पूर्वा जल्दी -जल्दी खाने की तैयारी में लगी थी ,क्योकि आज उसकी ननद पायल का फोन आया था। वो रेखा को समझा रही थी कि खाने में क्या -क्या बनना है। वो बहुत खुश थी ,कि आज बहुत दिनों बाद दीदी और जीजाजी साथ आ रहे हैं। वह रेखा से मटर छिलने को कहकर खुद रसोईघर में बच्चों के लिए दूध गरम करने चली गई। सोचने लगी ,बेचारी दीदी ने भी कितने कष्ट झेलें हैं ,शुक्र है भगवान ने उनकी सुन ली। अब तो आराम की जिंदगी कटेगी। बच्चों के लिए दूध तैयार करके वो दीदी का कमरा साफ करवाने चली गई।
जब दीदी की शादी हुई थी तब तो मैं नहीं थी ,लेकिन मेरी शादी में आई थीं तभी उनसे मुलाक़ात हुई थी। कुछ परेशान भी थीं लेकिन नई बहु के सामने ज़ाहिर नहीं करना चाह रही थीं। उनकी इसी परेशानी ने मुझे उनकी ओर ध्यान देने पर मज़बूर किया। मैंने उन्हें अपनी मम्मी को कहते सुना -देख लो ये साड़ी दी है ,मुझे तो देते हुए भी शर्म आ रही है। क्या सोचेगी नई बहू !कि इतने बड़े घर में ब्याही है ,ननद। ननदोई बड़ा अफ़सर है और ये सस्ती सी साड़ी उठा लाई। तब मैंने रेखा से ही पूछा था ,उनकी परेशानी के बारे में क्योंकि रेखा ही इस घर में काफी समय से काम करती आई है। वहीं रहती भी है ,उनके परिवार के सदस्य की ही तरह रहती है। तब उसने मुझे बताया -'दीदी की शादी तो अच्छे घर में हुई थी ,जीजाजी भी बड़े अफसर हैं ,पर दीदी के हाथ में कुछ नहीं। जीजाजी अपनी कमाई भी अपनी माँ को ही देते हैं। इतना बताकर वो चली गई।
अगले दिन दीदी अनमने मन से मुझे वो साड़ी देकर चली गईं। रुकने के लिए कहा भी पर वो रुकी नहीं क्योंकि जीजाजी का फोन जो आ गया था। मेरे रहने पर एक दो बार आई। धीरे -धीरे वो खुलने लगीं। उन्होंने बताया कि जीजाजी दूसरे शहर में नौकरी करते हैं ,वो यहीं अपने सास -ससुर की सेवा के लिए यहाँ रहतीं हैं। की कहीं कोई ये न कह दे कि इकलौता लड़का अपने माँ-बाप को बुढ़ापे में छोड़कर चला गया। वो महीने में या जब छुट्टी होती है तब आते हैं। लेकिन मुझे इससे कोई परेशानी नहीं। परेशानी तब होती है जब मुझे खर्चे के लिए बात -बात पर सासू माँ का मुँह देखना पड़ता है। इसके बाद भी वो मुझ पर विश्वास नहीं करतीं। फिर भी हमारा फ़र्ज है उनकी सेवा करना। कभी -कभी बड़ा दुःख होता है जब वो बच्चों के सामने भी बेइज्जती कर देती हैं। यही तो होता है ,दीदी!जिन्हें बहू अच्छी मिलती है वे उसकी क़द्र नहीं करते।
