तवे पर सिकती रोटी सी ,
तड़के की सोंधी महक ,
घर के कोने -कोने पर बनी कविता।
बाजार भाव से लेकर।
महंगाई ,खर्चो से जूझती कविता।
सपनों की गहराई में ,डूबती -उबरती ,
इच्छाओँ के पँख लिए ,
जिम्मेदारियों के बोझ तले ,
उभरती नित नई कविता।
दाल -भात से लेकर ,
महिने के राशन में उलझी कविता।
दवाइयों के बिल सी ,कविता।
बच्चों की किलकारियों में ,
किलकिलाती कविता।
स्वच्छंद ,अंबर में हिलोरे लेती कविता।
जिम्मेदारियों के बोझ तले ,
न जाने कहाँ गुम हो गई कविता।
बेबस ,बेचैन ,तड़फड़ाती ,झुँझलाती
न जाने कहाँ ?दम तोड़ती कविता।
तड़के की सोंधी महक ,
घर के कोने -कोने पर बनी कविता।
बाजार भाव से लेकर।
महंगाई ,खर्चो से जूझती कविता।
सपनों की गहराई में ,डूबती -उबरती ,
इच्छाओँ के पँख लिए ,
जिम्मेदारियों के बोझ तले ,
उभरती नित नई कविता।
दाल -भात से लेकर ,
महिने के राशन में उलझी कविता।
दवाइयों के बिल सी ,कविता।
बच्चों की किलकारियों में ,
किलकिलाती कविता।
स्वच्छंद ,अंबर में हिलोरे लेती कविता।
जिम्मेदारियों के बोझ तले ,
न जाने कहाँ गुम हो गई कविता।
बेबस ,बेचैन ,तड़फड़ाती ,झुँझलाती
न जाने कहाँ ?दम तोड़ती कविता।
