बहुत दिनों बाद दीदी का फोन आया। दीदी ने हाल -चाल पूछा रेखा काम करते -करते बात करती जा रही थी ,दोनों बहनों में अनेक बातें हुईं। काम निपटाकर वो बात करते -करते अपने कमरे की तरफ जा रही थी, तभी दीदी ने पूछा -तुम्हारे सास -ससुर कैसे हैं ?उनका स्वास्थ कैसा है ?उनका ज़िक्र आते ही मुँह बनाते हुए बोली -सब ठीक है ,कुछ ज्यादा ही ठीक हैं। क्यों क्या हुआ ?दीदी ने उसकी आवाज़ के लहज़े को पहचान कर कहा। मेरे सास -ससुर तो कुछ ज्यादा ही हैं उसने व्यंगात्मक लहज़े में कहा। दीदी ने बेचैन होते हुए पूछा -कुछ बताएगी भी।
रेखा बोली -मेरे सास -ससुर को देखो !इन्हें बुढ़ापे में रोमांस सूझ रहा है ,राम -राम भजने का समय है। दोनों बूढ़े -बूढी दोनों ही एक दूसरे के आगे -पीछे रहते हैं। रेखा ने रहस्यात्मक लहज़े में कहा। अब आप ही बताओ दीदी !ये कोई उम्र है ,प्यार करने की? बुढ़ापे में देखो ,कैसा प्यार फूट रहा है? इस उम्र में तो राम का नाम लेना चाहिए ,और ये लोग तो कहकर वो हँस पड़ी। लेकिन उधर से दीदी की बात सुनकर वो एकदम चौंक गई ,दीदी कह रहीं थीं -क्या वो पति -पत्नी नहीं हैं ?क्या उन्हें अधिकार नहीं है प्यार करने का ?प्यार करने की कोई उम्र होती है क्या ?दीदी उसकी उम्मीद के विपरीत जबाब दे रहीं थीं। उधर से आवाज आई -अरे पगली !ये ही तो उम्र है जब प्यार गहरा और गहरा होता जाता है। जब दोनों को एक दूसरे के साथ की ज्यादा ज़रूरत होती है। जवानी में तो प्यार मतलब परस्त और छलिया भी हो सकता है और दीदी हँसते हुए बोलीं -इस उम्र में तो कोई गुँजाइश भी नहीं रहती कि इधर -उधर ताक -झाँक कर लें ,अब एक दूसरे से ही प्यार करेंगे। ख़ैर , सब छोड़ तू ,कल मैं आ रही हूँ कहकर उन्होंने फ़ोन काट दिया।
दीदी के फोन के बाद वो सोच रही थी कि किस तरह दीदी ने उसकी बातों को नजरअंदाज किया। तभी उसे अपने घर की बातें स्मरण होने लगीं। कैसे छोटी -छोटी बातों में हमारे घर में क्लेश होता रहता था। मम्मी -पापा की कभी बनी ही नहीं ,एक छत के नीचे रहकर भी दो विरोधी व्यक्तित्व थे। प्यार से बातचीत करना ,एक दूसरे की इच्छाओं का मान रखना ,एक दूसरे के लिए प्यार और त्याग की भावना तो शायद ही उनके मन में कभी आई हो। उन्हें देखकर तो हमें भी घुटन होती थी। हमें भी लगता की हम इन लोगों के यहाँ कैसे पैदा हो गए ?दोनों एक दूसरे के विपरीत ,शायद ही वो कभी किसी बात पर सहमत हुए हों ,दिमाग़ हमेशा सातवें आसमान पर। ऐसे वातावरण से निकलकर जब रेखा उसके बिल्कुल विपरीत वातावरण में पहुँचने पर उसे बड़ा अटपटा सा लगता।
कैसे सास -ससुर प्रेम से रहते हैं ,इनका कभी झगड़ा नहीं होता। उनका प्यार उसे बनावटी लगता। उसे लगता जैसे अभी लड़ेंगे। उसकी सहेलियों ने भी कहा -कि इस उम्र में प्यार! इन्हीं बातों को सोचते हुए उसने अपनी दीदी से भी कहा था लेकिन दीदी का जबाब तो उसकी सोच के विपरीत था। अगले दिन उसकी दीदी उसके घर थी ,रेखा से मिलने के बाद वो सीधे उसकी सास के पास पहुँची। नमस्ते मौसीजी ,कहकर वो उनके गले मिली। उन्होंने भी