सही क्या है ?क्या गलत है?इसे समझने में बच्चे से लेकर बड़े तक ,आदमी की उम्र निकल जाती है ,लेकिन सही तरीक़े से समझ नहीं पाता। क्या सही है ,क्या गलत ?देखो !ये तुमने मेरे साथ सही नहीं किया.अक्सर ये वाक्य सुनने में आ ही जाता है। मेरे साथ अच्छा नहीं हुआ ,मैं देख लूँगा तुम्हें। बचपन में ही सिखाया जाता है क्या सही है ,क्या गलत। देखो बच्चों झूठ बोलना पाप है। अपने बड़ों का आदर करो। ये छोटी -छोटी बातें बचपन में ही सिखायी जाती है। लेकिन जब बच्चा माता -पिता द्वारा बताई सीख पर चलना आरम्भ करता है ,तभी वो देखता है कि अभी जो पिता के मित्र आए ,उन्हें पिता ने कुछ न कुछ झूठ बोलकर टरका दिया तब बच्चा उलझन में पड़ जाता है। अजीब स्थिति होती है ,कि क्या सही है ,क्या गलत ?जो मुझे सिखाया या जो वो व्यवहार में ला रहे हैं। सालों लग जाते हैं ,सही -गलत का विश्लेष्ण करने में। विद्यालय में भी सिखाया जाता है ,सही /गलत पर निशान लगाओ ,तो क्या जो पुस्तकों में पढ़ा वो सही होता है ,या जो हम अपनी निजी जिंदगी में झेलते ,व्यवहार में लाते हैं। हो सकता है ,जो हमें गलत लग रहा हो वो दूसरों की नज़र में सही हो। कुछ लोगों को तो यहाँ तक कहते सुना है ,कि सही /गलत क्या है ?जब जिस परिस्थिति में ,जैसे भी इस जिंदगी के चक्रव्यूह से निकला जाए ,वही सही। कुछ लोगों के लिए तो साम ,दाम ,दण्ड ,भेद परिस्थिति अनुसार चारों ही सही हैं ,उनकी सारी जिंदगी इन चारों के इर्द -गिर्द ही घूमती है। ऐसे लोगों के लिए तो वही सही है जो अपने हित में हो। हम दूसरों की चिंता क्यों करें ,क्या हमारा ये ही काम रह गया है ?दूसरी तरफ कुछ लोग दूसरे की परेशानी को अपनी परेशानी समझ बैठते हैं। सच्चाई का साथ देना ही उनके लिए सही है। ये तो अपनी -अपनी सोच हो गई ,इससे क्या पता चला कौन सही है ,कौन गलत ?दोनों को ही लगता है ,हम सही हैं।
एक व्यक्ति ने मेहनत की ,थोड़ी तिगड़म भी लगाई और वो कामयाब भी हो गया। जो उसने तिगड़म लगाई वो सही। दूसरे अन्य व्यक्ति ने मेहनत की ,सच्चाई के बल पर चला ,सफलता मिली तो ठीक ,सफलता नहीं मिली तो ग़लत। उसके बाद सुनने को मिलता है कि केवल आदर्शों और सच्चाई के बल पर जिंदगी नहीं चलती ,कुछ झोल भी करने पड़ते हैं। अब प्रश्न ये उठता है की जो हमने पढ़ा ,उसे हमने जीवन में उतारने की कोशिश की तो हम ग़लत हुए। फिर क्यूँ सिखाया जाता है ?सही /गलत का ज्ञान। क्यूँ न इस जिंदगी की नौका को इस संसार रूपी सागर में खुला छोड़ दें ,जिंदगी की लहरों के थपेडों से स्वयं ही ज्ञान हो जायेगा। ये जिंदगी की नौका किस तरफ जाती है ,ये किस्मत उसकी ,कि वो राह सही होगी या गलत।
मेरा मानना है ,सही ,सही ही होता है ,उसमें गलती की कोई जगह नहीं होती। सही बात को निडरता पूर्वक कहा जाए तो उसे कुछ लोग स्वीकार भी करेंगे लेकिन गलत [झूठ ]का भृमजाल इतना फैला है कि मनुष्य उलझन में पड़ जाता है ,कि सही दिशा में जा रहा है या गलत। जैसे मकड़ी के जाले में फँसा कीड़ा छटपटाता है ,परेशान रहता है ,निकलने की कोशिश करता है उसी प्रकार मानव जीवन भी सही /गलत के फेर
में पड़ा छटपटाता रहता है। भृमित रहता है।
कई बार तो ये कहते सुना जाता है ,कि किसी को अगर हमारे झूठ बोलने से किसी का फायदा हो ,तो वो गलत नहीं होता। फिर भी प्रश्न तो ये ही उठता है कि गलत तो गलत ही होता है ,सही नहीं बन जाता। माँ कई बार अपने बच्चे को बचाने के लिए झूठ बोल जाती है ,क्या वो सही है ?लेकिन ये तो बच्चे पर निर्भर करता है ,कुछ तो माँ के झूठ से संभल जाते हैं ,कुछ बार -बार गलती करते हैं ,ये सोचकर की माँ हर बार बचा लेगी। बड़े होने पर भी कितने झूठ बोलने पड़ते हैं कितने गलत काम करने पड़ते हैं। नौकरी पाने के लिए ,उसे बचाए रखने लिए ,चार पैसे कमाने के लिए ,यह जानते हुए भी कि ये गलत है पर उसे सही दिखाना पड़ता है ,क्योंकि वो मजबूरी है तब सही /गलत का प्रश्न ही नहीं उठता। बच्चे माँ -बाप के बुढ़ापे का सहारा नहीं बने ,वो गलत हुआ चाहे कारण कोई भी रहा हो। माँ -बाप ने बच्चों को पाला -पोसा ,काबिल बनाया वो सही था। ये जनमानस सत्य है। फिर भी सही /गलत का ज्ञान जिंदगी की चक्की में पीसकर कहीं रह गया।
सही /गलत की परिभाषा खोजते -खोजते ,मन की संतुष्टि के लिए मैंने लिखा। ये मेरे लिए सही और दूसरों के लिए समय बर्बाद हो सकता है। आप पढ़ेंगे वो सही ,जो न पढ़ सकें। ......
