वीरपाल जी आज तैयार होकर चल ही दिए ,बहुत दिन हुए ,बहन जी की कोई ख़बर नहीं ,बहुत पहले उनका फ़ोन आया था। कह रहीं थीं -भइया आ जाते ,मिल जाते। मैंने उनसे पूछा था 'कि कोई दिक्क़त की तो बात नहीं घर में सब ठीक हैं ,बहु ,बच्चे। वे. बोली -बोलीं हाँ सब ठीक है ,आजकल की बहुओं को तो आप जानते ही हो। कैसी होती हैं ?पर छोडो ,अबकी बार इधर आओ तो मिलकर जाना। तभी से दिमाग़ में परेशानी थी जाने का समय मिला नहीं ,तुम अपना ख़्याल रखनाअपनी पत्नी से कहकर घर से निकल गए।
गाड़ी में बैठे सोच रहे थे -एक- डेढ़ साल पहले ही तो उनके बेटे का विवाह हुआ था। सब कह रहे थे कि बहु पढ़ी -लिखी समझदार और सुंदर है। जिससे भी पूछा घर में तो सभी बड़ी तारीफ़ कर रहे थे। फिर ऐसा क्या हुआ ?जब लड़की को देखने जाते हैं ,तब हमें उसकी सुंदरता व बोलचाल ही दिखाई देते हैं पर आंतरिक गुण तो धीरे -धीरे ही पता चलते हैं ,जब साथ में रहो। शुरू -शुरू में तो अच्छा व्यवहार किया होगा ,तभी सब उसकी बड़ी प्रशंशा कर रहे थे। ख़ैर अब जा ही रहा हूँ तो पता चल ही जाएगा। न जाने कितने विचार आये ,गए। सोचते -सोचते कब घर आ गया पता ही न चला। गाड़ी से उतरकर दरवाजे पर लगी घंटी बजाई। अंदर से किसी बच्चे के रोने की आवाज़ आ रही थी। तभी उन्हें ध्यान आया ,अरे !बहनजी का पोता होगा [ध्यान से सोचते हुए ]शायद किसी ने बताया था। यूँ ही दिन गुज़र जाते हैं। तभी किसी ने दरवाजा खोला ,देखा बच्चे को गोद में लिए बहु खड़ी थी। मैंने पूछा -बहन जी नहीं हैं क्या? घर में। उसने पैर छुए बोली- नहीं ,आप अंदर आइये। मेरे पास बच्चे को बिठाकर वो अंदर चली गई।
जब वो पैर छू रही थी ,वो उसे बड़ी हिक़ारत भरी नजरों देख रहे थे ,जैसे उसने कोई जुर्म किया हो। सोच रहे थे अब पैर छूने का ढोंग करती है ,पता नहीं ,बहनजी से कैसा व्यवहार करती होगी। बहु पानी लेकर आई। बोली -मामाजी अच्छा हुआ ,आप आ गए। मेरी चिट्ठी तो मिली होगी ,आपको ? तुम्हारी चिट्ठी !तुम्हारी तो कोई चिट्ठी नहीं मिली मुझे उन्होंने आश्चर्य से कहा। फोन के युग में ,चिट्ठी लिखने की क्या आवश्यकता पड़ गई ?उन्होंने घबराते हुए पूछा- बहनजी तो ठीक हैं न ,वे कहाँ हैं ?माताजी तो बाहर गईं हैं ,कल तक आएगी। मामा जी !आप फ्रैश होकर खाना खा लीजिए ,मैं खाना ही बनाने जा रही थी पर ये रोये जा रहा था [उसने बच्चे की ओर इशारा किया ]इसीलिए देर हो गई ,वे भी आते ही होंगे। जरा आप ध्यान रखिए ,ये अब बैठने लगा है ,खिसकने की कोशिश करता है। दो बार गिर चुका है कहकर वो रसोईघर में चली गई।
बहु के व्यवहार से ऐसा कुछ भी नहीं लगा कि उसमे कुछ बनावट है ,कुछ भी अनौपचारिक नहीं लगा पर बहनजी नहीं मिलीं। उनसे अब बैठा नहीं जा रहा था। बहु से पूछना चाह रहा था ,तुमने कैसी चिट्ठी कब लिखी। थोड़ी ही देर बाद उनका भांजा सुनील आ गया। थोड़ी औपचारिकता के बाद उन्होंने पूछा -बहु ने कब चिट्ठी लिखी ?पहले वो चुप रहा फिर मामाजी को अपनी ओर देखते हुए बोला -कुछ नहीं मैंने डाली ही नहीं थी।