कमरे की सफाई भी हो चुकी थी और खाने की तैयारी भी। अब तो बस उनके आने का इंतजार था। अबकि बार वो बहुत दिनों बाद जीजाजी के साथ आ रही थीं वरना वो हर बार अकेली ही आती थीं। इसीलिए जीजाजी की पसंद का ज्यादा ख़्याल रखा था। अब तो बच्चे भी बड़े हो गए ,सास -ससुर भी नहीं रहे। जीजाजी का रिटायरमेंट भी नजदीक है। चलो कुछ दिन तो दीदी अपने तरीक़े से जिंदगी गुजर लेंगी। दरवाज़े पर हलचल हुई। मैंने रेखा की तरफ इशारा किया वो दरवाजा खोलने चली गई। दीदी और जीजाजी आ गए हैं।मैं उनका स्वागत करने गई। दीदी के गले लगी ,जीजाजी के पैर छूकर उन्हें अंदर ले आई। तब तक प्रदीप भी आ चुके थे। रेखा ने खाना भी लगा दिया था। खाना खाने के बाद प्रदीप जीजाजी से बात करने लगे ,मैं दीदी को अंदर ले आई। मैंने खुश होते हुए दीदी से पूछा -अब तो दीदी खुश हैं, न आप? बच्चे भी बड़े हो गए ,घर की जिम्मेदारी भी पूरी हुईं ,लेकिन दीदी ने जो कहा -उसका उत्तर मैं न दे सकी।
दीदी न कहा -आज मेरे पास घर है ,अच्छा पैसा है ,बच्चे क़ामयाब हैं ,लेकिन जो उम्र खुश रहने की थी। इच्छाएँ पूरी करने की उम्र थी ,वो उम्र तो मैंने परेशानियों में गुज़ार दी। जब हमें पति -पत्नी को साथ रहना चाहिये था ,सुख -दुःख में। वो उम्र हमने दूर रहकर इंतज़ार में गुजार दी ,वो उम्र क्या मुझे दुबारा मिल सकती है। न जानें कितनी इच्छाओं का गला घोंटा ,कितनी परेशानियाँ उठाईं। आज मेरे घुटनों में दर्द है ,शरीर कमज़ोरी महसूस करता है। चार बीमारी लगी हैं उम्र के साथ। अब उस धन -वैभव का मैं क्या करुँगी ?क्या मेरी वो उम्र मुझे वापस मिल सकती है ?ये जिंदगी है जिसमें हम जीते हैं ,मरते हैं। ये कोई धारावाहिक नहीं ,जिसमें कलाकार अनेक परेशानियों को झेलता है। सब ठीक होने पर जवान का जवान ही रहता है। सब खुश। हक़ीक़त ये है ,कि जो उम्र दम तोड़ चुकी है वो कभी वापिस नहीं आती। आज हम साथ रहकर भी साथ नहीं।जिम्मेदारियों को निभाते -निभाते कब हमने एक उम्र खो दी। पता ही न चला। क्या इसे ही ख़ुशी कहते हैं ? क्या वो मेरे बीते दिन वापस आ सकते हैं।
जब दीदी की शादी हुई थी तब तो मैं नहीं थी ,लेकिन मेरी शादी में आई थीं तभी उनसे मुलाक़ात हुई थी। कुछ परेशान भी थीं लेकिन नई बहु के सामने ज़ाहिर नहीं करना चाह रही थीं। उनकी इसी परेशानी ने मुझे उनकी ओर ध्यान देने पर मज़बूर किया। मैंने उन्हें अपनी मम्मी को कहते सुना -देख लो ये साड़ी दी है ,मुझे तो देते हुए भी शर्म आ रही है। क्या सोचेगी नई बहू !कि इतने बड़े घर में ब्याही है ,ननद। ननदोई बड़ा अफ़सर है और ये सस्ती सी साड़ी उठा लाई। तब मैंने रेखा से ही पूछा था ,उनकी परेशानी के बारे में क्योंकि रेखा ही इस घर में काफी समय से काम करती आई है। वहीं रहती भी है ,उनके परिवार के सदस्य की ही तरह रहती है। तब उसने मुझे बताया -'दीदी की शादी तो अच्छे घर में हुई थी ,जीजाजी भी बड़े अफसर हैं ,पर दीदी के हाथ में कुछ नहीं। जीजाजी अपनी कमाई भी अपनी माँ को ही देते हैं। इतना बताकर वो चली गई।
