hero

ज कॉलिज से ही दीपा सुधा के घर चली गई ,आज वो मम्मी से कहकर आई थी कि  वो सुधा के घर से होती हुई आएगी ,उसे सुधा से कुछ नोट्स लेने हैं। दीपा ने एक नजरउसके  पूरे घर पर डाली ,उसका घर साफ -सुथरा व काफी बड़ा   था। सुधा उसे अपने कमरे में ले गई ,उसका कमरा भी व्यवस्थित था लेकिन एक अलमारी ऐसी थी जिसे देखकर दीपा का ध्यान अनायास ही उधर खींचा चला गया। उसने नज़दीक जाकर देखा ,उसमें किसी  अभिनेता की बहुत सारी तस्वीरें लगी  थीं। मुझे उधर देखते हुए ,सुधा स्वयं ही बोल उठी -यार मैं इसकी बहुत बड़ी फैन हूँ ,जब तक मैं इसे देख नहीं लेती मेरा दिन ही शुरू नहीं होता ,इसलिए मैंने ये सब अपने बिस्तर के सामने ही लगा रखें हैं। सुबह उठते ही मैं इनका चेहरा देखती हूँ ,इसकी मुझे हर अदा अच्छी लगती है। देख इसकी आँखें देख हाय !कितनी नशीली हैं ,देख इसका स्टाइल देख हाय !कमाल है। अभी वो और बोलती, मैंने उसे रोका।अब मुझे नोट्स दे दे ,मुझे घर भी जल्दी जाना है। मम्मी मेरा इंतजार कर  रही होंगी ,तेरा तो ये फैन पुराण कभी पूरा नहीं होगा। मैं नोट्स लेकर घर आ गई।


