प्रिया जब बड़ी हुई ,तो उसे फ्राक पहनने के लिए मना कर दिया। मौहल्ले की गलियों में भी घूमने ,उछल -कूद करने के लिए मना किया जाने लगा। उसे अपनी जिंदगी में आये बदलाव व बेवज़ह की रोक -टोक अच्छी नहीं लगी। मन ही मन बुदबुदाने लगी '- बड़ी हुई तो क्या ?इसमें मेरी गलती है. सब बड़े होते हैं ,तो क्या जीना छोड़ दें।फिर भी उसने फ्राक पहनना नहीं छोड़ा। बुआ जी ने देखा तो बोलीं -देखो ,टांड़ सी लम्बी हो गई है फराक पहने घूमे है ,आजकल के बच्चों को तो देखो कहना मानने का तो काम ही नहीं ,सूट -सलवार पहनों पूरा तन ढ़के है ,ये जो टांगे दिख रही है ये क्या अच्छी लगे हैं। बुआ जी की बात सुनकर प्रिया मुँह बनाया और उनकी बात नजरअन्दाज करके छत पर चली गई।
उसे कई बार कपड़ों के लिए टोका गया ,कई बार डांट भी पड़ी ,लेकिन एक दिन उसे अपनी बात कहने का मौका मिल ही गया। हुआ यूँ ,कि पड़ोस में रहने वाली एक लड़की किसी लड़के के साथ भाग गई। सारे मौहल्ले में ढूढ़ मची वो नहीं मिली बाद में पता चला कि वो अपनी मर्ज़ी से उसके साथ गई थी। अब प्रिया बोली -देख लो वो तो सलवार सूट पहनती थी ,पूरा तन ढकता था। मौहल्ले में भी नहीं घूमती थी ,हमेशा घर के बाहर ताला लगा रहता था। फिर भी देखो ,भाग गई। लड़की सूट पहने या साड़ी इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता ,फ़र्क पड़ता है आदमी की सोच से। जो ऐसी सोच वाले होंगे ,उन्हें सात तालों में भी बंद कर लो ,तब भी वे ऐसी हरकतें करेंगे। ज्यादा बंधन से भी विवश होकर कभी -कभी आदमी ऐसे कदम उठा लेता है। हमे अपनी और अपने माता -पिता की इज्ज़त का ख़्याल है। इस घटना से व प्रिया की बातों से ये असर हुआ ,कि अब उसे फ्राक पहनने की इजाज़त मिल गई ,लेकिन घर में।
क्या उम्र थी ,उसकी बीसवाँ साल ही तो लगा था ,उसे। लड़का ढूढ़ा जाने लगा ,उसके लिए। ये उम्र भी अज़ीब होती है। भोलापन ,नए -नए सपने ,अनेक कल्पनायें मन प्रसन्नता से झूम उठता है। विवाह के बाद कोई बंधन नहीं होगा। वो खुश थी। कुछ दिन बाद उसका बड़ी धूमधाम से विवाह सम्पन्न हुआ। उसने मुझे बताया ,दीपा हम हनीमून के लिए किसी पहाड़ी इलाक़े में जा रहे हैं। उसकी ख़ुशी देखते ही बनती थी ,ऐसे लग रहा था जैसे कोई कैदी जेल से मुक्त होते समय प्रसन्न होता है। मैं अपनी पढ़ाई के लिए बाहर चली गई। वो अपनी ससुराल में मस्त हो गई ,मैं अपनी पढ़ाई में। लगभग दो साल बाद उससे मिलना हुआ ,तो वो रोने लगी। देख मेरी क्या हालत हो गई है ?सबको ख़ुश करने में लगे रहो। सारा दिन काम में निकल जाता है ,कई बार तो समय पर खाना भी नहीं मिल पाता। क्या सोचा था मैंने ?यहाँ भी वही बंधन। पढ़ाई भी छूट गई ,सारे दिन काम में लगे रहो ,लगता है जैसे मैं इस घर की नौकरानी हूँ। मेरी अपनी कोई पहचान ही नहीं है। बहुत सारी बातें हुई और मैंने अपनी शादी के बारे में बताया ,निमन्त्रण देकर आ गई।
प्रिया की बातें सुनकर मुझे भी थोड़ी घबराहट हो रही थी ,लेकिन मैं इन बातों से बच गई। मैं यश के साथ चली गई ,जहाँ वो नौकरी करता था ,मैंने भी नौकरी शुरू कर दी। समय तेज़ी से गुज़र गया ,लगभग बीस साल बाद मेरा उधर जाना हुआ। मैं अपनी मम्मी से कहकर प्रिया से मिलने गई। हम कई साल बाद मिले थे। देखकर वो बहुत खुश हुई। कहने लगी अब याद आई मेरी कहकर अंदर ले गई। मैं यह देखकर चौंक गई कि उसने अपने लड़के की शादी कर दी थी। उसकी बातों से व व्यवहार से लग रहा था ,कि वो बहुत बदल चुकी है। अब वो किसी की नहीं सुनती है। उसकी जिंदगी में अनेक उतार -चढ़ाव आए ,`जिसके कारण परिस्थितियों ने उसे विद्रोही बना दिया था। वो अपनी इच्छानुसार खाती -पीती ,पहनती और घूमती थी। उसे किसी की कोई परवाह नहीं थी।
