bhabhi

बड़ी उम्मीदों से सारी बहनें इकटठी होकर अपने भाई के विवाह की तैयारी में लगी थी ,चारों बहनों का इकलौता भाई था। एक लड़के की चाहत में बारी -बारी से चार बहनें आ गईं ,चौथी के बाद लड़का हुआ। सब की नजरों में उसकी इज्ज़त बढ़ गई ,दादी तो सीधे कहती- ये भाग्यवान है, अपने साथ भाई जो लाई है। लेकिन माँ -पिताजी ने कभी कोई भेदभाव नहीं किया सबको सही समय पर पढ़ने भेजा। घर की परेशानियों को देखते हुए, बेटियों ने भी पूरा साथ निभाया।  पढ़ती भी रहीं और घर की आमदनी बढ़ाने में भी सहयोग करने लगीं।सब   मिलजुलकर ऐसे काम संभाल लेतीं कि माता -पिता दोनों अपने को धन्य समझते। छोटा भाई सबका लाडला था, जब बहनों को इस तरह जीवन से जूझते देखता तो वो  भी जल्दी ही परिस्थितियों को समझने लगा, वो भी मेहनत से पढ़ता। 

                कुछ साल बाद  पिता को उनके विवाह की चिंता सताने लगी। अब तक वो चारों किसी न किसी नौकरी में लग चुकी थीं। इतना कमा लेतीं थीं कि घर ख़र्च की जिम्मेदारियों को बखूबी उठा सकती थीं। लेकिन विवाह के लिए एक -एक पैसा जोड़ना पड़ रहा था। माँ  उनकी आमदनी के पैसे उन्हीं के लिए जोड़ने शुरू किये। लेकिन उम्र थी कि हर  वर्ष एक  नई संख्या जोड़ जाती थी ,माँ की चिंता बढ़ा जाती थी। मिलजुल कर सबने दो बहनों के विवाह में सहयोग किया। अब तो दीपक भी कमाने लगा था ,उसने अपने पिता को विश्वास दिलाया कि अब हम मिलकर अपनी बहनों का विवाह करेंगे। वो रात -दिन मेहनत करता ,अपनी ज़िम्मेदारी समझकर। सारी बहनें उसकी बलाएँ लेतीं ,उसकी लम्बी उम्र की दुआ करतीं। उन्हें दुःख  होता कि छोटी सी उम्र में उस पर जिम्मेदारी आन पड़ी।  तो वो उन्हें समझा देता -क्या मैं तुम्हारा भाई नहीं ?क्या मेरी जिम्मेदारी नहीं हो आप ?
    अब तो भाई के रिश्ते भी आने लगे लेकिन भाई ने मना कर दिया। जब तक मेरी बहनों का विवाह नहीं हो जाता -'मैं विवाह नहीं करुँगा;। और अपनी बात का मान भी रखा। जब सारी बहनें अपनी -अपनी ससुराल में चली गईं ,तब  जाकर वह  अन्य जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार हुआ। लड़की ढूढ़ी जाने लगी जो उनके भाई को समझ सके।जो उसके जीवन को मधुर बना दे। एक लड़की पसंद भी आई ,अब सारी बहनें अपने भाई के विवाह की तैयारियों में जुट गईं। घर में ख़ुशी का माहौल था ,अपने इकलौते भाई के विवाह में कोई कमी नहीं रहने देना चाहती थीं। अपनी होने वाली भाभी के लिए एक -एक चीज पसंद करके ला रहीं थीं। थकावट के बाद भी उनके उत्साह में कोई कमी नहीं थी। कई दिनों की मेहनत के बाद धूमधाम से बारात निकली। 

