माँ -बाप ने कितनी उम्मीदों से उसे पढ़ाया -लिखाया इसी कारण से था कि उसे देखकर छोटे बहन -भाई भी पढ़ेंगे। घर का नाम होगा ,बुढ़ापे का सहारा होगा पर उसने तो सब पर पानी फेर दिया। घर का बड़ा था ,माँ -बाप ने उसकी पढ़ाई में खुलकर ख़र्च किया। बड़े लोगों की तरह उसका रहन -सहन था उसकी सोच भी ऊंची ही थी। नौकरी ढूढ़ने निकला तो बड़े पापड़ बेलने पड़े पर मन मुताबिक़ नौकरी नहीं मिली। माँ भी न जाने कितने पड़िया -पंडितों से मिली। सब कुछ किया ,नौकरी लग भी जाती तो उसे वो नहीं करता। सब कुछ करके देख लिया ,यहाँ तक की उसका विवाह भी कर दिया। क्या पता बहु के भाग्य से ही नौकरी लग जाए। जैसे -जैसे समय बीतता गया ,घरवालों की उम्मीद भी जबाब देने लगी। घर का लाडला अब आँखों की किरकिरी बन गया। घर के खर्चे बढ़े पर आमदनी नहीं। मैंने भी उसे कई बार समझाया कि छोटी -मोटी जो भी मिल रही है कर ले। तेरे खर्चे भी बढ़ रहे हैं। पर वो नहीं माना।
अब घर में उसका वो मान नहीं रहा उसकी पत्नी को उसके मायके भेज दिया। उसकी चिट्ठी आती कब लेने आ रहे हो ?देर -सवेर उसे कुछ न कुछ ताने सुनने को मिल जाते। आखिर उसने सोचा 'कुछ न कुछ व्यापार ही कर लिया जाए लेकिन व्यापार के लिए भी तो पैसे चाहिए ,कुछ अनुभव भी नहीं था पूरे ख़ानदान में आज तक किसी ने भी व्यापार नहीं किया था। घर वालों से ये कहने की हिम्मत भी नहीं हो रही थी कि व्यापार के लिए थोड़े पैसों का इंतज़ाम कर दें ,न ही वो देते। उसने उनकी उम्मीदें जो तोड़ी थी ,बल्कि उसे इतना जरूर सुना दिया था कि अपने बीवी बच्चे को ले जाओ। खुद खर्चा करो। अंत में उसने दूर किसी कस्बे में एक छोटी सी दुकान खोल ली। किसी ने सोचा भी नहीं था कि वो ऐसा निकलेगा या फिर यूँ कहें उसकी किस्मत में ये ही सब लिखा था।
मैं भी अपनी नौकरी व घर -परिवार में उलझ गया। दो साल बाद मेरा उधर को जाना हुआ। उसके घर गया तो उसकी माँ मुझे देखकर रोने लगी बोली -उसके लिए कितना किया ?दिल पर पत्थर रखकर उसे यहाँ से निकाला। उसकी माँ ने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा -धर्म तू पता लगा कि वो वहाँ कैसा है ?सुना है ,किसी जगह पर दुकान खोली है ,वहाँ वो कैसे रह रहा है ?और धोती के पल्ले के कोने बँधा एक कागज़ निकालकर मुझे दिया। ये उसका पता है ,कोई गया था उधर ,उससे मिला था। ये पता उसी ने दिया, तू पता लगा उसका। वो कैसा है ?कैसे रह रहा है ?कुछ पैसे भी देने लगीं, मेरे मना करने पर रोते हुए बोलीं -कैसे ,कितनी उम्मीदों से पाला था और आज किस स्थिति में है ,हमें पता भी नहीं। इन पैसों से शायद उसकी मदद हो जाए। मैं उनको सांत्वना देते हुए ,पैसे व पता लेकर आ गया।