कुछ ख़ास बात नहीं थी। ये आखिरी लाइन बहु ने सुन ली थी। क्या ?तुमने चिट्ठी डाली ही नहीं थी और मैं सोच रही थी मामाजी इसी कारण से आये हैं। सुनील ने इशारे से उसे चुप रहने को कहा। सबने खाना खाया ,मामाजी ने कहा -मैं शाम को चला जाऊंगा। सुनील ने कहा -इतने दिनों में आये हैं ,मम्मी से मिलकर ही जाना रात ही की तो बात है। बहनजी किसी रिश्तेदारी में गई हैं या और कहीं उन्होंने पूछा। घूमने गई हैं ,मौहल्ले में बस जा रही थी ,हमने कहा -आप भी घूम आइये ,कल तक आ जाएंगी। उन्हें कुछ खटक रहा था कि दोनों कुछ छिपा रहे थे।
कहीं बहनजी के साथ कुछ कर करा तो नहीं दिया। ख़ैर अब आया हूँ तो उनकी खबर लेकर ही जाऊँगा। आजकल के बच्चों कुछ नहीं पता ,लड़के तो ब्याह होते ही बहु की हाँ में हाँ मिलाने लगते हैं। आया हूँ तो अपनी बहन की खबर ले कर ही जाऊँगा ,वे खुद घूमने गई हैं , या इन्होंने ही निकाला है। कुछ तो झोल है सोचकर उन्होंने वहीं रुकने की सोची। शाम का खाना खा कर हम दूरदर्शन पर धारावाहिक देखने लगे। मैंने देखा ,बच्चा बहुत तंग कर रहा था। बहु बार -बार उसे देखने आ रही थी कि कहीं वो गिर न जाये। मैंने उसकी परेशानी देखकर कहा -मैं इसे देख लूँगा ,तुम जाकर अपना काम निपटाओ। आश्वस्त होकर वह चली गई काम निपटाने के बाद आकर बोली -बड़े -बूढ़ों का इतना ही सहारा काफी है और बच्चे को लेकर चली गई।
वे सोचने लगे ,बड़े -बूढ़े आजकल के बच्चों को अच्छे लगते ही कहाँ हैं ?सोचते हैं ये निकले हम राज करें। कोई टोका -टाकी नहीं स्वतंत्र जीवन जीना चाहते हैं ,पर ये बहु तो ठीक लग रही है ,व्यवहार से भी और बातचीत से भी ,फिर क्या दिक्क़त हो सकती है। वे सोने का प्रयत्न करने लगे लेकिन नींद नहीं आ रही थी। तभी सुनील के कमरे से आवाज़ आती सुनाई दी। वीरपाल जी उठे और जानने की कोशिश करने लगे ,आवाज पर ध्यान देने के लिए वो थोड़ा और नजदीक गए वे सोच रहे थे कि इन्होंने सोचा होगा कि मैं सो गया। बहु कह रही थी कि आपने मेरी चिट्ठी मामाजी को क्यों नहीं भेजी? बहु का नाराजगी भरा स्वर था। उन्हें भी तो पता चलना चाहिए ,अपनी बहन के बारे में ,वे क्या व्यवहार कर रही हैं हमारे साथ। दूध -घी को तरसा रखा है ,चैन से रहने नहीं देतीं
,बात -बात पर मुँह बनाकर बैठ जाती हैं। बार -बार अलग करने की धमकी देती हैं। बच्चे को संभालने तक का सहारा नहीं ,देखा नहीं जब लड़का गिर गया और उसका होंठ फट गया ,उन्होंने देखा तक नहीं। मुझे नौकरी छोड़नी पड़ी। कहती हैं, मैं तुम्हारे कारण मैं अपनी आजादी क्यों खराब करूँ।
