sunhra rishta

बड़े आत्मविश्वास के साथ वो संगीत में बैठी थी ,अपनी बहन की बेटी के विवाह में शामिल होने गयी थी। घर में विवाह की तैयारियाँ बड़े जोर -शोर से चल रहीं थीं। सुनीता संगीत में बैठी लाड़ो गा  रही थी और दीपा से नाचने के लिए कह रही थी। तभी उसकी छोटी बहन पायल उसके पास आई और बोली -बहनजी लड़के वालों ने तो हद कर  दी। नक़द पैसे भी दिए , सामान भी  दिया ,फिर भी कुछ न कुछ माँग ही कर ही रहे हैं ,बड़े ही लालची लोग हैं, वैसे पैसे की तो कोई कमी नहीं है फिर भी, बेटी की ख़ुशी के लिए ही सब कर रहे हैं। इकलौता लड़का है जो भी जायेगा बेटी का ही होगा। अगले महिने ही तुम्हारी बेटी का भी विवाह है ,कैसे करोगी ,कैसे लोग हैं वो ?
     सुनीता बोली -मेरी बेटी जहाँ  जा रही है ,बड़े ही भले लोग हैं वो। उनकी कोई माँग भी नहीं है ,लड़का तो  स्वभाव से बहुत ही अच्छा है। उसके ताऊ ने एक मॉँग रखी थी उसने अपने पास से लाकर दिखा दिया वरना तू  तो जानती ही है ,अपने जीजाजी की हालत, उनके पास इतना पैसा कहाँ ?विवाह की तैयारी भी न जाने कैसे -कैसे कर रहें हैं ?उन लोगों को देखकर लगता है कि दुनिया में ऐसे लोग भी हैं। इंसानियत अभी मरी  नहीं  ,सब कुछ हाथों -हाथ संभाल लिया। बड़े ही अच्छे लोग हैं। मेरा दामाद तो हीरा है, हीरा। उसने अपने सौभाग्य पर अंदर ही अंदर गर्व महसूस करते हुए कहा।
 
