घर बड़ी मेहनत से बनता है ,इंसान हो या पँछी .तिनका -तिनका जोड़ना पड़ता है तब जाके कहीं वो घर बनता है .किसी को क्या पता कि कितनी मुश्किलों से एक -एक तिनका इकट्ठा किया, तब जाके वो घर तैयार हुआ |वो घर जो मेहनत और अरमानों से बना घर है लेकिन जलने वाले या घर तोड़ने वाले भी इसी दुनिया में रहते हैं |जिस प्रकार घर बनाने में और उसे बचाने में मेहनत लगती है उसी प्रकार तोड़ने वाला भी तोड़ने में जी जान लगा देता है |
महीने भर से ये दोनों पँछी [कबूतर का जोड़ा ]एक एक तिनका लाकर अपना घोंसला बना रहे थे |अपनी गुटर गुं की आवाज में पता नहीं क्या -क्या कहते ?लेकिन जो भी कहते बड़ा अच्छा लगता |जब भी घर में शांति होती तो उनकी आवाज़ गूँजती, मन प्र्फुल्लित हो उठता, लगता वो अपनी ही आवाज में कोई गाना गा रहे हों ,लगता वो अपने आने वाली जिंदगी के लिए खुश होकर मिलजुलकर गाना गा रहे हैं ,और तिनका -तिनका जोड़ रहे हैं |पहले मुझे देखकर वो उड़ जाते थे लेकिन धीरे -धीरे उनसे जैसे मेरा संबंध बन गया अब वो उड़ते भी नहीं |मैं वहीं पास में बैठकर एक नवीन घर का निर्माण होते देखती और उनका गाना सुनती ,मुझे भी उनकी आदत सी हो गई थी |
आंधी आई ,बारिश हुई मैं उनकी सुरक्षा के लिए परेशान हुई पर देखा ,उनकी जगह तो बिलकुल सुरक्षित थी |मैंने उनकी इस होशियारी पर उन्हें मन ही मन सराहा |भगवान को भी धन्यवाद कहा -कि पंछियों में भी पहले से ही अपनी सुरक्षा का ध्यान होता है |आँधी में बारिश में दोनों पँछी वहीं बैठे रहते वो समय भी चला गया लेकिन उन्होंने मिलकर उन समस्याओं का सामना किया |परिणामस्वरूप उनके घर यानि कि उनके घोंसले में दो अंडे थे |मैं उनकी गुटरगूँ की आवाज सुनती एक वहीं रहता दूसरा जाता |उनके पंख फ़ड़फ़ड़ाने की आवाज़ मैं सुनती, लगता वो कैसे जी जान व लगन से अपनी -अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं |यदि इंसान भी अपनी जिम्मेदारियों को इसी तरह निभाए तो जिनके बच्चे माता -पिता के रहते हुए भी अनाथ हो जाते हैं ,तो वो बेसहारा न हों |लेकिन आसानी से दुनिया में कहाँ हर चीज मिलती है ?जब तक जीवन से न लड़ो |
अचानक ही दो बंदरों की नजर उन पर पडीऔर वो दौड़ पड़े उनके घोंसले की ओर ,मैं भी भागी हाथ में डंडा लेकर उन्हें बचाने के लिए ,उस समय तो वो भाग गए |मैं सोच रही थी कि बंदर तो मांसाहारी नहीं होते फिर उन्हें क्या सुकून मिलेगा? अंडे तोड़ने में |कभी -कभी कुछ लोग अपने मजे के लिए भी दूसरों के घरों को तोड़ने में विश्वास रखते हैं ,ये तो फिर भी जानवर हैं ,लाभ कुछ नहीं था वो तो मांसाहारी ही नहीं थे ,पर अपनी उड्डंडता के कारण ही वो उन अंडों के पीछे पड़े थे |डरते -डरते मैंने उन्हें भगा दिया |फिर भी आतंकियों की तरह न जाने कब, वो आतंकी अपना आतंक फैला गए? पता ही नहीं चला वो बेबस पंछी पँख फड़फड़ाकर उड़े ,दूर दीवार पर बैठे अपने घर को तिनका -तिनका होते देख रहे थे और मेरा उन्हें न बचा पाने का वेदना भरा मौन था |