कहने लगी -कब तक घुट -घुटकर जीते रहेंगे ,अब मैं अपनी मर्जी की जिंदगी जियूँगी। चाहे कोई कुछ भी कहे ,मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता ,न ही मुझे परवाह है किसी की। मैंने कहा -परिस्थितियों से लड़ते -लड़ते तुझमें विद्रोही भावना आ गई है। कभी सोचा है ये ऐसा क्यों हुआ ?क्योंकि तेरी विपरीत परिस्थितियों में न तुझे समझा न किसी ने साथ दिया ,उसका परिणाम आज ये तेरा व्यवहार और तेरी सोच है। कभी तूने सोचा है ,कि ये तू क्या कर रही है ?इसका प्रभाव तेरे बच्चों व तेरी बहुओं पर क्या होगा ?तेरा ऐसा व्यवहार किस कारण से बदला ?सोच और समझ !तेरी सास ने तेरे साथ कभी अच्छा व्यवहार नहीं किया ,न उन लोगों ने तेरी भावनाओं की कभी क़द्र की,जिसका परिणाम आज तू है ,तेरी बदली हुई सोच है। जब तू भी अपने बच्चों व बहुओं के साथ ऐसा ही व्यवहार करेगी ,उन्हें समझेगी नहीं ,तो उसका परिणाम क्या होगा ?ये ही विद्रोह। अभी समय रहते सम्भल जा ,उन्हें समझ , उनसे प्यार से बात कर ,उनके पास बैठ ,उनकी भी तो कुछ इच्छायें होंगी। जिन्हें तू समझना नहीं चाहती ,कभी पूछा है, उनसे ?उन्हें कोई परेशानी तो नहीं। तुझे घर जोड़ना है कि तोडना ?तू ऐसा व्यवहार क्यों करती है ?जो तूने झेला वो भी झेलें ,और तेरी तरह बन जायें ,विद्रोही !एक समझदार ,सभ्य सुलझी हुई ,सास बनकर दिखा। जो साथ तेरे अपने देंगे ,वो बाहर का कोई नहीं देगा। इनके दिल में जगह बना ,दहशत मत भर।
जब कभी उम्र के साथ परेशानी होगी ,ये तेरे अपने ही साथ होंगे। तू सोच रही होगी ,कितना लम्बा भाषण दिया ,लेकिन ये सब तू शांत मन से सोच ,क्या मैं ग़लत कह रही हूँ ?तेरी सहेली हूँ ,तेरा भला ही सोचूँगी। चल अब सो जा ,कल मुझे जल्दी निकलना है। सुबह देखा ,वो शांत थी ,शायद वो सोच रही थी कि अब उसे क्या करना है ?और मैं अपने घर लौट रही थी ,इस उम्मीद से शायद मैं किसी भटके इंसान को सही राह दिखा सकी।
उसे कई बार कपड़ों के लिए टोका गया ,कई बार डांट भी पड़ी ,लेकिन एक दिन उसे अपनी बात कहने का मौका मिल ही गया। हुआ यूँ ,कि पड़ोस में रहने वाली एक लड़की किसी लड़के के साथ भाग गई। सारे मौहल्ले में ढूढ़ मची वो नहीं मिली बाद में पता चला कि वो अपनी मर्ज़ी से उसके साथ गई थी। अब प्रिया बोली -देख लो वो तो सलवार सूट पहनती थी ,पूरा तन ढकता था। मौहल्ले में भी नहीं घूमती थी ,हमेशा घर के बाहर ताला लगा रहता था। फिर भी देखो ,भाग गई। लड़की सूट पहने या साड़ी इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता ,फ़र्क पड़ता है आदमी की सोच से। जो ऐसी सोच वाले होंगे ,उन्हें सात तालों में भी बंद कर लो ,तब भी वे ऐसी हरकतें करेंगे। ज्यादा बंधन से भी विवश होकर कभी -कभी आदमी ऐसे कदम उठा लेता है। हमे अपनी और अपने माता -पिता की इज्ज़त का ख़्याल है। इस घटना से व प्रिया की बातों से ये असर हुआ ,कि अब उसे फ्राक पहनने की इजाज़त मिल गई ,लेकिन घर में।