मैं पता पूछता हुआ उसके घर जा पहुँचा ,हम दो साल बाद मिले थे। बड़ा खुश हुआ ,अच्छे से मिला। खाना खाकर खूब बातचीत हुईं जैसे पुराने दिन लौट आये हों। मैं और कोई बात करके उसे परेशान नहीं करना चाहता था ,लेकिन उसका रहन -सहन सब बयां कर रहा था। मैं समझ रहा था कि वो जिंदगी से जूझने के लिए तैयार था या अपने को तैयार कर रहा था। जो पैसे उसकी माँ ने मुझे दिये थे उनसे उसका कुछ नहीं होना था। मैं वो पैसे उसके बच्चे को देकर आ गया। मैं अब साल दो साल में उससे मिल आता। वो ऐसे दर्शाता जैसे वो बड़ा खुश है। मेरी तरक्क़ी सुन बड़ा खुश हुआ। उसकी गृहस्थी भी बढ़ी ,काम भी बढ़ा। मैंने उससे पूछा कभी कुछ आवश्यकता हो तो बताना लेकिन वो मना कर देता। मैं भी कोई ऐसी बात कहकर उसके स्वाभिमान को ठेस नहीं पहुँचाना चाहता था। समय भी क्या खेल खेलता है ?कभी किसी समय पर उसने मेरी फीस भी जमा की थी ,अपने साथ खाना भी खिलाता था। आज वो एक छोटा दुकानदार मैं एक अफसर ,पर कभी मैं भूलकर भी ऐसी बात अपनी दोस्ती के बीच नहीं लाया।
एक दिन वो अचानक मेरे पास आया कि बुरी हालत है ,कर्जा चढ़ा है ,कर्ज़े वाले तंग कर रहे हैं। पचास हज़ार की सख़्त ज़रूरत है ,उधार चाहिये। मैंने उसे पैसे देकर कहा -जब बन जाये तब दे देना ,उसने ब्याज के लिए पूछा ?मैंने कहा -क्या दोस्ती में भी ब्याज ,ब्याज़ की कोई जरूरत नहीं ,वो पैसे ले गया। कई साल तक उसकी कोई खोज़ ख़बर नहीं मिली ,जहाँ वो रहता था अब वहाँ नहीं था। मैंने सोचा ,उसे तो पता है ,मेरे घर का। मिलना होगा तो आ जायेगा अपने -आप। कम से कम पाँच -छः साल हो गए ,अब मुझे उसकी चिंता सताने लगी। पता नहीं, उसके साथ क्या हुआ होगा ?ठीक -ठाक है भी ,या नहीं।
एक दिन मै उसके गाँव पहुँचा कि उसकी ज़मीन सरकार की सड़क योजना में चली गई ,उसे काफ़ी मुआवज़ा मिला है। शहर में कहीं मकान बनाकर रह रहा है .सुनकर मैं आश्वस्त हुआ। एक दिन मैं अपने परिवार के साथ उसके घर जा पहुँचा उसे उलहाना भी दिया कि दोस्तों को भूल ही गया। वो खुश भी हुआ पर चुप हो गया। शायद उसे पैसों की बात याद आ गई। मैंने कहा- परेशान मत हो ,जब इच्छा हो तब दे देना। मैं सोच रहा था 'इसने भी कितनी परेशानियाँ झेली हैं। इसके छोटे -छोटे बच्चों ने भी कितने उतार -चढ़ाव देखें हैं ,अब थोड़ी तसल्ली तो होगी इसे। चलो मैं तो इसी में खुश हूँ कि जिंदगी में वो सम्भला तो सही। बच्चे भी बड़े हो रहे हैं कुछ दिन बाद वे भी इसका सहारा बन जायेंगे।
कुछ साल बाद उसने मेरे पैसे चुकाए उसके बच्चों की नौकरी भी लग गई। बेटों की शादी भी हो गई। गाड़ी भी ले ली,अब मैं खुश था कि मेरा दोस्त बेरोज़गार ,परेशान ,असहाय नहीं रहा। घर परिवार से संतुष्ट था। एक दिन मेरा उसके गाँव जाना हुआ ,उसके माँ -बाप तो रहे नहीं और उसके भाई कम आमदनी और अधिक ख़र्चों से जूझ रहे थे। तब तक फोन भी आ गए थे ,मैंने फोन किया कि जरा अपने भाइयों की सुध ले ,वे परेशानी में हैं। उसने लापरवाही से जबाव दिया -सब अपने कर्मों के फल भुगत रहें हैं ,जब मैं परेशान थाकिसी ने मेरा साथ नहीं दिया। अब मैं क्यों साथ दूँ ?
