srkari nokri

बहुत दिन से सुमन का फोन नहीं आया तो चंपा ही फोन करती है -का हुआ बहिनिया ,बहुत दिनन से फोनवा नाही करे हो ,का भया सब ठीक। उधर से सुमन की  आवाज आती है -का बताए बहिन जब से इ  नई सरकार आई है ,हम तो दुखिन भये। काहें का भया ?चिंता मिश्रित स्वर में चंपा बोली। 

  अरे !बहिन का बताए तोहार जीजा परेसान तो हमहुँ भी परेसान सुमन बोली। चंपा पूछती है -जीजा काहें ?सुमन ने कहा -अरे जिब ते इ नई सरकार आई है तब से ही काम बढ़ गवा है। काम बढ़ गवा तो तोहार जीजा परेसान ,पहिले तो नाही किए इतो काम। अर अब काम भी बढ़ गयो और पूरो भी करणो है ,अब तुई बता ?तब  तौ काम नई किया अब  करणो पड़रो है तो हमार खुपरिया में दर्द करत है। यूँ कहव ,  कि तनइ  कई नौकरी करण खातर। मैं ते रिटार हो जाता। उसकी बात सुनकर चंपा बोली -अरे युई हाल तो  म्हारी  शेली के पति का होवै स। जिब ते काम ना किया ,सरकारी नौकरी स। इब नवि सरकार आने स उसके तो तोते उड़े पड़े स। घर के सामने ही उसका दफ़तर था। देर सबेर जब देखं घर में पड़ा रहव था ,अब दूसरी जगह चला गया बदली होक। अक्क काम भी बहोत है ,नानी याद आई पड़ी स उसकी। उसके तो भान्जे भी सरकारी नौकरी के लिए म्हणत करे थे ,कहव थे एक बार सरकारी नौकरी मिल जा त मोज ही मोज है ,काम कोणी करना पड़ता। प्राईवेट मैं तो पैसे थोड़े देवँ अर काम घणा चोखा लेवेँ। 
                 इब तुई बता ,काम के लिए थोड़े ई करि थी सरकारी नौकरी। सरकारी नौकरी म काम करना होता तो प्रायवेट के बुरी थी ,इति पढ़ाई करी सरकारी नौकरी खातर कि फेर मोज ही मोज। के फ्येदा हुआ?इसमें भी काम करना पड़  गिया तो। उसका पति परेसान शेली परेसानअपने पैर पर कुल्हाड़ी भी खुद ही मार ली। वो कैसे ?सुमन ने पूछा। के बताऊ भण कुछ लोग रिटार होव थे तो सरकार ने कई  थी जिणे रिटार होना है हो जावें ,उने पैसे मिल जावेंगे।बात  बीच में ही काटते हुए सुमन बोली -के ऐसे ही  ठाली बैठे को मिल जाते। चंपा बोली -हाँ सरकार ने कोई स्कीम बनाई दिखे थी। लालचने मार ल्यो ,सोची ठाली बैठा के करेगा ,बड़ा अफसर बनेगा तनखा बढ़ेगी। अफसर तो बन गया पर सरकार इब ठाली बैठे को कोणी दे री ,काम भी धर के ले री है। उसके खसम की तो रेट लिकड़ी पड़ी। राम -राम कर्के काम प जावे। टैम प ही जाना पड़े। 
        चंपा फिर बोली -अरी कुछ न ये जो ठाली बैठे रहवें थे ,अब इने काम करणा पड़ गिया तो घर में आके रोला काटे। अब इ नई सरकार आ गी तो ठाली बैठे को कोणी देव। जब ते कहव थे हम काम करें ,जिब काम करे थे तो इब  क्यूँ रोन लाग रे। सुमन बोली -भण कहव तो तू ठीक है ,इब तू ही बता थारे जीजा ने भी या इ दिक्क़त है। जब सरकार तनखा देगी तो काम भी लेगी। मेरे पाछे पड़ा रह अक में रिटार होता तण न होण दिया। अरे बालक पालणे हैं तो काम ते करणा इ पड़गा। मेरी जान मर राखी है। बोबो राम -राम ,तणे मेरे मण का बोझ हलका कर दिया। भण ठीक स रहियो म्हारा तो आशीर्वाद स राम -राम। 
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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