बड़े प्यार से उनका स्वागत किया। घर -परिवार की बातें होने लगीं। इस बीच रेखा के ससुर पानी रखकर गए ,और चाय- नाश्ता भी ले आये। तभी मेघा ने [दीदी]चुहल करते हुए कहा -क्या मौसीजी ,आप तो मौसाजी से बड़ी सेवा करा रहीं हैं। मौसाजी बड़ा ख़्याल रखते हैं आपका। वो मुस्कुराईं बोलीं -हाँ बेटा तेरे मौसाजी ,मेरा बड़ा ही ख़्याल रखते हैं। कल घुटने में दर्द था न इसीलिए आज ये ख़ुद ही सारा काम कर रहे हैं। इन बातों से उनकी आवाज से उनके चेहरे से अपने पति के प्रति प्यार ,सम्मान झलक रहा था।
वो बोलीं ,बहु पर भी अतिरिक्त काम का बोझ न पड़े इसीलिए कुछ काम तो हम अपने आप ही कर लेते हैं। खाली बैठे रहें या बहु से काम कराते रहें तो उस पर अतिरिक्त भार पड़ेगा। काम अधिक होगा तो वो थक जाएगी। थक जाने से वो चिड़चिड़ी होगी। गुस्सा बेटे पर निकालेगी या फिर हम पर। अभी हम इस लायक़ हैं कि अपना छोटा -मोटा काम स्वयं कर सकें सेहत भी ठीक रहेगी। हम इंसान हैं ,कोई अत्याचारी सास -ससुर नहीं। हम प्यार सेरहेंगे , खुश रहेंगे तो बहु -बेटे भी प्यार करना सीखेंगे। एक दूसरे की भावनाओं की कद्र करना सीखेंगे। हम लड़ेंगे तो वो भी यही सीखेंगे।
देखा नहीं बेटा ,आजकल ज़माना कितना ख़राब है ,शादी हुए ज़्यादा समय नहीं होता ,बात तलाक तक पहुँच जाती है। प्यार तो दूर की बात एक दूसरे पर विश्वास ही नहीं होता। साथ रहकर भी साथ नहीं होते ,लगता है एक दूसरे को झेल रहे हैं। छोटी -छोटी बातों पर तुनक जाते हैं। न एक दूसरे को समझते हैं ,न ही समझना चाहते हैं। एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगे रहते हैं ,जैसे ये पति -पत्नी नहीं एक दूसरे के प्रतिद्व्न्दी हों। सारे दिन दफ़्तर में काम करो ,सारे दिन की थकावट ,बेचैनी पहले से ही होती है ,ऊपर से घर में क्लेश ,तो बताओ आदमी कहाँ जाए ?इसीलिए हमने तो ये प्रेम -मंदिर बनाया है ,सब प्रेम से रहो। बहु -बेटा भी प्रेम से रहो ,किसी ने रोका थोड़े ही है। हम दोनों में तो प्यार इस उम्र में भी है। हमारी तरह जिंदगी को प्रेम ,समझौते और समर्पण के साथ जी कर तो दिखाओ। हम भी ख़ुश होंगे। बाहर की तरफ देखकर बोलीं -आ जाओ बहु हमारे पास यहाँ आकर बैठो ,वहाँ खड़े -खड़े थक जाओगी। फिर देर तक कुछ सोचते हुए बोलीं -हमने भी बड़ी परेशानियाँ देखीं हैं ,जिंदगी में तुम्हारे पापा और मैं एक दूसरे का सहारा बन साथ खड़े रहे। एक दूसरे के प्यार और विश्वास का सहारा हो तो आदमी हर परेशानी से जूझ जाता है।
कुछ सोचते हुए हँसकर बोलीं -प्यार करने की कोई उम्र नहीं होती ,ये तो समय के साथ बढ़ता ही जाता है। जितना भी इसे विश्वास ,देखभाल और समर्पण की ख़ुराक दो उतना ही पल्ल्वित होगा। पति -पत्नी में थोड़ी बहुत नोंक -झोंक तो होती ही है। वो भी जरूरी है ,मजबूत रिश्ते के लिए। मेघा बोली -मौसीजी आपने तो प्यार की बड़ी अच्छी परिभाषा दे दी और समझा भी दिया। वो बोलीं -हाँ बेटा , प्यार है ही ऐसी चीज ,जितना बाँटों उतना ही बढ़ता है। अब बहु के भी सभी सवालों के जबाब मिल गए होंगे। दोनों बहनें एक दूसरे को देखने लगीं कि वो क्या कहना चाह रहीं हैं? तब उन्होंने खुलासा किया -जब बहु फ़ोन पर तुमसे बात कर रही थी तब मैंने सुन लिया था ,इसलिए समझाना आवश्यक था कहकर वो मुस्कुरा दीं। पति -पत्नि के चेहरे पर एक विश्वास, एक तेज़ था।