मैं आपके मामाजी से पूछना चाहती हूँ कि उनकी भी बेटी है ,अगर उसकी सास भी ऐसा व्यवहार करे तो वे क्या करेंगे। हर बार गलती बहुओं की ही नहीं होती ,हम यदि अलग होते हैं तो लोग कहेंगे बुढ़ापे में माँ को अकेला छोड़ दिया। तब भी गलती हमारी होगी ,जिसका जैसा स्वभाव होता है वो बदलता नहीं। चाहे वो सास बने या बहु। बदलता कुछ नहीं बस उम्र बढ़ती है ,पापाजी बता रहे थे कि पहले भी ऐसे ही घूमती थीं। सुनील बोला -ये हमारे घर का मामला है ,इसमें हम उन्हें क्यों घसीटें ?अपने घर की बात घर में ही रहने दो। उनकी बहन है ,वो मानेंगे भी नहीं। क्योंकि उम्र के साथ रिश्ते की भी एक गरिमा होती है ,कोई ऐसा सोचेगा भी नहीं कि सास या एक माँ अपने बच्चों के साथ ऐसा करती होगी।
उनकी बात सुनकर वीरपाल जी मन ही मन लज्ज़ित हुए। चुपचाप आकर लेट गए नींद तो कोसों दूर थे । सोचने लगे ,क्या सोचा था ,और क्या निकला। कभी -कभी हम लोगों को कितना गलत समझ लेते हैं ,रिश्तों के कारण भी। बहु है ,तो जरूर गलत ही होगी। सोचते-सोचते कब आँख लगी ,सुबह बच्चे की किलकारी से आँख खुली। तब तक बहु भी चाय ले आयी। जिस बहु को वे हिकारत भरी नजरों से देख रहा था। आज उससे नज़र नहीं मिला पा रहे थे।
दोपहर के खाने तक बहनजी आ गईं ,देखकर बड़ी खुश हुई। आते ही फ़्रिज की चाबी बहु को देकर बोलीं -भइया के लिए फ़ल काट देना [उन्होंने चाबी छुपाकर दी थी पर उन्होंने देख लिया ]अब खाने में कई व्यंजन थे ,जो बहनजी के आने पर निकले थे। उन्होंने पूछा -कहाँ घूमने गईं थीं ?वो जगह गिनाने लगीं। उन्होंने कहा -सास भी बन गईं ,दादी भी बन गईं। सास या चौधरन बनना ही काफी नहीं ,उन्हें भी समझो जो तुम्हारे पास हैं। देखो !कितना प्यारा पोता है ?कृष्ण -कन्हैया सा ,इसके साथ भी खेलो। कितना प्यारा परिवार है आपका ?बहनजी ने सोचा 'शायद किसी ने मेरी शिकायत की है ,अंदाजे से बोलीं -किसी ने कुछ कहा क्या ?उन्होंने , कहा नहीं मैं तो तुमसे ही मिलने आया था ,अपनों की खबर लेने। मिल लिया, अब चलता हूँ।
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गाड़ी में बैठे सोच रहे थे -एक- डेढ़ साल पहले ही तो उनके बेटे का विवाह हुआ था। सब कह रहे थे कि बहु पढ़ी -लिखी समझदार और सुंदर है। जिससे भी पूछा घर में तो सभी बड़ी तारीफ़ कर रहे थे। फिर ऐसा क्या हुआ ?जब लड़की को देखने जाते हैं ,तब हमें उसकी सुंदरता व बोलचाल ही दिखाई देते हैं पर आंतरिक गुण तो धीरे -धीरे ही पता चलते हैं ,जब साथ में रहो। शुरू -शुरू में तो अच्छा व्यवहार किया होगा ,तभी सब उसकी बड़ी प्रशंशा कर रहे थे। ख़ैर अब जा ही रहा हूँ तो पता चल ही जाएगा। न जाने कितने विचार आये ,गए। सोचते -सोचते कब घर आ गया पता ही न चला। गाड़ी से उतरकर दरवाजे पर लगी घंटी बजाई। अंदर से किसी बच्चे के रोने की आवाज़ आ रही थी। तभी उन्हें ध्यान आया ,अरे !बहनजी का पोता होगा [ध्यान से सोचते हुए ]शायद किसी ने बताया था। यूँ ही दिन गुज़र जाते हैं। तभी किसी ने दरवाजा खोला ,देखा बच्चे को गोद में लिए बहु खड़ी थी। मैंने पूछा -बहन जी नहीं हैं क्या? घर में। उसने पैर छुए बोली- नहीं ,आप अंदर आइये। मेरे पास बच्चे को बिठाकर वो अंदर चली गई।