छः माह पश्चात मेरा उससे मिलना हुआ ,तो पता चला उसने मेरे कहने के बाद भी उनकी कोई मदद नहीं की। हाल -चाल तक पूछने नहीं गया। मैंने एक निग़ाह उसके घर का अवलोकन किया ,फिर पूछा -अब कोई दिक्क़त या परेशानी तो नहीं ?उसने खुश होकर कहा- अब कोई परेशानी नहीं घर- परिवार बच्चे ,बहु सब ठीक हैं। तो भले मानस अपने भाइयों की भी सुध ले लेता ,देखकर या पूछकर तो आता। क्या वे तेरे अपने नहीं हैं ?मैंने उसे समझाते हुए कहा। तू नहीं जानता उन्होंने मेरे साथ क्या -क्या नहीं किया। मैं घर से बेघर हो गया ,मेरी जमीन भी हड़पनी चाही ,भुगतने दो उन्हें अपने कर्मों का फल।कोई नहीं था मेरे साथ ,कैसे -कैसे मैंने अपने बच्चों को पाला है मुझे ही पता है। वो थोड़ा तैश में आ गया।
माना वो लोग कभी तेरे साथ नहीं रहे ,कभी तेरा साथ नहीं दिया ,मुझे पता है। क्या मैं भी तेरे साथ नहीं था ?जब भी तूने मदद माँगी मैंने नहीं की क्या ?मैं तेरी ख़ैर -खबर कभी गाँव से तो कभी यहाँ आकर लेता रहा। क्या जीवन में किसी ने तेरी मदद नहीं की ?माना कि उन्होंने तेरी मदद नहीं की ,तो क्या किसी ने भी नहीं की ?मदद भी तो वो ही कर सकता है जो इस क़ाबिल हो। आज तेरे पास सब कुछ है ,क्या तूने कभी किसी की मदद करने की कोशिश की ?लोग तो जब अपने पास होता है ,तो समाज -सेवा के नाम पर गैरों की मदद करते हैं। तू अपनों की न कर सका ,तू उनका मसीहा बनकर तो देखता। मैं भी यदि ऐसे ही हाथ खींच लेता तो तूने कभी सोचा है ,तेरा या तेरे बच्चों का क्या हश्र होता ?मैं दूर रहकर भी दोस्ती का फ़र्ज निभाता रहा और तू रिश्तों को ही नहीं निभा सका। अपने ख़ून का फ़र्ज तो निभाता। अपने दोस्ती के फ़र्ज को निभा मैं चला आया।
अब घर में उसका वो मान नहीं रहा उसकी पत्नी को उसके मायके भेज दिया। उसकी चिट्ठी आती कब लेने आ रहे हो ?देर -सवेर उसे कुछ न कुछ ताने सुनने को मिल जाते। आखिर उसने सोचा 'कुछ न कुछ व्यापार ही कर लिया जाए लेकिन व्यापार के लिए भी तो पैसे चाहिए ,कुछ अनुभव भी नहीं था पूरे ख़ानदान में आज तक किसी ने भी व्यापार नहीं किया था। घर वालों से ये कहने की हिम्मत भी नहीं हो रही थी कि व्यापार के लिए थोड़े पैसों का इंतज़ाम कर दें ,न ही वो देते। उसने उनकी उम्मीदें जो तोड़ी थी ,बल्कि उसे इतना जरूर सुना दिया था कि अपने बीवी बच्चे को ले जाओ। खुद खर्चा करो। अंत में उसने दूर किसी कस्बे में एक छोटी सी दुकान खोल ली। किसी ने सोचा भी नहीं था कि वो ऐसा निकलेगा या फिर यूँ कहें उसकी किस्मत में ये ही सब लिखा था।
