घर पर कब्ज़ा कर लेगी। प्रेम ने तो पहले ही सोच लिया था , मै आते ही उसे अच्छे से समझा दूंगी कि तेरे मंसूबे कभी पूरे नहीं होंगे अपने दायरे में रहे।
सास -- ये जो काले सिर की आती हैं। पूरे घर पर अपना अधिकार जताती हैं ,ये सोचतीं हैं कि हम घर की मालकिन हैं [सास अपनी सहेली से कह रही थी ,तभी बहु वहाँ आती है। दोनों चुप हो जाती हैं , बहु चाय रखकर ]कहती है।
बहु -- माँजी! क्या पहले लड़कियाँ सफेद सिर की होती थीं?
सास -- नहीं तो ,क्यों ?
बहु -- क्योंकि अभी तो आप कह रहीं थीं कि ये जो काले सिर की आती हैं ,मैंने सोचा कि लड़कियाँ पहले सफ़ेद सिर की होती होंगी। [अनजान बनते हुए ]माँजी क्या आप सफ़ेद सिर की थीं या फ़िर काले की ?और हँसते हुए चली गई।
[सास की सहेली भी मुस्कुराई और चाय पीकर चली गई ]
सास -- देखो बहु !ये घर मेरा है ,मेरे नाम है। ये मत समझना कि ये तेरा हो जायेगा।
बहु -- क्या माँजी ,क्या फ़र्क पड़ता है कि ये किसके नाम है , रह तो हम सभी रहे हैं। वैसे इससे पहले ये किसके नाम था ?
सास -- मेरी सास के ,उनके जाने के बाद ये मेरा हुआ।
बहु -- तो माँजी ये बताइये ,भगवान न करे , कल आप न रहीं तो किसके नाम होगा ?
सास -- क्या !क्या तुम मुझे मार देना चाहती हो ?ये सोच है , तुम्हारी।
बहु -- क्या ,आपने भी अपनी सास के लिए ऐसा ही सोचा था ?
सास -- कतई नहीं ,
बहु -- फिर आप मुझसे ऐसी उम्मीद क्यों लगा रही हैं ?मैं तो एक साधारण सी बात बता रही थी। अच्छा ये बताइये ,मांजी !जब आपकी सास यानि कि मेरी ददिया सास जब गयीं [ऊपर की तरफ हाथ करते हुए ]तो क्या ये मकान अपने साथ ले गईं थीं ?जबकि ये मकान तो उनके नाम था।
सास -- तुम्हारा दिमाग खराब है ,क्या ?ऐसे मकान भी किसी के साथ जाता है।
बहु -- आपके नाम है ,ये घर। आप तो जरूर ले जायेंगी।
सास -- क्या उलटी बात करती हो ?भला मकान भी कोई अपने साथ ले जा सकता है। आदमी अकेला ही आया है ,अकेला ही जायेगा।
बहु -- तो क्या फिर मैं ले जाउंगी ?न दादी जी ले गईं ,न आप ले जाओ ,न मैं ले जाऊँ ,फिर ये झगड़ा किस बात का है ?जो चीज हमारी है ही नहीं ,उसमें क्यों समय व्यर्थ गँवाना। हम तो चौकीदार हैं ,अपनी आने वाली पीढ़ी की धरोहर के। मकान से घर नहीं बना ,घर तो बनता है ,यहाँ के रहने वाले लोगों से ,आपसी संबंधों से ,प्यार और अपनेपन से वरना बड़े - बड़े महल भी ढ़ह गए।
सास -- तू ज्यादा पढ़ी -लिखी है तो हमें भाषण देगी ,सिर पर चढ़ेगी। सिर पर नहीं चढ़ायेंगे हम।
बहु -- मैं सिर पर क्यों चढ़ूँगी माँजी ?जब मैं आपके दिल में रहूँगी ,बहु हूँ ,बहु की तरह ही रहुँगी। सास होने के नाते आपका सम्मान करना ,आपकी बातों का मान रखना मेरा फर्ज़ है। वो मैं करुँगी लेकिन उस नाते मैं उम्मीद रखती हूँ कि आप भी मेरे रिश्ते व अधिकार को ठेस नहीं पहुँचाएगीं