               बड़े अरमानों से भाभी की डोली उनके दरवाज़े पर आई। माँ और पिताजी तो जैसे आराम से थे 
क्योंकि सारा काम तो बेटियों ने ही संभाल लिया था। कोई खाने की तैयारियों में जुटी थी ,एक अन्य रस्मों की तैयारी कर रही थी इस तरह सब अपने प्यारे भाई के विवाह में सहयोग दे रहीं थीं। सबने मिलकर ही भाई -भाभी को हनीमून पर भेजने की तैयारी पहले से ही कर ली थी। दीपक को इस बात का एहसास था कि चारों बहनें अपने -अपने घर को छोड़कर यहाँ मेरे लिए आई हैं  बोला -हनीमून हम फिर कभी चले जायेंगे ,आप लोग यहाँ बहुत दिनों से हो ,वहाँ की भी जिम्मेदारियाँ होंगी। तभी एक बात काटकर बोली -नहीं तुम जाओ ,हम देख लेंगे ,ये दिन रोज -रोज नहीं आते। विवश होकर उसे जाना पड़ा। 
                हनीमून के बाद जब वो दोनों लौटे तो चारों ने उसी उत्साह के साथ उनका स्वागत किया। घर भी एकदम साफ़ -सुथरा नजर आया लेकिन दीपक की बहु यानि ज्योति को शायद इसकी उम्मीद नहीं थी वो बोली -अभी तक आप लोग यहीं हैं ,अपने घर नहीं गईं। उसके  कहने के इस  तरीक़े से उन्हें महसूस तो हुआ लेकिन भाई की ख़ुशी के लिए नजरंदाज कर गईं। नीता ने ज्योति से कहा -भाभी आप तैयार हो जाओ ,आपको खाना बनाने की रस्म भी करनी है। ज्योति बोली -इतने लोगों का खाना बनाते -बनाते तो मैं थक जाउंगी ,पापा ने तो कहा था लड़का इकलौता है ,ज्यादा काम भी नहीं करना पड़ेगा। ये बातें दीपक ने सुन लीं। सुनकर उसे ही इतना बुरा लगा तो बहनों को कितना लगेगा? उसका मन क्षुब्ध हो उठा। तभी बड़ी दीदी की आवाज़ सुनाई दी -हम है न, मदद करने के लिए ,परिवार बड़ा है तो क्या हुआ ?मदद के लिए भी तो उतने ही हाथ बढ़ेंगे। दीदी की बात सुनकर दीपक को थोड़ी राहत मिली। 
                सबने मिलजुलकर खाना बनाया और खाया। उसके कुछ देर बाद लड़कियों को विदाई  देने की रस्म के लिये तैयारी करने लगे। ज्योति ने देखा तो बोली -ये कौन सी रस्म है ?दीदी ने कहा -अब हम लोग जायेंगे तो हमें भी तो दिखाना पड़ेगा कि भाई के विवाह में हमें क्या -क्या नेग मिले हैं ,उसी की तैयारी चल रही है। रूखी सी आवाज़ में ज्योति बोली -कब तक देते रहेंगे ?अपने लिए भी कुछ रखा कि नहीं या फिर जिम्मेदारी ही निभा रहे हैं ये । उसे ये शब्द बोलते हुए भी इतना जोर नहीं पड़ा जितना उन्हें सुनते हुए। सुनकर वे ठगी सी रह गईं। जिस भाई के लिए इतनी दुआएँ माँगी ,परिवार से समझौताकर भाई को पढ़ाया -लिखाया। जब आँख खुलती तो भाई की तरक्क़ी के लिए भगवान से प्रार्थना के लिए हाथ जुड़ जाते। सोने जाते तो उसकी ही मंगलकामना करते। 

            उसके ही सुखी संसार के लिए हम अपने -अपने परिवार को छोड़ यहाँ बैठी थीं। जिस भाई के लिए इतना सोचा वो आज अजनबी हो गया। उसका विवाह होते ही क्या उस पर हमारा अधिकार नहीं रहा ?क्या वो अब हमारा भाई नहीं रहा ?क्या ये हमारा मायका नहीं रहा ?कितने अरमानों से विवाह करवाया था कि उसका भी अपना घर -परिवार होगा ,उसका भी कोई अपना होगा। ये तो नहीं सोचा था कि अपना मायका भी बेग़ाना  होता नजर आ रहा था। घर में हँसी -ख़ुशी का माहौल था अब चारों ओर अजीब सी ख़ामोशी थी। सुबह उठकर अपने -अपने घर जाने की तैयारी में लग गईं। उनके  काम में वो ख़ुशी नहीं थी। तभी देखा खाने की मेज़ पर तो खाना लगा है मन में प्रश्न उठा किसने बनाया होगा ?तभी सोचा ,किसी ने तो बनाया ही होगा लेकिन किसी का मन नहीं था खाने का। 
                किसी की तभी आवाज आई -दीदी नाश्ता कर  लीजिए ,उन्होंने घूमकर देखा। ज्योति कह रही थी वो नज़दीक आकर बोली -दीदी जी नाश्ता कर  लीजिये उसके बाद पूनम दीदी साड़ी देख लेंगी उनकी पसंद अच्छी है न। बड़ी दीदी आप भूल गईं क्या ?मेरी पग़  फेरे[गौना ] की रस्म भी तो होनी है। मम्मी जी बता रहीं थी ,अभी तो देवता पूजने भी जाना है। क्या आप सब मुझे अकेला छोड़कर चले जाओगे ,मैं अकेली क्या -क्या करुँगी ? आप चारों कहाँ चल  दीं ?वो मुस्कुराकर चारों के गले लग गई ,उनसे अपने व्यवहार के लिए माफी मांगी। उसके इस व्यवहार को देखकर उनके सब्र का बांध टूट गया और वे रोने लगीं। उनकी इस हालत को देखकर ज्योति को सच में पछतावा हो रहा था वो बोली -मैं कौन होती हूँ ?तुम भाई -बहनों के बीच में आने वाली। लेकिन वो मन ही मन सोच रही थी कि यदि रात को दीपक मुझे समझाते  नहीं, तो मैं कितनी बड़ी गलती कर  देती? 


            दीपक ने कहा था -सारी बहनें बहुत ही अच्छी हैं ,सबकी शादी हो गई। हमारी ख़ुशी के लिए यहाँ हैं। ये घर तो उनका भी है। क्या तुम अब कभी नहीं जाओगी अपने घर ?तुम्हारे भाई-भाभी भी यही व्यवहार करें, तुम्हारे साथ, तो तुम्हें कैसा लगेगा ?क्या वो घर अब तुम्हारा नहीं रहा ?कल को अगर कोई ख़ुशी का मौका होता है तो ये ही बहनें हमारे साथ खड़ी होंगी। मैं अकेला क्या -क्या संभाल लूँगा ?और ये सब साथ होंगी तो सब आसान हो जाएगा। तुम इन्हें  थोड़ा प्यार दोगी ये चार गुणा देंगी।तुम  एक क़दम बढ़ाकर तो देखो।

                                             रिश्तों की एक नई पहल  
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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