मैं भी अपनी नौकरी व घर -परिवार में उलझ गया। दो साल बाद मेरा उधर को जाना हुआ। उसके घर गया तो उसकी माँ मुझे देखकर रोने लगी बोली -उसके लिए कितना किया ?दिल पर पत्थर रखकर उसे यहाँ से निकाला। उसकी माँ ने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा -धर्म तू पता लगा कि वो वहाँ कैसा है ?सुना है ,किसी जगह पर दुकान खोली है ,वहाँ वो कैसे रह रहा है ?और धोती के पल्ले के कोने बँधा एक कागज़ निकालकर मुझे दिया। ये उसका पता है ,कोई गया था उधर ,उससे मिला था। ये पता उसी ने दिया, तू पता लगा उसका। वो कैसा है ?कैसे रह रहा है ?कुछ पैसे भी देने लगीं, मेरे मना करने पर रोते हुए बोलीं -कैसे ,कितनी उम्मीदों से पाला था और आज किस स्थिति में है ,हमें पता भी नहीं। इन पैसों से शायद उसकी मदद हो जाए। मैं उनको सांत्वना देते हुए ,पैसे व पता लेकर आ गया।
मैं पता पूछता हुआ उसके घर जा पहुँचा ,हम दो साल बाद मिले थे। बड़ा खुश हुआ ,अच्छे से मिला। खाना खाकर खूब बातचीत हुईं जैसे पुराने दिन लौट आये हों। मैं और कोई बात करके उसे परेशान नहीं करना चाहता था ,लेकिन उसका रहन -सहन सब बयां कर रहा था। मैं समझ रहा था कि वो जिंदगी से जूझने के लिए तैयार था या अपने को तैयार कर रहा था। जो पैसे उसकी माँ ने मुझे दिये थे उनसे उसका कुछ नहीं होना था। मैं वो पैसे उसके बच्चे को देकर आ गया। मैं अब साल दो साल में उससे मिल आता। वो ऐसे दर्शाता जैसे वो बड़ा खुश है। मेरी तरक्क़ी सुन बड़ा खुश हुआ। उसकी गृहस्थी भी बढ़ी ,काम भी बढ़ा। मैंने उससे पूछा कभी कुछ आवश्यकता हो तो बताना लेकिन वो मना कर देता। मैं भी कोई ऐसी बात कहकर उसके स्वाभिमान को ठेस नहीं पहुँचाना चाहता था। समय भी क्या खेल खेलता है ?कभी किसी समय पर उसने मेरी फीस भी जमा की थी ,अपने साथ खाना भी खिलाता था। आज वो एक छोटा दुकानदार मैं एक अफसर ,पर कभी मैं भूलकर भी ऐसी बात अपनी दोस्ती के बीच नहीं लाया।
एक दिन वो अचानक मेरे पास आया कि बुरी हालत है ,कर्जा चढ़ा है ,कर्ज़े वाले तंग कर रहे हैं। पचास हज़ार की सख़्त ज़रूरत है ,उधार चाहिये। मैंने उसे पैसे देकर कहा -जब बन जाये तब दे देना ,उसने ब्याज के लिए पूछा ?मैंने कहा -क्या दोस्ती में भी ब्याज ,ब्याज़ की कोई जरूरत नहीं ,वो पैसे ले गया। कई साल तक उसकी कोई खोज़ ख़बर नहीं मिली ,जहाँ वो रहता था अब वहाँ नहीं था। मैंने सोचा ,उसे तो पता है ,मेरे घर का। मिलना होगा तो आ जायेगा अपने -आप। कम से कम पाँच -छः साल हो गए ,अब मुझे उसकी चिंता सताने लगी। पता नहीं, उसके साथ क्या हुआ होगा ?ठीक -ठाक है भी ,या नहीं।