जब वो पैर छू रही थी ,वो उसे बड़ी हिक़ारत भरी नजरों देख रहे थे ,जैसे उसने कोई जुर्म किया हो। सोच रहे थे अब पैर छूने का ढोंग करती है ,पता नहीं ,बहनजी से कैसा व्यवहार करती होगी। बहु पानी लेकर आई। बोली -मामाजी अच्छा हुआ ,आप आ गए। मेरी चिट्ठी तो मिली होगी ,आपको ? तुम्हारी चिट्ठी !तुम्हारी तो कोई चिट्ठी नहीं मिली मुझे उन्होंने आश्चर्य से कहा। फोन के युग में ,चिट्ठी लिखने की क्या आवश्यकता पड़ गई ?उन्होंने घबराते हुए पूछा- बहनजी तो ठीक हैं न ,वे कहाँ हैं ?माताजी तो बाहर गईं हैं ,कल तक आएगी। मामा जी !आप फ्रैश होकर खाना खा लीजिए ,मैं खाना ही बनाने जा रही थी पर ये रोये जा रहा था [उसने बच्चे की ओर इशारा किया ]इसीलिए देर हो गई ,वे भी आते ही होंगे। जरा आप ध्यान रखिए ,ये अब बैठने लगा है ,खिसकने की कोशिश करता है। दो बार गिर चुका है कहकर वो रसोईघर में चली गई।
बहु के व्यवहार से ऐसा कुछ भी नहीं लगा कि उसमे कुछ बनावट है ,कुछ भी अनौपचारिक नहीं लगा पर बहनजी नहीं मिलीं। उनसे अब बैठा नहीं जा रहा था। बहु से पूछना चाह रहा था ,तुमने कैसी चिट्ठी कब लिखी। थोड़ी ही देर बाद उनका भांजा सुनील आ गया। थोड़ी औपचारिकता के बाद उन्होंने पूछा -बहु ने कब चिट्ठी लिखी ?पहले वो चुप रहा फिर मामाजी को अपनी ओर देखते हुए बोला -कुछ नहीं मैंने डाली ही नहीं थी।
कुछ ख़ास बात नहीं थी। ये आखिरी लाइन बहु ने सुन ली थी। क्या ?तुमने चिट्ठी डाली ही नहीं थी और मैं सोच रही थी मामाजी इसी कारण से आये हैं। सुनील ने इशारे से उसे चुप रहने को कहा। सबने खाना खाया ,मामाजी ने कहा -मैं शाम को चला जाऊंगा। सुनील ने कहा -इतने दिनों में आये हैं ,मम्मी से मिलकर ही जाना रात ही की तो बात है। बहनजी किसी रिश्तेदारी में गई हैं या और कहीं उन्होंने पूछा। घूमने गई हैं ,मौहल्ले में बस जा रही थी ,हमने कहा -आप भी घूम आइये ,कल तक आ जाएंगी। उन्हें कुछ खटक रहा था कि दोनों कुछ छिपा रहे थे।
कहीं बहनजी के साथ कुछ कर करा तो नहीं दिया। ख़ैर अब आया हूँ तो उनकी खबर लेकर ही जाऊँगा। आजकल के बच्चों कुछ नहीं पता ,लड़के तो ब्याह होते ही बहु की हाँ में हाँ मिलाने लगते हैं। आया हूँ तो अपनी बहन की खबर ले कर ही जाऊँगा ,वे खुद घूमने गई हैं , या इन्होंने ही निकाला है। कुछ तो झोल है सोचकर उन्होंने वहीं रुकने की सोची। शाम का खाना खा कर हम दूरदर्शन पर धारावाहिक देखने लगे। मैंने देखा ,बच्चा बहुत तंग कर रहा था। बहु बार -बार उसे देखने आ रही थी कि कहीं वो गिर न जाये। मैंने उसकी परेशानी देखकर कहा -मैं इसे देख लूँगा ,तुम जाकर अपना काम निपटाओ। आश्वस्त होकर वह चली गई काम निपटाने के बाद आकर बोली -बड़े -बूढ़ों का इतना ही सहारा काफी है और बच्चे को लेकर चली गई।