सास -- अरे !आजकल सास की सुनता ही कौन है ?सब अपने मायके वालों को ही फ़ोन करती रहेंगी। माँ की सेवा करने चली जायेंगीं या माँ को बुला लेंगी। सास चाहे भूखी -प्यासी ,बीमार पड़ी रहे उसे नहीं देखेगीं। अपना पच्चीस साल का बालक पाल -पोसकर दे दिया ,फिर वो ये भी न उम्मीद रखे की बुढ़ापे में दो रोटी चैन से मिल जायँ।
बहु -- मायके वालों से प्रेम ,अपनापन तो रहता ही है क्योंकि सारा बचपन तो वहीँ बिताया है। फोन पर हाल -चाल पूछना या कभी -कभार मिल आने में तो कोई बुराई भी नहीं है। बाकी के दिन तो आपके पास ही रहूँगी। रही बात सेवा की ,मैं अपनी माँ समझकर आपकी सेवा करुँगी।रही बात मायके की , जब तक मेरी भाभी नहीं आ जाती ,फिर मेरी भाभी सेवा करेंगी अपनी सास की, अपनी माँ समझकर। इतने उनका ख्याल रखना ,हाल -चाल पूछना मेरा कर्त्तव्य है। बुढ़ापा तो सभी को आना है सास हो या माँ ,मैं हूँ या कोई और। कभी -कभार कोई अपवाद निकल जाये वो अलग बात है ,सभी सास एक जैसी नहीं होतीं और सभी बहुएँ भी एक सी नहीं होतीं। यदि सभी बहुएँ सास को ही अपनी माँ समझ लें ,तो किसी भी माँ को अपनी बेटी के ससुराल में धक्के न खाने पड़ें। सबकी मायें अपने -अपने घर में सम्मान के साथ रहें। और सास अगर ठीक रहे तो सभी बेटियाँ अपनी -अपनी ससुराल में खुश रहें। वापस लौटकर न जायें।
[हँसते हुए ]और हाँ !माँजी ये हमारी और आपकी पहलीऔर आख़िरी नौक -झोंक है इसके बाद जितना भी जीवन है शांति पूर्वक ,प्रेम से हम एक दूसरे का साथ देते हुए निबाहेगें। आने वाली पीढ़ी को उनकी धरोहर के साथ एक नई सीख़ देंगे ,प्यार और अपनेपन की।
सास -- बहु शायद तुम ठीक कह रही हो ,ज़माना बदल रहा है। उसके साथ सोच भी।
[दोनों हँसती हैं ]
ए=
सास -- ये जो काले सिर की आती हैं। पूरे घर पर अपना अधिकार जताती हैं ,ये सोचतीं हैं कि हम घर की मालकिन हैं [सास अपनी सहेली से कह रही थी ,तभी बहु वहाँ आती है। दोनों चुप हो जाती हैं , बहु चाय रखकर ]कहती है।
बहु -- माँजी! क्या पहले लड़कियाँ सफेद सिर की होती थीं?
सास -- नहीं तो ,क्यों ?
बहु -- क्योंकि अभी तो आप कह रहीं थीं कि ये जो काले सिर की आती हैं ,मैंने सोचा कि लड़कियाँ पहले सफ़ेद सिर की होती होंगी। [अनजान बनते हुए ]माँजी क्या आप सफ़ेद सिर की थीं या फ़िर काले की ?और हँसते हुए चली गई।
[सास की सहेली भी मुस्कुराई और चाय पीकर चली गई ]
सास -- देखो बहु !ये घर मेरा है ,मेरे नाम है। ये मत समझना कि ये तेरा हो जायेगा।
बहु -- क्या माँजी ,क्या फ़र्क पड़ता है कि ये किसके नाम है , रह तो हम सभी रहे हैं। वैसे इससे पहले ये किसके नाम था ?
सास -- मेरी सास के ,उनके जाने के बाद ये मेरा हुआ।
बहु -- तो माँजी ये बताइये ,भगवान न करे , कल आप न रहीं तो किसके नाम होगा ?
सास -- क्या !क्या तुम मुझे मार देना चाहती हो ?ये सोच है , तुम्हारी।
बहु -- क्या ,आपने भी अपनी सास के लिए ऐसा ही सोचा था ?