एक दिन मै उसके गाँव पहुँचा कि उसकी ज़मीन सरकार की सड़क योजना में चली गई ,उसे काफ़ी मुआवज़ा मिला है। शहर में कहीं मकान बनाकर रह रहा है .सुनकर मैं आश्वस्त हुआ। एक दिन मैं अपने परिवार के साथ उसके घर जा पहुँचा उसे उलहाना भी दिया कि दोस्तों को भूल ही गया। वो खुश भी हुआ पर चुप हो गया। शायद उसे पैसों की बात याद आ गई। मैंने कहा- परेशान मत हो ,जब इच्छा हो तब दे देना। मैं सोच रहा था 'इसने भी कितनी परेशानियाँ झेली हैं। इसके छोटे -छोटे बच्चों ने भी कितने उतार -चढ़ाव देखें हैं ,अब थोड़ी तसल्ली तो होगी इसे। चलो मैं तो इसी में खुश हूँ कि जिंदगी में वो सम्भला तो सही। बच्चे भी बड़े हो रहे हैं कुछ दिन बाद वे भी इसका सहारा बन जायेंगे।
कुछ साल बाद उसने मेरे पैसे चुकाए उसके बच्चों की नौकरी भी लग गई। बेटों की शादी भी हो गई। गाड़ी भी ले ली,अब मैं खुश था कि मेरा दोस्त बेरोज़गार ,परेशान ,असहाय नहीं रहा। घर परिवार से संतुष्ट था। एक दिन मेरा उसके गाँव जाना हुआ ,उसके माँ -बाप तो रहे नहीं और उसके भाई कम आमदनी और अधिक ख़र्चों से जूझ रहे थे। तब तक फोन भी आ गए थे ,मैंने फोन किया कि जरा अपने भाइयों की सुध ले ,वे परेशानी में हैं। उसने लापरवाही से जबाव दिया -सब अपने कर्मों के फल भुगत रहें हैं ,जब मैं परेशान थाकिसी ने मेरा साथ नहीं दिया। अब मैं क्यों साथ दूँ ?
छः माह पश्चात मेरा उससे मिलना हुआ ,तो पता चला उसने मेरे कहने के बाद भी उनकी कोई मदद नहीं की। हाल -चाल तक पूछने नहीं गया। मैंने एक निग़ाह उसके घर का अवलोकन किया ,फिर पूछा -अब कोई दिक्क़त या परेशानी तो नहीं ?उसने खुश होकर कहा- अब कोई परेशानी नहीं घर- परिवार बच्चे ,बहु सब ठीक हैं। तो भले मानस अपने भाइयों की भी सुध ले लेता ,देखकर या पूछकर तो आता। क्या वे तेरे अपने नहीं हैं ?मैंने उसे समझाते हुए कहा। तू नहीं जानता उन्होंने मेरे साथ क्या -क्या नहीं किया। मैं घर से बेघर हो गया ,मेरी जमीन भी हड़पनी चाही ,भुगतने दो उन्हें अपने कर्मों का फल।कोई नहीं था मेरे साथ ,कैसे -कैसे मैंने अपने बच्चों को पाला है मुझे ही पता है। वो थोड़ा तैश में आ गया।
माना वो लोग कभी तेरे साथ नहीं रहे ,कभी तेरा साथ नहीं दिया ,मुझे पता है। क्या मैं भी तेरे साथ नहीं था ?जब भी तूने मदद माँगी मैंने नहीं की क्या ?मैं तेरी ख़ैर -खबर कभी गाँव से तो कभी यहाँ आकर लेता रहा। क्या जीवन में किसी ने तेरी मदद नहीं की ?माना कि उन्होंने तेरी मदद नहीं की ,तो क्या किसी ने भी नहीं की ?मदद भी तो वो ही कर सकता है जो इस क़ाबिल हो। आज तेरे पास सब कुछ है ,क्या तूने कभी किसी की मदद करने की कोशिश की ?लोग तो जब अपने पास होता है ,तो समाज -सेवा के नाम पर गैरों की मदद करते हैं। तू अपनों की न कर सका ,तू उनका मसीहा बनकर तो देखता। मैं भी यदि ऐसे ही हाथ खींच लेता तो तूने कभी सोचा है ,तेरा या तेरे बच्चों का क्या हश्र होता ?मैं दूर रहकर भी दोस्ती का फ़र्ज निभाता रहा और तू रिश्तों को ही नहीं निभा सका। अपने ख़ून का फ़र्ज तो निभाता। अपने दोस्ती के फ़र्ज को निभा मैं चला आया।