अगले दिन दीदी अनमने मन से मुझे वो साड़ी देकर चली गईं। रुकने के लिए कहा भी पर वो रुकी नहीं क्योंकि जीजाजी का फोन जो आ गया था। मेरे रहने पर एक दो बार आई। धीरे -धीरे वो खुलने लगीं। उन्होंने बताया कि जीजाजी दूसरे शहर में नौकरी करते हैं ,वो यहीं अपने सास -ससुर की सेवा के लिए यहाँ रहतीं हैं। की कहीं कोई ये न कह दे कि इकलौता लड़का अपने माँ-बाप को बुढ़ापे में छोड़कर चला गया। वो महीने में या जब छुट्टी होती है तब आते हैं। लेकिन मुझे इससे कोई परेशानी नहीं। परेशानी तब होती है जब मुझे खर्चे के लिए बात -बात पर सासू माँ का मुँह देखना पड़ता है। इसके बाद भी वो मुझ पर विश्वास नहीं करतीं। फिर भी हमारा फ़र्ज है उनकी सेवा करना। कभी -कभी बड़ा दुःख होता है जब वो बच्चों के सामने भी बेइज्जती कर देती हैं। यही तो होता है ,दीदी!जिन्हें बहू अच्छी मिलती है वे उसकी क़द्र नहीं करते।
कमरे की सफाई भी हो चुकी थी और खाने की तैयारी भी। अब तो बस उनके आने का इंतजार था। अबकि बार वो बहुत दिनों बाद जीजाजी के साथ आ रही थीं वरना वो हर बार अकेली ही आती थीं। इसीलिए जीजाजी की पसंद का ज्यादा ख़्याल रखा था। अब तो बच्चे भी बड़े हो गए ,सास -ससुर भी नहीं रहे। जीजाजी का रिटायरमेंट भी नजदीक है। चलो कुछ दिन तो दीदी अपने तरीक़े से जिंदगी गुजर लेंगी। दरवाज़े पर हलचल हुई। मैंने रेखा की तरफ इशारा किया वो दरवाजा खोलने चली गई। दीदी और जीजाजी आ गए हैं।मैं उनका स्वागत करने गई। दीदी के गले लगी ,जीजाजी के पैर छूकर उन्हें अंदर ले आई। तब तक प्रदीप भी आ चुके थे। रेखा ने खाना भी लगा दिया था। खाना खाने के बाद प्रदीप जीजाजी से बात करने लगे ,मैं दीदी को अंदर ले आई। मैंने खुश होते हुए दीदी से पूछा -अब तो दीदी खुश हैं, न आप? बच्चे भी बड़े हो गए ,घर की जिम्मेदारी भी पूरी हुईं ,लेकिन दीदी ने जो कहा -उसका उत्तर मैं न दे सकी।
दीदी न कहा -आज मेरे पास घर है ,अच्छा पैसा है ,बच्चे क़ामयाब हैं ,लेकिन जो उम्र खुश रहने की थी। इच्छाएँ पूरी करने की उम्र थी ,वो उम्र तो मैंने परेशानियों में गुज़ार दी। जब हमें पति -पत्नी को साथ रहना चाहिये था ,सुख -दुःख में। वो उम्र हमने दूर रहकर इंतज़ार में गुजार दी ,वो उम्र क्या मुझे दुबारा मिल सकती है। न जानें कितनी इच्छाओं का गला घोंटा ,कितनी परेशानियाँ उठाईं। आज मेरे घुटनों में दर्द है ,शरीर कमज़ोरी महसूस करता है। चार बीमारी लगी हैं उम्र के साथ। अब उस धन -वैभव का मैं क्या करुँगी ?क्या मेरी वो उम्र मुझे वापस मिल सकती है ?ये जिंदगी है जिसमें हम जीते हैं ,मरते हैं। ये कोई धारावाहिक नहीं ,जिसमें कलाकार अनेक परेशानियों को झेलता है। सब ठीक होने पर जवान का जवान ही रहता है। सब खुश। हक़ीक़त ये है ,कि जो उम्र दम तोड़ चुकी है वो कभी वापिस नहीं आती। आज हम साथ रहकर भी साथ नहीं।जिम्मेदारियों को निभाते -निभाते कब हमने एक उम्र खो दी। पता ही न चला। क्या इसे ही ख़ुशी कहते हैं ? क्या वो मेरे बीते दिन वापस आ सकते हैं।