क्या उम्र थी ,उसकी बीसवाँ साल ही तो लगा था ,उसे। लड़का ढूढ़ा जाने लगा ,उसके लिए। ये उम्र भी अज़ीब होती है। भोलापन ,नए -नए सपने ,अनेक कल्पनायें मन प्रसन्नता से झूम उठता है। विवाह के बाद कोई बंधन नहीं होगा। वो खुश थी। कुछ दिन बाद उसका बड़ी धूमधाम से विवाह सम्पन्न हुआ। उसने मुझे बताया ,दीपा हम हनीमून के लिए किसी पहाड़ी इलाक़े में जा रहे हैं। उसकी ख़ुशी देखते ही बनती थी ,ऐसे लग रहा था जैसे कोई कैदी जेल से मुक्त होते समय प्रसन्न होता है। मैं अपनी पढ़ाई के लिए बाहर चली गई। वो अपनी ससुराल में मस्त हो गई ,मैं अपनी पढ़ाई में। लगभग दो साल बाद उससे मिलना हुआ ,तो वो रोने लगी। देख मेरी क्या हालत हो गई है ?सबको ख़ुश करने में लगे रहो। सारा दिन काम में निकल जाता है ,कई बार तो समय पर खाना भी नहीं मिल पाता। क्या सोचा था मैंने ?यहाँ भी वही बंधन। पढ़ाई भी छूट गई ,सारे दिन काम में लगे रहो ,लगता है जैसे मैं इस घर की नौकरानी हूँ। मेरी अपनी कोई पहचान ही नहीं है। बहुत सारी बातें हुई और मैंने अपनी शादी के बारे में बताया ,निमन्त्रण देकर आ गई।
प्रिया की बातें सुनकर मुझे भी थोड़ी घबराहट हो रही थी ,लेकिन मैं इन बातों से बच गई। मैं यश के साथ चली गई ,जहाँ वो नौकरी करता था ,मैंने भी नौकरी शुरू कर दी। समय तेज़ी से गुज़र गया ,लगभग बीस साल बाद मेरा उधर जाना हुआ। मैं अपनी मम्मी से कहकर प्रिया से मिलने गई। हम कई साल बाद मिले थे। देखकर वो बहुत खुश हुई। कहने लगी अब याद आई मेरी कहकर अंदर ले गई। मैं यह देखकर चौंक गई कि उसने अपने लड़के की शादी कर दी थी। उसकी बातों से व व्यवहार से लग रहा था ,कि वो बहुत बदल चुकी है। अब वो किसी की नहीं सुनती है। उसकी जिंदगी में अनेक उतार -चढ़ाव आए ,`जिसके कारण परिस्थितियों ने उसे विद्रोही बना दिया था। वो अपनी इच्छानुसार खाती -पीती ,पहनती और घूमती थी। उसे किसी की कोई परवाह नहीं थी।
कहने लगी -कब तक घुट -घुटकर जीते रहेंगे ,अब मैं अपनी मर्जी की जिंदगी जियूँगी। चाहे कोई कुछ भी कहे ,मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता ,न ही मुझे परवाह है किसी की। मैंने कहा -परिस्थितियों से लड़ते -लड़ते तुझमें विद्रोही भावना आ गई है। कभी सोचा है ये ऐसा क्यों हुआ ?क्योंकि तेरी विपरीत परिस्थितियों में न तुझे समझा न किसी ने साथ दिया ,उसका परिणाम आज ये तेरा व्यवहार और तेरी सोच है। कभी तूने सोचा है ,कि ये तू क्या कर रही है ?इसका प्रभाव तेरे बच्चों व तेरी बहुओं पर क्या होगा ?तेरा ऐसा व्यवहार किस कारण से बदला ?सोच और समझ !तेरी सास ने तेरे साथ कभी अच्छा व्यवहार नहीं किया ,न उन लोगों ने तेरी भावनाओं की कभी क़द्र की,जिसका परिणाम आज तू है ,तेरी बदली हुई सोच है। जब तू भी अपने बच्चों व बहुओं के साथ ऐसा ही व्यवहार करेगी ,उन्हें समझेगी नहीं ,तो उसका परिणाम क्या होगा ?ये ही विद्रोह। अभी समय रहते सम्भल जा ,उन्हें समझ , उनसे प्यार से बात कर ,उनके पास बैठ ,उनकी भी तो कुछ इच्छायें होंगी। जिन्हें तू समझना नहीं चाहती ,कभी पूछा है, उनसे ?उन्हें कोई परेशानी तो नहीं। तुझे घर जोड़ना है कि तोडना ?तू ऐसा व्यवहार क्यों करती है ?जो तूने झेला वो भी झेलें ,और तेरी तरह बन जायें ,विद्रोही !एक समझदार ,सभ्य सुलझी हुई ,सास बनकर दिखा। जो साथ तेरे अपने देंगे ,वो बाहर का कोई नहीं देगा। इनके दिल में जगह बना ,दहशत मत भर।
जब कभी उम्र के साथ परेशानी होगी ,ये तेरे अपने ही साथ होंगे। तू सोच रही होगी ,कितना लम्बा भाषण दिया ,लेकिन ये सब तू शांत मन से सोच ,क्या मैं ग़लत कह रही हूँ ?तेरी सहेली हूँ ,तेरा भला ही सोचूँगी। चल अब सो जा ,कल मुझे जल्दी निकलना है। सुबह देखा ,वो शांत थी ,शायद वो सोच रही थी कि अब उसे क्या करना है ?और मैं अपने घर लौट रही थी ,इस उम्मीद से शायद मैं किसी भटके इंसान को सही राह दिखा सकी।