apna ghr

क्या करूँ ?बच्चे पढ़ते ही नहीं ,यहाँ बड़ी परेशानी होती है।  कोई न कोई मेहमान आ ही जाता है। मैं सारा दिन काम में लगी रहती हूँ ,बच्चों पर ध्यान दे ही नहीं पाती उसने अपने पति से शिकायत की। घर में इतना सारा काम है ,मैं काम  करूँ ,या फिर बच्चों पर ध्यान दूँ रूपा ने शिकायत भरे लहज़े में शिवम से कहा।
             ये रिश्तेदार तो हमारे यहाँ पहले से ही आते रहे हैं ,जब हम छोटे -छोटे थे। अगर काम बढ़े हैं तो काम करने वाले चार हाथ भी बढ़े हैं। माँ तो अकेली थी ,जब हम चार भाई -बहन थे ,ननदें भी थीं और माँ अकेली सारा घर संभालती थी। हम सारे ही पढ़े -लिखे हैं ,भाई इंजीनियर ,दूसरा वकील ,बहन डॉक्टर और मैं भी ग्रेजुएट हूँ। मैं व्यापार करना चाहता था ,मैंने व्यापार किया। मैं मानता हूँ थोड़ी परेशानी हो सकती है ,उन्हें एक कमरा अलग दिया है वो उसमें पढ़ें। शिवम का जबाब सुनकर रूपा चुप रही।

             अगले दिन रूपा अपने बच्चों को लेकर अपने घर जा पहुँची जो उसी शहर में था। शिवम ने उसे फोन करके पूछा -तुम कहाँ हो ?तुमने मुझे बताना भी जरूरी नहीं समझा। उधर से आवाज आई -मैं अपने घर पर हूँ ,बच्चों की छुट्टी थी ,सो उन्हें लेकर मैं यहाँ आ गई। मैं यहाँ परेशान की तुम कहाँ हो ?मैं माँ को क्या जबाब दूँगा ? यह कहकर शिवम ने फोन काट दिया। जब वो वापस घर आई तो माँ ने कुछ नहीं कहा। शायद वो अपने अनुभव के आधार पर परिस्थितियों को संभालने का प्रयत्न कर  रही थीं। अब जब भी बच्चों की छुट्टी होती ,वो अपने मायके जा बैठती। ये उसका हर बार का किस्सा हो गया। माँ मुझे देखतीं और मैं उनसे नजरें चुरा लेता। जब भी मैं रूपा से बात करने की कोशिश करता तो बच्चों की पढ़ाई ठीक से नहीं हो रही का राग अलापती। ये सिर्फ उसका बहाना था। ये मैं समझ रहा था।
                   एक दिन बोली -अब मैं मम्मी के यहाँ  ही रहूँगी ,वहाँ से ही बच्चे अपने स्कूल चले जाया करेंगे। तुम भी वहीं  आ जाया करना। यहाँ काफ़ी भीड़भाड़ है, वहाँ शांति है बच्चों की पढ़ाई भी अच्छे से हो जाएगी यह जानते हुए भी कि वो बहाना बना रही है ,मना करने का कोई फ़ायदा भी नहीं था। वो मेरी माँ से कहकर सारा जरूरत का सामान लेकर अपने घर आ गई। उसकी मम्मी ने भी  कुछ नहीं कहा ,लेकिन मेरी परेशानी वो भांप चुकी थीं। बोलीं -अभी कुछ दिन देखो। अपने घर आकर वो देर से उठती ,सारा काम नौकर कर लेते। टिफ़िन भी लग जाता ,तब वो उठती। बच्चे मोबाइल पर लगे रहते जब मैंने कहा कि बच्चों पर ध्यान दो तो उनके टयूशन लगा दिए। उसका काम घूमना और आराम करना रह गया था ,इसीलिए इसने यहाँ आने का बहाना बनाया।वहाँ  काम करना पड़ता , समय पर उठना ,बच्चों को पढ़ाना ,सारे काम सही समय पर हो जाते थे। इन सबसे भागकर आई थी। 

            एक दिन सासुमाँ ने मुझे बुलाया उन्होंने मेरी परेशानी का कारण जानना चाहा। मैंने सारी बातें बताई ,उन्होंने समझी भी। ठीक है ,मैं कुछ सोचती हूँ। कहकर वो चुप हो गईं। दो -तीन दिन बाद अचानक वो तैयार होकर कहीं जाने लगीं। रूपा ने पूछा -मम्मी आप कहाँ जा रही हो ?वो बोलीं -तुम्हारे भाई के पास ,तुम्हारी भाभी की तबियत ख़राब है ,सोचा कुछ दिन उसके पास रह आऊँ ,रमेश भी अपने घर गया हुआ है उसकी माँ की भी तबियत ख़राब है कुछ दिन की छुट्टी लेकर गया है।तुम अपना ख़्याल रखना।  मम्मी मैं कैसे करुँगी ?रूपा ने कहा। क्यों, क्या परेशानी है ?तुम्हारा पति है ,तुम्हारे बच्चे हैं ,बाहर से कोई आ नहीं रहा ,मैं भी जा रही हूँ। अपने परिवार का ध्यान रखना कहकर वो चली गई। 
             रूपा झुँझलाई ,फ़िर भी उसने सब संभालने की कोशिश की ,लेकिन इतने दिन की आरामदारी उसे भारी पड़ी। काम करते भी ज़ोर पड़ रहा था। कुछ दिन तो संभालती रही ,एक दिन बोली -घर पर [ससुराल ]गए हुए बहुत दिन हो गए। पता नहीं अकेली मम्मी घर को कैसे संभाल रही होगीं ?घर में रौनक सी रहती थी ,मन लगता था। यहाँ  तो सारा दिन खपो ,कोई पूछेगा भी नहीं। तुम और बच्चे तो चले जाते हो ,मैं घर में अकेली ,सूना घर काटने को दौड़ता है। मैं सोच रही थी अपने ही घर चलते हैं। मम्मी की भी मदद हो जायगी ,बेचारी कब तक इस उम्र में भी काम करती रहेंगी। बच्चों का स्कूल वहाँ से नज़दीक ही है ,तुम्हें भी दूर से आना पड़ता है। पछताते हुए बोली -बेकार ही मैंने यहाँ सामान ढ़ोने की मेहनत की। जैसी तुम्हारी मर्ज़ी मैं सिर्फ़ इतना ही कह पाया। अगले दिन वो अपना सामान बांधने लगी और अपनी मम्मी को फ़ोन कर  दिया -कि मम्मी आकर अपना घर सम्भालो ,मैं अपने घर जा रही हूँ। मैं मन ही मन अपनी सासु माँ का धन्यवाद कर रहा था कि उनकी तरक़ीब काम कर गई ,मैं सोच रहा था -काश !ऐसी माँ सबकी हो तो किसी का घर न टूटे। 












laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post