.उसे लगता
रेखा बोली -मेरे सास -ससुर को देखो !इन्हें बुढ़ापे में रोमांस सूझ रहा है ,राम -राम भजने का समय है। दोनों बूढ़े -बूढी दोनों ही एक दूसरे के आगे -पीछे रहते हैं। रेखा ने रहस्यात्मक लहज़े में कहा। अब आप ही बताओ दीदी !ये कोई उम्र है ,प्यार करने की? बुढ़ापे में देखो ,कैसा प्यार फूट रहा है? इस उम्र में तो राम का नाम लेना चाहिए ,और ये लोग तो कहकर वो हँस पड़ी। लेकिन उधर से दीदी की बात सुनकर वो एकदम चौंक गई ,दीदी कह रहीं थीं -क्या वो पति -पत्नी नहीं हैं ?क्या उन्हें अधिकार नहीं है प्यार करने का ?प्यार करने की कोई उम्र होती है क्या ?दीदी उसकी उम्मीद के विपरीत जबाब दे रहीं थीं। उधर से आवाज आई -अरे पगली !ये ही तो उम्र है जब प्यार गहरा और गहरा होता जाता है। जब दोनों को एक दूसरे के साथ की ज्यादा ज़रूरत होती है। जवानी में तो प्यार मतलब परस्त और छलिया भी हो सकता है और दीदी हँसते हुए बोलीं -इस उम्र में तो कोई गुँजाइश भी नहीं रहती कि इधर -उधर ताक -झाँक कर लें ,अब एक दूसरे से ही प्यार करेंगे। ख़ैर , सब छोड़ तू ,कल मैं आ रही हूँ कहकर उन्होंने फ़ोन काट दिया।
दीदी के फोन के बाद वो सोच रही थी कि किस तरह दीदी ने उसकी बातों को नजरअंदाज किया। तभी उसे अपने घर की बातें स्मरण होने लगीं। कैसे छोटी -छोटी बातों में हमारे घर में क्लेश होता रहता था। मम्मी -पापा की कभी बनी ही नहीं ,एक छत के नीचे रहकर भी दो विरोधी व्यक्तित्व थे। प्यार से बातचीत करना ,एक दूसरे की इच्छाओं का मान रखना ,एक दूसरे के लिए प्यार और त्याग की भावना तो शायद ही उनके मन में कभी आई हो। उन्हें देखकर तो हमें भी घुटन होती थी। हमें भी लगता की हम इन लोगों के यहाँ कैसे पैदा हो गए ?दोनों एक दूसरे के विपरीत ,शायद ही वो कभी किसी बात पर सहमत हुए हों ,दिमाग़ हमेशा सातवें आसमान पर। ऐसे वातावरण से निकलकर जब रेखा उसके बिल्कुल विपरीत वातावरण में पहुँचने पर उसे बड़ा अटपटा सा लगता।
कैसे सास -ससुर प्रेम से रहते हैं ,इनका कभी झगड़ा नहीं होता। उनका प्यार उसे बनावटी लगता। उसे लगता जैसे अभी लड़ेंगे। उसकी सहेलियों ने भी कहा -कि इस उम्र में प्यार! इन्हीं बातों को सोचते हुए उसने अपनी दीदी से भी कहा था लेकिन दीदी का जबाब तो उसकी सोच के विपरीत था। अगले दिन उसकी दीदी उसके घर थी ,रेखा से मिलने के बाद वो सीधे उसकी सास के पास पहुँची। नमस्ते मौसीजी ,कहकर वो उनके गले मिली। उन्होंने भी बड़े प्यार से उनका स्वागत किया। घर -परिवार की बातें होने लगीं। इस बीच रेखा के ससुर पानी रखकर गए ,और चाय- नाश्ता भी ले आये। तभी मेघा ने [दीदी]चुहल करते हुए कहा -क्या मौसीजी ,आप तो मौसाजी से बड़ी सेवा करा रहीं हैं। मौसाजी बड़ा ख़्याल रखते हैं आपका। वो मुस्कुराईं बोलीं -हाँ बेटा तेरे मौसाजी ,मेरा बड़ा ही ख़्याल रखते हैं। कल घुटने में दर्द था न इसीलिए आज ये ख़ुद ही सारा काम कर रहे हैं। इन बातों से उनकी आवाज से उनके चेहरे से अपने पति के प्रति प्यार ,सम्मान झलक रहा था।