                       कुछ दिन बाद उसने मुझे बताया कि उसका विवाह तय हो गया है ,सुधा ने उसकी तस्वीर भी दिखाई ,वह काफी आकर्षक व्यक्तित्व का लड़का लगा। मैंने उसकी प्रशंसा भी की ,सुनकर बोली -पर मेरे हीरो वाली बात नहीं ,उससे[अभिनेता ] तो हो नहीं सकती ,इससे ही काम चलाना पड़ेगा, कहकर वो हँस दी। मैंने उससे कई प्रश्न पूछे -वो क्या करता है ,उसे क्या पसंद है क्या नापसंद ?सुधा ने सिर्फ इतना बताया -वो एक इंजीनियर है ,बाकि उसे गौरव के बारे में कुछ नहीं मालूम। यही नाम बताया था ,सुधा ने उस लड़के का। न ही उसके बारे में जानने की उसने कोई दिलचस्पी ही दिखाई और वो चली गई। मैं सोच रही थी, कोई किसी का इतना बड़ा प्रशंशक कैसे हो सकता है। जिंदगी के इतने बड़े फैसले में इसकी कोई दिलचस्पी ही नहीं है।
                               कुछ दिन बाद सुधा का फोन आया ,कि मैं अपने विवाह के लिए कुछ कपड़े लाई हूँ ,आकर देख ले। मैं उसके घर गई ,उसने अपने कपड़े दिखाये ,बोली ये रंग मेरे हीरो को पसंद है ,ऐसा लहँगा उसकी फ़िल्म में नायिका ने पहना था।  मैंने हँसते हुए कहा -गौरव की पसंद का भी कुछ लाई है या नहीं। उसने जबाब दिया -जब मैं पहनूँगी तब सब पसंद आ जाएगा ,देख मैं गौरव के लिए भी कपड़े लाई हूँ। उन्हें देखकर मुझे लगा कि वो कपड़े भी किसी चल-चित्र   जैसे थे। मैंने उन्हें देखकर पूछा -क्या गौरव ऐसे कपड़े पहनेगा ?क्यूँ इनमें क्या खराबी है ?एक फ़िल्म में उसने[अभिनेता ने ] ऐसे ही कपड़े पहने थे ,बड़ा जचं रहा था। मैंने समझाते हुए कहा -ये कोई फ़िल्म नहीं है ,ये असल जिंदगी है। क्या पता उसे पसंद न आये ?उसकी भी पसंद -नापसंद होनी चाहिए। उसने मेरी बात पर ध्यान न देते हुए कहा -उसे अब मेरी पसंद के कपड़े पहनने होंगे। और तू उसे अपने हीरो जैसा बनाना चाहती है।  मैंने पूछा।  इसमें  बुराई ही क्या है ? कहकर कपड़ों को  सहेजकर ऱखने लगी।कल संगीत है ,और मेरी भाभी भी आ रहीं हैं उनसे भी मिलाऊगी ,कल समय पर आ जाना उसने कहा। 
                घर आकर मैंने मम्मी को बताया, कि सुधा सभी कपड़े अपने हीरो की पसंद को ध्यान में रखकर लाई है। होने वाले पति की इच्छा का उसे कोई ख़्याल ही नहीं है, इतना बड़ा भी कोई प्रशंशक हो सकता है।मम्मी ने कहा - अभी बच्ची है ,धीरे -धीरे सब समझदार हो जाएगी। अगले दिन मैं तैयार होकर उसकी संगीत की रस्म में गई। उसकी भाभी से मिली ,वे सुन्दर व शान्त स्वभाव की थीं। संगीत के कार्यक्रम में खूब नाच -गाना हुआ ,फिर अंताक्षरी हुई। उसके बाद एक -दूसरे की पसंद -नापसंद पूछने लगे। भाभी का नंबर आने पर उनसे पूछा -आपको कौन  सा हीरो [अभिनेता ]पसंद है। वो तपाक से बोली -तुम्हारे भैया !वो ही मेरे जीवन के असली हीरो हैं। हमने कहा नहीं -नहीं किसी अभिनेता का नाम बताइये। वो बोलीं -हम किसी भी कलाकार के प्रशंशक हो सकते हैं ,लेकिन असल जिंदगी का हीरो तो वो ही हो सकता है ,'जो हमारी जिंदगी को संवारता है ,हर परिस्थिति में ,सुख -दुःख में हमारे साथ रहता है और साथ निभाता है ,हमारी पसंद -नापसंद का ध्यान रखता है ,और तुम्हारे भइया ऐसे ही हैं ,मेरी जिंदगी के हीरो तो वही हैं। और जिंदगी असली हीरो से ही चलती है। 
                         भाभी की बातें सुनकर सुधा के चेहरे से हँसी गायब हो गई ,क्योंकि वह अपनी कल्पनाओं की दुनिया में इतनी खोई थी कि उसने यह जाननेका  प्रयत्न भी नहीं किया कि वो जिससे विवाह के बंधन में बंधने जा रही है। वो क्या सोचता है ,उसके क्या शौक़ हैं ,उसे क्या पसंद है ?कुछ  भी तो नहीं जानती, मैं उसके बारे में ,वह अपने -आप पर झुंझला उठी। जब हम चलचित्र देखते हैं तो उस दुनिया में चले जाते हैं ,और हम उस कलाकार पर फ़िदा हो जाते हैं ,जैसा हम अपने लिए चाहते हैं और हम उसी दुनिया में खोये रहते हैं ,जो हकीक़त से परे है। भाभी की बातों से वो जैसे असल जिंदगी में आ चुकी थी। उसने गौरव से फोन पर बातें की ,उसके कपड़े भी उनके रंग भी उसकी पसंद को ध्यान में रखकर लाई ,बाकि की रस्में  भी उसने बढ़कर -चढ़कर पूरी की। अब वो काल्पनिक दुनिया से बाहर थी क्योंकि अब वो अपनी जिंदगी के असली हीरो से मिलने के लिए तैयार थी। 














                 
           







laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post