महीने भर से ये दोनों पँछी [कबूतर का जोड़ा ]एक एक तिनका लाकर अपना घोंसला बना रहे थे |अपनी गुटर गुं की आवाज में पता नहीं क्या -क्या कहते ?लेकिन जो भी कहते बड़ा अच्छा लगता |जब भी घर में शांति होती तो उनकी आवाज़ गूँजती, मन प्र्फुल्लित हो उठता, लगता वो अपनी ही आवाज में कोई गाना गा रहे हों ,लगता वो अपने आने वाली जिंदगी के लिए खुश होकर मिलजुलकर गाना गा रहे हैं ,और तिनका -तिनका जोड़ रहे हैं |पहले मुझे देखकर वो उड़ जाते थे लेकिन धीरे -धीरे उनसे जैसे मेरा संबंध बन गया अब वो उड़ते भी नहीं |मैं वहीं पास में बैठकर एक नवीन घर का निर्माण होते देखती और उनका गाना सुनती ,मुझे भी उनकी आदत सी हो गई थी |
आंधी आई ,बारिश हुई मैं उनकी सुरक्षा के लिए परेशान हुई पर देखा ,उनकी जगह तो बिलकुल सुरक्षित थी |मैंने उनकी इस होशियारी पर उन्हें मन ही मन सराहा |भगवान को भी धन्यवाद कहा -कि पंछियों में भी पहले से ही अपनी सुरक्षा का ध्यान होता है |आँधी में बारिश में दोनों पँछी वहीं बैठे रहते वो समय भी चला गया लेकिन उन्होंने मिलकर उन समस्याओं का सामना किया |परिणामस्वरूप उनके घर यानि कि उनके घोंसले में दो अंडे थे |मैं उनकी गुटरगूँ की आवाज सुनती एक वहीं रहता दूसरा जाता |उनके पंख फ़ड़फ़ड़ाने की आवाज़ मैं सुनती, लगता वो कैसे जी जान व लगन से अपनी -अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं |यदि इंसान भी अपनी जिम्मेदारियों को इसी तरह निभाए तो जिनके बच्चे माता -पिता के रहते हुए भी अनाथ हो जाते हैं ,तो वो बेसहारा न हों |लेकिन आसानी से दुनिया में कहाँ हर चीज मिलती है ?जब तक जीवन से न लड़ो |
अचानक ही दो बंदरों की नजर उन पर पडीऔर वो दौड़ पड़े उनके घोंसले की ओर ,मैं भी भागी हाथ में डंडा लेकर उन्हें बचाने के लिए ,उस समय तो वो भाग गए |मैं सोच रही थी कि बंदर तो मांसाहारी नहीं होते फिर उन्हें क्या सुकून मिलेगा? अंडे तोड़ने में |कभी -कभी कुछ लोग अपने मजे के लिए भी दूसरों के घरों को तोड़ने में विश्वास रखते हैं ,ये तो फिर भी जानवर हैं ,लाभ कुछ नहीं था वो तो मांसाहारी ही नहीं थे ,पर अपनी उड्डंडता के कारण ही वो उन अंडों के पीछे पड़े थे |डरते -डरते मैंने उन्हें भगा दिया |फिर भी आतंकियों की तरह न जाने कब, वो आतंकी अपना आतंक फैला गए? पता ही नहीं चला वो बेबस पंछी पँख फड़फड़ाकर उड़े ,दूर दीवार पर बैठे अपने घर को तिनका -तिनका होते देख रहे थे और मेरा उन्हें न बचा पाने का वेदना भरा मौन था |