वो बोलीं ,बहु पर भी अतिरिक्त काम का बोझ न पड़े इसीलिए कुछ काम तो हम अपने आप ही कर लेते हैं। खाली बैठे रहें या बहु से काम कराते रहें तो उस पर अतिरिक्त भार पड़ेगा। काम अधिक होगा तो वो थक जाएगी। थक जाने से वो चिड़चिड़ी होगी। गुस्सा बेटे पर निकालेगी या फिर हम पर। अभी हम इस लायक़ हैं कि अपना छोटा -मोटा काम स्वयं कर सकें सेहत भी ठीक रहेगी। हम इंसान हैं ,कोई अत्याचारी सास -ससुर नहीं। हम प्यार सेरहेंगे , खुश रहेंगे तो बहु -बेटे भी प्यार करना सीखेंगे। एक दूसरे की भावनाओं की कद्र करना सीखेंगे। हम लड़ेंगे तो वो भी यही सीखेंगे।
देखा नहीं बेटा ,आजकल ज़माना कितना ख़राब है ,शादी हुए ज़्यादा समय नहीं होता ,बात तलाक तक पहुँच जाती है। प्यार तो दूर की बात एक दूसरे पर विश्वास ही नहीं होता। साथ रहकर भी साथ नहीं होते ,लगता है एक दूसरे को झेल रहे हैं। छोटी -छोटी बातों पर तुनक जाते हैं। न एक दूसरे को समझते हैं ,न ही समझना चाहते हैं। एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगे रहते हैं ,जैसे ये पति -पत्नी नहीं एक दूसरे के प्रतिद्व्न्दी हों। सारे दिन दफ़्तर में काम करो ,सारे दिन की थकावट ,बेचैनी पहले से ही होती है ,ऊपर से घर में क्लेश ,तो बताओ आदमी कहाँ जाए ?इसीलिए हमने तो ये प्रेम -मंदिर बनाया है ,सब प्रेम से रहो। बहु -बेटा भी प्रेम से रहो ,किसी ने रोका थोड़े ही है। हम दोनों में तो प्यार इस उम्र में भी है। हमारी तरह जिंदगी को प्रेम ,समझौते और समर्पण के साथ जी कर तो दिखाओ। हम भी ख़ुश होंगे। बाहर की तरफ देखकर बोलीं -आ जाओ बहु हमारे पास यहाँ आकर बैठो ,वहाँ खड़े -खड़े थक जाओगी। फिर देर तक कुछ सोचते हुए बोलीं -हमने भी बड़ी परेशानियाँ देखीं हैं ,जिंदगी में तुम्हारे पापा और मैं एक दूसरे का सहारा बन साथ खड़े रहे। एक दूसरे के प्यार और विश्वास का सहारा हो तो आदमी हर परेशानी से जूझ जाता है।
कुछ सोचते हुए हँसकर बोलीं -प्यार करने की कोई उम्र नहीं होती ,ये तो समय के साथ बढ़ता ही जाता है। जितना भी इसे विश्वास ,देखभाल और समर्पण की ख़ुराक दो उतना ही पल्ल्वित होगा। पति -पत्नी में थोड़ी बहुत नोंक -झोंक तो होती ही है। वो भी जरूरी है ,मजबूत रिश्ते के लिए। मेघा बोली -मौसीजी आपने तो प्यार की बड़ी अच्छी परिभाषा दे दी और समझा भी दिया। वो बोलीं -हाँ बेटा , प्यार है ही ऐसी चीज ,जितना बाँटों उतना ही बढ़ता है। अब बहु के भी सभी सवालों के जबाब मिल गए होंगे। दोनों बहनें एक दूसरे को देखने लगीं कि वो क्या कहना चाह रहीं हैं? तब उन्होंने खुलासा किया -जब बहु फ़ोन पर तुमसे बात कर रही थी तब मैंने सुन लिया था ,इसलिए समझाना आवश्यक था कहकर वो मुस्कुरा दीं। पति -पत्नि के चेहरे पर एक विश्वास, एक तेज़ था।
.उसे लगता


