main tujhe bhula hi kab tha

सब कहने लगे ,कि बहुत पहुँचे हुए महाराज जी आये हैं ,तुम भी साथ चलो। मैंने भी सोचा ',कुछ ज्ञान ही मिलेगा 'ये सोचकर मैं भी उन लोगों के साथ उनके दर्शन करने चल दिया महाराज जी आये। मैं भी उनके दर्शन करके कृतार्थ हो गया। उनके प्रवचन सुने जिनका सार था ---'हे !इंसान तूने मुझे भुला दिया ,तू मोह -माया के जाल में फँसा है। तू इस संसार में किस लिए आया है ,तेरा क्या कर्म है ,तू भूल चुका है। मैं तुझे बार -बार चेताता हूँ ,तू सोया है ,जाग जा। इधर -उधर के अन्धविश्वाशमें भटक रहा है। इस संसार के चक्रों में फँसकर मुझे भूल चुका है। हे  !मानव तू जाग जा ,सतकर्मों में लग जा। 'सभी बड़ी तारीफ़ कर रहे थे  ,बाबाजी ने कितने अच्छे से समझाया। मुझे भी अच्छा लगा लेकिन मन एक प्रश्न पर उलझ गया ,कि तुम मुझे भूल चुके हो।
                                               मेरा मन बार -बार कह रहा था -हे परमात्मा मैं तुझे भूला ही कब था  ?जब तूने मुझ आत्मा को शारीरिक रूप देकर पृथ्वी पर भेजा ,मैं माँ के गर्भ में भी शारीरिक आकार लेते हुए भी ,तुझे जपता रहा। मुझे अपने से अलग न करो। लेकिन फिर भी तूने मुझे भेजने  की तैयारी की। उसके बाद जब मेरा जन्म हुआ मैं माँ की नाल से अलग हो ,इस अज़नबी संसार में आकर बहुत रोया, कि तुझसे बिछड़कर इस संसार में मेरा क्या होगा ?लेकिन जब मैंने आँखें खोली ,तो मैंने तुझे ही भिन्न -भिन्न रूपों में पाया माता -पिता गुरु आदि में मैंने तुझे ही देखा। इसमें भी तूने सोचा ,मैं मोह में न पड़ जाऊँ ,तू कई तरह से मेरी परीक्षा लेता रहा। लेकिन मैं भी सच्चाई ,ईमानदारी के साथ तेरे बताए रास्ते पर चला। और तुझे साथ लिए हर कर्म को करता रहा कि तूने जो इस जीवन में जिम्मेदारी दी है ,उसे पूरी तरह निभाउँगा। मुझे हर पल तेरे होने का अहसास होता रहा कि जीवन रूपी यज्ञ में तू हमेशा मेरे साथ है ,मैं अकेला नहीं हूँ। हर परिस्थिति का मैंने डटकर सामना किया। सोचा शायद इसमें भी मेरी कुछ भलाई छिपी होगी फिर भी तू कहता है ,मैं तुझे भूल गया।


                            
जब मैं पहली बार काम पर गया ,तेरा ही नाम लिया, किसी नये व्यक्ति से मिलता ,तेरा ही रूप नजर आता। सुख -दुःख ,उतार -चढ़ाव सब सहन किये ,ये सोचकर कि तू परिक्षा ले रहा है। जब पहली बार पितृ सुख देखा ,तो मैं तेरे बाल रूप में खो गया ,उस बाल  रूप की सेवा की ,खुश हुआ तुझे निहारा तुझपर मुग्ध हुआ। उस बाल रूप को तेरे बताए रास्ते पर चलाने की कोशिश की। जब कभी भी शारीरिक कष्ट हुआ तो तेरा नाम लेता। सच्चाई के रास्ते  पर चला पर ग़लत का कभी साथ नहीं दिया। अनेक कष्ट उठाए पर तेरा उपकार मानकर चलता रहा। कभी कुछ मेरे साथ गलत होता तो मैं समझता कि ये मेरी परीक्षा है और इसमें पास होना है। काम सब किये ,जब तेरे बाल रूप की ज़िम्मेदारी दी वो भी निभाई। सही बात के लिए मैं तेरे बाल रूप से भी भीड़ गया। उसे डांटा फटकारा तेरे बताये रास्ते पर चलाया फिर भी तू कहता है ,'मैं तुझे भूल गया ' 
                                              वृद्ध रूप में भी तूने मुझसे सेवा करवाई वो परिक्षा भी मैंने दी और अब भी मैं इस कलम द्वारा तेरा ही गुणगान कर  रहा हूँ। मित्रों से भी मैं तेरे अनेक नामों के साथ मिलता हूँ -राम-राम ,राधे -राधे। मैं सुबह -सुबह तेरे न जाने कितने नामों से मिलता हूँ।  मेरे दिन की शुरुआत तुझसे शुरू होकर तुझ पर ही खत्म होती। जिंदगी की शुरुआत भी तुझसे शुरू होकर तुझ पर ही खत्म होगी। फिर भी तू कहता है -मैं तुझे भूल गया।





laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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