ये बात उन दिनों की है, जब मैं छोटा था। लेकिन बचपन की कुछ-कुछ बातें आज भी याद हैं। मैं अपनी बुआ का लाडला था ,सारा दिन उन्ही के साथ रहता था। उन्हीं दिनों मेरी बुआ का विवाह बड़े अमीर ख़ानदान में तय हुआ। अक़सर मैंने बाबाजी को कहते सुना था -लड़की अपने से बड़े घर में देनी चाहिए और बहु अपने से छोटे परिवार की लानी चाहिए। 'मैंने बाबाजी से इसका कारण पूछा ,तो बोले -बेटी अपने से बड़े ख़ानदान में जायगी तो वो वहाँ वो सुख देखेगी जो उसने यहाँ नहीं देखे इसी तरह बहु भी यहाँ वो सुख देखेगी जो उसने अपने मायके में नहीं देखे। इसी कारण अमीर घर का लड़का देखा जा रहा था। आखिरकार इकलौते अमीर फूफाजी मिल ही गए। घर में अब सब मुझे चिढ़ाने लगे कि अब तुम्हारी बुआ चली जाएगी , अब तुम किसके पास सोओगे?
हमारा घर भी बहुत बड़ा था लेकिन कच्चा था। जब हम सगाई करने बुआ की होने वाली ससुराल गए ,वहाँ तो बहुत बड़ी हवेली थी। उस जमाने में जहाँ ज्यादातर कच्चे घर थे उनके यहाँ मार्बल का आंगन था ,लेकिन मेरे लिए इन सबका कोई अर्थ ही नहीं था ,मुझे तो बस खेलने को जगह चाहिए थी। जगह कच्ची हो या पक्की क्या फ़र्क पड़ता है। इन सब चीजों का असर तो बड़ों पर पड़ता है। बुआ की शादी में थाल भरकर गहने आए ,फूफाजी हाथी पर बैठकर आये थे बुआ को ब्याहने। जयमाला हुई ,बारात कई दिनों तक रुकी। पूरे गाँव में खूब रौनक लगी रही ,जैसे मेला लगा हो। खूब मज़ा आ रहा था। बुआजी चली गईं ,अपने साथ रौनक भी ले गईं। सब और शांति हो गई ,सब अपने -अपने काम में लग गए।
अब जब भी फूफाजी आते घेर [गाँव में घर से अलग मर्दों के रहने की जगह ]में फिर से रौनक आ जाती। हम घर से घेर तक दौड़ -दौड़कर सामान लाते , ले जाते। घर में खूब सारा खाने का सामान बनता। कभी गाजर का हलुआ ,प्याज ,पालक की पकौडी ,कभी मिठाई बस यूँ समझो मज़ा आ जाता। सारा परिवार उनकी सेवा में लग जाता और वे हर बार बुआ को ले जाते। मैं हर बार उनके साथ जाने की जिद करता लेकिन अबकी बार मुझे बुआजी अपने साथ ले गई ,क्योंकि उनकी ननद की शादी आ रही थी। उन्होंने मम्मी -पापा से कहा था जब शादी में आओ तब इसे ले जाना तब तक ये मेरे साथ रहेगा। अब मैं खुश था कि बुआजी के साथ कई दिन तक रहूँगा
बुआ के ससुर मेरे बाबाजी मुझे चिढ़ाते तुम्हारा घर कच्चा है। मुझेलगता वो कभी -कभी ऐसा व्यवहार करते जैसे हम ग़रीब हैं ,वो बड़े रईस पैसे वाले हैं। मैंने बुआजी से भी कहा -बाबाजी मुझे चिढ़ाते हैं। बुआजी ने कहा -कोई बात नहीं ,मजाक कर रहे होंगे। एक दिन मैंने देखा उन्होंने बुआजी को भी डांट दिया। अब मुझे उन पर बहुत गुस्सा आया। कभी कहते अँगूर खाएगा ,ये खाये हैं कभी। जब बुआजी की ननद की शादी हो गई बहुत से लोग घेर में बैठे थे। कुछ जाने की तैयारी में थे ,कुछ जा चुके थे। मैं अपने खेलने में मग्न था ,उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया -बोले ,ये फल खाया है कभी ,खायेगा ?देख ये मिठाई खाई है कभी अपने घर में। मैं तो पहले से ही गुस्सा था ,उनसे। उन्होंने बुआ को जो डाँटा था ,और अब मेरी इतने लोगों में जो मेरी बेइज्जती कर रहे थे।
मैंने कहा -बाबाजी आप किस बात के अमीर हो ?ये जो चीजें आप मुझे दिखा रहे हो ये मैंने खाई भी हैं और देखीं भी हैं। मैं सब जानता हूँ ,हमने आपको अपनी इतनी सुन्दर बुआ दी ,जब फूफाजी जाते हैं ,उनके लिए हम कितना सारा खाने का सामान बनाते हैं और जब बुआ आती है ,तो उन्हें बहुत सारे कपड़े ,गहने मिठाई और भी बहुत सारा सामान देते हैं। हमने आप से क्या लिया ?हमने जब से बुआ की शादी की तब से दे ही रहे हैं ,न। आपका कुछ लिया नहीं। फिर भी आप कहते हो,' हम बड़े हैं। मैंने अपनी किताब में पढ़ा था 'कि माँगने वाले से बड़ा देने वाला होता है। 'तो बताओ बड़ा कौन ?हम या आप। अब तक जो वहाँ हंसी मजाक चल रहा था। अब वहाँ शाँति थी और मैं उनके बीच प्रश्न सूचक चिह्न छोड़ आया था। आज भी जब मैं उस वाक्ये को याद करता हूँ तो सोचता हूँ ,मैंने अपने बचपने में जो बातें कहीं ,सही कहीं। आप भी सोचकर देखिए।
