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आजकल बच्चे सुनते ही किसकी हैं ,अपनी चलाते हैं। पहली बात तो बेटी शादी ही नहीं करना चाहती और अभी तो कह रही है ,'पढ़ी -लिखी हूँ ,तो कुछ दिन नौकरी भी करुँगी। ये तो होगा नहीं कि पढ़ -लिखकर शादी करके घर में चूल्हा फूँकू। अगर ये ही  सब करना था तो पढ़ाया ही क्यों ?पढ़ाते  ही नहीं और जबरदस्ती नौकरी करने चली गई। ये सब बातें श्रीमति शुक्ला एक ही सांस में बोल गईं। वो रोज़ाना श्रीमति मेहता के संग शाम को टहलने जाती हैं। टहलते -टहलते घर गृहस्थी की बातें भी चलती रहती हैं ,दोनों के पड़ोसन होने के साथ मित्रवत व्यवहार भी हैं। 
          श्रीमति मेहता बोलीं -मेरा बेटा तो अब तैयार हुआ है ,शादी के लिए। लेकिन उसे लड़की पढ़ी -लिखी होने के बावज़ूद घरेलू हो, हमें उसकी कमाई नहीं चाहिए बल्कि जो बेटा कमाए उनका व घर का सही तरीक़े से रख -रखाव कर  सके। श्रीमति शुक्ला की तरफ देखकर बोलीं -अब आप ही बताइये ,दोनों मियां -बीवी कमाते हैं ,न तो घर की देखभाल ठीक से हो पाती है ,न ही बच्चो की परवरिश ठीक से होती है। ख़र्चे भी बढ़ जाते हैं और पत्नी की ऐंठ रहती है सो अलग। 'मैं कमाकर लाती हूँ ;ख़र्चे कैसे बढ़ जाते हैं ?उत्सुकतावश श्रीमति शुक्ला बोलीं। वो ऐसे ,जब पत्नि कमाएगी तो खाना बनाने वाली ,साफ -सफाई वाली ,कपड़े वाली ये सब रखने के बाद बच्चों की देखभाल के लिए अलग ,आधे से ज्यादा आमदनी तो इन्हीं ख़र्चों में चली जाती है। जो देखभाल एक माँ अपने बच्चों की  कर सकती है ,वो दूसरी कोई नहीं संभाल सकती। 
               आपको तो काम के लिए बहु चाहिए श्रीमती शुक्ला ने व्यंग से  मुस्कुराते हुए कहा। नहीं ऐसी बात नहीं है ,घर संभालना ,देखभाल करना भी एक बड़ी जिम्मेदारी है ,अपने घर में रहकर भी कुछ न कुछ कर  सकती है। जैसे पढ़ाना  या जो उसकी इच्छा हो, श्रीमति मेहता ने समझाते हुए कहा। 
   श्रीमती शुक्ला बोलीं -अपनी -अपनी सोच है ,मेरी बेटी  तो कह रही है कि यदि मैंने किसी से विवाह किया भी तो बच्चे ही नहीं बनाएगी ,कौन झंझट में पड़े ?अजीब !लड़की है आपकी ,ऐसी लड़की से कौन  ब्याह करना चाहेगा ?जो माँ न बनना चाहे।श्रीमति मेहता  बात बीच में ही काटकर बोलीं। कुछ चिन्तित स्वर में श्रीमति शुक्ला बोलीं -क्या बताऊँ किसी की सुनती ही कहाँ है ?मैंने तो यहाँ तक कहा ,किसी धनाढ्य परिवार में ब्याह कर ले। बीस -पच्चीस हजार की नौकरी में ही क्या रखा है ?सुंदर तो है ही ,किसी पैसे वाले से ब्याह कर  आराम से रह ,पर सुनती ही नहीं। कहती है पढ़ाया ही क्यूँ था ?अचानक जैसे याद आया बोलीं -आपके मोहित को कोई लड़की पसंद आई ?श्रीमति मेहता ने न में गर्दन हिलाई और बोलीं -अभी काफी समय हो गया है ,अच्छा कल मिलते हैं। कहकर दोनों अपने -अपने घर गईं। 
                     रियाअपनी मम्मी के साथ  स्कूटी से बाज़ार जा रही थी। तभी उसे एक जगह कुछ लोग इकट्ठे दिखाई दिए। धीरे -धीरे वहाँ काफी भीड़ इकट्ठी हो गई। रिया ने भी अपनी स्कूटी उधर ही मोड़ दी। किसी से पूछा -ये भीड़ क्यों है ?भीड़ में से किसी ने जबाव दिया -कोई छोटी बच्ची है ,जो पैदा होते ही डाल गया। भीड़ में से ही किसी ने कहा -नाजायज़ होगी या फिर बेटी होने के कारण उसे यहाँ डाल  गया होगा। उस पर कुत्ते झपट रहे थे ,तब लोगों ने उसे बचाया। वह  वापस चलने के लिए मुड़ी ही थी लेकिन अचानक इच्छा हुई एक छण उसे देखे। वो बच्ची के पास पहुँची। बच्ची बिल्कुल रुई के फाहे सी नरम ,गुलाबी रंगत लिए बहुत ही प्यारी लग रही थी। उसका चेहरा देखती ही रही ,उसने से झट से उठा लिया। भीड़ में से कोई कुछ कह रहा था कोई कुछ। वो बोली -मैं इसे पालूँगी। कोई बोला -ये इसे ऐसे कैसे ले जा सकती है ?पता नहीं किसकी है ,कौन जात है। मुझे इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता इसे मरने के लिए भी तो नहीं छोड़ सकते। 

                वो भीड़ की तरफ देखते हुए बोली -आप में से किसी को ले जाना है तो ले जाए ,उसकी पूरी जिम्मेदारी होगी। सब पीछे हट गए। तमाशा देखने तो आ जाते हैं ,जिम्मेदारी कोई नहीं लेता वो बुदबुदाई। तभी एक सिपाही भी वहाँ आ गया। रिया ने उससे बातें की। श्रीमती शुक्ला पास खड़ी ये सब देख रहीं थीं बोलीं -तूने ही क्यों उठाया इसे ?तू तो बच्चों के झंझट में पड़ना ही नहीं चाहती ,और अब पता नहीं किसकी बच्ची को उठा लाई। मम्मी देखो कितनी प्यारी बच्ची है ?इसके चोट भी लगी है इसे डॉक्टर को भी दिखाना है। अरे!मम्मी लोग तो जानवरों के बच्चे पालते हैं, हम इंसान का बच्चा नहीं पाल सकते कहकर वो कुछ औपचारिकताए पूरी करने लगी। 
                    जब हम उस बच्ची को लेकर घर आये ,मैंने पूछा -अब तेरी नौकरी का क्या होगा ?अभी तो आप हैं ,इतना मैं कमा ही लेती हूँ की इसकी देखभाल के लिए किसी न किसी को रख ही लुँगी ,कब तक पालेगी इसे ?जब तक इसे कोई अपनाने नहीं आ जाता तब तक ये यहाँ पल ही रही है। पता नहीं किसकी कैसी परिस्थिति रही होगी जो इसे इस स्यिति में छोड़ गया मैं इस नन्हीं सी जान को मरने के लिए वहाँ कैसे छोड़ सकती थी। श्रीमति शुक्ला ने महसूस किया कि रिया में ममता का स्रोत कहीं फूट रहा है ,वो मन ही मन शायद किसी आशा की उम्मीद से मुस्कुरा रही थीं। 








 

















                     
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मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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