kimt

ज माँ बहुत खुश थीं क्योंकि उन्हें अचानक याद आ गया था ,कि सहेली के बच्चे का   जन्मदिन आने वाला है। अबकी बार मुझे याद रहा ,पिछली बार वो ताना मार रही थी।  घर परिवार में इतनी उलझी रहती है कि तुझे ध्यान  नहीं रहता ,न किसी का जन्मदिन ,न किसी की शादी की सालगिरह। मम्मी प्रसन्न थी कि अबकी बार उसे अचम्भित कर  दूँगी। सोचने लगीं कि क्या उपहार लाऊंगी ,मुझसे पूछा? अभी तो दो -चार दिन हैं ,अभी से क्यूँ परेशान हो रही हो ?अभी से कुछ अच्छा सा सोचूंगी ,तभी तो लाऊंगी। बाज़ार जाकर लाना भी है। 
                      वे सोचती हुई कमरे से निकल गईं।  मैं जानती थी कि वे काम में लगीं थीं लेकिन ध्यान कहीं ओर था। अगले दिन वो तैयार होकर बाजार के लिए निकल गईं। जब वो घर आई तो उनके हाथ में एक नहीं दो उपहार थे। मैंने पूछा दूसरा किसके लिए है ?कहने लगीं -अगले महीने ही मेरे भतीजे का भी जन्मदिन है उसके लिए भी साथ के साथ ले लिया। लेकिन मामा तो दूसरे शहर में रहते हैं उन तक कैसे पहुँचाओगी ?बोलीं -मम्मी -पापा अगले ही हफ़्ते उनके पास जायेंगे ,उन्हें पकड़ा दूँगी। मैंने देखा दो क्रिकेट के सेट थे ,एक लकड़ी वाला दूसरा मोटी प्लास्टिक में था। मैंने इसका कारण पूछा -बोलीं सहेली का बेटा बड़ा है ,समझदार है ,लेकिन मेरा भतीजा छोटा व शरारती है। मैंने देखा था कि जब दोनों भाई आपस में लड़ रहे थे। लकड़ी के बल्ले से तो आपस में सिर ही फोड़ लेंगे और फिर छोटा तो सोचेगा ,बुआ ने मेरे लिए कुछ नहीं भेजा। इसीलिए एक का बल्ला दूसरे की गेंद। बताकर वो तो चली गईं लेकिन उनकी मुस्कान बता रही थी कि उस समय वो अपने भतीजों के बारे में सोच रहीं थीं और सोच -सोचकर मुस्कुरा रही थीं। 

           मैं सोच रही थी कितनी गहराई से सारी बातें सोची होंगी। दोनों बच्चे भी खुश होंगे ,चोट भी न लगे ,भागेंगे -दौड़ेंगे सेहतमंद भी रहेंगे। मम्मी अकसर उनकी बातें सोचती ,कल्पना करती कि जैसे वो उनकी नजरों के सामने ही खेल रहे हों। अपनी सहेली के लड़के के जन्मदिन में गईं वहाँ सब बहुत खुश हुए और उनका बेटा  तो उपहार देखकर और भी बहुत खुश हुआ। मम्मी को अपने ऊपर ओर भी विश्वाश हो गया की जो भी उपहार मैंने चुने  हैं ,सही हैं। बोलीं -आज ही ये उपहार दे आते हैं ,कल भी जाना है तो आज ही क्यूँ नहीं। वो बहुत खुश थीं ,मैंने भी मना नहीं किया और हम दोनों तैयार होकर नानाजी के घर पहुँच गए। 
                             हमें देखकर नाना -नानी खुश हुए बातचीत के दौरान मम्मी ने वो उपहार दिखाया जिन्हें देखकर नानाजी चुप हो गए बोले कहाँ से उठा लाई ,व्यंगात्मक लहज़े में बोले कितने के लाई उनके बोलने के लहज़े से लग रहा था कि ये उन्हें पसंद नहीं आये। मम्मी ने अपनी तर्क रखा -बच्चे ऐसी ही चीजों से खेलते हैं आप बस ले जाना ,देखना बच्चे कितने खुश होंगे। नानाजी के घर से आकर मम्मी के चेहरे से हंसी गायब थी ,अजीब सी कशमकश में थीं। अपने को आश्वस्त करने के लिए उन्होंने मुझसे पूछा -क्या वो सही नहीं थे ?बच्चों के लिए तो ऐसी ही चीजें होती हैं। और क्या लेती ?मैंने मम्मी का मन रखने के लिए कह दिया -कोई नहीं !नानाजी तो ऐसे ही बोलते रहते हैं आप परेशान न हों ,देखना आपका दिया उपहार देखकर बच्चे बहुत खुश होंगे। 
                   कुछ दिन तक मम्मी चुप रहीं लेकिन जब उन्हें लगा कि  नाना -नानी अब आ गए होंगे। बोलीं चलो उनसे मिल आते हैं। मन ही मन शायद वे जानना चाह रही थीं कि बच्चे उनका उपहार देखकर खुश हुए कि नहीं। घर पहुँचकर इधर -उधर की बातें करते रहे लेकिन जो वो जानना चाह रही थीं वो ही नहीं हो रही थी। मम्मी बात करती -करती जब अंदर कमरे में गईं तो ये देखकर हैरत में रह गईं कि जो उपहार वो बच्चों के लिए इतने मन से लाई थीं ,वो तो वहीं पड़ा था। बाहर आकर नानाजी से पूछा आप लेकर नहीं गए क्या ?वो उपहार। तभी नानाजी 
ने जो कहा ,उसे सुनकर मैं भी अचम्भित रह गई। बोले -उसे क्या तेरे इन प्लास्टिक के बल्लों की जरूरत पड़ी है। उसके  बच्चों के पास एक से एक मंहगा खिलौना है। इन्हें कहाँ लादकर ले जाते हम 'ये कहकर नानाजी तो चले गए। मम्मी का मुँह उतर गया। 
                          मैंने देखा वे चुपके से अपनी आँखों में आए उन नन्हें आसुओं को पोंछ रही थीं जो उनकीआँखों में न चाहते हुए भी आ गए थे। कहीं कोई देख न ले उन्होंने अपनी गर्दन घुमा ली  थी, पर मैंने देख लिया था। मैं सोच रही थी कि इन्होंने सिर्फ़ प्लास्टिक का बैट देखा उसके डिब्बे पर लिखी क़ीमत देखी ,लेकिन उससे जुडी भावनाएँ नहीं देखीं। उसके पीछे की सोच नहीं देखी ,उनकी कोई क़ीमत नहीं। उनके उन अनमोल विचारों को नहीं देख पाए जो सोचकर वो लाई थी। भावनाएं, प्यार ,अपनापन सब उस कीमत के तराज़ू में तौल दिया। 













  
laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post