wo bhi to maane

र्मा जी का लड़का पढ़ -लिखकर अब  तो नौकरी भी करने लगा। अब तो उसके धड़ाधड़ रिश्ते आ रहे हैं ,एक से एक लड़कियों के। तुम भी बात  करो न ,अपनी पिया के  लिए देख लो। पढ़े -लिखे ,नौकरी लगे लड़के मिलते ही कहाँ हैं ?और तो और कुछ खाता -पीता भी नहीं है। सोचो न !हमारी लड़की हमारे पास भी रहेगी ,दूर भी नहीं जाएगी। परिवार भी देखा -परखा है ,दोनों पति -पत्नी सीधे व समझदार हैं ,वहाँ हमारी बेटी खुश भी रहेगी 'हमारी श्रीमतिजी ने हम पर दबाव बनाते हुए कहा। मैंने जबाब दिया -मैं सीधे तो उनसे बात करुँगा ,नहीं लेकिन किसी से पता लगवाउँगा ,कि वो लोग क्या चाहते हैं ?कैसी लड़की चाहते हैं ?कोई मांग तो नहीं है। कहकर मैं बाहर आ गया। 
     वैसे तो श्रीमतीजी ठीक ही कह रहीं हैं। स्वस्थ है ,देखने में भी जंचता है ,मान -सम्मान भी करता है ,देखते ही पैर छूता है। आज तक कोई बुरी आदत भी नहीं सुनी उसकी, मैं सोच ही रहा था ,कि राह में चलते -चलते मेहता जी दिख गए। वे पान की दुकान में खड़े थे। अरे!मेहता जी कहीं जा रहे हैं क्या ?बोले -नहीं बस यूँ ही टहलने निकला था। चलो साथ में टहलते हैं। साथ टहलते -टहलते बहुत सी बातें हुईं ,तभी मैंने कहा -सुना है ,शर्मा जी के लड़के की नौकरी लग गई है। मेहताजी बोले -हाँ भई हाँ नौकरी भी लग गई और अब तो रिश्ते भी आ रहे हैं। मैंने पूछा -उनकी कोई मांग है क्या ?वो लोग क्या चाहते हैं ?मेहता जी बोले -उनकी कोई मांग नहीं है ,पर लड़के ने कहा  है ,कि लड़की भी नौकरी करती हो। बात भी ठीक है ,-दोनों मिलकर कमाएँगे ,आजकल महंगाई  इतनी बढ़ गई कि एक की  कमाई से तो खर्चे चलते ही नहीं। अब वे मुझे महंगाई के बारे में बता रहे थे ,लेकिन मैं सोच रहा था कि  हमारी बिटिया तो नौकरी करती नहीं इसलिए बात करना व्यर्थ है। 

                       बात आई -गई हो गई उनके लड़के की शादी भी हो गई। मुँह देखने की रस्म में श्रीमतिजी गईं। बहु सुंदर व अच्छी कम्पनी में नौकरी करती थी। दोनों पति -पत्नी खुश थे। सबसे कह रहीं थीं -हमारी तो बहु भी यही और बेटी भी। बहु-बेटा  खुश तो हम भी खुश। बहुत दिनों से श्रीमति शर्मा जी नहीं दिख रहीं थी ,मैं भी आज खाली थी ज्यादा काम नहीं था। सोचा उनसे मिल आती हूँ। उनके घर गई ,मैंने घंटी बजाई। कोई दिख नहीं रहा था। थोड़े इंतजार  के बाद अलसाई सी वे बाहर निकलीं। उनके दरवाजा खोलते ही मैंने कहा -सो रहीं थीं क्या ?हल्की मुस्कुराहट के साथ बोलीं -नहीं बस लेटी थी ,कुछ काम तो है नहीं। बातें करते -करते हम अंदर पहुँचे। कहीं कोई दिख नहीं रहा मैंने पूछा ?बोलीं बच्चे तो पहले घूमने -फिरने में रहे ,फिर दोनों अपनी नौकरी पर चले गए। 
      शादी के बाद भी आप अकेली रह गईं ,इससे तो आप बहु -बेटे के पास चली जाती। दोनों तो नौकरी पर चले जाते होंगे। पीछे उनके घर की देखभाल भी हो जाएगी और नई जगह होने के कारण आप दोनों का मन भी बदल 
जाएगा ,कुछ दिन रहकर आओ ,बहु -बेटों के पास। ये बात उन्हें पसन्द आई, कुछ इधर -उधर की बातें हुईं। मैंने महसूस किया ,दोनों अकेलापन महसूस कर  रहे थे। कुछ दिन बाद श्रीमति शर्मा हमारे घर आई। कहने लगीं -हमारे घर का ध्यान रखना ,हम बहु -बेटे के पास जा रहे हैं। बड़ी ख़ुश लग रहीं थीं। कितने दिन रहकर आओगी ?मैंने पूछा। देखती हूँ कब तक मन लगता है ,कम से कम एक माह तो रह ही आयेंगे ,बाक़ी देखते हैं। और वो चाबी देकर चली गईं।
             एक सप्ताह बाद ही वे चाबी लेने आ गईं। मैंने पूछा आप जल्दी आ गईं ,क्या मन नहीं लगा वहाँ ?वो बोलीं -नहीं ऐसी बात नहीं, रोहित के बाबूजी का मन नहीं लगा। उनका चेहरा उदास था। मैं पड़ोसी होने के नाते चाय बनाकर ले गई। बुजुर्ग सफ़र के थके -हारे होंगे। बातें शुरू हुई ,तो बातों ही बातों में बोलीं -हमने तो बहु को अपनी बेटी माना था ,हमारा अपने ऊपर वश है लेकिन दूसरे के विचारों और व्यवहार को तो नहीं बदल सकते। वो भी तो हमें अपना माता -पिता माने। मैं घर आ गई ,लेकिन उनकी बातें बार -बार मेरे मन में घूम रही थीं। 


       ये बातें सही कही थी उन्होंने ,कि हम तो बहु को बेटी मान  लें वो भी तो माता -पिता का दर्ज़ा दें। अक़सर माता -पिता बेटी को विदा करते समय ससुराल वालों से कहते हैं कि अपनी बेटी की तरह रखना। लेकिन अपनी बेटी से ये नहीं कहते कि अपने सास -ससुर को भी माता -पिता समझना ,उनका सम्मान करना। 











laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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