हमारा घर भी बहुत बड़ा था लेकिन कच्चा था। जब हम सगाई करने बुआ की होने वाली ससुराल गए ,वहाँ तो बहुत बड़ी हवेली थी। उस जमाने में जहाँ ज्यादातर कच्चे घर थे उनके यहाँ मार्बल का आंगन था ,लेकिन मेरे लिए इन सबका कोई अर्थ ही नहीं था ,मुझे तो बस खेलने को जगह चाहिए थी। जगह कच्ची हो या पक्की क्या फ़र्क पड़ता है। इन सब चीजों का असर तो बड़ों पर पड़ता है। बुआ की शादी में थाल भरकर गहने आए ,फूफाजी हाथी पर बैठकर आये थे बुआ को ब्याहने। जयमाला हुई ,बारात कई दिनों तक रुकी। पूरे गाँव में खूब रौनक लगी रही ,जैसे मेला लगा हो। खूब मज़ा आ रहा था। बुआजी चली गईं ,अपने साथ रौनक भी ले गईं। सब और शांति हो गई ,सब अपने -अपने काम में लग गए।
अब जब भी फूफाजी आते घेर [गाँव में घर से अलग मर्दों के रहने की जगह ]में फिर से रौनक आ जाती। हम घर से घेर तक दौड़ -दौड़कर सामान लाते , ले जाते। घर में खूब सारा खाने का सामान बनता। कभी गाजर का हलुआ ,प्याज ,पालक की पकौडी ,कभी मिठाई बस यूँ समझो मज़ा आ जाता। सारा परिवार उनकी सेवा में लग जाता और वे हर बार बुआ को ले जाते। मैं हर बार उनके साथ जाने की जिद करता लेकिन अबकी बार मुझे बुआजी अपने साथ ले गई ,क्योंकि उनकी ननद की शादी आ रही थी। उन्होंने मम्मी -पापा से कहा था जब शादी में आओ तब इसे ले जाना तब तक ये मेरे साथ रहेगा। अब मैं खुश था कि बुआजी के साथ कई दिन तक रहूँगा
बुआ के ससुर मेरे बाबाजी मुझे चिढ़ाते तुम्हारा घर कच्चा है। मुझेलगता वो कभी -कभी ऐसा व्यवहार करते जैसे हम ग़रीब हैं ,वो बड़े रईस पैसे वाले हैं। मैंने बुआजी से भी कहा -बाबाजी मुझे चिढ़ाते हैं। बुआजी ने कहा -कोई बात नहीं ,मजाक कर रहे होंगे। एक दिन मैंने देखा उन्होंने बुआजी को भी डांट दिया। अब मुझे उन पर बहुत गुस्सा आया। कभी कहते अँगूर खाएगा ,ये खाये हैं कभी। जब बुआजी की ननद की शादी हो गई बहुत से लोग घेर में बैठे थे। कुछ जाने की तैयारी में थे ,कुछ जा चुके थे। मैं अपने खेलने में मग्न था ,उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया -बोले ,ये फल खाया है कभी ,खायेगा ?देख ये मिठाई खाई है कभी अपने घर में। मैं तो पहले से ही गुस्सा था ,उनसे। उन्होंने बुआ को जो डाँटा था ,और अब मेरी इतने लोगों में जो मेरी बेइज्जती कर रहे थे।
मैंने कहा -बाबाजी आप किस बात के अमीर हो ?ये जो चीजें आप मुझे दिखा रहे हो ये मैंने खाई भी हैं और देखीं भी हैं। मैं सब जानता हूँ ,हमने आपको अपनी इतनी सुन्दर बुआ दी ,जब फूफाजी जाते हैं ,उनके लिए हम कितना सारा खाने का सामान बनाते हैं और जब बुआ आती है ,तो उन्हें बहुत सारे कपड़े ,गहने मिठाई और भी बहुत सारा सामान देते हैं। हमने आप से क्या लिया ?हमने जब से बुआ की शादी की तब से दे ही रहे हैं ,न। आपका कुछ लिया नहीं। फिर भी आप कहते हो,' हम बड़े हैं। मैंने अपनी किताब में पढ़ा था 'कि माँगने वाले से बड़ा देने वाला होता है। 'तो बताओ बड़ा कौन ?हम या आप। अब तक जो वहाँ हंसी मजाक चल रहा था। अब वहाँ शाँति थी और मैं उनके बीच प्रश्न सूचक चिह्न छोड़ आया था। आज भी जब मैं उस वाक्ये को याद करता हूँ तो सोचता हूँ ,मैंने अपने बचपने में जो बातें कहीं ,सही कहीं। आप भी सोचकर देखिए।