सास -- कतई नहीं ,
बहु -- फिर आप मुझसे ऐसी उम्मीद क्यों लगा रही हैं ?मैं तो एक साधारण सी बात बता रही थी। अच्छा ये बताइये ,मांजी !जब आपकी सास यानि कि मेरी ददिया सास जब गयीं [ऊपर की तरफ हाथ करते हुए ]तो क्या ये मकान अपने साथ ले गईं थीं ?जबकि ये मकान तो उनके नाम था।
सास -- तुम्हारा दिमाग खराब है ,क्या ?ऐसे मकान भी किसी के साथ जाता है।
बहु -- आपके नाम है ,ये घर। आप तो जरूर ले जायेंगी।
सास -- क्या उलटी बात करती हो ?भला मकान भी कोई अपने साथ ले जा सकता है। आदमी अकेला ही आया है ,अकेला ही जायेगा।
बहु -- तो क्या फिर मैं ले जाउंगी ?न दादी जी ले गईं ,न आप ले जाओ ,न मैं ले जाऊँ ,फिर ये झगड़ा किस बात का है ?जो चीज हमारी है ही नहीं ,उसमें क्यों समय व्यर्थ गँवाना। हम तो चौकीदार हैं ,अपनी आने वाली पीढ़ी की धरोहर के। मकान से घर नहीं बना ,घर तो बनता है ,यहाँ के रहने वाले लोगों से ,आपसी संबंधों से ,प्यार और अपनेपन से वरना बड़े - बड़े महल भी ढ़ह गए।
सास -- तू ज्यादा पढ़ी -लिखी है तो हमें भाषण देगी ,सिर पर चढ़ेगी। सिर पर नहीं चढ़ायेंगे हम।
बहु -- मैं सिर पर क्यों चढ़ूँगी माँजी ?जब मैं आपके दिल में रहूँगी ,बहु हूँ ,बहु की तरह ही रहुँगी। सास होने के नाते आपका सम्मान करना ,आपकी बातों का मान रखना मेरा फर्ज़ है। वो मैं करुँगी लेकिन उस नाते मैं उम्मीद रखती हूँ कि आप भी मेरे रिश्ते व अधिकार को ठेस नहीं पहुँचाएगीं
सास -- अरे !आजकल सास की सुनता ही कौन है ?सब अपने मायके वालों को ही फ़ोन करती रहेंगी। माँ की सेवा करने चली जायेंगीं या माँ को बुला लेंगी। सास चाहे भूखी -प्यासी ,बीमार पड़ी रहे उसे नहीं देखेगीं। अपना पच्चीस साल का बालक पाल -पोसकर दे दिया ,फिर वो ये भी न उम्मीद रखे की बुढ़ापे में दो रोटी चैन से मिल जायँ।
बहु -- मायके वालों से प्रेम ,अपनापन तो रहता ही है क्योंकि सारा बचपन तो वहीँ बिताया है। फोन पर हाल -चाल पूछना या कभी -कभार मिल आने में तो कोई बुराई भी नहीं है। बाकी के दिन तो आपके पास ही रहूँगी। रही बात सेवा की ,मैं अपनी माँ समझकर आपकी सेवा करुँगी।रही बात मायके की , जब तक मेरी भाभी नहीं आ जाती ,फिर मेरी भाभी सेवा करेंगी अपनी सास की, अपनी माँ समझकर। इतने उनका ख्याल रखना ,हाल -चाल पूछना मेरा कर्त्तव्य है। बुढ़ापा तो सभी को आना है सास हो या माँ ,मैं हूँ या कोई और। कभी -कभार कोई अपवाद निकल जाये वो अलग बात है ,सभी सास एक जैसी नहीं होतीं और सभी बहुएँ भी एक सी नहीं होतीं। यदि सभी बहुएँ सास को ही अपनी माँ समझ लें ,तो किसी भी माँ को अपनी बेटी के ससुराल में धक्के न खाने पड़ें। सबकी मायें अपने -अपने घर में सम्मान के साथ रहें। और सास अगर ठीक रहे तो सभी बेटियाँ अपनी -अपनी ससुराल में खुश रहें। वापस लौटकर न जायें।
[हँसते हुए ]और हाँ !माँजी ये हमारी और आपकी पहलीऔर आख़िरी नौक -झोंक है इसके बाद जितना भी जीवन है शांति पूर्वक ,प्रेम से हम एक दूसरे का साथ देते हुए निबाहेगें। आने वाली पीढ़ी को उनकी धरोहर के साथ एक नई सीख़ देंगे ,प्यार और अपनेपन की।
सास -- बहु शायद तुम ठीक कह रही हो ,ज़माना बदल रहा है। उसके साथ सोच भी।
[दोनों हँसती हैं ]
ए=