वे सोचने लगे ,बड़े -बूढ़े आजकल के बच्चों को अच्छे लगते ही कहाँ हैं ?सोचते हैं ये निकले हम राज करें। कोई टोका -टाकी नहीं स्वतंत्र जीवन जीना चाहते हैं ,पर ये बहु तो ठीक लग रही है ,व्यवहार से भी और बातचीत से भी ,फिर क्या दिक्क़त हो सकती है। वे सोने का प्रयत्न करने लगे लेकिन नींद नहीं आ रही थी। तभी सुनील के कमरे से आवाज़ आती सुनाई दी। वीरपाल जी उठे और जानने की कोशिश करने लगे ,आवाज पर ध्यान देने के लिए वो थोड़ा और नजदीक गए वे सोच रहे थे कि इन्होंने सोचा होगा कि मैं सो गया। बहु कह रही थी कि आपने मेरी चिट्ठी मामाजी को क्यों नहीं भेजी? बहु का नाराजगी भरा स्वर था। उन्हें भी तो पता चलना चाहिए ,अपनी बहन के बारे में ,वे क्या व्यवहार कर रही हैं हमारे साथ। दूध -घी को तरसा रखा है ,चैन से रहने नहीं देतीं
,बात -बात पर मुँह बनाकर बैठ जाती हैं। बार -बार अलग करने की धमकी देती हैं। बच्चे को संभालने तक का सहारा नहीं ,देखा नहीं जब लड़का गिर गया और उसका होंठ फट गया ,उन्होंने देखा तक नहीं। मुझे नौकरी छोड़नी पड़ी। कहती हैं, मैं तुम्हारे कारण मैं अपनी आजादी क्यों खराब करूँ।
मैं आपके मामाजी से पूछना चाहती हूँ कि उनकी भी बेटी है ,अगर उसकी सास भी ऐसा व्यवहार करे तो वे क्या करेंगे। हर बार गलती बहुओं की ही नहीं होती ,हम यदि अलग होते हैं तो लोग कहेंगे बुढ़ापे में माँ को अकेला छोड़ दिया। तब भी गलती हमारी होगी ,जिसका जैसा स्वभाव होता है वो बदलता नहीं। चाहे वो सास बने या बहु। बदलता कुछ नहीं बस उम्र बढ़ती है ,पापाजी बता रहे थे कि पहले भी ऐसे ही घूमती थीं। सुनील बोला -ये हमारे घर का मामला है ,इसमें हम उन्हें क्यों घसीटें ?अपने घर की बात घर में ही रहने दो। उनकी बहन है ,वो मानेंगे भी नहीं। क्योंकि उम्र के साथ रिश्ते की भी एक गरिमा होती है ,कोई ऐसा सोचेगा भी नहीं कि सास या एक माँ अपने बच्चों के साथ ऐसा करती होगी।
उनकी बात सुनकर वीरपाल जी मन ही मन लज्ज़ित हुए। चुपचाप आकर लेट गए नींद तो कोसों दूर थे । सोचने लगे ,क्या सोचा था ,और क्या निकला। कभी -कभी हम लोगों को कितना गलत समझ लेते हैं ,रिश्तों के कारण भी। बहु है ,तो जरूर गलत ही होगी। सोचते-सोचते कब आँख लगी ,सुबह बच्चे की किलकारी से आँख खुली। तब तक बहु भी चाय ले आयी। जिस बहु को वे हिकारत भरी नजरों से देख रहा था। आज उससे नज़र नहीं मिला पा रहे थे।
दोपहर के खाने तक बहनजी आ गईं ,देखकर बड़ी खुश हुई। आते ही फ़्रिज की चाबी बहु को देकर बोलीं -भइया के लिए फ़ल काट देना [उन्होंने चाबी छुपाकर दी थी पर उन्होंने देख लिया ]अब खाने में कई व्यंजन थे ,जो बहनजी के आने पर निकले थे। उन्होंने पूछा -कहाँ घूमने गईं थीं ?वो जगह गिनाने लगीं। उन्होंने कहा -सास भी बन गईं ,दादी भी बन गईं। सास या चौधरन बनना ही काफी नहीं ,उन्हें भी समझो जो तुम्हारे पास हैं। देखो !कितना प्यारा पोता है ?कृष्ण -कन्हैया सा ,इसके साथ भी खेलो। कितना प्यारा परिवार है आपका ?बहनजी ने सोचा 'शायद किसी ने मेरी शिकायत की है ,अंदाजे से बोलीं -किसी ने कुछ कहा क्या ?उन्होंने , कहा नहीं मैं तो तुमसे ही मिलने आया था ,अपनों की खबर लेने। मिल लिया, अब चलता हूँ।
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