      दामाद क्या वो तो घर का बड़ा बेटा  बन गया अब तो घर का सुख -दुःख ,सही -ग़लत सबमें उसकी ही राय ली जाती। सुनीता तो अपने को धन्य मानती ऐसा दामाद तो क़िस्मत वालों को ही मिलता है। पैसे और समय दोनों  के साथ तत्परता से खड़ा रहता। रिश्ते में तो दामाद था किन्तु जिम्मेदारी उसने बेटे जैसी संभाली थी क्योंकि उसका साला अभी पढ़ रहा था। घर की आमदनी अभी सिर्फ घर ख़र्च लायक थी अतिरिक्त खर्चों का बोझ उसने अपने कंधों पर ले लिया था। दो साल कब चले गए पता ही नहीं चला।रोहित की नौकरी लग गई ,घर के सब लोग बहुत खुश थे।   जीजा ने ही यह ख़ुशख़बरी सुनाई और  मिठाई का डिब्बा लेकर आये ,सबने मिलकर खाना खाया। 
            बेटा दिन दूनी तरक़्क़ी करने लगा ,घर का वातावरण भी बदलने लगा। रहन -सहन भी बदला ,बड़े -बड़े लोग आने -जाने लगे। अब दामाद जी कुछ लाते तो उन्हें मना कर देते अब आप क्यों परेशान होते हैं? वो पहले की तरह ही मिलना -जुलना चाहते लेकिन रहन -सहन के साथ ही उनके व्यवहार में भी परिवर्तन आने लगे। अब वो नहीं चाहते कि देर -सबेर वो कभी भी आकर बैठ  जायें। रोहित के बड़े -बड़े 
घरों से रिश्ते आने लगे। एक रिश्ता उनके दामाद ने भी बताया उनके सामने तो कुछ नहीं कहा लेकिन बाद में बहुत हँसे बोले -अपने ही स्तर का रिश्ता लाये होंगे। उनकी बातें सुनकर बेटी को बहुत बुरा लगा कि मेरे पति के बारे में कैसी सोच रखते हैं ?तब नेहा बोली -यदि उनका स्तर छोटा या गिरा हुआ है तो आप लोगों ने मेरी शादी उनसे क्यों की? उनसे अब तक मदद क्यों लेते रहे ?जब तुम लोगों की हालत खराब थी तब उन्होंने ये  नहीं सोचा कि ये मेरे स्तर के लोग नहीं हैं बल्कि तुम्हारी परेशानियों को देखते हुए भी मुझसे शादी की। बेटी की बातें सुनकर वो चुप हो गये। 
            बेटे के लाखों के रिश्ते आने लगे ,बातें होती रहती पर दामाद के आने पर सब चुप हो जाते, कोई बैठा होता तो कहते आप अंदर जाइये हम अभी आते हैं ,घबराते कि कहीं कोई न पूछ ले कि ये कौन हैं ?उनके व्यवहार से लगता कि दामाद  आने से उनकी बेइज्जती हो रही हो। मुँह बनाते और इधर उधर हो जाते पर कुछ कह न पाते क्योंकि रिश्ता दामाद का था ,ऊपर से इतने एहसान भी थे। समय के साथ -साथ उन एहसानों का एहसास भी ख़त्म होने लगा। वे नौकरों से उनके खाने -पीने का ध्यान रखने को कहकर काम बताकर निकल जाते। वो भी दिन थे जब घर के सारे लोग उन्हें घेरकर बैठ जाते आज वो ही लोग उनसे बचने का बहाना ढूढ़ते थे। 
रोहित का रिश्ता किसी बड़े घराने में तय हो गया जो दामाद ने बताया था वो नहीं लिया। लाखों का दहेज़ मिला लड़की भी  खूब पढ़ी -लिखी मिली। सब बेहद खुश थे। दामाद ने भी घर वालों की बेरुख़ी को नजरअंदाज कर तैयारियों में जुट गए। दामाद ने अपने दोस्तों को भी बताया कि साले  की शादी है। तब दोस्तों ने कहा -अब तो काफी सम्मान होगा दामाद का। वो बोले  -सम्मान तो मेरा पहले भी होता था। दोस्तों ने कहा -रुखा -सूखा सम्मान देते हैं ,विवाह में भी कुछ नहीं दिया। अब तो साले  को बहुत दहेज़ मिल रहा है ,तुम्हें भी कुछ मिलेगा कि नहीं।  दामाद ने भी ससुराल में अपनी इच्छा जाहिर की। सभी  ऐसे देखने लगे जैसे कोई जुर्म किया हो। किसी ने बाद में कहा -गाँव बसा नहीं कि भिखारी पहले आ गए। 
             पायल भी विवाह में शामिल होने आई थी ,सुनीता उससे मिली बोली -देखा, पैसा देखा नहीं कि  सभी के मुँह फटने लगे ,हर कोई सोच रहा है कि इन्हें लूट लें।  अब ये हमारा दामाद है ,देर -सबेर आकर बैठ जाता है [जिस बहन से वो कुछ साल पहले कह रही थी कि मेरा दामाद तो हीरा है ,आज परिस्थिति बदलते ही उस बहन से उसकी शिकायत कर  रही थी ]किसी को बताते हुए भी शर्म आती है। दामाद है ,अपनी सीमा में रहे ,सोचता होगा कि जो हम अपने बेटे के लिए कर रहे हैं उसके लिए भी वो ही कर देंगे। दामाद तो दामाद ही होता है। अब देखो सोने की चेन के लिए मुँह फाड़ दिया ,क्या ऐसे ही बनती है चेन ?उसे उसकी औकात  दिखानी पड़ेगी। पायल बोली- क्यों, बहनजी दे दो न। आपने  शादी में भी नहीं दी थी। रोहित को भी तो उसकी ससुराल से मिली है न। सुनीता बोली -तू दामाद की तुलना रोहित से कर  रही है। वो तो अफ़सर है ,कहाँ वो कहाँ रोहित ?

             सुनकर बेटी को बुरा लगा उसने दीपक से चेन माँगने को मना किया तब दीपक ने जबाब दिया -मैं कहाँ चेन पहन रहा हूँ ?ये तो दोस्तों को दिखाने के लिए थी ,मुझे तो शौक ही नहीं। मैंने माँगी भी थी तो मेरा मान रख लेते। विवाह में इतना खर्च किया ,ये और हो जाता। क्या अब मैं उनका बेटा  नहीं रहा ?तुम कहती हो, तो नहीं जाऊंगा,न ही कुछ माँगूगा।  नेहा सोच रही थी -कि सोने जैसा रिश्ता वो लोग खो चुके हैं। जो रिश्ता किसी स्तर को नहीं देखता हर परिस्थिति में साथ खड़ा रहता है। ऐसे सोने जैसे रिश्ते मिलते ही कहाँ हैं ?ऐसा सुनहरा रिश्ता उन्हें कहाँ मिलेगा ?जो वो खो चुके हैं। 























laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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