कभी -कभी कुछ लोग झूठ को सही मानकर उसे सही बनाने पर तुल जाते हैं और गलत का वर्जस्व तो देखिए लड़ने वाला आदमी जानता है कि झूठ है ,गलत है फिर भी वो गलत को ही सत्य मानकर लड़ता है। सत्य कहीं दबकर रह जाता है ,चीत्कार करता है ,उसे बाहर आने में सालों लग जाते हैं। सही तो सही ही होता है लेकिन उम्र उसका इंतजार नहीं करती वो निकल जाती है। सही को पकड़ने की कोशिश करते -करते। तब तक उसकी हिम्मत पस्त पड़ जाती है। सही /गलत की लड़ाई में सही जब उभरकर आता है जब वो पल इतिहास बन चुके होते हैं ,जिन पलों को उसे जीना चाहिए था।
एक व्यक्ति ने मेहनत की ,थोड़ी तिगड़म भी लगाई और वो कामयाब भी हो गया। जो उसने तिगड़म लगाई वो सही। दूसरे अन्य व्यक्ति ने मेहनत की ,सच्चाई के बल पर चला ,सफलता मिली तो ठीक ,सफलता नहीं मिली तो ग़लत। उसके बाद सुनने को मिलता है कि केवल आदर्शों और सच्चाई के बल पर जिंदगी नहीं चलती ,कुछ झोल भी करने पड़ते हैं। अब प्रश्न ये उठता है की जो हमने पढ़ा ,उसे हमने जीवन में उतारने की कोशिश की तो हम ग़लत हुए। फिर क्यूँ सिखाया जाता है ?सही /गलत का ज्ञान। क्यूँ न इस जिंदगी की नौका को इस संसार रूपी सागर में खुला छोड़ दें ,जिंदगी की लहरों के थपेडों से स्वयं ही ज्ञान हो जायेगा। ये जिंदगी की नौका किस तरफ जाती है ,ये किस्मत उसकी ,कि वो राह सही होगी या गलत।
मेरा मानना है ,सही ,सही ही होता है ,उसमें गलती की कोई जगह नहीं होती। सही बात को निडरता पूर्वक कहा जाए तो उसे कुछ लोग स्वीकार भी करेंगे लेकिन गलत [झूठ ]का भृमजाल इतना फैला है कि मनुष्य उलझन में पड़ जाता है ,कि सही दिशा में जा रहा है या गलत। जैसे मकड़ी के जाले में फँसा कीड़ा छटपटाता है ,परेशान रहता है ,निकलने की कोशिश करता है उसी प्रकार मानव जीवन भी सही /गलत के फेर
में पड़ा छटपटाता रहता है। भृमित रहता है।
कई बार तो ये कहते सुना जाता है ,कि किसी को अगर हमारे झूठ बोलने से किसी का फायदा हो ,तो वो गलत नहीं होता। फिर भी प्रश्न तो ये ही उठता है कि गलत तो गलत ही होता है ,सही नहीं बन जाता। माँ कई बार अपने बच्चे को बचाने के लिए झूठ बोल जाती है ,क्या वो सही है ?लेकिन ये तो बच्चे पर निर्भर करता है ,कुछ तो माँ के झूठ से संभल जाते हैं ,कुछ बार -बार गलती करते हैं ,ये सोचकर की माँ हर बार बचा लेगी। बड़े होने पर भी कितने झूठ बोलने पड़ते हैं कितने गलत काम करने पड़ते हैं। नौकरी पाने के लिए ,उसे बचाए रखने लिए ,चार पैसे कमाने के लिए ,यह जानते हुए भी कि ये गलत है पर उसे सही दिखाना पड़ता है ,क्योंकि वो मजबूरी है तब सही /गलत का प्रश्न ही नहीं उठता। बच्चे माँ -बाप के बुढ़ापे का सहारा नहीं बने ,वो गलत हुआ चाहे कारण कोई भी रहा हो। माँ -बाप ने बच्चों को पाला -पोसा ,काबिल बनाया वो सही था। ये जनमानस सत्य है। फिर भी सही /गलत का ज्ञान जिंदगी की चक्की में पीसकर कहीं रह गया।
सही /गलत की परिभाषा खोजते -खोजते ,मन की संतुष्टि के लिए मैंने लिखा। ये मेरे लिए सही और दूसरों के लिए समय बर्बाद हो सकता है। आप पढ़ेंगे वो सही ,जो न पढ़ सकें। ......
कभी -कभी कुछ लोग झूठ को सही मानकर उसे सही बनाने पर तुल जाते हैं और गलत का वर्जस्व तो देखिए लड़ने वाला आदमी जानता है कि झूठ है ,गलत है फिर भी वो गलत को ही सत्य मानकर लड़ता है। सत्य कहीं दबकर रह जाता है ,चीत्कार करता है ,उसे बाहर आने में सालों लग जाते हैं। सही तो सही ही होता है लेकिन उम्र उसका इंतजार नहीं करती वो निकल जाती है। सही को पकड़ने की कोशिश करते -करते। तब तक उसकी हिम्मत पस्त पड़ जाती है। सही /गलत की लड़ाई में सही जब उभरकर आता है जब वो पल इतिहास बन चुके होते हैं ,जिन पलों को उसे जीना चाहिए था।